तरजुमा कुरआने करीम (मौलाना फरमान अली) पारा-6

कुरआन मजीद
Typography
  • Smaller Small Medium Big Bigger
  • Default Helvetica Segoe Georgia Times

ख़ुदा (किसी के) हाँक पुकार कर बुरा कहने को पसंद नहीं करता मगर मज़लूम (1) (ज़ालिम की बुराई बयान कर सकता है) और ख़ुदा तो (सबकी) सुनता (और हर एक को) जानता है अगर खुल्लम खुल्ला नेकी करते हो या छिपा कर या किसी की बुराई  की तरह देते हो तो ख़ुदा भी बड़ा तरह देने वाला (और) क़ादिर है बेशक जो लोग ख़ुदा और उसके रसूलों से इंकार करते हैं और ख़ुदा और उसके रसूलों में तफ़रक़ा डालना चाहते हैं और कहते हैं कि हम बाज़(2) (पैग़म्बरों) पर ईमान लाए हैं और बाज़ पर इंकार करते हैं और चाहते हैं के इस (कुफ़्र व ईमान) के दरमियान एक दूसरी राह निकालें यही लोग हकीक़तन काफ़िर हैं और हम ने काफ़िरों के वास्ते ज़िल्लत देने वाला अज़ाब तैय्यार कर रखा है और जो लोग ख़ुदा और उसके रसूलों पर ईमान लाए और उनमें से किसी में तफ़रीक़ नहीं की तो ऐसे ही लोगों को ख़ुदा बहुत जल्द उनका अज्र अता फ़रमाएगा और ख़ुदा तो बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है।
(ऐ रसूल) अहले किताब (यहूद) जो तुमसे (ये) दरख़्वास्त करते हैं कि तुम इन पर एक किताब(1) आसमान से उतरवा दो (तुम इसका ख़्याल न करो क्योंकि) ये लोग मूसा से तो इससे हीं बढ़ (बढ़) के दरख़्वास्त कर चुके हैं चुनांचे कहने लगे कि हमें खुदा को खुल्लम खुल्ला दिखा दो तब उनको उनकी शरारत की वजह से बिजली ने ले डाला (बा वजूद ये कि) इन लोगों के पास तौहीद की वाज़ेह व रौशन दलीलें आ चुकी हैं उसके बाद भी उन लोगों ने बछड़े को (ख़ुदा) बना लिया फिर हमने उनके ऐहदों पैमान की वजह से उनके (सर) पर (कोहे) तूर को लटका दिया और हमने उनसे कहा कि (शहर के) दरवाज़े में सज्दा करते हुए दाख़िल हो और हमने (ये भी) कही कि तुम हफ़्ते के दिन (हमारे हुक्म से) तजावुज़(2) न करना और हमने उनसे बहुत मज़बूत अहदो पैमान ले लिया फिर उनके अपने अहद तोड़ डालने और अहकामे ख़ुदा से इंकार करने और नाहक़ अम्बिया के क़त्ल करने और इतरा कर ये कहने की वजह से उनके कुफ़्र की वजह से उन के दिलों पर मोहर कर दी है तो चन्द आदमियों के सिवा ये लोग ईमान नहीं लाते और (नीज़) इनके काफ़िर होने और मरियम पर बहुत बड़ा बोहतान बांधने और उन के इस कहने की वजह से कि हमने मरियम के बेटे ईसा मसीह ख़ुदा के रसूल को क़त्ल कर डाला हालाँकि उन लोगों ने उसे क़त्ल ही(1) किया और न सूली ही दी उन के लिए एक दूसरा शख़्स ईसा के मुशाबे कर दिया गया और जो लोग इस बारे में इख़्तेलाफ़ करते हैं यक़ीनन वह लोग उस (के हालात) की तरफ़ से धोके में (पड़े) हैं उन को इस (वाक़ेअ) की ख़बर ही नहीं मगर फ़क़त अटकल के पीछे (पड़े) हैं और ईसा को उन लोगों ने यक़ीनन क़त्ल नहीं किया बल्कि ख़ुदा ने उन्हें अपनी तरफ़ उठा लिया और ख़ुदा तो बड़ा ज़बरदस्त तदबीर वाला है।
और (जब ईसा मेहदी मौऊद के ज़हूर के वक़्त आसमान से उतरेंगे तो) अहले किताब में से कोई शख़्स ऐसा न होगा जो उन पर उनके मरने के क़ब्ल ईमान न लाए(2) और ख़ुद ईसा क़यामत के दिन उनके ख़िलाफ़ गवाही देंगे गरज़ यहूदियों की (इन सब शरारतों और) गुनाह की वजह से हम ने उन पर वह साफ सुथरी चीजें जो उन के लिए हलाल की गई थी हराम कर दीं और (नीज़) इन के ख़ुदा की राह से बहुत से लोगों को रोकने और बावजूद मोमनिअत सूद खा लेने और नाहक़ ज़बरदस्ती लोगों के माल खाने की वजह से और इन में से जिन लोगों ने कुफ़्र इख़्तेयार किया उन के वास्ते हम ने दर्दनाक अज़ाब तैय्यार कर रखा है लेकिन (ऐ रसूल) इन में से जो लोग इल्म (दीन) में बड़े मज़बूत दरज़े पर फ़ाएज़ हैं वह और ईमानदार वाले तो (क़िताब) तुम पर नाज़िल हुई है और जो (किताब) तुम से पहले नाज़िल हुई है (सब पर ईमान रखते हैं) और पाबंदी से नमाज़ पढ़ते हैं और ज़कात अदा करते हैं और ख़ुदा और रोज़े आख़ेरत का यक़ीन रखते हैं ऐसे ही लोगों को हम अनक़रीब बहुत बड़ा अज्र अता फ़रमाएँगे।
(ऐ रसूल) हमने तुम्हारे पास (भी) तो इसी तरह वही भेजी है जिस तरह नूह और इनके बाद वाले पैग़म्बरों पर भेजी थी और जिस तरह इब्राहीम और इस्माईल और इसहाक़ और याकूब और औलादे याकूब व ईसा व अय्यूब व यूनुस व हारुन व सुलैमान के पास वही भेजी थी और हम ने दाऊद को ज़बूर(1) अता की और (तुम को भी वैसा ही रसूल मुक़र्रर किया जिस तरह और) बहुत से रसूल (भेजे) जिनका हाल हमने तुम से पहले ही बयान कर दिया और बहुत से ऐसे रसूल (भेजे) जिनका हाल तुमसे बयान नहीं किया और ख़ुदा ने तो मूसा से (बहुत सी) बातें भी की(1) और हमने नेकियों को बेहिश्त की ख़ुशख़बरी देने वाले और बंदों को अज़ाब से डराने वाले पैग़म्बर (भेजे) ताकि पैगम्बरों के आने के बाद लोगों की ख़ुदा पर कोई हुज्जत बाक़ी न रह जाए और ख़ुदा तो बड़ा जबरदस्त हकीम है।
(ये कुफ़्फार नहीं मानते न माने) मगर ख़ुदा तो इस पर गवाही देता है कि जो कुछ तुम पर नाज़िल किया है खूब समझ बूझ कर नाज़िल किया है (बल्कि) उसकी गवाही तो फ़रिश्ते तक देते हैं हालाँकि ख़ुदा गवाही के लिए काफ़ी था बेशक जिन लोगों ने कुफ़्र इख्तेयार किया और ख़ुदा की राह से (लोगों को) रोक वह राहे रास्त से भटक के बहुत दूर जा पड़े बेशक जिन लोगों ने कुफ़्र इख्तेयार किया और (उस पर) जुल्म (भी) करते रहे न तो ख़ुदा उनको बख़्शे ही गा और न उन्हें किसी तरीक़े की हिदायत ही करेगा मगर (हां) जहन्नुम का रास्ता (दिखा देगा) जिस में ये लोग हमेशा (पड़े) रहेंगे और यह तो ख़ुदा के वास्ते बहुत ही आसान बात है
ऐ लोगों तुम्हारे पास तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से रसूल (मुहम्मद) दीने हक़ के साथ आ चुके हैं ईमान लाओ (यही) तुम्हारे हक़ में बेहतर है और अगर इंकार करोगे तो (समझ रखो कि) जो कुछ ज़मीन और आसमनों में है सब ख़ुदा ही का है और ख़ुदा बड़ा वाक़िफ़कार हकीम है ऐ अहले किताब अपने दीन में हद (एतराज़) से तजावुज़ न करो और ख़ुदा की शान में सज के सिवा (कोई दूसरे बात) न कहो मरयम के बेटे ईसा मसीह (न ख़ुदा थे न ख़ुदा के बेटे) पस ख़ुदा के एक रसूल और उसके कलमा (हुक्म) थे जिसे ख़ुदा ने मरयम के पास भेज दिया था (के हामला हो जा) और ख़ुदा की तरफ़ से एक जान थे पस ख़ुदा और उसके रसूलों पर ईमान ले आओ और तीन (ख़ुदा) के क़ायल न बनो (सलीस से) बाज़ रहो (और) अपनी भलाई (तौहीद) का क़सद करो अल्लाह तो बस यक्ता माबूद है और वह (नक्स) से पाक व पाकीज़ा है उस का कोई लड़का हो (1) (ऐसे ल़ड़के की हाजत ही क्या है) जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है सब तो उसी का है और ख़ुदा तो कारसाज़ी में काफ़ी है।(2)
न तो मसीह ही ख़ुदा का बंदा होने से हरगिज़ आर रख सकते हैं और न (ख़ुदा के) मोक़र्रब फ़रिश्ते और (याद रहे) जो शख़्स उसके बंदा होने से आर रखेगा और शेखी करेगा तो अनक़रीब ही ख़ुदा उन सबको अपनी तरफ़ उठा लेगा और हर एक को उसके काम की सज़ा (देगा) पस जिन लोगों ने ईमान कुबूल किया है और अच्छे (अच्छे) काम किये हैं उन का उन्हें सवाब पूरा (पूरा) भर देगा बल्कि अपने फ़ज़्ल व करम से (कुछ और) ज़्यादा ही देगा और जो लोग उसका बंदा होने में आर समझते थे और शेखी करते थे उन्हें तो दर्दनाक अज़ाब में मुबतिला करेगा और (लुत्फ़ ये है कि) वह लोग ख़ुदा के सिवा न अपना सरपरस्त ही पाएंगे और न मददगार ऐ लोगों इसमें तो शक ही नहीं कि तुम्हारे पास तुम्हारे परवर दिगार की तरफ़ से (दीन हक़)(1) दलील आ चुकी और हम तुम्हारे पास एक चमकता हुआ नूर नाज़िल कर चुके हैं पस जो लोग ख़ुदा पर ईमान लाए और उसी से लगे लिपटे रहे तो ख़ुदा भी उन्हें अन क़रीब ही अपनी रहमत व फ़ज़्ल के बेख़ेजाँ बाग में पहुंचा देगा और उन्हें अपनी हाज़री का सीधा रास्ता दिखा देगा।
(ऐ रसूल) तुम से लोग फ़तवा तलब करते हैं तुम कह दो के कलाला (भाई बहन) के बारे में ख़ुदा तो ख़ुद तुम्हे फ़तवा देता है कि अगर कोई ऐसा शख़्स मर जाए के उसके न कोई लड़का वाला(2) हो (न मां बाप) और उसके (सिर्फ़) एक बहन हो तो उसके तरके से आधा होगा (और अगर ये बहन मर जाए) और उसके कोई औलाद न हो (न मां बाप) तो उसका वारिस बस यही भाई होगा और अगर दो बहने (ज़्यादा) हो तो उनको (भाई के) तरके से दो तिहाइयां मिलेगी और अगर किसी के वरसे भाई बहन दोनों (मिले जुले) हों तो मर्द को औरत के हिस्से का दुगना माल मिलेगा तुम लोगों के भटकने के ख़याल से ख़ुदा अपने अहकाम बहुत वाज़ेह करके बयान फ़रमाता है और ख़ुदा तो हर चीज़ से वाकिफ़ है।
सूरे: मायदा:
सूरे: मायदा(1) (ख़्वान) मदीने मे नाज़िल हुआ और इसकी 120 आयतें हैं
(इबतेदा अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम करने वाला है)
ऐ ईमान दारों (अपने) इक़रारों को पूरा करो (देखो) तुम्हारे वास्ते चौपाए जानवर इन के सिवा जो तुम को पढ़ कर सुनाए जाएंगे हलाल कर दिये गये मगर जब तुम हालते अहराम में हो तो शिकार को हलाल न समझना बेशक ख़ुदा जो चाहता है हुक्म देता है ऐ ईमानदारों (देखो) न ख़ुदा की निशानियों की बे तौक़ीरी(2) करो और न हुरमत वाले महीने की और न कुरबानी की और न पिटे वाले जानवरों की (जो नज़रे ख़ुदा के लिए निशान देकर मेना में ले जाते हैं) और ख़ाना ए काबा की तवाफ़ व ज़ियारत का क़स्द करने वालों की जो अपने परवरदिगार की खुशनूदी व फ़ज्ल (व करम) के जो याँ हैं और जब तुम (अहराम से) महल हो जाओ तो शिकार कर सकते हो और किसी क़बीले की ये अदावत के तुम्हें उन लोगों ने खाना ए काबा (में जाने) से रोका था इस जुर्म में न फसवां दें कि तुम उन पर ज़्यादती करने लगो
और (तुम्हारा फ़र्ज ये है कि) नेकी और परहेज़गारी में एक दूसरे की मदद किया करो और ज़्यादती बाहम किसी की मदद न करो और ख़ुदा से डरते रहो क्योंकि ख़ुदा तो यक़ीनन बड़ा सख्त अज़ाब वाला है (लोगों) मरा हुआ जानवर और ख़ून और सुअर का गोश्त और (जिस जानवर) पर (ज़िब्हा) के वक़्त ख़ुदा के सिवा किसी दूसरे का नाम लिया जाए और गर्दन मरोड़ा हुआ चोट ख़ाकर मरा हुआ और जो (कुएं वंगैरह) में गिर कर मर जाए और जो सींग से मार डाला गया हो और जिसको दरिन्दों ने फाड़ खाया हो मगर जिसे तुमने मरने के क़ब्ल ज़बह कर लो और जो जानवर बुतों (के थान) पर चढ़ा कर ज़िबाह किया जाए और जिसे तुम (पांसे) के तोरं से बाहम हिस्सा बाटो ग़रज़ ये सब चीज़े तुम पर हराम की गई हैं ये गुनाह की बात है।
(मुसलमानों) अब तो कुफ़्फ़ार तुम्हारे दीन से (फिर जैसे) मायूस हो गए तो तुम उनसे तो डरो ही नहीं बल्कि सिर्फ मुझी से डरो आज(1) मैंने तुम्हारे दीन को कामिल कर दिया और तुम पर अपनी नेमत पूरी कर दी और तुम्हारे (इस) दीने इस्लाम को पसन्द किया पस जो शख़्स भूख़ में मजबूर हो जाए और गुनाह की तरफ़ माएल भी न हो (और कोई चीज़ खाले) तो ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है ऐ रसूल तुम से लोग पूछते हैं कि कौन (कौन) चीज़ उनके लिए हलाल की गई है तुम (उनसे) कह दो कि तुम्हारे लिए पाकीज़ा चीज़ें हलाल की गई और शिकारी जानवर जो तुमने शिकार के लिए सदए रखें हैं और जो (तरीक़े) ख़ुदा ने तुम्हें बताए हैं इनमें से कुछ तुम ने उन जानवरों को भी सिखाया हो तो ये शिकारी जानवर जिस शिकार को तुम्हारे लिए पकड़ रखें उसके (बे ताअमुल) खाओ और जानवर को छोड़ते वक़्त ख़ुदा का नाम लिया करो।
और ख़ुदा से डरते रहो (क्योंकि) इमसें तो शक ही नहीं कि खुदा बहुत जल्द हिसाब लेने वाला है आज तमाम पाकीज़ा चीज़े तुम्हारे लिए हलाल कर दी गई और अहले किताब की ख़ुश्क(1) (चीज़ें) गैहू (वग़ैरह) तुम्हारे लिए हलाल हैं और आज़ाद पाकदामन औरतें और उन लोगों में की आज़ाद पाक दामन औरतें जिन को तुम से पहले किताब दी जा चुकी है जब तुम उनको महर दे दो (और) पाक दामनी का इरादा करो न तो ख़ुल्लम ख़ुल्ला ज़ेनाकारी का और न चोरी छिपे से आश्नाई का और जिस शख़्स ने ईमान से इंकार किया तो इसका सब किया (धरा) अकारत हो गया और (लुत्फ़ तो ये है के) आखेरत में भी वही घाटे में रहेगा।
जब तुम नमाज़ के लिए आमादा हो तो अपने मुँह और कोहनियों तक हाथ धो लिया करो और अपने सरों का और टखनों तक पांव (1) का मसाह कर लिया करो और अगर तुम हालते जनाबत में हो तो तुम तहारत (गुस्ल) कर लो (हां) और अगर तुम बीमार हो या सफ़र में या तुम में से किसी को पैख़ाना निकल आए या औरतों से हम बिस्तरी की हो और तुम को पानी न मिल सके तो पाक ख़ाक़ से तैयूमूम कर लो यानी (दोनों हाथ मार कर) इससे अपने मुंह और अपने हाथों का मसाह कर लो (देखों तो ख़ुदा ने कैसी आसानी कर दी) ख़ुदा तो ये चाहता ही नहीं कि तुम पर किसी तरह की तंगी करे बल्कि वह चाहता है के पाक व पाकीज़ा कर दे और तुम पर अपनी नेअमत पूरी कर दे ताकि तुम शुक्रगुज़ार बन जाओ और जो एहसानात ख़ुदा ने तुम पर किए हैं, इनको और इस (व पैमान) को याद करो जिसका तुमसे पक़्का इक़रार ले चुका है।
जब तुमने ये कहा था के हमने (अहकामे ख़ुदा को) सुना और (दिल से) मान लिया और ख़ुदा से डरते रहो क्योंकि इसमें ज़रा भी शक नहीं के ख़ुदा दिलों के इसरार से भी बाख़बर है ऐ ईमानदारों ख़ुदा (ख़ुशनूदी) के लिए इंसाफ के साथ गवाही देने के लिए तैयार रहो और तुम्हे किसी क़बीले की अदावत इस जुर्म में न फंसवा दे कि तुम ना-इन्साफी करने लगो (ख़बरदार बल्कि) तुम (हर हाल में) इंसाफ करो यही परहेज़गारी से बहुत क़रीब है और ख़ुदा से डरो क्योंकि जो कुछ तुम करते हो (अच्छा या बुरा) ख़ुदा इसे ज़रुर जानता है और जिन लोगों ने ईमान कुबूल किया और अच्छे (अच्छे) काम (भी) किए ख़ुदा ने इनसे वादा किया है के उनके लिए (आख़ेरत मे) मग़फिरत और बड़ा सवाब है और जिन लोगों ने कुफ़्र इख्तेयार किया और हमारी आयतों को झुटलाया वह जहन्नुमी हैं।
ऐ ईमानदारों ख़ुदा ने जो एहसानात(1) तुम पर किए हैं उनको याद करो (ख़ासकर) जिस वक्त एक क़बीले ने तुम पर दस्तरदाज़ी का इरादा किया था तो ख़ुदा ने उनके हाथों को तुम तक पहुचने से रोक लिया था और ख़ुदा से डरते रहो और मोमीनीन को ख़ुदा ही पर भरोसा रखना चाहिए और इसमें भी शक नहीं कि ख़ुदा ने बनी इस्राईल से (भी ईमान का) अहद व पैमान ले लिया था और हम (ख़ुदा) ने इनमें के बारह सरदार(2) इन पर मुक़र्रर किए और ख़ुदा ने बनी इस्राईल से फ़रमाया था कि मै तो यक़ीनन तुम्हारे साथ हूं अगर तुम भी पाबन्दी से नमाज़े पढते और ज़क़ात देते रहो और हमारे पैग़म्बरों पर ईमान लाते और उनकी मदद करते रहो और ख़ुदा (की खुशनूदी के वास्ते लोगों को) क़र्जे हसना देते रहो तो मैं भी तुम्हारे गुनाह तुमसे ज़रुर दूर करूंगा और तुमकों बेहिश्त के उन (हरे भरे) बागों में पहुँचाऊँगा जिनके दरख़्तों के नीचे नहरे जारी हैं फ़िर तुममें से जो शख़्स इसके बाद भी इंकार (1) करे तो यक़ीनन वह राहे रास्त से भटक गया पस हमने इन को अहद शिकनी की वजह से इन पर लानत की और इनके दिलों को (गोया) हमने ख़ुद सख़्त बना दिया कि (हमारे) कलेमात को उनके असली माअनों से बदल कर दूसरे माअनी में इस्तेमाल करते हैं और जिन जिन बातों की उन्हें नसीहत की गयी थी उन में से एक बड़ा हिस्सा भुला बैठे।
(ऐ रसूल) अब तो तुम इन में चंद आदमियों के सिवा एक न एक ख़यानत पर बराबर मुत्तेला होते रहते हो तुम इन (के कुसूर) को माफ़ कर दो और (इनसे) दरगुज़र करो क्यों के ख़ुदा ऐहसान करने वालों को ज़रुर दोस्त रखता है और जो लोग कहते हैं कि यह नसरानी हैं इन से (भी) हमने (ईमान का अहद व पैमान) लिया था, मगर जिन बातों की नसीहत की गयी थी इन में से एक बड़ा हिस्सा (रिसालत मुहम्मद भुला बैठे तो हमने भी इसकी सज़ा में क़यामत तक इनमें बाहम अदावत व दुश्मनी की) बुनियाद डाल दी(1) और ख़ुदा उन्हें बहुत जल्द (क़यामत के दिन) बता देगा के वह क्या क्या करते थे।
ऐ अहले किताब तुम्हारे पास हमारा पैग़म्बर (मुहम्मद) आ चुका जो किताबें (ख़ुदा) की इन बातों में से जिन्हें तुम छिपाया करते थे बहुतेरी तो साफ़ साफ़ बयान कर देगा और बहुतेरी से (अमूमन) दर गुज़र करेगा तुम्हारे पास तो ख़ुदा की तरफ़ से एक (चमकता हुआ) नूर और साफ़ साफ़ बयान करने वाली किताब (कुरआन) आ चुकी जो लोग ख़ुदा की खुशनुदी के पाबंद हैं उनकी तो इस के ज़रिये से राहे निजात की हिदायत करता है और अपने हुक्म से (कुफ़्र की) तारीकी से निकाल कर (ईमान की) रौशनी में लाता है और उन्हें राहे रास्त पर पहुंचा देता है जो लोग इसके क़ायल हैं कि मरयम के बेटे मसीह बस ख़ुदा हैं वह ज़रुर क़ाफिर हो गये
(ऐ रसूल) उन से पूछो तो भला अगर ख़ुदा मरियम मसीह और उनकी मां को और जितने लोग ज़मीन में है सबको मार डालना चाहे तो कौन ऐसा है जिसका ख़ुदा से कुछ भी ज़ोर चले (और रद कर दे) और सारे आसमान और ज़मीन और जो कुछ भी इनके दरम्यान में है सब ख़ुदा ही की सल्तनत है जो चाहते है पैदा करता है और ख़ुदा तो हर चीज़ पर क़ादिर है और यहूदी और नसरानी तो कहते हैं हम ही ख़ुदा के(1) बेटे और उसके चहीते हैं।
(ऐ रसूल) उनसे तुम कहो अगर ऐसा है तो फिर तुम्हारे गुनाहों की सज़ा क्यों देता है (तुम्हारा ये ख़याल  है) बल्कि तुम भी स की मक़लूख़ात से एक बशर हो ख़ुदा जिसे चाहेगा बख़्श देगा और जिसको चाहेगा सज़ा दे देगा आसमान और ज़मीन और जो कुछ इन दोनों के दरम्यान में है सब ख़ुदा ही का मुल्क है और (सबको) उसी की तरफ  लौटकर जाना है ऐ अहले किताब जब पैग़म्बरों की आमद में बहुत रुकावट हुई तो हमारा रसूल  तुम्हारे पास आया जो अहकामे ख़ुदा को साफ़ साफ़ बयान करता है ताकि तुम कहीं ये न कह बैठो के हमारे पास तो न कोई ख़ुशख़बरी देने वाला (पैग़म्बर) आया न (अज़ाब से) डराने वाला हम तो यह नहीं कह सकते क्योंकि यक़ीनन तुम्हारे पास ख़ुशख़बरी देने वाला और डराने वाला (पैग़म्बर) आ गया और ख़ुदा हर चीज़ पर क़ादीर है(2)
ऐ रसूल इनको वह वक्त याद दिलाओ जब मूसा ने अपनी क़ौम से कहा था कि ऐ मेरी क़ौम जो नेमते ख़ुदा ने तुमको दी है उनको याद करो इस लिए के उसने तुम्हें लोगों से बेहतर पैग़म्बर बनाया और तुम ही लोगों को बादशाह(3) (भी) बनाया और तुम्हें वह नेमते दी हैं जो सारी ख़ुदाई में किसी एक को भी न दीं मेरी क़ौम (शाम) की इस मुक़द्दस ज़मीन में जाओं जहाँ खुदा ने तुम्हारी तक़दीर में (हुकूमत) लिख दी है और (दुश्मन के मुक़ाबल में) पीठ न फेरो (क्योंकि) इसमें तो तुम खुद उल्टा घाटा उठाओगे वह लोग कहने लगे के (1) ऐ मूसा इस मुल्क में तो बड़े ज़बर्दस्त (सरकश) लोग रहते हैं और जब तक वह लोग इसमें से निकल न जाँए हम तो इसमें कभी पांव भी न रखेंगें हाँ अगर वह लोग खुद इसमें से निकल जाएँ तो अलबत्ता हम ज़रुर जाएंगे।
(मगर) दो आदमी (यशूअ कालिब) जो (खुदा का) ख़ौफ़ रखते थे (और) जिन पर खुदा ने ख़ास अपना फ़ज्ल व करम किया था बेधडक़ बोल उठे कि (अरे) उन पर हमला करके बेतुल मुक़द्दस के फ़ाटक में तो घुस पड़ो, जीत हो गयी और अगर तुम सच्चे ईमानदार हो तो ख़ुदा ही पर भरोसा रखो वह कहने लगे ऐ मूसा (चाहे जो कुछ हो) जब तक वह लोग इसमें हैं हम तो इसमें हरगिज़ (लाख़ बरस) पाओ न रखेंगे हां तुम जाओ और तुम्हारा ख़ुदा (जाए) और दोनों (जाके) लड़ो हम तो यहीं जमें बैठे हैं (तब मूसा ने) अर्ज़ की कि ख़ुदा वन्दा तू खूब वाकिफ़ है कि अपनी ज़ात और अपने भाई के सिवा किसी पर मेरा काबू नहीं बस अब हमारे और इन नाफ़रमानी लोगों के दरम्यान जुदाई डाल दे हमारा इनका साथ नहीं हो सकता ख़ुदा ने फ़रमाया (अच्छा) तो उनकी सज़ा ये है उनको चालीस बरस तक वहां की हुकूमत नसीब में न होगी (और उस मुद्दत दराज़ तक) ये लोग (सफ़र के) जंगल में सरगदा(1) रहेंगे तो फिर तुम इन बदचलन बंदों पर अफसोस न करना
(ऐ रसूल) तुम इन लोगों से आदम के दो बेटों (2) (हाबील व क़ाबील) का सच्चा क़िस्सा बयान कर दो कि जब इन दोनों ने ख़ुदा की दरगाह में नियाज़े चढ़ाई तो इन में से एक (हाबील) की (नर्ज़ तो) कुबूल हुई और दूसरे (क़ाबील की) की (नर्ज़) न कुबूल हुई तो मारे हसद के हाबील से कहने लगा मैं तो तुझे ज़रुर मार डालूंगा उस ने जवाब दिया के (भाई इसमें अपना क्या बस है) ख़ुदा तो सिर्फ़ पहरेज़गारों की (ऩर्ज़) कूबूल करता है अगर तुम मेरे क़त्ल के इरादे से मेरी तरफ़ अपना हाथ बढ़ाओगे (तो ख़ैर बढ़ाओ) (मगर) मैं तो तुम्हारे क़त्ल के ख़्याल से अपना हाथ बढ़ाने वाला नहीं (क्योंकि) मैं तो उस ख़ुदा से जो सारे जहान का पालने वाला है ज़रुर डरता हूँ मैं तो ज़रुर यह चाहता हूँ कि मेरे गुनाह और तेरे गुनाह, दोनों तेरे सर हो जाएं तो तू (अच्छा खासा) जहन्नुमी बन जाए और ज़ालिमों की तो यही सज़ा ही है फ़िर तो उसके नफ़्स ने अपने भाई के क़त्ल पर उसे भड़का ही दिया आख़िर इस (कमबख़्त ने) उस को मार ही डाला तो घाटा उठाने वालों मे हो गया
(तो उसे फ़िक्र हुई के लाश को क्या करे) तो ख़ुदा ने एक कव्वे को भेजा के वह ज़मीन को कुरेदने लगा ताकि उसे (काबील) को दिखा दे कि अपने भाई की लाश क्योंकर छिपानी चाहिए (ये देख कर) वह कहने लगा हाए अफ़सोस क्या मैं इससे भी आजिज़ हूँ कि इस कव्वे की बराबरी कर सकूं (बला से ये भी होता) तो अपने भाई की लाश छिपा देता अलग़रज़ वह (अपनी हरकत से) बहुत पछताया (1)
इसी सबब से तो हम ने बनी इस्राईल पर वाजिब कर दिया था के जो शख़्स किसी को न जान के बदले में और न मुल्क में फ़साद फ़ैलाने की सज़ा में (बल्कि नाहक़) क़त्ल कर डालेगा तो गोया उसने सब लोगों को क़त्ल कर डाला और जिसने एक आदमी को जला दिया तो गोया उसने सब लोगों को जला दिया।
और इन (बनी इस्राईल) के पास तो हमारे पैग़म्बर (कैसे कैसे) रोशन मोजिज़े लेकर आ चुके हैं (मगर) फ़िर इसके बाद भी यक़ीनन उसमें से बहुतेरे ज़मीन में ज़्यादतीयां करते रहे जो लोग ख़ुदा और उसके रसूल से लडते भिड़ते हैं (और अहकाम को नहीं मानते) और फ़साद फ़ैलाने की गरज़ से मुल्को (मुल्कों) दौड़ते फ़िरते हैं उनकी सज़ा बस यही है कि (चुन चुन कर) या तो मार डालें जाए या उन्हें सूली दे दी जाए या उनके हाथ पांव(1) हेर फ़ेर के (एक तरफ़ का हाथ दूसरी तरफ़ का पांव) काट डाले जाएँ या उन्हें (अपने वतन की) सरज़मीन से शहर बदर कर दिया जाए ये रुसवाई तो इन की दुनियां में हुई और फ़िर आख़रत में तो उनके लिए बहुत बड़ा अज़ाब है मगर (हाँ) जिन लोगों ने इससे पहले कि तुम उन पर काबू पाओ तौबा कर ली तो उनका गुनाह बख़्श दिया जाएगा क्योंकि समझ तो के ख़ुदा बेशक बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है।
ऐ ईमानदारों खुदा से डरते रहो और इसके (तक़रीब के) ज़रिये (3) की जुस्तजू में रहो और उसकी राह में जेहाद करो ताकि तुम कामयाब हो जाओ इस में शक नहीं के जिन लोगों ने कुफ़्र इख़्तेयार किया अगर उनके पास ज़मीन में जो कुछ (माल ख़ज़ाना) है (वह) सब बल्कि इतना भी और उसके साथ हो कर रोज़े क़यामत के अज़ाब का उसे मुआवज़ा दे दें (और खुद बच जाए) तब भी (इसका ये मुआवज़ा) कुबूल न किया जाएजगा और उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है वह लोग चाहेंगे, किसी तरह जहन्नुम की आग से निकल भागे-मगर वहां तो वह निकल ही नहीं सकते और इनके लिए दाएमी अज़ाब है।
और चोर ख्वाह मर्द हो या औरत उनके करतूत की सजा में उनका (दाहिना) हाथ काट(1) डालो के (उनकी सज़ा) खुदा की तरफ़ से है और ख़ुदा (तो) बड़ा ज़बर्दस्त हिकमत वाला है हां जो अपने गुनाह के बाद तौबा कर ले और अपने चाल चलन दुरुस्त कर ले तो बेशक ख़ुदा भी उसकी तौबा कुबूल कर लेता है क्योंकि ख़ुदा तो बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है।
(ऐ शख़्स) क्या तू नहीं जानता के सारे आसमान और ज़मीन (गरज़ दुनियां जहान) में ख़ास ख़ुदा की हुकूमत है जिसे चाहे अज़ाब करे और जिसे चाहे माफ़ कर दें और ख़ुदा तो हर चीज़ पर क़ादिर हैं ऐ रसूल जो लोग कुफ़्र की तरफ़ लपक के चले जाते हैं तुम उनका म न खाओं इनमें बाज़ तो ऐसे हैं के अपन मुंह से बेतकल्लुफ़ कह देते हैं के हम ईमान लाए हालाँकि इनके दिल बेईमान हैं और बाज़ लोग भी ऐसे है के (जासूसी की गरज़ से) झूठी बातें बहुत (शौक़ से) सुनते है ताकि कुफ़्फ़ार के दूसरे गिरोह को जो (अभी तक) तुम्हारे पास नहीं आए हैं सुनाए ये लोग (तौरेत के) अल्फ़ाज़ की उनके असली माअनी (मालूम होने) के बाद भी तहरीफ़(2) करते हैं (और लोगों से) कहते हैं के (ये तौरेत का हुक्म है) अगर (मुहम्मद की तरफ़ से भी) तुम्हे यही हुक्म दिया जाए तो इसे मान लेना और अगर ये हुक्म तुमको न दिया जाए तो इससे अलग ही रहना।
और (ऐ रसूल) जिसको ख़ुदा ख़राब करना चाहता तो उसके वास्ते ख़ुदा से तुम्हारा कुछ जोर नहीं चल सकता ये लोग तो वहीं है जिनके दिलों को खुदा ने (गुनाहों से) पाक करने का इरादा ही नहीं किया (बल्कि) उनके लिए तो दुनियां में भी रुसवाई है और आख़ेरत में भी उनके लिए बड़ा (भारी) अज़ाब होगा ये (कमबख्त) झूठी बातों के बड़े (शौक से सुनने) वाले और बड़े ही हराम ख़ोर हैं तो (ऐ रसूल) अगर ये लोग तुम्हारे पास (कोई मामला ले कर) आँए तो तुम को इख़्तेयार है ख़्वाह इनके दरमियान फ़ैसला कर दो या इनसे किनारा कशी करो और अगर तुम किनाराकशी करोगे तो (कुछ ख़्याल न करो) ये लोग तुम्हारा हरगिज़ कुछ बिगाड़ नहीं सकते और अगर इनमें फैसला करो तो इंसाफ से फैसला करो क्योंकि ख़ुदा इंसाफ करने वालों को दोस्त रखता है और जब ख़ुद इनके पास तौरेत है और उसमें ख़ुदा का हुक्म (मौजूद) है तो फिर तुम्हारे पास फैसला कराने को क्यों आतें है और (लुत्फ़ तो ये है के) इसके बाद फिर (तुम्हारे हुक्म से) फिर जाते हैं और सच तो ये है के ये लोग ईमानदार ही नहीं हैं।
बेशक हम ने तौरेत नाज़िल की जिस में (लोगों की) हिदायत और नूर (ईमान) है इसी के मुताबिक़ ख़ुदा के फरमा बरदार बन्दे (अम्बियाए बनी इस्राईल) यहूदियों को हुक्म देते रहे और अल्लाह वाले और उल्मा (यहूद) भी किताब ख़ुदा से (हुक्म देते थे) जिसके वह मुहाफिज़ बनाए गए थे और वह इसके गवाह भी थे पस (ऐ मुसलमानों) तुम लोगों से (ज़रा भी) न डरो (बल्कि) मुझ ही से डरो और मेरी आयतों के बदले में (दुनियां की दौलत जो दरहक़ीक़त बहुत थोड़ी क़ीमत है) न लो और (समझ लो कि) जो शख़्स ख़ुदा की नाज़िल की हुई (किताब) के मुताबिक़ हुक्म न दे तो ऐसे ही लोग काफ़िर हैं और हमने तौरेत में यहूदियों पर ये हुक्म फ़र्ज़ कर दिया था के जान के बदले जान और आंख के बदले आंख और नांक के बदले नांक और कान के बदले कान और दांत के बदले दांत और ज़ख़्म के बदले (वैसा ही) बराबर का बदला (ज़ख्म) है फिर जो (मज़लूम ज़ालिम की) ख़ता माफ कर दे(1) तो ये उसके गुनाहों का कफ़्फ़ार हो जाएगा और जो शख़्स ख़ुदा की नाज़िल की हुई (किताब) के मुआफ़िक़ हुक्म न दे तो ऐसे ही लोग ज़ालिम हैं
और हम ने उन्हें पैग़म्बरों के क़दम ब क़दम मरियम के बेटे ईसा को चलाया और वह उस किताब तौरेत की भी दस्दीक करते थे जो उनके सामने (पहले से) मौजूद थी और हमने उनको इंजील (भी) अता कि जिस में (लोगों के लिए हर तरह की) हिदायत थी और नूर (ईमान) और वह उस किताब तौरैत की जो वक़्त नज़ूब इंजील (पहले से) मौजूद थी तस्दीक़ करने वाली और परहेज़गारॉं की हिदायत व नसीहत थी और इंजील वालों (नसारा) को जो कुछ ख़ुदा ने (इसमें) नाज़िल किया है इसके मुताबिक हुक्म करना चाहिए और जो शख़्स ख़ुदा की नाज़िल की हुई (किताब के) मुआफिक़ हुक्म न दे तो ऐसे ही लोग(1) बदकार हैं और (ऐ रसूल) हम ने तुम पर भी बरहक़ किताब नाज़िल की जो किताब (इस के पहले से) उसके वक़्त में मौजूद है उसकी तस्दीक़ करती है और उसकी निगेहबान (भी) है जो कुछ तुम पर ख़ुदा ने नाज़िल किया है उसी के मुताबिक तुम हुक्म दो और जो हक़ बात ख़ुदा की तरफ़ से आ चुकी है उससे कतरा के उन लोगों की ख़्वाहिशे नफ़्सानी की पैरवी न करो और हमने तुम में से हर एक के वास्ते (हस्बे मसल्हत वक़्त) एक एक शरीअत और ख़ास तरीके पर मुक़्रर्रर कर दिया और अगर ख़ुदा चाहता तुम सबको एक ही (शरीअत की) उम्मत बना देता मगर (मुख़्तलिफ़ शरीअतों से) ख़ुदा का मक़सद ये था के जो कुछ तुम्हे दिया है उसमें तुम्हारा इम्तेहान करे पस तुम नेकों में लपक कर आगे पढ़ जाओ और (यक़ीन जानों के) तुम सब को ख़ुदा ही की तरफ़ लौट कर जाना है तब (इस वक्त) जिन बातों में तुम इख़्तेलाफ़ करते वह तुम्हे बता देगा।
और (ऐ रसूल) हम फ़िर कहते है के जो अहकामे ख़ुदा ने नाज़िल किये हैं तुम इसके मुताबिक फ़ैसला करो और उनकी (बेजा) ख़्वाहिश नफ़सानी की पैरवी न करो बल्कि तुम उनसे बचे रहो (ऐसा न हो) के किसी हुक्म से जो ख़ुदा ने तुम पर नाज़िल किया है तुम को ये लोग भटका दें फ़िर अगर ये लोग तुम्हारे हुक्म से मुंह मोड़े तो समझ लो के (गोया) ख़ुदा ही की मरज़ी है के उनके बाज गुनाहों की वजह से उन्हें मुसीबत में फंसा दे और इसमें तो शक नहीं के बहुतेरे लोग बदचलन हैं क्या ये लोग (ज़माना) जाहेलिय्यत के (1) हुक्म की (तुम से भी) तमन्ना रखते हैं हालाँकि यक़ीन करने वाले लोगों के वास्ते हुक्म में ख़ुदा से बेहतर कौन होगा
ऐ ईमानदारों यहूदीयों और नसरानियों को अपना सर परस्त न बनाओ (क्योंकि) ये लोग (तुम्हारे मुख़ालिफ़ हैं मगर) बाहम एक दूसरे के दोस्त हैं और (याद रहे कि) तुम में से जिस ने उन को अपना सर परस्त बनाया पस फ़िर वह भी उन्हीं लोगों में हो गया बेशक ख़ुदा ज़ालिम लोगों को राहे रास्त पर नहीं लाता तो (ऐ रसूल) जिन लोगों के दिलों में (नेफ़ाक़ की) बीमारी है तुम उन्हें देखोगे कि उन में दौड़ के मिले जाते हैं और तुमसे इसकी वजह ये बयान करते हैं कि हम तो इससे ड़रते हैं कि कहीं ऐसा न हो उनके न मिलने से ज़माने की गरदिश में मुबातिला हो जाए तो अनक़रीब ही ख़ुदा (मुसलमानो की) फ़तह या कोई और बात अपनी तरफ़ से ज़ाहिर कर देगा तब ये लोग इस बदगुमानी पर जो अपनी जी में छिपाते थए शरमाएंगे और मोमिनीन (जब इन पर इनेफाक़ ज़ाहिर हो जाएगा तो) कहेंगे क्या ये वही लोग हैं जो सख्त क़स्में ख़ाकर (हम से) कहते थे के हम ज़रुर तुम्हारे साथ हैं इन का सारा किया धरा अकारत हुआ और सख़्त घाटे में आ गए
ऐ ईमानदारों तुम नें से (1) जो कोई अपने दीन से फ़िर जाएगा तो (कुछ परवाह नहीं फ़िर जाए) अनक़रीब ही खुदा ऐसे लोगों को ज़ाहिर कर देगा जिन्हें ख़ुदा दोस्त रखता होगा और वह उस को दोस्त रखते होंगे ईमानदारों के साथ मुनकिर (और) काफ़िर के साथ लड़कर ख़ुदा की राह में जेहाद करेंगे और किसी मलामत करने वाले की मलामत की कुछ परवाह न करेंगे ये ख़ुदा का फज़्ल (व करम) है वह जिसे चाहता है देता है और ख़ुदा तो बड़ी गुंजाइश वाला वाक़िफ़कार है।
(ऐ ईमानदारों)(2) तुम्हारे मालिक सर परस्त तो बस यही हैं खुदा और उस का रसूल और वह मोमिनीन जो पाबंदी से नमाज़ अदा करते हैं और हालत रुकूअ में ज़कात देते हैं।
और जिस शख़्स ने ख़ुदा और रसूल और (उन्हें) ईमानदारों को अपना सरपरस्त बनाया तो (खुदा के लश्कर में आ गया और) इस में तो शक नहीं के खुदा ही तुम से पहले किताब ख़ुदा (तौरेत व इंजील) दी जा चुकी है इन में से जिन लोगों ने तुम्हारे दीन को हंसी खेल बना रखा है उन को और कुफ़्फ़ार को अपना सरपरस्त न बनाओ और अगर तुम सच्चे ईमानदार हो तो ख़ुदा ही से डरते रहो
और (इनकी शरारत यहां तक पहुंची) के जब तुम (अज़ान देकर) नमाज़ के वास्ते (लोगों को) बुलाते हो तो ये लोग नमाज़ को हंसी खेल बनाते हैं ये इस वजह से कि (लोग बिल्कुल बे अक़्ल हैं और) कुछ (1) नहीं समझते (ऐरसूल अहले किताब से कहो कि) आख़िर तुम हम में से सिवा इसके और क्या ऐब(2) लगा सकते हो कि हम ख़ुदा पर और जो (क़िताब) हमारे पास भेजी गई है और जो हम से पहले भेजी गई ईमान लाऐ है और ये कि तुम में से अक्सर बदकार हैं।
(ऐ रसूल) तुम कह दो के मैं तुम्हें ख़ुदा के नज़दीक सज़ा में इस से कहीं बदतर ऐब बता दूं (अच्छा लो सुनों) जिस पर ख़ुदा ने लाअनत की हो और उस पर गज़ब ढ़ाया हो ओर उन में से किसी को (मना करके) बन्दर और (किसी) सुवर बना दिया हो और (ख़ुदा को छोड़कर) शैतान की इबादत की हो पस ये लोग दरजे में कहीं बदतर और राहे रास्ते से भटक के सबसे ज़्यादा दूर हो जा पहुंचे हैं
और (मुसलमानों) जब ये लोग तुम्हारे पास आ जाते हैं तो कहते हैं कि हमें तो ईमान लाए हैं हालाँकि वह कुफ्र ही को साथ ले आए थे और फिर निकले भी तो साथ लए हुए और जो (नेफ़ाक़) वह छिपाए हुए थे ख़ुदा उसे खूब जानता है (ऐ रसूल) तुम इन में से बेहुतेरों को देखोगे कि गुनाह और सरकशी और हराम ख़ोरी की तरफ़ दौड़ पड़ते हैं जो काम ये लोग करते थे वह यक़ीनन बहुत बुरा है उनको अल्लाह वाले उल्मा झूट बोलने और हराम ख़ोरी से क्यों नहीं रोकते जो (दरगुज़र) ये लोग करते रहे यक़ीनन बहुत ही बुरी बात है।(1)
और यहूदी कहने लगे के ख़ुदा का हाथ बंधा हुआ है (2) (बख़ील हो गया) उन्हीं के हाथ बांध दिए जाऐं और उनके (इस) कहने पर (ख़ुदा की) फिटकार (बरसे ख़ुदा का हाथ बँधने क्यों लगा) बल्कि उसके दोनों हथ कुशादह हैं जिस तरह चाहता है ख़र्च करता है और जो (किताब) तुम्हारे पास नाज़िल की गई है (उनका रश्क व हसद) उन्हीं से बहुतेरों की कुफ़्र व सरकशी की और बढ़ा देगा और (गोया) हम ने ख़ुद उन के आपस में रोज़े क़यामत तक अदावत और कीने की बुनियाद डाल दी जब ये लोग लड़ाई की आग भड़काते हैं तो ख़ुदा उस को बुझ़ा देता है और रुआ ज़मीन में फ़साद फैलाने के लिए दौड़ते फिरते हैं और ख़ुदा फ़सादियाँ को दोस्त नहीं रखता
और अगर अहले किताब ईमान लाते और (हम से) डरते तो हम ज़रुर उन के गुनाहों से दरगुज़र करते और उन को नेअमत व आराम (बेहिश्त) के बागों में पहुँचा देते और अगर ये लोग तौरेत और इंजील और जो (सीहफ़े) उनके पास उनके परवरदिग़ार की तरफ़ से नाज़िल किए गए थे (उनके अहकाम को) क़ाएम रखते तो ज़रुर (उनके) ऊपर से भी (रिज़क बरब पडता) और पांव के नीचे से भी उबल आता और (ये खूब चैन से) खाते उनमें से कुछ लोग तो एतदाल पर हैं (मगर) उनमें के बहुतेरे जो कुछ करते हैं बुरा ही करते हैं(1)
ऐ रसूल जो हुक्म तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से तुम पर नाज़िल किया गया है पहुँचा दो और अगर तुम ने ऐसा न किया तो (समझ लो कि) तुम ने उसका कोई पैग़ाम ही नहीं पहुंचाया और (तुम डरों नहीं) ख़ुदा तुमको लोगों के शर से महफूज़ रखेगा ख़ुदा हरगिज़ काफ़िरों की क़ौम को मंज़िले मक़सूद तक नहीं पहुँचाता
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि ऐ अहले किताब जब तक तुम तौरेत और इंजील और जो (सहीफ़े) तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से तुम पर नाज़िल हुए हैं उन (के अहकाम) को क़ाएम न रखोगे उस वक़्त तक तुम्हारा मज़हब कुछ भी नहीं और और (ऐ रसूल) जो (किताब) तुम्हारे पास तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से भेजी गई है (उस का रश्क व हसद) उन में से बहुतेरों की सरकशी व कुफ़्र को और बढ़ा देगा तुम काफ़िरों के गिरोह पर अफ़सोस न करना इमसें (1) तो शक ही नहीं की मुसलमान हो या यहूदी हाकिमाना ख़्याल के पाबन्द हों ख़्वाह नसरानी (ग़रज़ कुछ भी हो) जो ख़ुदा और रोज़े आख़ेरत पर ईमान लाएगा और अच्छे (अच्छे) काम करेगा उन पर अलबत्ता न तो कोई ख़ौफ़ होगा और न वह लोग आज़ूरदह ख़ातिर होंगे हमने बनी इस्राईल से अहदो पैमान ले लिया था और उनके पास बहुत रसूल भी भेजे थे (इस पर भी) जब उनके पास कोई रसूल उनकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ हुक्म लेकर आया तो उन (कम्बख़्त) लोगों ने किसी को झ़ुटला दिया और किसी को क़त्ल ही कर डाला और समझ लिया कि (इसमें हमारे लिए) कोई ख़राबी न होगी पस (गोया) वह लोग (अमरे हक़ से) अंधे और बहरे बन गए (मगर बावजूद इसके जब उन लोगों ने तौबा की) तो फिर ख़ुदा ने उन की तौबा क़बूल कर ली (मगर) फ़िर (इस पर भी) उनमें से बहुतेरे अंधे और बहरे बन गए
और जो कुछ ये लोग कर रहे हैं अल्लाह तू देखता है जो लोग इसके काएल हैं कि मरियम के बेटे ईसा मसीह ख़ुदा हैं हालाँकि मसीह ने खुद यूं कह दिया था के ऐ बनी इस्राईल सिर्फ़ उसी ख़ुदा की इबादत करो जो हमारा और तुम्हारे पालने वाला है क्योंकि (याद रखो) जिस ख़ुदा का शरीक बनाया उस पर ख़ुदा ने बेहिश्त को हराम कर दिया है, और उसका ठिकाना जहन्नुम है और ज़ालिमों का कोई मददगार नहीं
जो लोग इसके क़ायल हैं कि ख़ुदा तीन में का (तीसरा) है वह यक़ीनन काफ़िर हो गये (याद रखो कि) ख़ुदा ए यकता के सिवा कोई माबूद नहीं और (ख़ुदा के बारे में) ये लोग जो कुछ बका करते हैं अगर इस से बाज़ न आए तो (समझ रखिये कि) जो लोग इसमें से (काफ़िर के) काफ़िर रहेंगे उन पर जरुर दर्दनाक अज़ाब नाजिल होगा तो ये लोग ख़ुदा की बारगाह में तौबा क्यों नहीं करते और अपने (कुसूरों की) माफ़ी क्यों नहीं मांगते हालाँकि ख़ुदा तो बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है मरियम के बेटे मसीह तो बस एक रसूल हैं और इनके क़ब्ल (और भी) बहुतेरे रसूल गुज़रे चुके हैं और उनकी मां भी (खुदा की) एक सच्ची बंदी थी (और आदमियों की तरह) ये दोनों (के दोनों भी) खाना खाते थे (ऐ रसूल) ग़ौर तो करो कि हम अपने अहकाम उन से कैसा साफ़ साफ़ बयान करते हैं फ़िर देखो तो कि (इस पर भी उलटे) ये लोग कहां भटकते जा रहे हैं।
(ऐ रसूल) तुम कहदो कि क्या तुम ख़ुदा (जैसे क़ादिर व तवाना) को छोड़ कर (ऐसी ज़लील) चीज़ की इबादत करते हो जिस को न तो नुक़सान ही का इख़्तेयार है और न नफ़ाअ का और ख़ुदा तो (सब की) सुनता (और सब कुछ) जानता है (ऐ रसूल) तु कहो कि ऐ अहले किताब तुम अपने दीन मे नाहक़ ज्यादती न करो और न उन लोगों (अपने बुज़ुर्गों) की नफ़सानी ख़्वाहिशों पर चलो जो पहले ख़ुद ही गुमराह हो चुके और (अपने साथ और भी) बहुतेरो को गुमराह कर छोड़ा और राहे रास्ते से (दूर) भटक गये
बनी इस्राईल में से जो लोग काफ़िर थे उन पर दाऊद और मरियम के बेटे ईसा की ज़बानी लानत(1) की गयी ये (लानत उन पर पड़ी तो सिर्फ़) इस वजह से कि (एक तो) उन लोगों ने नाफ़रमानी की और (फ़िर हर मामले में) हद से बड़ जाते थे और किसी बुरे काम से जिसको उन लोगों ने किया बाज़ न आते थे (बल्कि उस पर बावजूद नसीहत अड़े रहते) जो काम ये लोग करते थे क्या ही बुरा था (ऐ रसूल) तुम इन (यहूदियों) में से बहुतेरों को देखोंगे कि कुफ़्फ़ार से दोस्ती रखते हैं जो समान पहले से उन लोगों ने खुद अपने वास्ते दुरुस्त किया है किस कद्र बुरा है (जिस का नतीजा यचे है) के (दुनियां में भी) ख़ुदा इन पर गज़बनाक हुआ और (आख़िर में भी) हमेशा अज़ाब ही में रहेगे और अगर ये लोग ख़ुदा और रसूल पर और जो कुछ उन पर नाज़िल किया गया है ईमान रखते हैं तो हरगिज़ (उन को अपना) दोस्त न बनाते मगर इनमें के बहुतेरे तो बदचलन हैं।
(ऐ रसूल) तुम ईमान लाने वालों का दुश्मन सबसे बढ़के यहूदियों और मुश्रिकों को पाओगे और ईमानदारों का दोस्ती में सब से बढ़ के क़रीब (1) उन लोगों को पाओगे जो अपने को नसारा कहते हैं क्योंकि इन (नसारत) में से यक़ीनी बहुत से आलिम और आबिद हैं और इस सबब से (भी) के ये लोग हरगिज़ शेख़ी नहीं करते।


Comments powered by CComment