तरजुमा कुरआने करीम (मौलाना फरमान अली) पारा-14

कुरआन मजीद
Typography
  • Smaller Small Medium Big Bigger
  • Default Helvetica Segoe Georgia Times

(एक दिन वह भी आने वाला है) जो लोग काफ़िर हो बैठे हें अक्सर दिल से चाहेंगे कि काश (हम भी) मुसलमान होते (ऐ रसूल) उन्हें उन की हालत पर रहने दो कि खा पी लें और (दुनियां के चन्द रोज़) चैन कर लें उनकी तमन्नाएं(1) उन्हें खेल तमाशे में लगाए रहे अनक़रीब ही (उस का नतीजा) उन्हें मालूम हो जाएगा और हमने कभी कोई बस्ती तबाह नहीं की मगर ये कि उसकी तबाही के लिए (पहले ही से) समझी बूझी हुई मियाद मुक़र्रर लिखी हुई थी कोई उम्मत अपने वक़्त से न आगे बढ़ सकती है न पीछे हट सकती है (ऐ रसूल कुफ़्फ़ार मक्का तुम से) कहते हैं तो तू (अच्छा ख़ासा) सिड़ि है अगर तू अपने दावे में सच्चा है तो फ़रिश्तों को हमारे सामने क्यों नहीं ला खड़ा करता (हालांकि) हम फरिश्ते नाज़िल हो जाएं तो) फिर उनको (जान बचाने की) मोहलत(2) भी न मिले बेशक हम ही ने कुरआन(3) कुरआन नाज़िल किया और हम ही तो उसके निगाहबान भी हैं।
और (ऐ रसूल) हमने तुमसे पहले भी अगली उम्मतों में (और भी बहुत से) रसूल भेजे और (उनकी भी यही आदत थी कि) उनके पास कोई रसूल न आया मगर उन लोगों से उसकी हंसी ज़रुर उड़ाई हम (गोया ख़ुद) उसी तरह (गुमराही) को (उन) गुनाहगारों के दिल में डाल देते हैं ये कुफ़्फार उस (कुरआन) पर ईमान न लाएंगे और (ये कुछ अनोखी बात नहीं) अगलों की रविश भी (ऐसे ही) रहा की है और अगर हम अपनी कुदरत से आसमान का एक दरवाज़ा भी खोल दें और ये लोग दिन दहाड़े उस दरवाज़े से (आसमान पर) चढ़ भी जाए तब भी यही कहेंगे कि हो न हो हमारी आंखें (नज़र बंदी से) मतवाली कर दी गई हैं या नहीं तो हम लोगों पर जादू किया गया है।
और हम ही ने आसमान में बुर्ज बनाए(1) और देखने वालों के वास्ते उन को (सितारों से) आरास्ता किया और हर शैतान मरदूद की आमद व रफ़्त से उन्हें महफूज़ रखा मगर जो शैतान चोरी छिपे (वहां की किसी बात पर) कान लगाए तो शहाब का(2) दहकता हुआ शोला उसके (खदेड़ने को) पीछे पड़ जाता है और ज़मीन को (भी अपने मख़्लूक़ात के रहने सहने को) हमही ने फैलाया और उसमें (मेख़ की तरह) पहाड़ों मे लंगर डाल दिए और हम ने उसमें हर क़िस्म की मुनासिब चीज़ उगाई और हम ही ने उन्हें तुम्हारे वास्ते ज़िन्दगी के साज़ व समान बना दिए और उन जानवरों के लिए भी जिन्हें तुम रोज़ी नहीं देते और हमारे यहां तो हर चीज़ के बेशुमार ख़ज़ाने (भरे) पड़े हैं और हम (उसमें से) एक जची तुली मिक़दार भेजते रहते हैं और हम ही ने वह हवाएं भेजी जो बादलों को पानी से (भरे हुए) हैं फिर हम ही ने आसमान से पानी बरसाया फिर हम ही ने तुम लोगो को वह पानी पिलाया और तुम लोगों ने तो कुछ उसको जमा करके नहीं रखा था- और उसमें शक नहीं कि हम ही (लोगों को) जिलाते हैं और हम ही मार डालते हैं और (फिर) हम ही (सब के) वाली वारिस हैं और बेशक हम ने तुममे से उन लोगों को भी अच्छी तरह समझ लिया जो पहले हो गुज़रे और हमने उनको भी जान लिया जो बाद को आने वाले हैं और उसमें शक नहीं कि तेरा परवरदिगार वही है जो उन सब को (क़यामत में कब्रों से) उठाएगा- बेशक वह हिकमत वाला वाक़िफ़दार है।
और बेशक हमने ही आदमी को ख़मीर दी हुई सड़ी मिट्टी से जो (सूख कर) खनखन बोलने लगे पैदा किया और हम ही ने जिन्नात को आदमी से (भी) पहले बेधुएं की तेज़ आग से पैदा किया और (ऐ रसूल वह वक़्त याद करो) जब तुम्हारे परवरदिगार ने फ़रिश्तों से कहा कि मैं एक आदमी को ख़मीर दी हुई मिट्टी से जो सूख कर खनखन बोलने लगे पैदा करने वाला हूँ तो जिस वक़्त मैं उसको हर तरह से दुरुस्त कर चुकूं और उसमें अपनी (तरफ़ से) रूह फूंक़ दूं तो सब के सब उसके सामने सज्दे मे गिर प़टना गर्ज़ फ़रिश्ते तो सब के सब रस बा सजूद हो गए मगर इब्लीस (मलऊन) के उसने सजदा करने वालों के साथ शामिल होने से इंकार किया (उस पर खदा ने) फ़रमाया और शैतान आख़िर तुझे क्या हुवा कि तू सजदा करने वालों के साथ शामिल न हुआ वह (ढ़िटाई से) कहने लगा मैं ऐसा गया गुज़रा तो हूं नहीं कि ऐसे आदमी को सज्दा कर बैठू जिसे तूने सड़ी हुई खनखन बोलने वाली मिट्टी से पैदा किया है खुदा ने फ़रमाया (नहीं तो) तू बेहिश्त से निकल जा (दूर हो) कि बेशक तू मरदूद है और यक़ीनन तुझ पर रोज़े जज़ा तक फ़िटकार बरसा करेगी शैतान ने कहा कि ऐ मेरे परवरदिगार ख़ैर तू मुझे उस दिन तक की मोहलत दे जबकि (लोग दूबारा ज़िन्दा करके) उठाए जाएंगे ख़ुदा ने फ़रमाया वक़्त तूने मुझे रास्ते से अलग किया मैं भी उन के लिये दुनिया में (साज़ व समान को) उमदा कर दिखाऊँगा और उन सबको ज़रुर बहकाऊंगा मगर उन में से तेरे निरे ख़ुरे ख़ास बंदे (कि वह मेरे बहकाने में न आंएंगे) ख़ुदा ने फ़रमाया कि यही राह सीधी(2) है कि मुझ तक (पहुंचती) है जो मेरे मुख़लिस बंदे है उन पर तुझे किसी तरह की हुकूमत न होगी मगर हां गुमराही में से जो तेरी पैरवी करे (उस पर तेरा ज़ोर चल जाएगा) और हां यह भी याद रहे कि उन सब के वास्ते (आख़िरी) वादा बस जहन्नुम है जिस के सात दरवाज़े होंगे हर (दरवाज़े में जाने) के लिय उन गुमराहों की अलग अलग टोलियां होंगी।
और परहेज़गार तो बेहिश्त के ब़ागों और चश्मों में यक़ीनन होंगे (दाख़ले के वक़्त फरिश्ते कहेंगे कि) उन में सलामती इत्मेनान से चले चलो और (दुनिया की तकलीफ़ से) जो कुछ उन के(1) दिल में रंज था उस को भी हम निकाल देंगे और ये बहाहम एक दूसरे की आमने सामने तख़तों पर उस तरह बैठै होंगे जैसे भाई भाई उनको बेहिश्त में तकलीफ़ छुएगी भी तो नहीं और न कभी उसमें से निकाले जाएंगे (ऐ रसूल) मेरे बंदो को आगाह कर दो कि बेशक मैं बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान हूं मगर साथ ही उसके (ये भी याद रहे कि) बेशक मेरा अज़ाब भी बड़ा दर्दनाक अज़ाब है।
और उनको इब्राहीम के मेहमान का हाल सुना दो कि जब ये इब्राहीम के पास आए तो (पहले) उन्होंने सलाम किया इब्राहीम ने (जवाब सलाम के बाद) कहा हमको तो तुम से डर मालूम होता है- उन्होंने कहा आप मुतलक़ ख़ौफ़ न कीजिए (क्योंकि) हम तो आप को एक (दाना व बीना) फ़रज़न्द (के पैदाइश) की ख़ुशख़बरी देते हैं इब्राहीम ने कहा (बेटे के होने की) क्या मुझे ख़ुशख़बरी देते हो जब मुझ पर बुढ़ापा छा गया तो फिर अब काहे की खुशख़बरी देते हो वह फ़रिश्ते बोले हम ने आपको बिल्कुल ठीक खुशखबरी दी है तो आप (बारगाह ख़ुदा वंदी से) ना उम्मीद न हों इब्राहीम ने कहा गुमराहों के सिवा और ऐसा कौन है जो उपने परवरदिगार की रहमत से नाउम्मीद(1) हो
(फ़िर) इब्राहीम ने कहा ऐ (खुदा के) भेजे हुए (फ़रिश्तों) तुम्हें आख़िर क्या मुहिम दरपेश है उन्होंने कहा कि हम तो एक गुनाहगार क़ौम की तरफ़ (अज़ाब नाज़िल करने के लिए) भेजे गए हैं मगर लूत के लड़के वाले के हम उन सबको ज़रुर बचा लेंगे मगर उनकी बीवी(2) जिसे हमने ताक लिया है कि वह ज़रुर (अपने लड़के वालों के) पीछे (अज़ाब में) रह जाएगी ग़रज़ जब (ख़ुदा के) भेजे हुए (फ़रिश्ते) लूत के बाल बच्चों के पास आए तो लूत ने कहा तुम तो (कुछ) अजनबी लोग (मालूम होते हो) फ़रिश्तों ने कहा (नहीं) बल्कि हम तो आप के पास वह (अज़ाब ) लेकर आएं हैं जिस के बारे में आप की क़ौम के लोग शक रखते थे (कि आए न आए) और हम आप के पास (अज़ाब का) क़तई हुक्म लेकर आएं हैं और हम बिल्कुल सच कहते हैं बस तो आप कुछ रात रहे अपने लड़के बालों को लेकर निकल जाइये और आप सब के पीछे रहिएगा और उन लोगों में से कोई मुड़ कर पीछे न देखे और जिधर (जाने) का हुक्म दिया गया है (शाम) उधर-(सीधे) चले जाओ
और हमने लूत के पास उस अम्र को क़तई फैसला कहला भेजा कि सुबह होते होते उन लोगों की जड़ काट डाली जाएगी और (ये बातें हो ही रहीं थी कि) शहर के लोग (मेहमानों की ख़बर सुनकर बुरी नियत से) खुशियां मनाते हुए आ पहुँचे लुत ने (उन से कहा) कि ये लोग मेरे मेहमान हैं तो तुम (उन्हें सता कर) मुझे रूसवा बदनाम न करो और ख़ुदा से डरो और मुझे ज़लील न करो वह लोग कहने लगे क्यों जी हम ने तुमको सारे जहान के लोगों (के आने) की मनाही नहीं कर दी थी लूत ने कहा अगर तुमको (ऐसी ही) करना है तो ये मेरी क़ौम की बेटियां मौजूद हैं (उनसे निकाह कर लो) ऐ रसूल तुम्हारी जान की क़सम ये लोग (क़ौम लूत) अपनी मस्ती में मदहोश हो रहे थे (लूत की सुनते काहे को) ग़रज़ सूरज निकलते निकलते उनको (बड़े ज़ोरों की) चिंघाड़ ने ले डाला फिर हमने उसी बस्ती को उलट कर उसके ऊपर के तबक़े को उसके नीचे का तबक़ा बना दिया और उसके ऊपर उन पर खड़न्ज के पत्थर बरसा दिए इसमें शक नहीं कि उसमें (असली बात के) ताड़ जानने वालों के लिए(1) (कुदरत ख़ुदा की) बहुतसी निशानियां हैं और वह उल्टी हुई बस्ती हमेशा (की आमद व रफ़्त) के रास्ते पर है उसमें तो शक ही नहीं कि उसमें ईमानदारों के वास्ते (कुदरत ख़ुदा की) बहुत ब़ड़ी निशानी है।
और ये कि(2) यहां के रहने वाले (क़ौमे शुएब, क़ौमे लूत की तरह) बड़े सरकश थे तो उनसे भी हमने (नाफ़रमानी का) बदला लिया और ये दो(2) बस्तियां क़ौमे लूत व शुएब की एक खुली हुई शाह राह पर (अभी तक मौजूद) है और उसी तरह हिज्र(4) के रहने वालों (क़ौमे सालेह ने भी) पैग़म्बरों को झुटलाया और (बावजूद ये कि) हम ने उन्हें अपनी निशानियां दी उस पर भी वह लोग उन से रुगरदानी करते रहे और बहुत दिल जमी से पहाड़ों को तराश तराश कर घऱ बनाते रहे आख़िर उनको सुबह होते होते एक बड़ी (ज़ोरों की) चिंघाड़ ने ले डाला फ़िर जो कुछ वह अपनी हिफ़ाज़त की तदबीरे किया करते थे (अज़ाब ख़ुदा से बचने में) कि कुछ भी काम न आए और हमने आसमानों और ज़मीन को और जो कुछ उन दोनों के दरमियान में है हिकमत व मसलेहत से पैदा किया है और क़यामत यक़ीनन ज़रुर आने वाली है तो तुम (ऐ रसूल) उन काफ़िरों से शाइस्ता उनवान के साथ दरगुज़र करो इसमें शक नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार बड़़ा पैदा करने वाला और (बड़ा दाना व बीना है)
और हमने तुमको सबा मसानी(1) (सूरे: हम्द) और कुरआन ऐ अज़ीम अता किया है और हमने जो उन कुफ़्फ़ार में से कुछ लोगों को (दुनियां की माल व दौलत से) नेहाल कर दिया है तुम उसकी तरफ़ हरगिज़ नज़र भी न उठाना और न उनकी (बेदीनी) पर कुछ अफ़सोस करना और ईमानदारों से (अगर चे ग़रीब हो) झुक कर(2) मिला करो और कह दो कि मैं तो (अज़ाब ख़ुदा से) सरीही तौर पर डरने वाला हूं।
(ऐ रसूल हम उन कुफ़्फ़ार पर उसी तरह अज़ाब नाज़िल करेंगे) जिस तरह हमने उन लोगों पर नाज़िल किया जिन्होंने कुरआन को बाट कर टुक़डे टुकड़े कर डाला(3) बाज़ को माना और बाज़ को नहीं तो ऐ रसूल तुम्हारे ही परवरिदगार की (अपनी) क़सम की हम उनसे जो कुछ ये (दुनियां मे) किया करते हैं (बहुत सख़्ती) से) ज़रुर बाजपुर्स करेंगे पस जिसका तुम्हें हुक्म दिया गया है उसे वाज़ेह करके सुना दो और मुशरेकीन की तरफ़ से मुंह फेर लो जो लोग तुम्हारी हंसी उड़ाते हैं और ख़ुदा के साथ दूसरे परवरदिगार को (शरीक) ठहराते हैं हम तुम्हारी तरफ़ से उनके लिए काफ़ी(1) हैं तो अनक़रीब ही उन्हें मालूम हो जाएगा कि तुम जो उन (कुफ़्फार व मुनाफ़ेक़ीन) की बातों से दिल तंग होते हो हम उसको ज़रुर जानते हैं तो तुम अपने परवरदिगार की हमद व सना से उसकी तस्बीह करो और (उसकी बारगाह में) सज्दा करने वालों में हो जाऔ और जब तक तुम्हारे पास मौत आए अपने परवरदिगार की इबादत में लगे रहो।
सूरे: नहल

सूरे: नहल मक्के में नाज़िल हुआ और इसकी 128 आयतें हैं।
(ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला हैं।
ऐ कुफ़्फ़ार मक्का (ख़ुदा का हुक्म क़यामत गोया) आ पहुंचा तो (ऐ काफ़िरों बेफ़ायदा) तुम उसकी जल्दी न मचाओ जिस चीज़ को ये लोग शरीक क़रार देते हैं उससे वह ख़ुदा पाक व पाकीज़ा और बरतर है वही अपने हुक्म से अपने बन्दों में से जिसके पास चाहता है वही देकर फ़रिश्तों को भेजता है कि लोगों को उस बात से आगाह कर दो कि मेरे सिवा कोई माबूद नहीं तो मुझी से डरते रहो उसी ने सारे आसमान और ज़मीन मसलहत व हिकमत से पैदा किए तो ये लोग जिसको उसका शरीक बताते हैं उससे वह कहीं बरतर हैं।
उसने इंसान को नुत्फ़े से पैदा किया फिर वह यकायक (हम ही से) खुल्लम ख़ुल्ला झगड़ने वाला हो गया उसी ने चार पायों को भी पैदा किया कि तुम्हारे लिए उन (की ख़ाल और ऊन) से जड़ावल (का समान) है उसके अलावा और भी फ़ाएदे हैं और उन में से बाज़ को तुम खाते हो और जब तुम उन्हें सरे शाम चराई पर से लाते हो और जब सवेरे ही सवेरे चराई पर ले जाते हो तो उन की वजह से तुम्हारी रौनक़ भी है और जिन शहरों तक बग़ैर बड़ी जान खपी के पहुंच न सकते थे वहां तक के चौपाये भी तुम्हारे बोझ भी उठाये लिये फ़िरते हैं इसमें शक नही कि तुम्हारा परवरदिगार बड़ा शफीक़ मेहरबान है और (उसी ने) घोड़ों खच्चरों और गधों को (पैदा किया) ताकि तुम उन पर सवार हो और (उसमें) ज़ीनत (भी) है (इसके अलावा) और चीज़े भी पैदा करेगा जिनको तुम नहीं जानते हो और (खुश्क व तर में) सीधी राह की हिदायत तो ख़ुदा ही के(1) ज़िम्मे है और बाज़ रास्ते टेढ़े हैं और खुदा चाहता तो तुम सबको मन्ज़िले मक़सूद तक पहुँचा देता।
वह वही (खु़दा) है जिसने आसमान से पानी बरसाया जिसमें से तुम सब पीतो हो और उससे दरख़्त शादाब होते हैं जिनमें तुम (अपने मवेशियों को) चराते हो उसी पानी से तुम्हारे वास्ते खेती और ज़ैतून और खुरमें और अंगूर उगाता है और हर तरह के फ़ल (पैदा करता है) उसमें शक नहीं कि उसमें ग़ौर करने वालों के वास्ते (कुदरत ख़ुदा की) बहुत बड़ी निशानी है उसी ने तुम्हारे वास्ते रात को और दिन को और सूरज और चांद को तुम्हारा ताबे बना दिया और सितारे भी उसी के हुक्म से (तुम्हारे) फ़रमा बरदार हैं कुछ शक ही नहीं कि उसमें समझदार लोगों के वास्ते यक़ीनन (कुदरते ख़ुदा की) बहुत सी निशानियां हैं और तरह तरह के रंगो की चीज़ें उसने ज़मीन में तुम्हारे नफ़ाअ के वास्ते पैदा की कुछ शक नहीं कि उसमें भी इबरत व नसीहत हासिल करने वालों के वास्ते (कुदरत ख़ुदा की) बहुत बड़ी निशानी है और वही वह ख़ुदा है जिसने दरिया (भी तुम्हारे) क़ब्ज़े में कर दिया ताकि तुम उसमें से (मछलियों का) ताज़ा ताज़ा गोश्त खाओ और उसमे ज़ेवर (की चीज़े मोती वग़ैरह) निकालो जिन को तुम पहना करते हो
और तू कशतियों को देखता है कि (आमद व रफ़्त में) दरिया मे (पानी को) चीरती फ़ाडती आती जाती है और (दरिया को तुम्हारे ताबे) इस लिए (कर दिया) के तुम लोग उसके फ़ज्ल (नफ़ा तिजारत) की तलाश करो और ताकि तुम शुक्र करो और उसी ने ज़मीन पर (भारी भारी) पहाड़ों को गाड़ दिया ताकि (ऐसा न हो) कि ज़मीन तुम्हें लेकर कहीं झुक जाए (और तुम्हारे क़दम न जमे) और (उसी ने) नदियाँ और रस्ते (बनाए) ताकि तुम अपनी अपनी मंज़िले मक़सूद तक पहुँचो (उसके अलावा रास्तों में) और बहुत सी निशानीयां (पैदा की हैं) और बहुत से लोग सितारों से भी राह मालूम करते हैं तो क्या जो (ख़ुदा इतने मख़लूक़ात को) पैदा करता है और वह उन बुतों के बराबर हो सकता है जो कुछ भी पैदा नहीं कर सकते तो क्या तुम (इतनी बात भी) नहीं समझते और अगर तुम ख़ुदा की नेमतों को गिनना चाहते तो (इस कसरत से हैं कि) तुम नहीं गिन सकते हो बेशक ख़ुदा बड़ा बख़शने वाला मेहरबान है कि (तुम्हारी नाफ़रमानी पर भी नेमत देता है)
और जो कुछ तुम छिपा करते हो और जो कुछ ज़ाहिर ब ज़ाहिर करते हो (गरज़) ख़ुदा (सबकुछ) जानता है और (ये कुफ़्फार) ख़ुदा को छोड़ कर जिन लोगों की (हाजत के वक़्त) पुकारते हैं वह कुछ भी पैदा नहीं कर सकते (बल्कि) वह खुद (दूसरों के) बनाए हुए मुर्दे बेजान हैं और इतनी भी ख़बर नहीं कि कब (क़यामत) होगी और कब मुरदे उठाए जाएंगे (फ़िर क्या काम आएंगे) तुम्हारा परवरदिगार (यक्ता ख़ुदा) है तो जो लोग आख़ेरत पर ईमान नहीं रखते उन के दिल ही (उस वज़ा के हैं कि हर बात का) इंकार करते हैं और बह बड़े मग़रुर हैं ये लोग जो कुछ छिपा कर रखते हैं और जो कुछ ज़ाहिर रखते हैं (गरज़ सब कुछ) ख़ुदा जरुर जानता है हरगिज़ तकब्बुर करने वालों को पसंद नहीं करता
और जब उनसे कहा जाता है कि तुम्हारे परवरदिगार ने क्या नाज़िल किया तो वह कहते हैं कि (अजी कुछ भी नहीं बस अगलों के क़िस्से हैं (उनको बकने दो ताकि क़यामत के दिन) अपने (गुनाहों) के पूरे बोझ और जिन लोगों को उन्होंने बे समझे बूझे गुमराह किया है उनके (गुनाहों के) बोझ भी उन्हीं को उठाने(1) पड़ेंगे ज़रा देखो तो कि ये लोग कैसा पुरा बोझ अपने ऊपर लादे चले जा रहे हैं बेशक जो लोग उनसे पहले थे उन्होंने भी मक्कारियां की थी तो (ख़ुदा का हुक्म उनके ख़्यालात) की इमारत की जड़ बुनियाद की तरफ़ से आ पड़ा (बस फिर क्या था) उस (ख़्याली ईमारत) की छत पर उनके ऊपर से धम से गिर पड़ी (और बस ख़्यालात) हवा हो गए और जिधर से उन पर अज़ाब आ पहुँचा उसकी उनको ख़बर तक(1) न थी (फिर उसी पर इकतेफा नहीं) उसके बाद क़यामत के दिन ख़ुदा उनको रुसवा करेगा और फ़रमाएगा कि (अब बताओ) जिसको तुम ने मेरा शरीक बना रखा था और जिनके बारे में तुम (ईमानदारों से) झगड़ते थे कहां है (वह तो कुछ जवाब देंगे नहीं मगर)
जिन लोगों को (खु़दा की तरफ़ से) इल्म दिया गया है कहेंगे कि आज के दिन रूसवाई और ख़राबी (सब कुछ) क़ाफ़िरों पर ही है ये वह लोग हैं कि जब फ़रिश्ते उनकी रूह क़ब्ज़ करने लगते हैं (और) ये लोग (कुफ्र कर करके) आप अपने ऊपर सितम ढाते रहे तो ऐताअत पर अमादा नज़र आते हैं और (कहते हैं कि) हम तो (अपने ख़्याल में) कोई बुराई नहीं करते थे (तो फ़रिशते कहते हैं) हां जो कुछ तुम्हारी करतूते थी उससे ख़ूब अच्छी तरह वाक़िफ़ हैं (अच्छा तो लो) जहन्नुम के दरवाज़ों में जा दाख़िल हो और उसमें हमेशा रहोगे ग़रज़ तकब्बुर करने वालों का भी क्या बुरा ठिकाना है और जब परहेज़गारों से पूछा जाता है कि तुम्हारे परवरदिगार ने क्या नाज़िल किया है तो बोल उठते हैं सब अच्छे से अच्छा जिन लोगों ने नेकी की उनके लिए इस दुनिया में (भी) भलाई (ही भलाई) है और आख़ेरत का घर तो (उनके लिए) अच्छा ही है और परहेज़गारों का भी (आख़ेरत का) घर कैसा उम्दा है सदाबहार (हरे भरे) बाग़ हैं जिनमें (बेतकल्लुफ़) जो पहुँचेंगे उनके नीचे (नीचे) नहरे जारी होंगी और ये लोग जो चाहेंगे उनके लिए मुहय्या है यूं खुदा परहेज़गारों (को उनके लिए) की जज़ा अता फ़रमाता है (ये) वह लोग हैं जिनकी रूहे फ़रिश्ते उस हालत में कब्ज़ करते हैं कि वह (निजासत कुफ़्र से) पाक व पाकीज़ा होते हैं तो फ़रिश्ते उन से (निहायत तपाक से) कहते हैं सलामुन अलैकुम जो नेकियां दुनियां में तुम करते थे उसके सिले में जन्नत में (बेतकल्लुफ़) चले आओ
(ऐ रसूल) क्या ये (अहले मक्का) उसी बात के मुन्नज़िर हैं कि उनके पास फ़रिश्ते (क़ब्ज़ रूह को) आ ही जाएं या (उनके हलाक करने को) तुम्हारे परवरदिगार का अज़ाब ही आ पहुंचे जो लोग उनसे पहले हो गुजरे हैं वह ऐसी बाते कर चुके हैं और ख़ुदा ने उन पर (ज़रा भी) जुल्म नहीं किया बल्कि वह लोग कुफ्र की वजह से अपने ऊपर आप जुल्म करते रहे फिर जो जो करतूतें उनकी थीं उनकी सज़ा में बुरे नतीजे उनको मिले और जिस (अज़ाब) की वह हंसी उड़ाया करते थे उसने उन्हें (चारों तरफ़ से) आ घेर लिया।
और मुशरेकीन कहते हैं कि अगर ख़ुदा चाहता तो न हम ही उसके सिवा किसी और चीज़ की इबादत करते और न हमारे बाप दादा और न हम बग़ैर उस की मर्ज़ी के किसी चीज़ को हराम कर बैठे जो लोग उनसे पहले हो ग़ुज़रे हैं वह भी ऐसे (ही हवाले की) बातें कर चुके हैं तो (कह करें) पैग़म्बरों पर तो उसके सिवा की अहकाम को साफ़ साफ़ पहुंचा दें और कुछ भी नहीं और हमने तो हर उम्मत में एक (न एक) रसूल इस बात के लिए ज़रुर भेजा कि लोगों ख़ुदा की इबादत करो और बुतों (की इबादत) से बचते रहो ग़रज़ उनमें से बाज़ को तो ख़ुदा ने हिदायत की और बाज़ के (सर) पर गुम्राही सवार हो गई तो ज़रा तुम लोग रूए ज़मीन पर चल फिर कर देखो तो कि पैग़म्बर उन ख़ुदा के झुठलाने वालों का क्या अन्जाम हुआ (ऐ रसूल) अगर तुमको उन लोगों ने राह रास्त पर लाने का हौका है (तो बेफ़ायदा है) क्योंकि ख़ुदा तो हरगिज़ उस शख़्स की हिदायत नहीं करेगा जिसको (नाअहल होने की वजह से) गुम्राही में छोड़ देता है और न उन का कोई मददगार है (कि अज़ाब से बचाए) और ये कुफ़्फ़ार ख़ुदा की जिनती क़स्में उनके इम्कान में थी खा (कर कहते) हैं कि जो शख़्स मर जाता है फिर उस को ख़ुदा दोबारा ज़िन्दा नहीं करेगा
(ऐ रसूल तुम कह दो कि) हां ज़रुर ऐसा करेगा उस पर अपने वादा की वफ़ा लाज़मी ज़रुर है मगर बहुतसे आदमी नहीं जानते हैं (दोबारा ज़िन्दा करना ज़रुरी है) कि जिन बातों पर ये लोग झगड़ा करते हैं उन्हें उन के सामने साफ़ वाज़ेह कर देना और ताकि कुफ़्फ़ार ये समझ ले कि ये लोग (दुनियां में) झूठे थे हम जब किसी चीज़ (के पैदा करने) का इरादा करते हैं तो हमारा कहना उसके बारे में इतना ही होता है कि हम कह देते हैं कि हो जा बस फ़ौरन हो जाती है (तो फिर मुर्दों का जिलाना भी कोई भात है) और जिन लोगों ने (कुफ़्फ़ार के जुल्म) पर जुल्म सहने के बाद ख़ुदा की खुशी के लिए (घर बार छोड़ा) हिजरत की हम उन को ज़रुर दुनिया में भी अच्छी जगह ला बैठाएंगे और आख़ेरत की जज़ा तो उस से कहीं बढ़ कर है।
काश ये लोग जिन्होंने (ख़ुदा की राह में सख़्तियों पर) सब्र किया और अपने परवरदिगार ही पर भरोसा रखते हैं (आख़ेरत का सवाब) जानते होते और (ऐ रसूल) तुम से पहले आदमियों ही को पैग़म्बर बना कर भेजा किए जिन की तरफ़ हम वही भेजते थे तो (तुम अहले मक्का से कहो कि) अगर तुम ख़ुद नहीं जानते हो तो अहले ज़िक्र(1) (आलिमों से) पूछो (और उन पैग़म्बरों को भेजा भी तो) रौशन दलीलों और किताबों के साथ और तुम्हारे पास कुरआन नाज़िल किया है ताकि जो अहकाम लोगों के लिए नाज़िल किए गए हैं तुम उन से साफ़ साफ़ बयान करो ताकि वह लोग ख़ुद से कुछ ग़ौर व फ़िकर करें तो क्या लोग बड़ी बड़ी ज़मीन में धंसा दें या उसी तरह से उन पर अज़ाब आ पहुँचा कि उस की उन को ख़बर भी न हो या उनके चलते फिरते (ख़ुदा का अज़ाब) उन्हें गिरफ़्तार कर ले तो वह लोग उसे ज़ेर नहीं कर सकते या वह अज़ाब से डरते हो तो (उसी हालत में) धर पकड़ करें इस में तो शक नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार बड़ा शफ़ीक़ रहम वाला है।
क्या उन लोगों ने ख़ुदा की मख़लूकात में से कोई ऐसी चीज़ नहीं देखी जिस का साया (कभी) दाहिनी तरफ़ और कभी बाई तरफ़ पलटता रहता है कि (गोया) ख़ुदा के सामने सर मसजूद है और सब ऐताअत का इज़्हार करते हैं और जितनी चीज़ें (चांद सूरज वग़ैरह) आसमानों मे हैं और जितने जानवर ज़मीन में है सब ख़ुदा ही के आगे सर बसजूद हैं और फ़रिश्ते तो हैं ही और वह हुक्म ख़ुदा से सरकशी नहीं करते और अपने परवरदिगार से जो उन से (कहीं) बरतर व आला हैं डरते हैं और जो हुक्म दिया जाता है फ़ौरन बजा लाते हैं(1)
और खुदा ने फ़रमाया था कि दो दो माबूद न बनाओ तो बस वही यकता ख़ुदा है सिर्फ़ मुझी से डरते रहो और कुछ आसमानों में हैं और जो कुछ ज़मीन में है (ग़रज़) सब कुछ उसी का है और ख़ालिस फ़रमाबरदारी हमेशा उसी की लाज़िम है तो क्या तुम लोग ख़ुदा के सिवा (किसी और से भी) डरते हो जितनी नेअमतें तुम्हारे साथ हैं (सब ख़ुदा ही की तरफ़ से है फ़िर) जब तुम को तकलीफ़ छू भी गयी तो तुम उसी के आगे फ़रयाद करने लगते हो फिर जब वह तुम से तकलीफ़ को दूर कर देता है तो बस फ़ौरन तुम में से कुछ लोग अपने परवरदिगार का शरीक ठहराते हैं ताकि जो (नेमतें हम न) उन को दी हैं उन की ना शुक्री करे तो खैर दुनियां में चंद रोज़ चैन कर लो फिर तो अक़रीब तुम को मालूम हो जाएगा।
और हम ने जो रोज़ी उन को दी है उस में से ये लोग उन बूतों का हिस्सा भी क़रार देते हैं जिनकी हक़ीकत नहीं जानते तो ख़ुदा की (अपनी) क़सम जो अफ़तरा परदाज़िया तुम करते थे (क़यामत में) उन की बाज़ पुर्स तुम से ज़रुर की जाएगी और ये लोग ख़ुदा के लिये बेटिया तजवीज़ करते हैं (सुब्हान अल्लाह) वह उस से पाक व पाकीज़ा है और अपने लिये (बेटे) जो मरगूब (दिल पसंद है) और जब उन में से किसी एक लड़की के पैदा होने की खुशखबरी दी जाए तो रंज के मारे उसका मुंह काला हो जाता है और वह ज़हर का सा घूंट पी कर रह जाता है (बेटी की) आर है जिस की ख़ुशख़बरी दी गयी है अपनी क़ौम के लोगों से छिपा फ़िरता है (और सोचता है) कि आया उस को ज़िल्लत उठा के ज़िन्दा रहने दे या (ज़िन्दा ही) उस को ज़मीन में गाड़ दे-देखो तो ये लोग किस क़दर बुरा हुक्म लगाते(1)
(बुरी) बातें तो इन्हें लोगों के लिये ज़्यादा मुनासिब हैं जो आख़ेरत का यक़ीन नहीं रखते और ख़ुदा की शान के लाएक़ तो आला सिफ़ते हैं (उलूहियत रूबुबियत) और वही तो ग़ालिब हैं और अगर (कहीं) ख़ुदा अपने बंदों की नाफ़रमानी की गिरफ़्त करता तो रुए ज़मीन पर किसी एक जानदार को बाक़ी न छोड़ता मगर वह तो एक मुकर्रर वक़्त तक उन सब को मोहलत देता है फ़िर जब उन का (वह) वक़्त आ पहुँचेगा तो न एक घड़ी पीछे हट सकते हैं और न आगे बढ़ सकते हैं और ये लोग ख़ुद जिन बातों को पसंद नहीं करते उन को ख़ुदा के वास्ते क़रार देते हैं और अपनी ही ज़बान से ये झूटे वादे भी हैं कि (आख़ेरत में भी) उन्हीं के लिये भलाई है (भलाई तो नहीं मगर) हां उनके लिये जहन्नुम की आग ज़रुर है और यही लोग सब से पहले (उसमें) झोंके जाएंगे (ऐ रसूल ख़ुदा की अपनी) क़सम तुमसे पहले उम्मतों के पास बहुतसे पैग़म्बर भेजे तो शैतान ने उन की कारस्तानियों को उमदा कर दिखाया तो वही (शैतान) आज भी उन लोगों का सरपरस्त बना हुआ है हालांकि उन के वास्ते दर्दनाक अज़ाब है
और हम ने तुम पर किताब (कुरआन) तो इसी लिये नाज़िल की ताकि जिन बातों में ये लोग बाहम झगड़ा किये हैं उन को तुम साफ़ साफ़ बयान करो (अलावा अज़ी किताब) ईमानदारों के लिये तो (अज़सर तापा) हिदायत और रहमत है और खुदा ही ने आसमान से पानी बरसाया तो उस के ज़रिये से ज़मीन को मुरदा (पड़ती) होने के बाद ज़िन्दा (शादाब) किया कुछ शक नहीं कि उसमें जो लोग बसते हैं उनके वास्ते (कुदरत ख़ुदा की) बहुत बड़ी निशानी है और उसमें शक नहीं कि चौपायों में भी तुम्हारे लिए (इबरत की बात) है कि उन के पेट में ख़ाक बदला गौ़बर और खून (जो कुछ भरा है) उस में हम तुम को ख़ालिस दूध(1) पिलाते हैं जो पीने वालों के लिए जो खुशगवार है और उसी तरह खुरमें और अंगूर के फल से (हम तुमको शीरा पिलाते हैं) जिस की (कभी तो) तुम शराब बना लिया करते हो और (कभी) अच्छी रोज़ी (सिरके वग़ैरह) उसमें शक नहीं कि उसमें भी समझदार लोगों के लिए (कुदरत ख़ुदा की) बड़ी निशानी है।
और (ऐ रसूल) तुम्हारे परवरदिगार न शहद की मक्खियों के दिल में ये बात डाली कि तो पहाड़ों और दरख़्तों और लोग जो ऊंची ऊंची टहनियां (और मकानात पाट कर) बनाते हैं उन में अपने छत्ते बना फिर हर तरह के फ़लों (के पोर से) (उन का अरक़) चूस फिर अपने परवरदिगार की राहों में ताअबदारी के साथ चली जा मक्खियों के पेट से पीने के लिए चीज़ें निकलती हैं (शहद) जिस के मुख़्तलिफ़ रंग होते हैं उस मे लोगों (की बिमारियों) की शिफ़ा (भी) है उसमे शक नहीं कि उसमें ग़ौर व फ़िक्र करने वालों के वास्ते (कुदरत ख़ुदा की)(2) बहुत बड़ी निशानी है और ख़ुदा ही ने तुम को पैदा किया फिर वही तुम को (दुनियां से) उठा लेगा और तुममे से बाज़ ऐसे भी हैं जो ज़लील ज़िन्दगी (सख़्त बुढ़ापे) की तरफ़ जाते हैं (बहुत कुछ) जानने के बाद (सड़ीले हो गए कि) कुछ नहीं जान सके बे शक ख़ुदा (सब कुछ) जानता और (हर तरह की) कुदरत रखता है और ख़ुदा ही ने तुम में से बाज़ को बाज़ पर रिज़क (दौलत में) तरजीह दी है फिर जिन लोगों को रोज़ी ज़्यादा दी गई है वह लोग अपनी रोज़ी में से उन लोगों को जिन पर उन का दस्तरस है (लौ़ंडी गुलाम वग़ैरह) देने वाला नहीं (हालांकि उस माल में तो सब के सब मालिक गुलाम वग़ैरह) बराबर(1) है तो क्या ये लोग ख़ुदा की नेअमत के मुनाकिर हैं।
और खुदा ही ने तुम्हारे लिए बीवियां तुम ही में से (तुम्हारी सी आदमी) बनाए और उसी ने तुम्हारे वास्ते तुम्हारी बीवियों से बेटे और पोते पैदा किए और तुम्हें पाक व पाकीज़ा रोज़ी खाने को दी तो क्या ये लोग बिल्कुल (शैतान बुत वग़ैरह) ही पर ईमान रखते हैं और ख़ुदा की नेअमत (वहदानियत वगैरह से) इंकार करते हैं और ख़ुदा को छोड़ कर ऐसी चीज़ की इबादत करते हैं जो आसमानों और ज़मीन में से उन को रिज़क देने का कुछ भी न इख़्तेयार रखते हैं और न कुदरत हासिल कर सकते हैं तो तुम दुनिया के लोगों पर क़यास करके खुद मिसाले न गढ़ों बेशक ख़ुदा (सब कुछ) जानता है।
और तुम नहीं जानते एक मिसाल ख़ुदा ने बयान फ़रमाई कि एक गुलाम है जो दूसरे कि मिल्क है (और) कुछ भी इख़्तेयार नही रखता और एक शख़्स वह है कि हम ने उसे अपनी बारगाह से अच्छी (ख़ासी) रोज़ी दे रखी है तो वह उस में से छिपा के दिखा के (गरज़ हर तरह ख़ुदा की राह में) ख़र्च करता है क्या ये दोनों बराबर हो सकते हैं (हरगिज़ नहीं) अल्हाम्दो लिल्लाह (के वह भी उस के मुक़िर हैं) मगर उन के बहुत से (इतना भी) नहीं जानते और ख़ुदा एक दूसरी मिसाल बयान फ़रमाता है दो आदमी हैं कि एक उन में से बिल्कुल गूंगा उस पर गुलाम जो कुछ भी (बात वग़ैरह की) कुदरत नहीं रखता और (उस वजह से) वह अपने मालिक को दूभर हो रहा है कि उस को जिधर भेजता है (ख़ैर से) कभी भलाई नहीं लाता क्या ऐसा गुलाम और वह शख़्स जो (लोगों को) अदल व मियानारवी का हुक्म करता है वह खुद भी ठीक सीधी राह पर क़ाएम है (दोनों बराबर हो सकते हैं) (हरगिज़ नहीं( और सारे आसमान व ज़मीन की ग़ैब की बातें ख़ुदा ही के लिए मख़सूस हैं।
और ख़ुदा क़यामत का वाक़े होना तो ऐसा है जैसे पलक का झपकना बल्कि उस के भी जल्द तर बेशक ख़ुदा हर चीज़ पर कुदरते कामला रखता है और ख़ुदा ही ने तुम्हें तुम्हारी माओं के पेट से निकाला (जब) तुम बिल्कुल नासमझ थे और तुम को कान दिए और आंखे (अता की) दिल (इनायत किए) ताकि तुमन शुक्र करो उन लोगों ने परिन्दों की तरफ़ गौर नहीं किया जो आसमान के नीचे हवा में घिरे हुए (उड़ते रहते हैं) उनको तो बस ख़ुदा ही (गिरने से रोकता है) बेशक उस में भी (कुदरत खुदा की) ईमानदारों के लिये बहुत सी निशानियां हैं
और खुदा ही ने तुम्हारे घरों को तुम्हारा ठिकाना क़रार दिया और उसी ने तुम्हारे वास्ते चौपायों की ख़ालों से तुम्हारे लिये (हल्के फ़ल्के) डेरे (खेमें) बनाए जिन्हें और उन चार पायों की ऊन और रोओं और बालों से एक वक़्त खास (क़यामत तक) के लिये तुम्हारे बहुत से असबाब और बेकार आमद चीज़े (बनाई) और ख़ुदा ही ने तुम्हारे आराम के लिये अपनी पैदा की हुई चीज़ों के साए बनाए और उसी ने तुम्हारे छिपके बैठने के वास्ते पहाड़ों में घरौन्दे (ग़ार वग़ैरह बनाए) और उसी ने तुम्हारे लिये कपड़े बनाए जो तुम्हें (सरदी) गरमी से महफूज़ रखें और (लोहे) के कुर्ते जो तुम्हें हथियारों की ज़र से बचाएं यूं ख़ुदा अपनी नेमत तुम पर पूरी करता है कि तुम उसकी फ़रमाबरदारी करो उस पर भी अगर ये लोग (ईमान से) मुहं फेरें तो तुम्हारा (फ़र्ज़ सिर्फ़ अहकाम का) साफ़ पहुँचा देना है (बस) ये लोग ख़ुदा की नेमतों(1) को पहचानते हैं फिर (जान-बूझ) उन से मुकर जाते हैं और उन्हीं के बहुत से नाशुक्रे हैं और जिस दिन हम हर एक उम्मत में से (उसके पैग़म्बरों को) गवाह बना कर क़बरों से उठा खड़ा करेंगे फिर तो काफ़िरों को न (बात करने की) इजाज़त दी जाएगी और न उनका अर्ज़ ही सुना जाएगा।
और जिन लोगों ने (दुनियां में) शरारते की थीं जब (अज़ाब को देख लेंगे तो उन के अज़ाब ही में तख़फ़ीफ़ की जाएगी और न उन को मोहलत ही दी जाएगी और जिन लोगों ने दुनियां में ख़ुदा का दूसरे को) शरीक ठहराया था जब अपने (उन) शरीकों को (क़यामत में) देखेंगे तो बोल उठेंगे कि हमारे परवरदिगार यही तो हमारे वह शरीक हैं जिन्हें हम (मुसीबत) के वक़्त तुझे छोड़ कर पुकारा करते थे तो वह शरीक उन्हीं की तरफ़ बात को फेंक मारेंगे कि तुम निरे झूठे हो और उस दिन ख़ुदा के सामने सरनगूं हो जाएंगे और जो अफ़्तरा परदाज़ियां दुनियां में किया करते थे उनसे ग़ाएब (ग़ला) हो जाएंगी जिन लोगों ने कुफ़्र इख़्तेयार किया और लोगों को खुदा की राह से रोका उनकी मुफ़सिदा परदिज़ियों की पादाश में उनके लिए हम अज़ाब पर आज़ाब बढ़ाते जाएंगे और वह दिन याद करो जिस दिन हम हर एक गिरोह(1) में से उन्हीं में का एक गवाह उनके मुक़ाबिल ला खड़ा करेंगे और (ऐ रसूल) तुम को उन लोगों पर (उन के) मुक़ाबिल गवाह बना कर ला खड़ा करेंगे
और हमने तुम पर किताब (कुरआन) नाज़िल की जिस में हर चीज़ का (शाफ़ी बयान है और मुसलमानों के लिए (सरतापा) हिदायत और रहमत और ख़ुशख़बरी है इस में शक नहीं कि ख़ुदा इंसाफ(1) और (लोगों के साथ) नेकी करने और क़राबत दारों को (कुछ) देने का हुक्म करता है और बदकारी और नाशाइस्ता हरकतों और सरकाशी करने को मना करता है (और) तुम्हें नसीहत करता है ताकि तुम नसीहत हासिल करो और जब तुम लोग बाहम क़ौल व क़रार कर लिया करो तो ख़ुदा के अहद व पैमान को पूरा करो और क़स्मों को उनके पक्का हो जाने के बाद न तो़ड़ा करो हालांकि तुम तो ख़ुदा को अपना ज़ामिन बना चुके हो जो कुछ भी तुम करते हो ख़ुदा उसे ज़रुर जानता है और तुम लोग (क़स्मों को तोड़ने में) उस औरत के ऐसे न हो जो अपना सूत मज़बूत कातने को बाद टुकड़े टुकड़े कर के तोड़ डाले की अपने अहदों को आपस में उस बात की मक्कारी का ज़रिया बनाने लगो कि एक गिरोह दूसरे गिरोह से (ख़्वाह मख़्वाह) बढ़ जाए उस से बस ख़ुदा तुमको आज़माता है (कि तुम की पलाइश करते हो) और जिन बातों मे दुनियां में झगड़ते थे क़यामत के दिन ख़ुदा खुद तुम से साफ साफ बयान करेगा और अगर ख़ुदा चाहता तो तुम सबको एक ही (कि़स्म की) गरोह बना देता मगर वह तो जिस को चाहता है गुम्राही में छोड़ देता है और जिसको चाहता है हिदायत करता है और जो कुछ तुम लोग दुनियां में करते थे उसकी बाज़पुर्स तुम से ज़रुर की जाएगी
तुम अपनी क़स्मों को आपस के फ़साद का सबब न बनाओ ताकि (लोगों के) क़दम जमने के बाद (इस्लाम से) उखड़ जाएं और फिर आख़िरकार क़यामत में तुम्हें लोगो को ख़ुदा की राह से रोकने की पदाश में अज़ाब का मज़ा चखना पड़े और तुम्हारे वास्ते बड़ा सख्त़ अज़ाब हो और ख़ुदा के अहद व पैमान के बदले थोड़ी क़ीमत (दीनवी नफ़ा) न तो अगर तुम जानते (बूझते) हो तो (समझ लो कि) जो कुछ खुदा के पास है वह उससे कहीं बेहतर है(1) (क्योंकि माल दुनियां से) जो कुछ तुम्हारे पास है एक न एक दिन ख़त्म हो जाएगा और (अज्र) ख़ुदा के पास है वह हमेशा बाक़ी रहेगा और जिन लोगों ने दुनियां में सब्र किया था उन को (क़यामत मेँ) उनके कामों का हम अच्छे से अच्छा अज्र व सवाब अता करेंगे मर्द हो या औरत जो शख़्स नेक काम करेगा और वह ईमानदार भी हो तो हम उसे (दुनियां में भी) पाक व पाकीज़ा ज़िन्दग़ी बसर कराएंगे और (आख़ेरत में भी) जो कुछ वह करते थे उसका अच्छा से अच्छा अज्र व सवाब अता फ़रमाए(1)गें
और जब तुम कुरआन पढ़ने लगो तो शैतान मरदूद (के वस्वसों) से खुदा का पनाह तलब कर लिया करो उसमें शक नहीं कि जो लोंग ईमानदार हैं और अपने परवरदिगार पर भरोसा रखते हैं उन पर काबू नहीं चलता उसका काबू चलता है तो बस उन्हीं लोगों पर जो उसको दोस्त बनाते हैं और जो लोग उसको ख़ुदा का शरीक बनाते हैं और (ऐ रसूल) हम जब एक आयत के बदले दूसरी आयत नाज़िल करते हैं तो हालांकि ख़ुदा जो चीज़ नाज़िल करता है उस (की मसलहतों से खूब वाक़िफ़ हैं मगर) ये लोग (तुमक) कहने लगते हैं कि तुम बस बिल्कुल मुफ़तरी हो बल्कि खुद उमें के बहुतेरे (मसालाह को) नहीं जानते (ऐ रसूल) तुम (साफ़) कह दो कि उस (कुरआन) को तो रुहे अक़दस (जिब्राईल) ने तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से हक़ नाज़िल किया है ताकि जो लोग ईमान ला चुके हैं उकनो साबित क़दम रखे और मुसलमानों के लिए तो (अज सरतापा) खुशख़बरी है
(ऐ रसूल) हम तहक़ीक़ातन जानते हैं कि ये कुफ़्फार (तुम्हारी निस्बत कहा करते हैं कि उनको तुमको) कोई आदमी कुरआन सिखा दिया करता है हालांकि बिल्कुल ग़लत है क्योंकि जिस शख़्स की तरफ़ से ये लोग निस्बत देते हैं उसकी ज़बान तो अजमी(1) है और ये तो साफ़ साफ़ अरबी ज़बान है उसमें तो शक ही नहीं कि जो लोग ख़ुदा की आयतों पर ईमान नहीं लाते ख़ुदा भी उनको मंज़िले मक़सूद तक नहीं पहुँचाएगा और उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है झूट बोहतान तो बस वही लोग बांदा करते हैं जो ख़ुदा की आयतों पर ईमान नहीं रखते और हक़ीक़त अमर ये हैं कि यही लोग झूटे हैं उस शख़्स के सिवा जो (कलमा कुफ़्र)(2) पर मजबूर किया जाए और उसका दिल ईमान की तरफ से मुतमईन हो जो शख़्स भी ईमान लाने के बाद कुफ़्र इख़्तेयार करे बल्कि खूब सीना कुशादा (जो खोलकर) कुफ्र करे तो उन पर ख़ुदा का ग़ज़ब है और उनके लिए बड़ा (सख़्त) अज़ाब है
ये उस वजह से कि उन लोगों ने दुनिया की चंद रोज़ा ज़िन्दगी को आख़ेरत पर तरजीह दी और उस वजह से कि खु़दा काफ़िरों को हरगिज़ मंज़िले मक़सूद तक नहीं पहुँचाया करता यह वही लोग हैं जिनके दिलों पर और उनके कानों पर और उनकी आँखों पर खुदा ने अलामत मुक़र्रर कर दी हैं (कि ईमान न लाएंगे) और यही लोग (उस सिरे के) बेख़बर हैं कुछ शक नहीं कि वही लोग आख़ेरत में भी यक़ीनन घाटा उठाने वाले हैं फिर उसमें शक नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार उन लोगों को जिन्होंने मुसीबत में मुबतिला होने के बाद घर बार छोड़े फिर (ख़ुदा की राह में) जेहाद किये और तकलीफ़ों पर सब्र किया उसमें शक नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार उन सब बातों के बाद अलबत्ता बड़ा बख़शने वाला मेहरबान है (उस दिन को याद) करो जिस दिन हर शख़्स अपनी ज़ात के बारे में झगड़ने को आ मौजूद होगा
और हर शख़्स को जो कुछ भी उसने किया था उसका पूरा बदला मिलेगा और उन पर किसी तरह का जुल्म न किया जाएगा ख़ुदा ने एक गांव(1) को मसल बयान फ़रमाई जिसके रहने वाले हर तरह के चैन व इत्मेनान में थे हर तरफ़ से ब फ़राग़त उनकी रोज़ी उनके पास आई थी फिर उन लोगों ने ख़ुदा की नेमतों की नाशुक्री की तो ख़ुदा ने उनकी करतूतों की बदौलत उनको मज़ा चख़ा दिया कि भूख और ख़ौफ़ को ओढ़ना (बिछौना) बना दिया और उन्हीं लोगों में का एक रसूल भी उनके पास आया तो उन्होंने उसे झुटला दिया फिर अज़ाब (खुदा) ने उन्हें ले डाला और वह ज़ालिम थे ही तो ख़ुदा ने कुछ तुम्हें हलाल तैब (ताहिर) रोज़ी दी है उसको (शौक़ से) खाओ और अगर तुम ख़ुदा ही इबादत (का दावा) करते हो उसकी नेमत का शुक्र अदा किया करो
तुम पर उसने मुरदार और खून और सुवर का गोश्त और वह जानवर जिस पर (ज़िबाह के वक़्त) खुदा के सिवा और का नाम लिया जाए हराम किया है फिर जो शख़्स (मारे भूख के) मजबूर हुआ खुदा के सरताबी करने वाला हो और न (हद ज़रुरत से) बढ़ने वाला हो और (हराम खाए) तो बेशक खुदा बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है और झूट मूठ जो कुछ तुम्हारी ज़बान पर आये (बे समझे बूझे) न कह बैठा करो कि ये हलाल है और हराम है ताकि उस की बदौलत खुदा पर झूट बोहतान बांधने लगो उसमे शक नहीं कि जो लोग ख़ुदा पर झूट बोहतान बांधते हैं वह कभी कामयाब न होंगे (दुनिया में) फ़ाएदा तो ज़रा सा है और (आख़ेरत में) दर्दनाक अजाब है और यहूदियों पर हम ने वह चीज़ें हराम कर दी थी जो तुम से पहले बयान कर चुके हैं और हम ने तो (इस वजह से) उन पर कुछ ज़ुल्म नहीं किया मगर वह लोग खुद अपने ऊपर सितम तोड़ रहे हैं फिर इस मे शक नहीं कि जो लोग नादानिस्तां गुनाह कर बैठे और उसके बाद सिद्क (दिल से) तौबा कर ली और अपने को दुरुस्त कर लिया तो (ऐ रसूल) इस में शक नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार उसके बाद बख़्शने वाला मेहरबान है।
इसमें शक नहीं कि इब्राहीम (लोगों के) पेशवा खुदा के फ़रमा बरदा बन्दे और बातिल से कतराकर चलने वाले थे और मुशरेकीन में से हरगिज़ न थे, उस की नेअमतों के शुक्रगुज़ार उनको ख़ुदा ने मुन्तख़ब कर लिया है और (अपनी) सीधी राह की उन्हें हिदायत की थी और हम ने उन्हें दुनियां में भी (हर तरह की) बेहतरी अता की थी और वह आख़ेरत में भी यक़ीनन नेकोकारो से होंगे (ऐ रसूल) फिर तु्म्हारे पास वही भेजी कि इब्राहीम के तरीक़े की पैरवी करो जो बातिल से कतरा के चलते थे और मुशरेकीन में से नहीं थे (ऐ रसूल) हफ़्ता(1) (के दिन) के ताज़ीम तो बस उन्हीं लोगों पर लाज़िम की गई थी (यहूद व नसारा) उसके बारे में इख़्तेलाफ़ करते थे और कुछ शक नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार उनके दरम्यान जिस अम्र में वह झगड़ा करते थे क़यामत के दिन फ़ैसला कर देगा
(ऐ रसूल) तुम (लोगों को) अपने परवरदिगार की राह पर हिकमत और अच्छी अच्छी नसीहत के ज़रिये से बुलाओ और बहस व मुबाहिसा करो भी तो उस तरीक़े से जो लोगों के नज़दीक सबसे अच्छा हो उसमें शक नहीं कि जो लोग ख़ुदा की राह से भटक गये उनको तुम्हारा परवरदिगार खूब जानता है और हिदायत याफ़्ता लोगों से भी ख़ूब वाक़िफ़ है और अगर (मुख़ालेफ़ीन के साथ) सख़्ती करो भी तो वैसी ही सख़्ती करो जैसी सख़्ती उन लोगों ने तुम पर की थी और अगर तुम सब्र करो तो सब्र करने वालों के वास्ते बेहतर हैं और (ए रसूल) तुम सब्र ही करो और खुदा की (मदद) बग़ैर तो तुम सब्र कर ही नहीं सकते और उन मुख़ालेफ़ीन के हाल पर तुम रंज न करो जो मक़्कारियां ये लोग करते हैं उससे तुम तंग दिल न हो जो लोग परहेज़गार हैं और जो लोग नेकोकार हैं ख़ुदा उनका साथी है।


 सूरे: बनी इस्राईल


सूरे: बनी इस्राईल(1) मक्के में नाज़िल हुआ और इसकी 111 आयतें हैं।
(ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला हैं।

Comments powered by CComment