वह ख़ुदा (हर एैब से) पाक व पाकीज़ा है जिस ने अपने बन्दे को रातो रात मस्जिद हराम (खाना ऐ काबा) से मस्जिद अक़्सा (आसमानी मस्जिद) तक की सैर कराई जिसके चारो गिर्द हमने हर क़िस्म की बरकत मुहय्या कर रखी है ताकि हम उस को अपनी (कुदरत की) निशानिया दिखाए(1) उसमें शक नहीं कि (वह सब कुछ) सुनता (और) देखता है और हमने मूसा को किताब (तौरेत) अता की और उसको बनी इस्राईल की रहनुमा क़रार दिया (और हुक्म दे दिया) कि ऐ उन लोगों की औलाद जिन्हें हमने नूह के साथ कश्ती में सवार किया था मेरे सिवा किसी को अपना कारसाज़ न बनाना
बेशक नूह बड़ा शुक्रगुज़ार था बन्दा और हम ने बनी इस्राईल से उसी किताब (तौरेत) में साफ़ साफ बयान कर दिया था कि तुम लोग रू ऐ ज़मीन पर(2) दो मर्तबा ज़रुर फ़साद फैलाओगे और बड़ा सरकशी करोगे फ़िर जब उन दो फ़सादों में पहले का वक़्त आ पहुंचा तो हम ने तुम पर कुछ अपने बन्दों (बख़्त उल नसर) और उसकी फ़ौज को मुसल्लत कर दिया जो बड़े सख़्त लड़ने वाले थे तो वह लोग तुम्हारें घरों के अन्दर घुसे (और खूब क़त्ल व ग़ारत किया) और ख़ुदा के अज़ाब का वादा जो पूरा हो कर रहा फिर हमने तुमको दोबारा उन पर ग़ल्बा देकर तुम्हारे दिन फेरे और माल से और बेटों से तुम्हारी मदद की और तुमको बड़े जत्थे वाला बना दिया अगर तुम अच्छे काम करोगे तो अपने फ़ायदे के लिए अच्छे काम करोगे और अगर तुम बुरे काम करोगे तो (भी) अपने ही लिए फिर जब दूसरे(1) वक़्त का वायदा आ पहुंचा तो (हमने तेतूस रूमी को तुम पर मुसल्लत किया) ताकि वह लोग (मारते मारते) तुम्हारे चेहरे बिगाड़ दें (के पहचाने न जाओ) और जिस तरह पहली दफा मस्जिद बैतुल मुक़द्दस में घुस गए थे उसी तरह फिर घुस पड़ें और जिस चीज़ पर काबू पाएं खूब अच्छी तरह बरबाद कर दें (अब भी अगर तुम चैन से रहो) तो उम्मीद है कि तुम्हारा परवरदिगार तुम पर तरस खाए और अगर (कहीं) वही शरारत करोगे तो हम भी फिर पड़ेंगे और हम ने तो काफ़िरों के लिए जहन्नुम को क़ैद खाना बना ही रका है।
उसमें शक नहीं कि ये कुरआन उस राह की हिदायत करता है जो सबसे ज़्यादा सीधी है और जो ईमानदार अच्छे अच्छे काम करते उनको ये ख़ुशख़बरी देता है कि उनके लिए बहुत बड़ा अज्र और सवाब (मौजूद) है और ये भी की बेशक जो लोग आख़ेरत पर ईमान नहीं रखते हैं उनके लिए हमने दर्दनाक अज़ाब तैयार कर रखा है और आदमी कभी (आजिज़ होकर अपने हक़ में) बुराई (अज़ाब वगैरह की दुआ) इस तरह मांगता है जिस तरह अपने लिए भलाई की दुआ करता है और आदमी तो बड़ा जल्दबाज़ है और हमनें रात और दिन को (अपनी क़ुदरत की) दो निशानियां क़रार दिया फिर हमने रात की निशानी (चांद) को धुंधला बनाया और दिन की निशानी (सूरज) को रौशन बनाया (कि सब चीज़ें दिखाई दे) ताकि तुम लोग अपने परवरदिगार का फज़्ल (कारोबार) ढूंढ़ते फिरो और ताकि तुम बरसों की गिन्ती और हिसाब को जानो (बूझो) और हम ने हर चीज़ को खूब अच्छी तरह तफ़्सील से बयान कर दिया है।
और हम ने हर आदमी के नामए आमाल को उस के गले का हार बना दिया है (कि उसकी क़िस्मत उसके साथ रहे) और क़यामत के दिन हम उसे उसके सामने निकाल कर रख देंगे कि वह उसको एक खुली हुई किताब अपने रूबरू पाएगा (और हम उससे कहेंगे कि) अपना नामए आमाल पढ़ ले और आज अपना हिसाब लेने के लिए तो आप भी काफ़ी है(1) जो शख़्स रूबरू होता है तो बस अपने फ़ायदे के लिए राह पर आता है और जो शख़्स गुमराह होता है तो उसने भटक कर अपना आप बिगाड़ा और कोई शख़्स किसी दूसरे (के गुनाह) का बोझ अपने सर नहीं(2) लेगा और हम तो जब तक रसूल को भेज कर एतमाम हुज्जत न कर लें किसी पर अज़ाब नही किया करते और हम को जब किसी बस्ती का वीरान करना मंजूर होता है तो हम वहां के खुश ख़्वाबों को (ऐताअत का) हुक्म देते हैं तो वह लोग उसमें नाफरमानियां करने लगें तब वह बस्ती अज़ाब की मुस्तहक़ होगी उस वक़्त हमने उसे अच्छी तरह तबाह व बरबाद कर दिया और नूह के बाद से (उस वक़्त तक) हम ने कितनी उम्मतों को हलाक कर डाला
और (ऐ रसूल) तुम्हारा परवरदिगार अपने बंदों के गुनाहों को जानने और देखने के लिए काफ़ी है (और गवाह शाहिद की ज़रूरत नहीं) और जो शख़्स दुनिया का ख़्वाहा हो तो हम जिसे चाहते हैं और जो चाहते हैं उसी दुनिया में सरे दस्त उसे अता करते हैं (मगर) फिर हम ने उसके लिए तो जहन्नुम ठहरा ही रखा है कि वह उसमें बुरी हालत से रांदा हुआ दाख़िल होगा और जो शख़्स आख़ेरत का मुतमनी हो और उसके लिए खूब जैसी चाहिए कोशिश भी की और वह ईमानदार भी है तो यही वह लोग है जिन की कोशिश मक़बूल होगी
(ऐ रसूल) उन को (ग़रज़ सब को) हम ही तुम्हारे परवरदिगार की (अपनी) बख़्शिश से मदद देते हैं और तुम्हारे परवरदिगार की बख़्शिश तो (आम है) किसी पर बंद नहीं (ऐ रसूल) ज़रा देखो तो कि हम ने बाज़ लोगों को बाज़ पर कैसी फ़ज़ीलत दी है और आख़ेरत के दरजे तो यक़ीनन (यहां से) कहीं बढ़ के हैं और वहां की फ़ज़ीलत भी तो कहीं बढ़ कर है।
और देखो कहीं ख़ुदा के साथ दूसरे को (उसका) शरीक न बनाना वरना तुम बुरे हाल में ज़लील रूसवा बैठे के बैठे रह जाओगे और तुम्हारे परवरदिगार ने तो हुक्म दिया है कि उसके सिवा किसी दूसरे की इबादत न करना और मां बाप से नेकी करना अगर उन में से एक या दोनों तेरे सामने बुढ़ापे को पहुंचे (और किसी बात पर ख़फ़ा हों) तो (ख़बरदार उन के जवाब में उफ़ तक) न कहना और न उन को झिड़कना और जो कुछ कहना सुनना हो तो बहुत अदब से कहा करो(1) और उन के सामने नियाज़ से खाक़सारी का पहलू झुकाए रखो और उनके हक़ में दुआ करो कि ऐ मेरे पालने वाले जिस तरह उन दोनों ने मेरे छुटपने में मेरी परवरिश की है उसी तरह तू भी उन पर रहम फ़रमा तुम्हारे दिल की बात तुम्हारा परवरदिगार खूब जानता है अगर तुम (वाकई) नेक होगा (और भूल से उनकी ख़ता की है तो वह तुमको बख़्श देगा) क्योंकि वह तो तौबा करने वालों को बड़ा बख्शने वाला है और कराबतदारों(2) और मोहताज और परदेसी को उन का हक़ दे दो
और (ख़बरदार) फूजूल खर्ची मत किया करो क्योंकि फुजूल खर्ची करने वाले यक़ीनन शैतानों के भाई हैं और शैतान अपने परवरदिगार का बड़ा नाशुक्री करने वाला है और तुम को अपने परवरदिगार के फज़्ल व करम के इन्तेज़ार में जिस की तुम को उम्मीद हो (मज़बूरन) उन (ग़रीबों) से मुंह मोड़ना पड़े तो नरमी से उन को समझा दो और अपने हाथ को न तो गरदन से बंधा हुआ (बहुत तंग) कर लो (कि किसी को कुछ दो ही नहीं) और न बिल्कुल खोल दो कि सब कुछ दे डालो और आख़िर तुम को मलामत ज़दा हसरतनाक बै़ठना पड़े इस में शक नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार जिसके लिये चाहते है रोज़ी को फ़राख़ कर देता है और जिसकी रोज़ी चाहता है तंग रखता है इसमें शक नहीं कि वह अपने बन्दों से बहुत बाख़बर और देखभाल रखने वाला है।
और (लोगों) मुफ़्लसी के खौफ़ से अपनी औलाद को क़त्ल न करो (क्योंकि) उन को और तुम को (सब को) तो हम ही रोज़ी देते हैं बेशक औलाद का क़त्ल करना बहुत सख़्त गुनाह है और (देखो) ज़ना के पास न फटकना क्योंकि बेशक वह बड़ी बे हयाई का काम है और बहुत बुरी चलन है और जिस जान का मारना खुदा ने हराम कर दिया है उस को क़त्ल न करना मगर जाएज़ तौर पर (बफ़तवाए शरअ) और जो शख़्स नाहक़ मारा जाए तो हम ने उस के वारिस को क़ातिल पर क़साल का क़ाबू दिया है तो उसे चाहिए कि क़त्ल (खून का बदला लेने) में ज़्यादती न करे-बेशक वह मदद दिया जाएगा (के क़त्ल ही करे और माफ़ न करे)
और यतीम जब तक जवानी को पहुंचे उस के माल के क़रीब भी न जाना मगर हां उस तरह पर के (यतीम के हक़ में) बेहतर हो और अहद को पूरा करो क्योंकि (क़यामत में) अहद की ज़रुर पूछ गछ होगी और जब नाप तौल कर देना हो तो पैमाने को पूरा भर दिया करो और (जब तौल कर देना हो तो) बिल्कुल ठीक तराजू से तौला करो (मामले में यही तरीक़ा) बेहतर है और अंजाम (भी उसका) अच्छा है और जिस चीज़ का तुम्हे यक़ीन न हो (ख़्वाह म ख़्वाह) उसके पीछे न पड़ा करो (क्योंकि) कान और आंख और दिल उन सब की (क़यामत के दिन) यक़ीनन बाज़पुरस होनी है
और (देखो) ज़मीन पर अक़ड कर न चला करो क्योंकि तू (अपने उस धमाके की चाल से) न तो ज़मीन को हरगिज़ फाड़ डालेगा और न (तन कर चलने से) हरगिज़ लम्बाई में पहाड़ों के बराबर पहुंच सकेगा (ऐ रसूल) तुम सब बातों में से जो बुरी बात है वह तुम्हारे परवरदिगार के नज़दीक न पसन्द है ये बात तो हिक्मत की उन बातों में से जो तुम्हारे परवरदिगार ने तुम्हारे पास वही भेजी और ख़ुदा के साथ कोई दूसरा माबूद न बनाना वरना तू मलामत ज़दा, रानदा हो कर जहन्नुम में झोंक दिया जाएगा (ऐ मुशरेकीन मक्का) क्या तुम्हारे परवरदिगार ने तुम्हें चुन चुन कर बेटे दिए हैं और खुद बेटियां ली हैं (यानी) फ़रिश्ते इस में शक नहीं कि बड़ी (सख़्त) बात कहते हो और हमने तो इसी कुरआन में तरह तरह से बयान कर दिया ताकी लोग किसी तरह समझे मगर इससे तो उनकी नफ़रत ही बढ़ती गई (ऐ रसूल उन से) तुम कह दो कि अगर ख़ुदा के साथ जैसा ये लोग कहते हैं और माबूद भी होते तो अब तक इन(1) माबूदों ने अलग अर्श तक की रसाई की कोई न कोई राह निकाली होती जो जो बेहूदा बातें ये लोग (ख़ुदा की निस्बत) कहा करते हैं वह उनसे बहुत बढ़ के पाक व पाकीज़ा और बरतर है।
सातों आसमानों और ज़मीन और जो लोग उनमें (सब) उसकी तस्बीह करते हैं(1) और (सारे जहान) में कोई चीज़ ऐसी नहीं जो उसके (हम्द व सना) की तस्बीह न करती हो मगर तुम लोग उनकी तस्बीह नहीं समझते इसमें शक नहीं कि वह बड़ा बुर्दबार बख़्शने वाला है और जब तुम कुरआन पढ़ते हो तो हम तुम्हारे और उन लोगों के दरमियान जो आख़ेरत का यक़ीन नहीं रखते एक गहरा पर्दा डाल देते हैं और (मेवा) हम खुद को उनके दिलों पर ग़िलाफ़ चढा देते हैं ताकि वह कुरआन को न समझ सकें और (गोया) हम उनके कानों में गरानी पैदा कर देते हैं कि सुन सकें जब तक कुरआन में अपने परवरदिगार का तन्हा ज़िक्र करते हो तो तुम्हारी तरफ़ कान लगते हैं तो जो कुछ ये ग़ौर से सुनते हैं हम तो खूब जानते हैं और जब ये लोग बाहम कान में बात करते हैं तो उस वक़्त ये ज़ालिम (ईमानदारों से) कहते हैं कि तुम तो बस एक (दीवाने) आदम के पीछे पड़े हो जिस पर किसी ने जादू कर दिया है।
(ऐ रसूल) ज़रा देखो तो ये कम्बख़्त तुम्हारी निस्बत कैसी कैसी फब्तियां कहते हैं तो (इसी वजह से) ऐसे गुमराह हुए कि अब (हक़ की) राह किसी तरह पा ही नहीं सकते और ये लोग कहते हैं कि जब हम (मरने के बाद सड़ गल कर) हड़्डियां रह जाएंगे और रेज़ा रेज़ा हो जाएंगे तो क्या अज़ सर नौ पैदा करके उठा खड़े फिए जाएंगे (ऐ रसूल) तुम कह दो कि तुम (मरने के बाद) चाहे पत्थर बन जाओ या लोहा या कोई और चीज़ जो तुम्हारे ख़याल में बड़ी (सख़्त) हो (और उसका ज़िन्दा होना दुश्वार हो वह भी ज़रुर ज़िन्दा होगा) तो यह लोग अंक़रीब ही तुम से पूछेंगे भला हमें दुबारा कौन ज़िन्दा करेगा तुम कह दो कि वही (ख़ुदा) जिसने तुमको पहली मर्तबा पैदा किया (जब तुम कुछ न थे) उस पर ये लोग तुम्हारे सामने अपने सर मटकायेंगे और कहेंगे (अच्छा अगर होगा) तो आख़िर कब तुम कह दो कि बहुत जल्द अंक़रीब ही होगा जिस दिन तुम्हें ख़ुदा (इस्राफ़ील के ज़रिये से) बुलाएगा तो उस की हम्द व सना करते हुए उस की तामील करोगे (और क़ब्रो से निकलोगे) और तुम ख़याल करोगे कि (मरने के बाद क़ब्रों मे) बहुत ही कम ठहरे
और (ऐ रसूल) मेरे (सच्चे) बंदों (मोमिनो) से कह दो कि वह (क़ाफ़िरों से) बात करें तो अच्छे तरीक़े से (सख़्त कलामी न करे) क्योंकि शैतान तो (ऐसी ही) बातों से फ़साद डलवाता है इस में तो शक ही नहीं कि शैतान आदमी का खुला हुवा दुश्मन है तुम्हारा परवरदिगार तुम्हारे हाल से खूब वाक़िफ़ है अगर चाहेगा तुम पर रहम करेगा और अगर चाहेगा तुम पर अज़ाब करेगा और (ऐ रसूल) हम ने तुम को कुछ उन लोगों का ज़िम्मेदार बना कर नहीं भेजा है और जो लोग आसमानों में हैं और ज़मीन पर हैं (सब को) तुम्हारा परवरदिगार खूब जानता है और हम ने यक़ीनन बा़ज़(1) पैग़म्बरों को बाज़ पर फ़ज़ीलत दी और हम ही ने दाऊद को जुबूर अता की
(ऐ रसूल) तुम उन से कह दो कि ख़ुदा के सिवा और जिन लोगों को माबूद समझते हो उन को (वक़्त पड़े) पुकार तो देखो कि वह न तो तुम से तुम्हारी तकलीफ़ दी दफ़ा कर सकते हैं और न उस को बदल सकते हैं ये लोग जिन को मुश्रकीन (अपना ख़ुदा समझ कर) इबादत करते हैं वह ख़ुद अपने परवरदिगार की कुरबत के ज़रिये(1) ढूंढ़ते फ़िरते हैं कि (देखें) उन में से कौन ज़्यादा कुरबत रखता है और उस की रहमत की उम्मीद रखते हैं और उसके अज़ाब से डरते हैं उस में शक नहीं कि तेरे परवरदिगार का अज़ाब डरने की चीज़ है और कोई बस्ती नहीं है मगर रोज़ क़यामत से पहले हम उसे तबाह व बरबाद कर छोड़ेंगे या (नाफ़रमानी) की सज़ा में उस पर सख्त से सख़्त अज़ाब करेंगे (और) ये बात किताब (लौह महफूज़) में लिखी जा चुकी है और हमें मोजज़ात के भेजने से बजुज़ उसके और कोई वजह माने नहीं हुई कि अगलों ने उन्हें झुटला दिया और हम ने क़ौम समूद को (मोजज़े से) ऊंटनी अता की जो (हमारी कुदरत की) दिखाने वाली थी तो उन लोगों ने उस पर जुल्म किया यहां तक के मार डाला और हम तो मोजज़े सिर्फ़ डराने की ग़रज़ से भेजा करते हैं।
और (ऐ रसूल) वह वक़्त याद करो जब तुम से हमने कह दिया था कि तुम्हारे परवरदिगार ने लोगों को (हर तरफ़ से) रोक रखा है कि तुम्हारा कुछ बिगाड़ नहीं सकते और हमने जो जवाब(2) तुमको दिखलाया था तो बस ऐसे लोगों (के ईमान) की आज़माइश (का ज़रिया)
ठहराया था और (इसी तरह) वह दरख़्त जिस पर, कुरआन में लानत की गई है और हम बावजूद थे कि उन लोगों को (तरह तरह) से डराते हैं मगर हमारा डराना उनकी सख़्त सरकशी को बढ़ाता ही गया और जब हमने फ़रिश्तों से कहा कि आदम को सजदा करो तो बस ने सजदा किया मगर इबलीस वह (गुरुर से) कहने लगा कि क्या मैं ऐसे शख़्स को सजदा करूँ जिसे तूने मिट्टी से पैदा किया है और (शोख़ी से) बोला भला देखो तो सही यही वह शख़्स है जिन को तुमने मुझ पर फ़ज़ीलत दी है अगर तू मुझ को क़यामत तक कि मोहलत दे तो मैं (दावे से कहता हूं कि) क़दरे क़लील के सिवा उसकी नस्ल की जड़ काटता रहूंगा ख़ुदा ने फ़रमाया चल (दूर हो) उन में से जो शख़्स तेरी पैरवी करेगा तो (याद रहे कि) तुम सब की सज़ा जहन्नुम है और वह भी पूरी पूरी सज़ा है और उसमें से जिस पर अपनी (चिकनी चुपड़ी) बात से काबू पा सके बहका और अपने (चेलों से लश्कर) सवार और प्यादे (सब) से चढ़ाई कर और माल और औलाद(1) में उनके साथ साझा कर ले और उन से (खूब झूटे) वादे कर और शैतान तो उनसे जो वादे करता है धोके (की टट्टी) के सिवा कुछ नहीं होता, बेशक जो मेरे (ख़ास) बंदे हैं उन पर तेरा ज़ोर नहीं चल (सकता) और कारसाज़ी में तेरा परवरदिगार काफ़ी है (लोगों) तुम्हारा परवरदिगार वह (क़ादिर मुतलक) है।
जो तुम्हारे लिये समंदर में जहाज़ों को चलाता है ताकि तुम उसके फज़्ल व करम (कारोबार) की तलाश करो इसमें शक नहीं कि वह तुम पर बड़ा मेहरबान है और जब समंदर में कभी तुम को कोई तकलीफ़ पहुंचे तो जिन की तुम इबादत किया करते थे ग़ाएब (ग़ला) हो गए मगर बस वही (एक ख़ुदा याद रहता है) उस पर भी जब ख़ुदा ने तुमको छुटकारा देकर खुश्की तक पहुंचा दिया तो फिर तुम उससे मुंह मोड़ बैठे और इंसान बड़ा ही नाशुक्रा है।
तो क्या तुम को उसका भी इत्मीनान हो गया कि वह तुम्हें खुश्की की तरफ़ (ले जाकर) (क़ारुन की तरह) ज़मीन में धंसा दे या तुम पर (कौ़मे लूत की तरह) पत्थरों का मेंह बरसा दे फिर (उस वक़्त) तुम किसी को अपना कारसाज़ न पाओगे या तुमको उसका भी इत्मीनान हो गया कि ख़ुदा फिर तुमको दूबारा उसी समदंर में ले जाएगा उसके बाद हवा का एक ऐसा झोंका जो (जहा़ज़ के) परखच्चे उड़ा दे तुम पर भेजे फिर तुम्हें तुम्हारी कुफ्र की सज़ा में डुब मारे फिर तुम किसी को (ऐसा हिमायती) न पाओगे जो हमारा पीछा करे और (तुम्हें छोड़ा जाए) और हमने यक़ीनन आदम की औलाद को इज़्ज़त दी और खुश्की और तरी में उनको (जानवरों कश्तियों के ज़रिए) लिए लिए फिरे और उन्हें अच्छी अच्छी चीज़े खाने को दीं और अपने बहुत से मख़्लूक़ात पर उनको अच्छी ख़ासी फ़ज़ीलत दी उस दिन (को याद करो) हम तमाम लोगों को उन पेशवाओं(1) के साथ बुलाएंगे तो जिसका नामा ऐ आमाल उनके दाहिने हाथ में दिया जाएगा (खुश खुश) अपना नामा ऐ आमाल पढ़ने लगेंगे और उन पर रेशा बराबर जुल्म नहीं किया जाएगा और जो शख़्स इस (दुनियां) में (जान बूझ कर)(1) अंधा बना रहा तो वह आख़ेरत में भी अन्धा ही रहेगा और (निजात) के रास्ते से बहुत दूर भटका सा हुआ
और (ऐ रसूल) हम ने जो (कुरआन) तुम्हारे पास वही के ज़रिए से भेजा अगर चे लोग तो तुम्हें उस से बहकाने ही लगे थे ताकि तुम कुरआन के अलावा फिर (दूसरी बातों का) इफ़्तरा बांधों(2) और (जब तुम ये कर गुज़रते) उस वक़्त ये लोग तुम को अपना सच्चा दोस्त बना लेते और अगर हम तुम को साबित क़दम न रखते तो ज़रुर तुम भी ज़रा (ज़हूर) झुकने ही लगते और (अगर ऐसा करते तो) उस वक़्त हम तुम को ज़िन्दगी में भी और मरने पर भी दोहरे (अज़ाब) का मज़ा चखा देते और फिर तुम को हमारे मुक़ाबले में कोई मददगार भी न मिलता और ये लोग तो तुम्हें (सर ज़मीन मक्के) से दिन बरदाश्ता करने ही लगे थे ताकि तुम को वहां से (शाम की तरफ़) निकाल बाहर करे(3) और ऐसा होता तो तुम्हारे पीछे में ये लोग चन्द रोज़ के सिवा ठहरने भी न पाते तुम से पहले जितने रसूल हम ने भेजे हैं उनका बराबर यही दस्तूर रहा है और जो दस्तूर हमारे (ठहराए हुए) हैं उन में तुम तग़य्युर तबदीली न पाओगे
(ऐ रसूल) सूरज में ढ़लने से रात के अंधेरे तक नमाज़ जुहऱ, अस्र, मग़रिब, इशा पढ़ा करे- और नमाज़ सुबह (भी) क्योंकि सुबह की नमाज़ पर (दिन रात दोनों के फ़रिश्तों की) गवाही होती है और रात के ख़ास हिस्से में नमाज़ तहज्जुद (नमाज़े शब) पढ़ा करो ये सुन्नत तुम्हारी (ख़ास) फज़ीलत है क़रीब है कि क़यामत के दिन ख़ुदा तुम को मुक़ाम मुहम्मद तक पुहंचा दे और ये(1) दुआ मांगा करो कि ऐ मेरे परवरदिगार मुझे (जहां) पहुंचा अच्छी तरह पहुँचा और मुझे (जहाँ से निकाल) तो अच्छी तरह निकाल और मुझे ख़ास अपनी बारगाह से अक हुकूमत अता फ़रमा जिस से (हर क़िस्म की) मदद पुहँचे
और (ऐ रसूल) कह दो कि (दीने) हक़ आ गया और बातिल नेस्त नाबूद हुआ उसमें शक नहीं कि बातिल मिटने वाला ही था और हम तो कुरआन में वही चीज़ नाज़िल करते हैं जो मोमीनीन के लिए (सरासर) शफ़ा और रहमत है (मगर) नाफ़रमानों को तो घाटे के सिवा कुछ भाता ही नहीं और जब हम ने आदमी को नेअमत अता फ़रमाई तो (उल्टे) उस ने (हम से) मुंह फेरा और पहलू तही करने लगा- और जब उसे कोई तकलीफ़ छू भी गई तो मायूस हो बैठा (ऐ रसूल) तुम कह दो कि हर एक अपने तरीक़े पर कारगुज़ारी करता है फिर तुम में से जो शख़्स बिल्कुल ठीक सीधी राह पर है तुम्हारा परवरदिगार उस से खूब वाकि़फ़ है।
और (ऐ रसूल) तुम से लोग(1) रुह के बारे में सवाल करते हैं तुम (उन के जवाब में) कह दो कि रूह (भी) मेरे परवरदिगार के हुक्म से (पैदा हुई है) और तुम को बहुत ही थोड़ा सा इल्म दिया गया है (उसकी हक़ीक़त समझ सकते) और (ऐ रसूल) अगर हम चाहे तो जो (कुरआन) हम ने तुम्हारे पास वही के ज़रिए भेजा है (दुनियां से) उठा लिये जाएं फिर तुम अपने वास्ते हमारे मुक़ाबले में कोई मददगार न पाओगे मगर ये सिर्फ़ तुम्हारे परवरदिगार की रहमत है (कि उस ने ऐसा किया) उसमें शक नहीं कि उस का तुम पर बड़ा फज़्ल व करम है।
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि अगर सारे दुनियां जहान के आदमी और जिन इस बात पर इकट्ठे हो कि इस कुरआन का मिस्ल ले आऐं तो (ग़ैर मुमकिन) उस के बराबर नहीं ला सकते अगर चे (इस कोशिश में) एक का एक मददगार भी बने और हम ने तो लोगों (के समझाने) के वास्ते इस कुरआन में हर क़िस्म की मस्लें अदल बदल के बयान कर दीं उस पर भी अक्सर लोग बगैर नाशुक्री के लिए नहीं रहते
और (ऐ रसूल कुफ़्फ़ार मक्के ने) तुम से कहा कि जब तक तुम हमारे वास्ते ज़मीन से चश्मा (न) बहा निकालोगे हम तो तुम पर हरगिज़ ईमान न लाएंगे या (ये नहीं तो) खजूरों और अंगूरों का तुम्हारा कोई बाग़ हो उस में तुम बीच बीच में नहरे जारी करके दिखा दो या जैसा तुम गुमान रखते थे हम पर आसमान ही टुकड़े (टुकड़े) करके गिराओ या खुदा और फ़रिश्तों को (अपने क़ौल के तसदीक़) में हमारे सामने गवाही में ला खड़ा कर दिया तुम्हारे (रहने के) लिये कोई तलाई महल सरा हो या तुम आसमान पर चढ़ जाओ और जब तक तुम हम पर ख़ुदा के यहां से एक किताब न नाज़िल करोगे कि हम उसे खुद पढ़ भी लें उस वक़्त लें उस वक़्त तक हम तुम्हारे (आसमान पर चढ़ने के भी) क़ाएल न होंगे
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि सुब्हान अल्लाह में एक आदमी (ख़ुदा के) रसूल के सिवा आख़िर और क्या हूं (जो ये बेहूदा वह बातें करते हो) और जब लोगों के पास हिदायत आ चुकी तो उन को ईमान लाने से उसके सिवा किसी चीज ने न रोका कि वह कहने लगे कि क्या खु़दा ने आदमी को रसूल बना कर भेजा है (ऐ रसूल) तुम कह दो (कि) अगर ज़मीन पर फ़रिश्ते बसे हुए होते कि इत्मीनान से चलते फ़िरते तो हम उन लोगों के पास फ़रिश्ते ही को रसूल बना कर नाज़िल करते (ऐ रसूल) तुम कह दो कि हमारे तुम्हारे दरम्यान गवाही के वास्ते बस ख़ुदा काफ़ी है उस में शक नही कि वह अपने बंदों के हाल से खूब वाक़िफ़ और देखता रहता है और ख़ुदा जिस की हिदायत करे वही हिदायत याफ़्ता है और जिस को गुमराही में छोड़ देते तो (याद रखो कि) फिर उस के सिवा किसी को उस का सरपरस्त न पाओगे और क़यामत के दिन हम उन लोगों के मुंह से बल अंधे और गूंगे और बहरे क़ब्रों से उठाएंगे उनका ठिकाना जहन्नुम है कि जब कभी बुझने को होगी तो हम उन लोगों पर (उसे) और भड़का देंगे ये सजा़ उन की उस वजह से है कि उन लोगों ने हमारी आयतों से इंकार किया और कहने लगे कि जब (मरने के बाद सड़गल) कर हड्डियां और रेज़ा रेज़ा हो जाएंगे तो क्या फिर हम अज़ सर न पैदा करके उठाएगें क्या उन लोगों ने उस पर भी ग़ौर नहीं किया कि वह ख़ुदा जिस ने सारे आसमान व ज़मीन बनाए इस पर भी (ज़रुर) क़ादिर है कि उन को ऐसे आदमी दोबारा पैदा करे और उस ने उन (के मौत) की एक मियाद मुक़र्रर कर दी है जिस में ज़रा भी शक नहीं उस पर भी ये ज़ालिम इंकार किये बग़ैर न रहे।
(ऐ रसूल उन से) कहो कि अगर मेरे परवरदिगार के रहमत के खज़ाने भी तुम्हारे इख़्तेयार में होते तो भी तुम ख़र्च हो जाने के डर से (उन को) बंद रखते और आदमी बड़ा ही तंग दिल है और हम ने यक़ीनन मूसा को ख़ुले हुए नौ (6)(1) मोजज़े अता किये तो (ऐ रसूल) बनी इस्राईल से (यही) पूछ देखो कि जब मूसा उन के पास आए तो फिरऔन ने उनसे कहा ऐ मूसा मैं तो समझता हूँ कि किसी ने तुम पर जादू करके दिवाना बना दिया है मूसा ने कहा तुम ये ज़रुर जानते हो कि ये मोजज़े सारे आसमान व ज़मीन के परवरदिगार ने नाज़िल किये (और वह भी लोगों की) सूझ बूझ की बातें है और ऐ फ़िरऔन मैं तो ख़यालक रता हूं कि तुम पर शामत आई है फिर फ़िरऔन ने यह ठान लिया कि बनी इस्राईल को (सर ज़मीन) मिस्र से निकाल बाहर करे तो हम ने फ़िरऔन और जो लोग उसके साथ थे सबको डुबा मारा और उसके बाद हमने बनी इस्राईल से कहा कि (अब तुम ही) इस मुल्क में (खूब आराम से) रहो सहो फिर जब आख़ेरत का वादा आ पहुँचेगा तो हम तुम सबको समेट कर ले आएंगे।
और (ऐ रसूल) हमने इस कुरआन को बिल्कुल ठीक नाज़िल किया और बिल्कुल ठीक(1) नाज़िल हुआ और तुमको तो हमने (जन्नत की) ख़ुशखबरी देने वाला और (अज़ाब से) डराने वाला (रसूल) बना कर भेजा है और कुरआन को हमने थोड़ा थोड़ा करके इसलिये नाज़िल किया कि तुम लोगों के सामने (हस्बे ज़रुरत) मोहलत दे देकर उसको पढ़ दिया करो और (इस वजह से) हमने इसको रफ़्ता रफ़्ता नाज़िल किया तुम कह दो कि ख़्वाह तुम उस पर ईमान लाओ या ना लाओ इसमें शक नहीं कि जिन लोगों को उसके क़ब्ल ही (आसमानी किताबों का) इल्म अता किया गया है उनके सामने जब यह पढ़ा जाता है तो ठुडिये से (मुंह के बल) सज्दे में गिर पडते और कहते हैं कि हमारा परवरदिगार (हर ऐब से) पाक व पाकीज़ा है बेशक हमारे परवरदिगार का वादा पूरा होना ज़ुरूरी था और ये लोग (सजदे के लिए) मुंह के बल गिर पड़ते हैं और रोते जाते हैं और ये कुरआन उनकी ख़ाकसारी की बढ़ाता जाता है।
(ऐ रसूल) तुम (उनसे) कह दो कि (तुम को इख़्तेयार है) ख़्वाह उसे अल्लाह (कह कर) पुकारो या रहमान कह कर पुकारो (गरज़) जिस नाम को भी पुकारो उसके तो सब नाम अच्छे (से अच्छे) हैं और (ऐ रसूल) न तो अपनी नमाज़ बहुत चिल्लाकर पढ़ो और न बिल्कुल चुपके से बल्कि इसके दरम्यान एक औसत तरीक़ा इख़्तेयार कर लो और कहो कि हर तरह की तारीप़ उसी खुदा को (सज़ावार) है जो न तो कोई औलाद रखता है और न (सारे जहान की) सल्तनत में उसका कोई साझेदार है और न उसे किसी तरह की कमज़ोरी है न कोई उसका सरपरस्त हो और उसकी बड़ाई अच्छी तरह करते रहा करो।
सूरे: कह़फ़
सूरे: कह़फ़ मक्के में नाज़िल हुआ और इसकी 110 आयतें हैं।
(ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला हैं।
हर तरह की तारीफ़ खुदा ही को (सज़ावार) है जिसने अपने बंदे (मुहम्मद) पर किताब (कुरआन) नाज़िल की और उसमें किसी तरह की कजी (ख़राबी) न रखी (बल्कि) हर तरह से सीधा ताकि जो सख़्त अज़ाब ख़ुदा की बारगाह से काफ़िरों पर नाज़िल होने वाला है उससे लोगों को डराए और जिन मोमिनीन ने अच्छे अच्छे काम किये हैं उनको उस बात की ख़ुशख़बरी दे कि उनके लिए बहुत अच्छा अर्ज (व सवाब) मौजूद है जिसमें वह हमेशा (ब इत्मीनान तमाम रहेंगे)
और जो लोग उसके क़ायल हैं कि ख़ुदा औलाद रखता है उनको (अज़ाब से) डराओ न तो उन्हीं को उस की कुछ ख़बर है और उनके बाप दादाओं ही को थी (ये) बड़ी सख़्त बात है जो उनके मुंह से निकलती है ये लोग झूट मूट के सिवा (कुछ और) बोलते ही नहीं तो (ऐ रसूल) अगर ये लोग उस बात को न माने तो शायद तुम मारे अफ़सोस के उन के पीछे अपनी जान दे डालोंगे जो कुछ रूए ज़मीन पर हैं हमने उसे उसकी ज़ीनत (रौनक़) क़रार दी ताकि हिम लोगों का इम्तेहान लें कि उनमें से कौन सब से अच्छे चलन का है और (फ़िर) हम एक न एक दिन जो कुछ भी उस पर हैं (सबको नाबूद करके) चटियल मैदान बना देंगे
(ऐ रसूल) क्या तुम ये ख़याल करते हो कि(1) असहाब कहफ़ दरक़ीम (कोह) और (तख़्ती वाले) हमारी (कुदरत की) निशानियों में से एक अजीब (निशानी) थे कि एकबारगी कुछ जवान ग़ार में आ पहुँचे और दुआ की- ऐ हमारे परवरदिगार हमें अपनी बारगाह से रहमत अता फ़रमा और हमारे वास्ते हमारे काम में कामयाबी इनायत कर-तब हमने कई बरस तक ग़ार में उनके कानों पर पर्दे डाल दिये (उन्हें सुला दिया) फिर हमने उन्हें चौकाया ताकि हम देखे कि दो गिरोहों में से किसी (ग़ार में) ठहरने की मुद्दत खूब याद है।
(ऐ रसूल) अब हम उनका हाल तुम से बिल्कुल ठीक तहक़ीक़तन बयान करते हैं वह चन्द जवान थे कि अपने (सच्चे) परवरदिगार पर ईमान लाए थे और हमने उनको सोच समझ और ज़्यादा कर दी है और हमने उनके दिलों पर (सब्र व इस्तेक़लाल की) गिरहां लगा दी (कि जब दक़ियानूस बादशाह ने कुफ़्र पर मज्बूर किया) तो उठ खड़े हुए (और ताअम्मुल) कहने लगे हमारा परवरदिगार तो बस सारे आसमान व ज़मीन का मालिक है हम तो उसके सिवा किसी माबूद की हरगिज़ इबादत न करेंगे अगर हम ऐसा करेंगे तो यक़ीनन हमने अक़्ल से दूर की बात कही (अफ़सोस एक) ये हमारी क़ौम के लोग हैं कि जिन्होंने ख़ुदा को छो़ड़ कर (दूसरे) माबूद बनाए हैं (फ़िर) ये लोग उनके (माबूद होने) की कोई सरीही (दलील क्यों नहीं पेश करते)
और जो शख़्स ख़ुदा पर झूठ बोहतान बांधे उससे ज़्यादा ज़ालिम और कौन होगा (फिर बाहम कहने लगे कि) जब तुमने उन लोगों से और ख़ुदा के सिवा जिन माबूदों की ये लोग इबादत करते हैं उनसे किनारा कशी कर ली तो चलो (फलां) ग़ार मे जा बैठो तुम्हारे लिए आसानी के सामान मुहय्या करेगा (ग़रज़ ये ठान कर गार में पहुंचे) कि जब सूरज निकलता है तो देखिएगा कि वह उन के ग़ार से दाहिनी तरफ़ झुक कर निकल जाता है और जब गुरुब होता है तो उनसे बाएं तरफ़ कतरा जाता है और वह लोग (मर्ज़ से) ग़ार के अन्दर एक वसी जगह में (लेटे) हैं ये खुदा (की कुदरत) की निशानियों में से (एक निशानी) है जिसको हिदायत करे वही हिदायत याफ़्ता है और जिसको गुमराह करे तो फिर उसका कोई सरपरस्त राह नुमा हरगिज़ न पाओगे और तू उनको समझेगा कि वह जागते हैं हालांकि वह (गहरी नींद मे) सो रहे हैं और हम कभी दाहिनी तरफ़ और कभी बाई तरफ़ उनकी करवटें बदलवा देते हैं और उनका कुत्ता अपने आगे के दोनों पांव फैलाए चौखट पर डटा बैठा है।
(उन की ये हालत है कि) अगर कहें तो उनको झांक कर देखे तो उल्टे पांव ज़रुर भाग खड़ा हो और तेरे दिल में दहशत समा जाए और (जिस तरह अपनी कुदरत से उन को सुलाया) उसी तरह (अपनी कुदरत से) उनको (जगा) उठाया ताकि आपस में कुछ पूछ गछ करें (ग़रज़) उनमें एक बोलने वाला बोल उठा कि (भाई आख़िर उस ग़ार में) तुम कितनी मुद्दत ठहरे कहने लगे (अरे ठहरे क्या बस) एक दिन से भी कम उसके बाद कहने लगे कि जितनी देर तुम ग़ार में ठहरे उसको तुम्हारा परवरदिगार ही (कुछ तुमसे) बेहतर जानता है (अच्छा) तो अब अपने में से किसी को अपना ये रूपया देकर शहर की तरफ़ भेजो तो वह (जाकर) देखभाल ले कि वहां कौन सा खाना बहुत अच्छा है फिर उसमें से (बक़दरे ज़रुरत) खाना तुम्हारे वास्ते लाए और उसे चाहिए कि वह आहिस्ता चुपके से आ जाए और किसी को तुम्हारी ख़बर(1) न होने दें इस में शक नहीं कि अगर उन लोगों को तुम्हारी इत्तेला हो गई तो बस तुम को संग सार ही कर देंगे या फिर तुमको अपने दीन की तरफ़ फेर कर ले जाएंगे।
और अगर ऐसा हुआ तो फिर तुम कभी कामयाब न होंगे और हमने यूं उनकी क़ौम के लोगों को उनकी हालत पर इत्तेला कराई ताकि वह लोग देख लें कि खुदा का वादा यक़ीनन सच्चा है और (ये भी समझ लें) कि क़यामत (के आने) में कुछ भी शुबहा नहीं अब (इत्तेला होने के बाद) उनके बारे में लोग बाहम झगड़ने लगगे तो कुछ लोगों ने कहा कि उन के (ग़ार) पर (बतौर यादगार) कोई इमारत बना दो उनका परवरदिगार तो उनके हाल से खूब वाकिफ़ है ही और उनके बारे में जिन (मोमिनीन) की राय ग़ालिब रही उन्होंने कहा कि हम तो उन (के ग़ार) पर एक मस्जिद बनाएंगे क़रीब है कि लोग (नसराए नजरान) कहेंगे कि वह तीन आदमी थे चौथा उनका कुत्ता (क़तमीर) है और कुछ लोग (आक़िब वग़ैरह) कहते हैं कि वह पांच आदमी थे छठा उनका कुत्ता है (ये सब) ग़ैब में अटकल लगाते हैं और कुछ लोग कहते हैं की सांत आदमी हैं और आंठवा उनका कुत्ता है।
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि उनका शुमार मेरा परवरदिगार ही खूब जानता है उन (की गिन्ती) तो थोड़े ही लोग जानते हैं- लो (ऐ रसूल) तुम (उन लोगों से) असहाब कहफ़ के बारे में सरसरी गुफ़्तगू से सिवा (ज़्यादा) न झगड़ो और उनके बारे में उन लोगों मे से किसी से कुछ पूछो नहीं और किसी काम की निस्बत न कहा करो कि मैं उसको कल करूँगा मगर इंशाल्लाह कह कर और अगर (इंशाल्लाह कहना) भूल जाओ तो (जब याद आए) अपने परवरदिगार को याद कर लो (इंशाल्लाह कह लो) और कहो कि उम्मीद है कि मेरा परवरदिगार मुझे ऐसी बात की हिदायत फ़रमाए जो रहनुमाई में उससे भी ज़्यादा क़रीब हो और असहाब कहफ़(1) अपने ग़ार में नौ ऊपर तीन सौ बरस रहे।
(ऐ रसूल) अगर वह लोग उस पर भी न माने तो तुम कह दो कि ख़ुदा उनके ठहरने की मुद्ददत से बखूबी वाक़िफ़ है सारे आसमान और ज़मीन का ग़ैब उसी के वास्ते ख़ास है (अल्लाह अकबर) वह क्या देखने वाला और क्या ही सुनने वाला है उसके सिवा उन लोगों का कोई सरपरस्त नहीं और वह अपने हुक्म में किसी को अपना दाख़ि नहीं बनाता और (ऐ रसूल) जो किताब तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से वही के ज़रिये नाज़िल हुई है उसको पढ़ा करो उसकी बातों को कोई बदल नही सकता और तुम उसके सिवा कहीं कोई हरगिज़ पनाह की जगह (भी) न पाओगे
और (ऐ रसूल) जो लोग अपने परवरदिगार को सुबर सवेरे और झुटपुटे वक्त शाम को याद करते हैं और उसी की खुशनूदी के ख़्वाहाँ हैं उनके साथ तुम खुद (भी) अपने नफ़्स पर जब्र करो और उनकी तरफ़ से अपनी नज़र (तवज्जा) न फेरो कि तुम दुनियां में ज़िन्दगी की आराइश चाहने लगो और जिसके दिल को हमने (गोया ख़ुदा) अपने जिक्र से ग़ाफ़िल कर दिया है और वह अपनी ख़्वाहिश नफ़सानी के पीछे पड़ा है और उसका काम(1) सरासर ज़्यादती है उसका कहना हरगि़ज़ न मानना
और (ऐ रसूल) तुम कह दो कि सच्ची बात (कलमा ऐ तौहीद) तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से (नाज़िल हो चुकी है) बस जो चाहे माने और जो चाहे न माने (मगर) हमने ज़ालिमों के लिए वह आग (दहका के) तैयार कर रखी है जिसकी क़नातें उन्हें घेर लेंगी और अगर वह लोग दुहाई करेंगे तो उनकी फ़रयाद रसी खोलते हुए पानी से की जाएगी जो मिस्ल पिघले हुए तांबे के होगा (और) वह मुंह को भून डालेगा क्या बुरा पानी है और (जहन्नुम भी) क्या बुरी जगह है इसमें शक नहीं कि जिन लोगों ने ईमान कबूल किया और अच्छे अच्छे काम करते रहे तो हम हरगिज़ अच्छे काम वाले के अज्र को अकारत नहीं करते ये वही लोग हैं जिनके (रहने सहने के) लिए सदाबहार (बेहिश्त के) बाग़ात हैं उनके (मकानात के) नीचे नहरें जारी होंगी वह उन बाग़ात में दमकते हुए कुन्दन के कंगन(2) से सवारें जाएंगे और सख़्तों पर तकिये लगाए (बैठे) होंगे क्या ही अच्छा बदला है और (बेहिश्त भी आराईश की) कैसी अच्छी जगह है।
और (ऐ रसूल) उन लोगों से उन दो शख़्सों की मिसाल बयान करो कि उनमें से एक को हम ने अंगूर के दो बाग़ दे रखे हैं और हमने उनके चौ गिद्र खुरमें के दरख़्त लगा दिये हैं और उन दोनों बागों के दरम्यान खेती भी लगाई है वह दोनों बाग़ खूब फ़ल लाए और फ़ल लाने में कुछ कमी नहीं कि और हमने उन दोनों बाग़ों के दरम्यान नहर भी जारी कर दी है और उसे फ़ल मिला तो अपने साथी से जो उससे बाते कर रहा था बोल उठा कि मैं तो तुझ से माल में (भी) ज़्यादा हूं और जत्थे में भी बढ़ कर हूं और ये बाते करता हुआ अपने बाग़ में भी जा पहुंचा हालांकि उसकी आदत यह थी कि (कुफ्र की वजह से) अपन ऊपर आप जुल्म कर रहा था (ग़रज़) वह कह बैठा कि मुझे तो इसका गुमान नहीं होता कि कभी ये बाग़ उजड़ जाए और मैं तो यह भी नहीं ख़याल करता कि क़यामत क़ायम होगी और (बिल फ़र्ज़ हुई भी तो) जब मैं अपने परवरदिगार की तरफ़ लौटाया जाऊँगा तो यक़ीनन उस से कहीं अच्छी जगह पाऊंगा उसका साथी जो उससे बातें कर रहा था कहने लगा कि क्या तू उस परवरदिगार का मुनकिर है जिसने (पहले) तुझे मिट्टी से पैदा किया फिर नुतफ़े से फिर तुझे बिल्कुल ठीक मर्द (आदमी) बना दिया लेकिन हम तो (कहते हैं कि) वही ख़ुदा मेरा परवरदिगार है और मैं तो अपने परवरदिगार का किसी को शरीक नहीं बनाता और जब तू अपने बाग़ में आया तो (यह) क्यों न कहा कि ये सब (माशाअल्लाह)(1) ख़ुदा ही के चाहते से हुआ है (मेरा कुछ भी नहीं क्योंकि) बग़ैर ख़ुदा की (मदद) के (किसी में) कुछ सकत नहीं अगर माल और औलाद की राह से तू मुझे कम समझता है अनक़रीब ही मेरा परवरदिगार मुझे वह बाग़ अता फ़रमाएगा।
जो तेरे बाग़ से कहीं बेहतर होगा और तेरे बाग पर कोई ऐसी आफ़त आसमान से नाज़िल करे कि (ख़ाक सियाह) होकर चटयल चिकना सफाचट मैदान हो जाए उसका पानी नीचे उतर (के खुश्क) हो जाए फिर तू उसको किसी तरह तलब न कर सके (चुनांचे अज़ाब नाज़िल हुआ और उसके बाग़ के) फल (आफ़त में) घेर लिए गए तो उस माल पर जो बाग़ की तैयारी में सर्फ किया था (अफ़सोस से) हाथ मलने लगा और बाग़ की ये हालत थी की अपनी टहनियाँ पर आधा गिरा हुआ पड़ा था तो कहने लगा काश में अपने परवरदिगार का किसी को शरीक न बनाता और ख़ुदा के सिवा उस का कोई जत्था भी न था कि उसकी मदद करता और न वह बदला ले सकता था उसी वजह से (साबित हो गया कि) सरपरस्ती ख़ास ख़ुदा ही के लिए है जो सच्चा है वही बेहतर सवाब (देने) वाला है और अन्जाम के ख़याल से भी वही बेहतर है।
और (ऐ रसूल) उन से दुनियां की ज़िन्दगी की मसल भी बयान कर दो कि उसकी हालत उस पानी की सी है जिसे हमने आसमान से बरसाया तो ज़मीन की रोएदगी उसमें मिल गई और (ख़ूब फली फूली) और आख़िर रेज़ा (भूसा) हो गई कि उसको हवाए उड़ाए फिरती है और खुदा पर चीज़ पर क़ादिर है (ऐ रसूल) माल और औलाद (इस ज़रा सी) दुनियां की ज़िन्दगी की ज़ीनत हैं(1) और बाक़ी रहने वाली(2) नेकियां तुम्हारे परवरदिगार के नज़दीक सवाब में उससे कहीं ज़्यादा अच्छी हैं और तमन्नाए और आरजू की राह से (भी) बेहतर हैं और (उस दिन से डरो) जिस दिन हम पहाड़ों को चालाएंगे और तुम ज़मीन को खुला मैदान (पहाड़ों से) खाली देखोगे और हम उन सभी को इकट्ठा करेंगे तो उन में से एक को न छोड़ेंगे सब के सब तुम्हारे परवरदिगार के सामने क़तार क़तार पेश किए जाएंगे।
और उस वक़्त हम याद दिलाएंगे कि जिस तरह हम ने तुम को पहली बार पैदा किया था (उसी तरह) तुम लोगों को (आख़िर) हमारे पास आना पड़़ा मगर तुम तो ये ख़याल करते थे कि हम तुम्हारे (दुबारा पैदा करने के) लिए कोई वक़्त ही नहीं ठहराएंगे और (लोगों के आमाल की) किताब (सामने) रखी जाएगी तो तुम गुनाहगारों को देखोगे कि जो कुछ उस में (लिखा) है (देख देख कर) सहमे हुए हैं और कहते जाते हैं हाए हमारी शामत ये कैसी किताब है कि न छोटे ही गुनाह को बे क़लबन्द किए छोड़ती है न बड़े गुनाह को और जो कुछ उन लोगों ने (दुनियां में) किया था वह सब (लिखा हुआ) मौजूद पाओगे और तेरा परवरदिगार किसी पर (ज़र्रा बराबर) ज़ुल्म न करेगा और (वह वक़्त याद करो) जब हम ने फ़रिश्तों को हुक्म दिया कि आदम को सज्दा करो तो इब्लीस के सिवा सब ने सज्दा किया (ये इब्लीस) जिन्नात से था तो अपने परवरदिगार के हुक्म से निकल भागा तो (लोगों) क्या मुझे छोड़ कर उसको और उसकी औलाद को अपना दोस्त बनाते हो हालांकि वह तुम्हारे (क़दीमी) दुश्मन हैं ज़ालिमों (ने ख़ुदा के बदले शैतान को अपना दोस्त बनाया ये उनका) क्या बुरा एवज़ है।
मैंने न तो आसमान व ज़मीन के पैदा करने के वक़्त उनको (मदद के लिए) बुलाया था और न ख़ुद उनके पैदा करने के वक़्त और मैं (ऐसा क्या गुज़रा) न था कि मैं गुम्राह करने वालों को मददगार बनाता और (उस दिन से डरो) जिस दिन ख़ुदा फ़रमाएगा कि अब तुम जिन लोगों को मेरा शरीक़ ख़्याल करते थे उनको (मदद के लिए) पुकारों तो वह लोग उन को पुकारेंगे मगर वह लोग उनकी कुछ न सुनेंगे और हम उन दोनों के बीच में मोहलक आड़ बना देंगे और गुनाहगार लोग देख कर समझ जाएंगे कि ये उसमें झोंके जाएंगे और उससे गुरेज़ की राह न पाएंगे और हमने तो इस कुरआन में लोगों (के समझाने) के वास्ते हर तरह की मिसाले फेर बदल कर बयान कर दी हैं मगर इन्सान तो तमाम मख़लूक़ात से ज़्यादा झगडालू है।
और जब लोगों के पास हिदायत आ चुकी तो (फिर) उन को ईमान लाने और अपने परवरदिगार से मग़फ़िरत की दुआ मांगने से उसके सिवा और कौन अगर माने है कि अगलों की सी रीत रस्म उनको भी पेश आई या हमारा अज़ाब उनके सामने से (मौजूद) हो और हम तो पैग़म्बरों को सिर्फ़ इसलिए भेजते हैं कि (अच्छे को निजात की) ख़ुशख़बरी सुनाए और (बंदों को अज़ाब से) डराएं और लोग काफ़िर हैं (झूटी) झूटी बातों का सहारा पकड़ के झगड़ा करते हैं ताकि उसकी बदौलत हक़ को उसकी जगह से उख़ाड़ फेंके और उन लोगों ने मेरी आयतों को जिस (अज़ाब से) ये लोग डराए गये हंसी मज़ाक़ बना रखा है और उससे बढ़ कर और कौन ज़ालिम होगा जिसको ख़ुदा की आयतें याद दिलाई जाए
और वह उनसे रुगरदानी करे और अपने पहले करतूतों को जो उसके हाथों ने किये हैं भूल बैठे (गोया) हमने खुद उनके दिलों पर परदे डाल दिये हैं कि वह (हक़ बात की) न समझ सकें और (गोया) उनके कानों में गरानी पैदा कर दी है कि (सुन न सकें) और अगर तुम उनको राहे रास्त की तरफ़ बुलाओ भी तो यह हरगिज़ कभी रू बराह होने वाले नहीं और (ऐ रसूल) तुम्हारा परवरदिगार तो बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है अगर उनके करतूतों की सज़ा में धड़पकड़ करता तो फ़ौरन (दुनियां ही में) उन पर अज़ाब नाज़िल कर देता मगर उनके लिए तो एक मियाद (मुक़र्रर) है जिससे ख़ुदा के सिवा कहीं पनाह की जगह न पाएंगे और ये बस्तियां (जिन्हें तुम वहां अपनी आँखों से देखते हो) जब उन लोगों ने सरकशी की तो हमने उन्हें हलाक कर मारा और हमने उनकी हलाकत की मियाद मुक़र्रर कर दी थी।
और (ऐ रसूल) वह वाक़ेया याद करो जब मूसा(1) खिज़्र की मुलाक़ात को चले तो अपने जवान (वसी यूशाह)(2) से बोले कि जब तक मैं दोनों दरयाओं के मिलने की जगह न पहुँच जाऊँ (चलने से) बाज़ ना आऊंगा ख़्वाह (अगर मुलाक़ात न हो तो) बरसों यूहीं चला जाऊँगा फिर जब ये दोनों उन दोनों दरयाओं के मिलने की जगह पहुंचे तो अपनी (भुन हुई) मछली छोड़ चले तो उसने दरया में सुरंग बनाकर अपनी राह ली फिर जब कुछ और आगे बढ़ गये तो मूसा ने अपने जवान (वसी) से कहा अजी हमारा नाश्ता तो हमें दे दो हमारे (आज के) इस सफ़र से तो हम को बड़ी थकान हो गई (यूशाअ ने) कहा क्या आप ने देखा भी कि जब हम लोग दरया के किनारे उस पत्थर के पास ठहरे थे तो मैं (उसी जगह) मछली छोड़ आया और मुझे आप से उस का ज़िक्र करना शैतान ने भुला दिया और मछली ने अजीब तरह से दरया में अपनी राह ली मूसा ने कहा वही तो वह (जगह) है जिस की हम जुस्तजू में थे फिर दोनों अपने क़दम के निशानों पर देखते देखते उलटे पाओं फ़िरे तो (जहां मछली छोड़ी थी) दोनों ने हमारे बंदों में से एक (ख़ास) बंदा खिज़्र(3) को पाया जिसको हमने अपनी बारगाह से रहमत (विलायत) का हिस्सा अता किया था
और हमने उसे इल्मे लदुन्नी (अपने ख़ास इल्म) मे से कुछ सिखाया था मूसा ने उन (ख़िज़्र) से कहा (आप की इजाज़त है कि) मैं इस गरज़ से आप के साथ साथ हूं कि जो रहनुमाई का इल्म आपको (ख़ुदा की तरफ़ से) सिखाया गया है उसमे से कुछ मुझे भी सिखा दिजिए ख़िज़र ने कहा (मैं सिखा दूं मगर) आपसे मेरे साथ सब्र न हो सकेगा और (सच तो यह है) जो चीज़ आपके इल्मी अहाते से बाहर हो उस पर आप क्यों कर सब्र कर सकते हैं।
मूसा ने कहा (आप इत्मेनान रखिये) अगर ख़ुदा ने चाहा तो आप मुझे साबिर आदमी पाएंगे और में आपको किसी हुक्म की नाफ़रमानी न करूंगा खिज्र ने कहा (अच्छा तो) अगर आपको मेरे साथ साथ रहना है तो जब तक मैं खुद आप से किसी बात का ज़िक्र न छेडूं आप मुझसे किसी चीज़ के बारे में न पूछियेगा ग़रज़ ये दोनों (मिलकर) चल खड़े हुए(1) यहां तक कि (एक दरया में) जब दोनों कश्ती में सवार हुए तो ख़िज़्र ने कश्ती में छेद कर दिया मूसा ने कहा (आपने तो गज़ब कर दिया) क्या कश्ती में इस ग़रज़ से सूराख़ किया है कि लोगों को डुबा दिजिए ये तो आपने बड़ी अजीब बात की ख़ज़र ने कहा क्या मैंने आप से (पहले ही) न कह दिया था कि आफ मेरे साथ हरगिज़ सब्र न कर सकेंगे।
मूसा ने कहा जो हुआ (सो हुआ) आप मेरा फ़रो-गुज़ाश्त पर गिरफ़्त न किजिए और मुझ पर मेरे इस मामले में इतनी सख़्ती न किजिए (ख़ैर ये तो हो गया) फिर दोनों के दोनों आगे चले यहां तक के दोनों एक लड़के से मिले तो उस बंदे ख़ुदा ने उसे जान से मार डाला मूसा ने कहा (ऐ माज़अल्लाह) क्या आप ने एक मासूम शख़्स को मार डाला (और वह भी) किसी के खून के बदले में नहीं आपने तो यक़ीनी एक अजीब हरकत की।
तरजुमा कुरआने करीम (मौलाना फरमान अली) पारा-15
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