तरजुमा कुरआने करीम (मौलाना फरमान अली) पारा-5

कुरआन मजीद
Typography
  • Smaller Small Medium Big Bigger
  • Default Helvetica Segoe Georgia Times

और शौहरदार औरतें मगर वह औरतें जो (जिहाद में कुफ़्फ़ार से) तुम्हारे कब्जे में आ जाए (हराम नहीं) (ये) ख़ुदा का तहरीरी हुक्म (है जो) तुम पर (फ़र्ज़ किया गया) है और उन औरतों के सिवा (और औरतें) तुम्हारे लिए जाएज़ हैं बेशर्ते बदकारी व ज़ना नहीं बल्की तुम इफ़्फ़त व पाकदामनी की ग़रज़ से अपने माल (महर) के बदले (निकाह करना) चाहो- हाँ जिन औरतों से तुम ने मोताअ (1) किया हो तो उन्हें जो महर मोअय्यन किया है दे दो और महर के मुक़्रर्रर होने के बाद अगर आपस में (कम व बेश पर) राज़ी हो जाओ उस में तुम पर कुछ गुनाह नहीं है बेशक ख़ुदा (हर चीज़ से) वाकिफ़ और मसहलतों का पहचानने वाला है।
और तुम में से जो शख़्स (आज़ाद) मोमिना इफ़्फ़तदार औरतों से निकाह करने की माली हैसियत से कुद़रत न रखता हो वह तुम्हारी उन मोमिना लौंड़ियों से जो तुम्हारे क़ब्जे में है निकाह कर सकते है और ख़ुदा तुम्हारे ईमान से खूब वाकिफ़ है (ईमान की हैसियत से तो) तुम में एक दूसरे का हम जिन्स है पस (बे तअम्मुल) उनके मालिकों की इजाज़त से लौंडियों से निकाह करो और उन का मेहर हुस्ने सलूक से दे दो, मगर उन्हें (लौंडियों) से (निकाह करो) जो इफ़्फत के साथ तुम्हारी पाबन्द रहे न तो खुले ख़ज़ाने ज़ेना करना चाहिए और न चोरी छिपे से आशनाई फिर जब तुम्हारी पाबन्द हो चुकें उसके बाद कोई बदकारी करें तो जो सज़ा (1) आज़ाद बीवियों को दी जाती है उसकी आधी (सज़ा) लौंडियों को दी जाएगी (और) लौंडियों से निकाह कर भी सकता है तो वह शख़्स जो जेना में मुब्तेला हो जाने का ख़ौफ़ हो और सब्र करो तो तुम्हारे हक़ में ज़्यादा बेहतर है और खुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है।
ख़ुदा तो ये चाहता है कि (अपने एहकाम) तुम लोगों से साफ़ साफ़ बयान कर दे और जो (अच्छे) लोग तुम से और ख़ुदा तो (हर चीज़ से) वाक़िफ़ और हिकमत वाला है और ख़ुदा तो चाहता है के तुम्हारी तौबा क़बूल करे और जो लोग नफ़सानी ख़्वाहिश के पीछे पड़े हैं वह ये चाहते हैं के तुम लोग (राह हक़ से) बहुत दूर हट जाओ ख़ुदा चाहता है कि तुम से (बारे में) तख़फ़ीफ़ कर दे क्योंकि आदमी तो कमज़ोर पैदा ही किया गया है।
ऐ ईमान वालों आपस में एक दूसरे को माल नाहक़ न खा जाया करो-लेकिन (हां) तुम लोगों की बाहमी रज़ामंदी से तिजारह हो (और उसमें एक दूसरे का माल हो तो मुज़ाएका नहीं) और अपना गला आप घोट के अपनी जान(1) न दो (क्योंकि) ख़ुदा तो ज़रुर तुम्हारे हाल पर मेहरबान है और जो शख़्स जौरो से नाहक़ ऐसा करेगा (खुदकुशी करेगा) तो (याद रहे के) हम बहुत जल्द उसको (जहन्नुम की) आग में झोंक देंगे और ये ख़ुदा के लिए आसान है।
जिन कामो की तुम्हे मनाही की जाती है अगर उनमें से तुम गुनाहान कबीरा(1) से बचते रहो तो तुम्हारे (सग़ीराह) गुनाहों से भी दरगुज़र करेंगे और तुम को बहुत अच्छी इज़्ज़त की जगह पहुँचा देंगे और ख़ुदा ने जो तुम से एक दूसरे पर तरजीह दी है उस की हवस न करो (क्योंकि फज़ीलत तो आमाल से है) मर्दों को अपने किए का हिस्सा है और औरतों को अपने किए का हिस्सा और (ये और बात है) कि तुम ख़ुदा से उस के फ़ज़्ल व करम की ख़्वाहिश करो ख़ुदा तो हर चीज़ से ज़रुर वाक़िफ़ है और मां बाप (या) और क़राबतदार (ग़रज़) जो शख़्श जो तरका छोड़ जाए हमने हर एक का (वाली) वारिस (3) मुक़र्रर कर दिया।
और जिन लोगों से तुम ने मुस्तहकम अहद किया है उनका मुक़र्रर भी तुम दे दो बेशक ख़ुदा हर चीज़ पर गवाह है मर्दों का औरत पर क़ाबू है क्योंकि (एक तो) ख़ुदा ने बाज़ आदमियों (मर्द) को बाज़ आदमियो (औरत) पर फज़ीलत (1) दी है और (उसके अलावा) चूंके (मर्दों ने औरतों पर) अपना माल खर्च किया है पस नेक बख़्त बीवियां तो (शौहरों की) ताबेदारी करती हैं और उनके पीठ पीछे जिस तरह ख़ुदा ने हिफ़ाज़त की वह भी (हर चीज़ की) हिफाज़त करती हैं और वह औरते जिने नाशिज़ा (सरकश) होने का तुम्हे अन्देशा हो तो (पहले उन्हें समझाओ और उस पर न माने तो) मारो (मगर इतना के ख़ून न निकले और कोई अज़ी न टूटे) पस अगर वह तुम्हारी मोतीअ हो जाए तो तुम भी उनके नुक़सान की राह न ढ़ूढ़ों ख़ुदा तो ज़रुर सबसे बरतर बुजुर्ग है और (ऐ तो एक सालिस (पंच) मर्द के कुन्बे में से और एक सालिस औरत के कुन्बे में से मुक़र्रर करो अगर ये दोनों सालिस दोनों में मेल करा देना चाहे तो ख़ुदा उन दोनों के दरम्यान उसका अच्छा बंदोबस्त कर देगा ख़ुदा तो बेशक वाकिफ़ व ख़बरदार है।
और ख़ुदा ही की इबादत करो और किसी को उसका शरीक न बनाओ और मां बाप और क़राबतदारों और यतीमों और मोहतजों और रिश्तेदार पड़ोसियों (3) और अजनबी पड़ोसियों(2) और पहलू बैठने वाले मोसाहेबीन और पड़ोसियों और अपने ज़रख़रीद लौंड़ी गुलाम के साथ अहसान करो बेशक ख़ुदा अकड़ के चलने वालों और शेख़ी बाजों को दोस्त नहीं रखता ये वह लोग हैं जो खुद तो बुख्ल करते ही हैं और लोगों को भी बुख्ल का हुक्म देते हैं और जो माल ख़ुदा ने अपने (फ़ज़्ल व करम) से उन्हें दिया है उसे छिपाते हैं और हमने तो कुफ़्राने नेमत करने वालों के वास्ते सख्त ज़िल्लत का अज़ाब तय्यार कर रखा है।
और जो लोग महज़ लोगों के दिखाने के वास्ते अपने माल ख़र्च करते हैं और न ख़ुदा पर (ख़ुदा भी उनके साथ नहीं कयोंकि उनका साथी तो शैतान है) और जिसका साथी शैतान हो तो क्या ही बुरा साथी है और अगर ये लोग ख़ुदा और रोज़े आख़ेरत पर ईमान लाते और जो कुछ ख़ुदा ने उन्हें दिया है उसमें से (राहे ख़ुदा मे) (1) ख़र्च करते तो उन पर क्या आफ़त आ जाती और ख़ुदा तो उनसे ख़ूब वाकिफ़ है ख़ुद तो हरगिज़ ज़र्रा बराबर भी जुल्म नहीं करता बल्कि अगर (ज़र्रा बराबर भी किसी की) कोई नेकी हो तो उसको दूगना करता है और अपनी तरफ़ से बड़ा सवाब अता फ़रमाता है (ख़ैर दुनियां में तो जो चाहे करें) भला उस वक्त क्या हाल होगा व हम हर गिरोह के गवाह तलब करेंगे
और (ऐ मुहम्मद) तुमको उन पर गवाह की हैसियत(1) में तलब करेंगे उस दिन जिन लोगों ने कुफ़्र इख़्तेयार किया और रसूल की नाफ़रमानी की ये आरजू करेंगे के काश (वह पैवंदे ख़ाक़ हो जाते) और उनके ऊपर से ज़मीन बराबर कर दीजाती और (अफ़सोस) ये लोग ख़ुदा से कोई बात (उस दिन) छिपा भी न सकेंगे-ऐ ईमानदारों तुम नशे की हालत में नमाज़(3) के क़रीब न जाओ ताकि तुम जो कुछ मुंह से कहो समझो भी तो और न जनाबत की हालत में यहां तक के गुस्ल कर लो मगर राह की रवा रवी में (जब गुस्ल मुमकिन नहीं है तो अलबत्ता ज़रुरत नहीं है) बल्कि अगर तुम मरीज़ हो (और पानी नुक़सान करे) या सफ़र में हो या तुममें से किसी का पायख़ाना निकल आए या औरतों से सोहबत की हो और तुमकों पानी मैयस्सर न हो (के तहारत करो) तो पाक मिट्टी पर तैमुम कर लो और (उस का तरीक़ा ये है कि) अपने मुंह और हाथों पर मिट्टी भरा हाथ फ़ेर लो- बेशक ख़ुदा माफ़ करने वाला (और) बख़्शने वाला है (ऐ रसूल) क्या तुमने उन लोगों (के हाल) पर नज़र नहीं की जिन्हें किताबे ख़ुदा का कुछ हिस्सा दिया गया था (मगर) वह लोग (हिदायत के बदले) गुमराही ख़रीदने लगे उन की ऐन मुराद ये है के तुम भी राहे रास्ते से बहक जाओ-और ख़ुदा तुम्हारे दुश्मनों से खूब वाक़िफ़ है और दोस्ती के लिए बस ख़ुदा काफ़ी है और हिमायत के वास्ते भी ख़ुदा क़ाफ़ी है।
(ऐ रसूल) यहूद से कुछ लोग ऐसे भी हैं जो बातों में उनके महल व मौक़ा से हेर फेर डाल देते हैं और अपनी ज़ुबानों को मरोड़ कर और दीन पर ताना ज़नी की राह से तुम से समअना और असैना (हम ने सुना और नाफ़रमानी की) और असमाअ ग़ैर मोस्माअ (तुम मेरी सुनों खुदा तुमको न सुनवाए) और राअना(1) (मेरा ख़याल करो मेरे चरवाहे) कहा करते हैं और अगर वह उसके बदले समअना व अतअना (हमने सुना और माना) और (सिर्फ) असमा (मेरी सुनों) और (राअना के एवज़) अन्ज़ुर (हम पर निगाह रख) कहते तो उनके हक़ में कहीं बेहतर होता और बिल्कुल सीधी बात थी मगर उन पर तो उनके कुफ़्र की वजह से ख़ुदा की फिटकार है पस उनमें से चन्द लोगों के सिवा और लोग ईमान ही न लाएंगे।
ऐ अहले किताब जो (किताब) हमने नाज़िल की और वह उस किताब की भी तस्दीक़ करती है जो तुम्हारे पास है उस पर ईमान लाओ मगर क़ब्ल उसके के हम कुछ लोगों के चेहरे बिगाड़ कर उनकी पुश्त की तरफ़ फेर दे या जिस तरह हम ने अस्हाब सबत (2) (हफ़्ता वालों) पर फिटकार बरसाई वैसे ही फिटकार उन पर भी करें और ख़ुदा का हुक्म किया कराया हुआ काम समझो ख़ुदा उस जुर्म को अलबत्ता नहीं माफ़ करते के उसके साथ शिर्क किया जाए हां उसके सिवा जो गुनाह हों जिसको चाहे माफ़ कर दे और जिसने (किसी को) ख़ुदा का शरीक बनाया तो उसने बड़े गुनाह का तूफ़ान बाँधा
(ऐ रसूल) क्या तुमने उन लोगों के (हाल) पर नज़र नहीं की जो आप ब़ड़े मुक़द्दस बनते हैं (मगर उससे क्या होता है) बल्कि ख़ुदा जिसे चाहता है मुक़द्दस बनाता है और ज़ुल्म तो किसी पर तकगे बाल बराबर हो ही गया नहीं (ऐ रसूल) ज़रा देखो तो ये लोग ख़ुदा पर कैसे कैसे झूठे तूफ़ान जोड़ते हैं और ख़ुल्लम खुल्ला गुनाह के वास्ते तो बस यही क़ाफ़ी है (ऐ रसूल) क्या तुमने उन लोगों के (हाल पर) नज़र नहीं की जिन्हें किताबे ख़ुदा का कुछ हिस्सा दिया गया था और (फ़िर) शैतान और बुतों का कलमा पढ़ने लगे और जिन लोगों ने कुफ़्र इख्तेयार किया है उनकी निस्बत कहने लगे के ये तो ईमान लाने वालों से ज़्यादा राह रास्त(1) पर है
(ऐ रसूल) यही वह लोग हैं जिन पर ख़ुदा ने लानत की है और जिस पर ख़ुदा ने लानत की है तुम उनका मददगार हरगिज़ किसी को न पाओगे क्या (दुनियां) की सलतनत में कुछ उनका भी हिस्सा है कि इस वजह से लोगों को मूठठी भर भी न देंगे या ख़ुदा जो अपने फ़ज़्ल से (तुम) लोगों को (2) (कुरआन) अता फ़रमाया है इसके रश्क पर चले जाते हैं (तो इसका क्या इलाज है) हम ने तो इब्राहीम की औलाद को किताब(1) और अक़ल की बातें अता फ़रमाई है और उनको बहुत बड़ी सल्तनत भी दी फिर कुछ लोग तो उनमें से उस (किताब) पर ईमान लाए और कुछ लोगों ने उन से इंकार किया और (इसकी सज़ा के लिए) जहन्नुम की दहकती हुई आग काफ़ी है (याद रहे कि) जिन लोगों ने हमारी आयतों से इंकार किया उन्हे ज़रुर अनक़रीब जहन्नुम की आग में झोंक देंगे (और) जब उनकी खालें (जब कर) गल जाएगी तो हम उनके लिए दूसरी खाले बदल कर पैदा कर देंगे ताकि वह अच्छी तरह अज़ाब का मज़ा चखें-बेशक खुदा (हर चीज़ पर) ग़ालिब और हिकमत वाला है।
और जो लोग ईमान लाए और अच्छे अच्छे काम किए हम उन को अनक़रीब ही (बेहिश्त के) ऐसे ऐसे (हरे भरे) बागों में जा पहुँचाएंगे जिन के नीचे नहरें जारी होंगी और उन्हें हमेशा अबदुल आबाद तक रहेंगे वहां सिर्फ़ इनकी साफ़ सुथरी बिवियां होंगी और उन्हें घनी छांव में ले जाकर रखेंगे (ऐ ईमानदारों) ख़ुदा तुम्हें हुक्म देता है के लोगों की अमानतें अमानत रखने वालों के हवाले कर दो और जब लोगों के बाहमी झगड़ों का फैसला करने लगो तो इंसाफ़ से फ़ैसला करो ख़ुदा तुमको उसकी क्या ही अच्छी नसीहत करता है उसमें तो शक नहीं कि ख़ुदा (सब की) सुनता (और सब कुछ) देखता है, ऐ ईमानदारों ख़ुदा की अताअत करो और रसूल की और जो तुम में से सहाबान हुकुमत(1) हों उनकी अताअत करो और अगर तुम किसी बात में झगड़ा करो पस अगर तुम ख़ुदा और रोज़े आख़रत पर ईमान रखते हो तो उस अमर में ख़ुदा व रसूल की तरफ़ रुजुअ करो, यही (तुम्हारे हक़) में बेहतर है और अंजाम की राह से बहुत अच्छा है।
(ऐ रसूल) क्या तुमने इन लोगों की (हालत) पर नज़र नहीं की जो ये ख़्याली पुलाव पकाते हैं कि जो किताब तुझ पर नाज़िल की गयी और जो (किताबें) तुमसे पहले नाज़िल की गई (सब पर) ईमान लाए और दिली तमन्ना ये है कि सरकशों को अपना हाकिम बनाए हालाँकि उन को हुक्म दिया गया है के उनकी बात न मानें और शैतान तो ये चाहता है के उन्हें बहका के बहुत दूर ले जाए और जब उनसे कहा जाता है कि ख़ुदा ने जो किताब नाज़िल की है उसकी तरफ़ और (रसूल की तरफ) रूजूअ करो तो तुम मुनाफ़िक़ीन को देखते हो के तुम से किस तरह मुंह फेर लेते हैं फिर जब उन पर उन के करतूत की वजह से कोई मुसीबत पड़ती है तो क्योंकर तुम्हारे पास ख़ुदा की क़समें खाते हुए आते हैं कि हमारा मतलब तो नेकी और मेल मिलाप के सिवा कुछ न था ये वह लोग हैं कि कुछ ख़ुदा ही उन के दिल की हालत खूब जानता है पस तुम उन से दरगुज़र करो और उन को नसीहत करो और उन से इन के दिल में असर करने वाली बर महल बात कहो और हम ने कोई रसूल नहीं भेजा मगर उस वास्ते के ख़ुदा के हुक्म से लोग उस की अताअत करें और
(ऐ रसूल) जब उन लोगों ने (नाफ़रमानी कर के) अपनी जानों पर ज़ुल्म किया था अगर तुम्हारे पास चले आते और ख़ुदा से माफ़ी मांगते और रसूल (तुम) भी उन की मग़फ़िरत चाहते तो बेशक वह लोग ख़ुदा को बड़ा तौबा कबूल करने वाला मेहरबान(1) पाते पस (ऐ रसूल) तुम्हारे परवरदिगार की क़सम ये लोग सच्चे मोमिन न होंगे ता-वक़्ते कि अपने बाहमी झगड़ों में तुम को अपनी हाकिम (न) बनाए फ़िर (यही नहीं बल्कि) जो कुछ तुम फ़ैसला करो उस से किसी तरह दिल तंग भी न हो बल्कि खुश खुश उसक को भी मान लें (इस्लामी शरीअत सहला मे तो इन का ये हाल है)
और अगर बनी इसराईल की तरह इन पर ये हुक्म जारी कर देते के तुम आप अपने को क़त्ल कर डालो या शहर बदर हो जाओ तो उनमें से चंद आदमियों के सिवा ये लोग तो इसको न करते और अगर ये लोग उस बात पर अमल करते जिस की उन्हें नसीहत की जाती है तो उन के हक़ में बहुत बेहतर होता और (दीन में भी) बहुत साबित क़दमी से जमे रहते और उस सूरत में हम भी अपनी तरफ से ज़रुर बड़ा अच्छा बदला देते और उस की राहेरास्त की भी ज़रुर हिदायत करते और जिस शख़्स ने ख़ुदा और रसूल की इताअत की तो ऐसे लोग उन (मक़बूल) बंदे के साथ होंगे जिन्हें ख़ुदा ने अपनी नेअमते दी हैं यानि अंबिया(1) और सद्दीक़न और शोहदा और सालेहीन और वे लोग क्या ही अच्छे रफ़ीक़ हैं ये ख़ुदा की फ़ज्ले (व करम) है और ख़ुदा तो वाकिफ़ कारी में बस है।
ऐ ईमान वालों (जेहाद के वक्त) अपनी हिफ़ाज़त (के ज़राए) अच्छी तरह देख़भाल लो फ़िर (तुम्हें इख़्तेयार है) ख़्वाह दस्ता दस्ता निकलो या सब के सब इक्ट्ठे होकर निकल खड़े हो और तुम में से बाज़ ऐसे भी हैं (जेहाद से) ज़रुर पीछे हटेंगे फ़िर अगर (इत्तेफ़ाक) तुम पर कोई मुसीबत आ पड़ी तो कहने लगे ख़ुदा ने हम पर बड़ा फ़ज़्ल किया कि मैं उन (मुसलमानों) के साथ मौजूद न हुआ ओर अगर तुम पर ख़ुदा ने फ़ज़्ल किया (और दुश्मन पर ग़ालिब आए) तो इस तरह अजनबी बनके कि गोया तुम में और उस में कभी की मुहब्बत हुई न थी यूं कहने लगे कि ऐ काश मैं भी इनके साथ होता तो मैं भी बड़ी कामयाबी हासिल करता पस जो लोग दुनियां की ज़िन्दगी (जान तक) आख़ेरत के वास्ते दे डालने को मौजूद हैं उन को ख़ुदा की राह में जेहाद करना चाहिए।
और जिस ने ख़ुदा की राह में जेहाद किया फ़िर शहीद हुआ तो गोया ग़ालिब आया तो (बहरहाल) हम तो अन्क़रीब ही उस को बड़ा अज्र(1) अता फ़रमाएंगे (और मुसलमानों) तुम को क्या हो गया है कि ख़ुदा की राह में उन कमज़ोर(1) बेबस मरदों और औरतों और बच्चों (को कुफ़्फ़ार के पंजे से छुड़ाने) के वास्ते जेहाद नहीं करते जो (हालत मजबूरी में) ख़ुदा) से दुआएं मांग रहे हैं के ऐ हमारे पालने वाले किसी तरह इस बस्ती (मक्के) से जिस के बाशिंदे बड़े ज़ालिम हैं हमें निकाल और अपनी तरफ़ से किसी को हमारा सरपरस्त बना और तो ख़ुद ही किसी को अपनी तरफ़ से हमारा मददगार बना (पस देखा) ईमान वाले तो ख़ुदा की राह में लड़ते हैं- और कुफ़्फ़ार शैतान की राह में लड़ते मरते हैं पस (मुसलमानों) तुम शैतान के हवा ख़्वाहो से लड़ो (और कुछ परवाह न करो) क्योंकि शैतान का दर्जा बहुत ही बोदा है
(ऐ रसूल) क्या तुम ने उन लोगों (के हाल) पर नज़र नहीं की जिनको (जेहाद की आरज़ू थी और) उन को हुक्म दिया गया था (के अभी चन्दे) अपने हाथ रोके रहो और पाबन्दी से नमाज़ पढ़ो और ज़कात दिये जाओ मगर जब जेहाद उन पर वाजिब किया गया तो उनमें से कुछ लोग (बोदे पन में) लोगों से उस तरह डरने लगे जैसे कोई ख़ुदा से डरे बल्कि इस से कहीं ज़्यादा और (घबरा कर) कहने लगे ख़ुदाया तूने हम पर जेहाद क्यों(1) वाजिब कर दिया हम को कुछ दिनों की और मोहलत क्यों न दी।
(ऐ रसूल इन से0 कह दो कि दुनियां की असाइश बहुत थोड़ी सी है और जो (ख़ुदा से) डरता है उस की आख़रत उस से कहीं बेहतर है और (वहां तो) रेशा (बाल) बराबर भी तुम लोगों पर जुल्म न किया जाएगा तुम चाहे जहां हो मौत तो तुम को ले ही डालेगी अगरचे तुम कैसे ही मज़बूत पक्के गुंबदों में जा छिपो और उन को (2) अगर कोई भलाई पहुंचती है तो कहने लगते हैं के चे ख़ुदा की तरफ़ से है और अगर उन को कोई तकलीफ़ पहुंची तो (शरारत से) कहने लगते हैं के (ऐ रसूल) ये तुम्हारी बदौलत है (ऐ रसूल) तुम कहदो के सब ख़ुदा की तरफ़ से है पस उन लोगों को क्या हो गया है के कोई बात ही नहीं समझते हालांकि (सच तो यूं है) जब तुम को कोई फ़ाएदा पहुंचे तो (समझो के) खुदा की तरफ़(1) से है और जब तुम को कोई तकलीफ़ पहुंचे तो (समझो के) ख़ुद तुम्हारी बदौलत है।
और (ऐ रसूल) हम ने तुम को लोगों के पास पैग़म्बर बना कर भेजा है और (उसके लिए) ख़ुदा की गवाही काफ़ी है जिस ने रसूल की अताअत की तो उस ने ख़ुदा की अताअत की और जिन से रुंगरदानी की तो तुम कुछ ख़्याल न करो (क्योंकि) हम ने तुमको कुछ पासबान (मुक़र्रर) करके तो भेजा नहीं है (ये लोग तुम्हारे साने) तो कह देते हैं के हम (आप के) फ़रमाबरदार हैं लेकिन जब तुमहारे पास से बाहर निकले तो उन में से कुछ लोग जो कुछ (तुम से) कह चुके थे उस के ख़िलाफ़ रातों को मशवेरह करते हैं हालाँकि (ये नहीं समझते) ये लोग रातों को जो कुछ भी मशवराह करते हैं। उसे ख़ुदा लिख़ता जाता है पस तुम इन लोगों की कुछ परवाह न करो और ख़ुदा पर भरोसा रखो और ख़ुदा कारसाज़ी के लिए काफ़ी है।
तो क्या ये लोग कुरआन में भी गौर नहीं करते और (ये नहीं ख़्याल करते के) अगर ख़ुदा के सिवा किसी और की तरफ़ से (आया) होता तो ज़रुर उस में बड़ा इख़्तेलाफ़ पाते और जब उन के (मुसलमानों के) पास अमन या ख़ौफ़ की ख़बर आई तो उसे फौरन मशहूर कर देते हैं हालाँकि अगर वह उस ख़बर को रसूल (या) और ईमानदारों में से साहेबाने (1) हुकूमत तक पहुंचाते तो बेशक जो लोग उन में से उस की तहक़ीक़ करने वाले हैं (पैग़म्बर या उलील अम्र) उस को समझ लेते के (मशहूर करने की ज़रुरत है या नहीं) और (मुसलमानों) अगर तुम पर ख़ुदा का फ़ज़्ल (व करम) और उस की मेहरबानी (3) न होती तो चंद आदमियों के सिवा तुम सब के सब शैतान की पैरवी करने लगते पस (ऐ रसूल) तुम ख़ुदा की राह में जेहाद करो और तुम अपनी ज़ान के सिवा और किसी और के ज़िम्मेदार नहीं(3) हो और ईमानदारों को (जेहाद की) तरग़ीब दी अनक़रीब ख़ुदा काफ़िरों की हैबत रोक देगा और ख़ुदा की हैबत सबसे ज़्यादा है और उसकी सज़ा बहुत सख़्त है।
जो शख़्स अच्छे काम की सिफ़ारिश करे तो उसको भी उस काम के सवाब से कुछ हिस्सा मिलेगा और जो बुरे काम की सिफ़ारिश करे तो उसको भी उसी काम की सज़ा का कुछ हिस्सा मिलेगा और ख़ुदा तो हर चीज़ पर निगेहबान है और जब तुम्हें किसी तरह कोई शख़्श सलाम(4) करे तो तुम भी उस के जवाब में उस से बेहतर तरीक़े से सलाम करो या वही लफ़्ज़ जवाब में कहदो बेशक ख़ुदा हर चीज़ का हिसाब करने वाला है अल्लाह तो वही परवरदिगार है जिस के सिवा कोई क़ाबिले इबादत नहीं वह तुमको क़यामत के दिन जिसमें ज़रा भी शक नहीं ज़रुर इकट्ठा करेगा और ख़ुदा से बढ़ कर बात में सच्चा कौन होगा।
(मुसलमानों) फिर तुमको क्या हो गया है के तुम मुनाफ़िकों(1) के बारे में दो फ़रीक़ हो गए हों (एक मुवाफ़िक़ एक मुख़ालिफ़) हालाँकि ख़ुद ख़ुदा ने उनके करतूतों की बदौलत उन (की अक़्लो) को उलट पलट दिया है क्या तुम ये चाहते हो कि जसको ख़ुदा ने गुम्राही में छोड़ दिया है उसके लिए तुममें से कोई शख़्स रास्ता निकाल ही नहीं सकता उन लोगों की ख़्वाहिश तो ये है कि जिस तरह काफ़िर हो गए तुम भी काफ़िर हो जाओं ताकि तुम उनके बराबर हो जाओं पस जब तक वह ख़ुदा की राह में हिजरत न करें तुम उनमें से किसी को दोस्त न बनाओ फिर अगर वह इससे भी मुंह मोड़े तो उनहें गिरफ़्तार करो और जहां पाओ उन को क़त्ल कर दो और उनमें से किसी को न अपना दोस्त बनाओ न मददगार मगर जो लोग किसी ऐसी क़ौम से जा मिले हों कि तुम और उनमें (सुलहा का) अहदो पैमान हो चुका है या तुमसे जंग करने या अपनी क़ौम के साथ लड़ने से दिल तंग होकर तुम्हारे पास आए हों (तो उनहे आजार न पहुंचाओं) और अगर खुदा चाहता तो उनको तुम पर गलबा देता तो वह तुमसे ज़रुर लड़ पड़ते पस अगरवह तुमसे किनारा कशी करें और तुमसे न लड़े और तुम्हारे पास सुलहा का पैग़ाम दे तो फिर तुम्हारे लिए उन लोगों पर (अज़ार पहुंचाने की) ख़ुदा ने कोई सबील नहीं (1) निकाली अनक़रीब तुम कुछ ऐसे और लोगों को भी पाओगे जो ये चाहते हैं कि तुमसे भी अमन में रहे और अपनी क़ौम से भी अमन में रहें (मगर) जब भी झगड़े की तरफ़ बुलाए गए तो उसमें औंधे मुंह के भल गिर पड़े पस अगर वह तुमसे न किनाराकशीं करें और न तुम्हें सुलहा का पैग़ाम दें और न लड़ाई से अपने हाथ रोकें पस उनको पकड़ो और जहाँ पाओं उन को क़त्ल करो और यही वह लोग हैं जिन पर हमने तुम्हें सरीही गलबा अता फरमाया।
और किसी ईमानदार को ये जाएज़ नहीं कि किसी मोमिन को जान से मार डालें मगर धोके (3) से (क़त्ल किया हो तो दूसरी बात है) और जो शख़्स किसी मोमिन को धोके से (भी) मार डाले तो (उस पर) एक ईमानदार गुलाम का आज़ाद करना और मक़तूल के क़राबत दारों को खूं बहा (3) देना लाज़िम है मगर जब वह लोग माफ कर दें फिर अगर मक़तूल उन लोगों में से हो वह जो तुम्हारे दुश्मन (काफ़िर हरबी) हैं और ख़ुद क़ातिल मोमिन हैं तो (सिर्फ़) एक मुसलमान गुलाम का आज़ाद करना और अगर मक़तूल उन (काफ़िर) लोगों में का हो जिन से तुम से अहदो पैमान हो चुका है- तो (क़ातिल पर) वारिसाने मक़तूल को खूँ बहा देना और एक बन्दा-ए-मोमिन का आज़ाद करना (वाजिब) है फिर जो शख़्स (गुलाम आज़ाद करने को) न पाए तो उसकी तरफ़ से लगादार दो महीने के रोज़े हैं और ख़ुदा खूब वाकिफ़कार (और) हिकमत वाला है।
और जो शख़्स किसी मोमिन को जान बूझ कर मार डाले (1) तो (गुलाम की आज़ादी वग़ैरह उसका कुफ़्फ़ारा नहीं बल्कि) उसकी सज़ा दोज़ख़ है और वह उसमें हमेशा रहेगा उस पर ख़ुदा ने (अपना) ग़ज़ब ढाया है ऐ ईमानदारों जब तुम ख़ुदा की राह में (जिहाद करने को) सफ़र करो तो (किसी के क़त्ल करने में जल्दी न करो बल्कि) अच्छी तरह जांच कर लिया करो तो (किसी के क़त्ल करने में जल्दी न करो बल्कि) अच्छी तरह जांच कर लिया करो और जो शख़्स (इज़्हारे इस्लाम की ग़रज़ से) तुम्हें सलाम करें तो तुम (बे सोचे समझे) न कह दिया करो के तू ईमानदार नहीं (3) है (उससे तो ज़ाहिर होता है) के तुम (फ़क़त) दुनियावीं असासे के तमन्ना रखते हो (कि उसी बहाने क़त्ल करके लूट लो और ये नहीं समझते कि अगर यही है) तो ख़ुदा के यहां बहुत सी ग़नीमतें (मुसलमानों) पहले तुम ख़ुद भी तो ऐसे ही थे फिर ख़ुदा ने तुम पर अहसान किये (के बेखटके मुसलमान हो गए) गरज़ खूब छान बीन कर लिया करो बेशक ख़ुदा तुम्हारे हर काम से ख़बरदार है
माज़ूर(1) लोगों के सिवा (जेहाद से मुंह छिपा के) घर में बैठने वाले और ख़ुदा की राह में अपने माल व जान से जिहाद करने वाले हरगिज़ बराबर नहीं हो सकते (बल्कि) अपने जान व माल से जेहाद करने वालों को घर बैठे रहने वालों पर ख़ुदा ने दर्जे के एतबार से बड़ी फ़ज़ीलत दी है (अगर चे) ख़ुदा ने सब ईमानदारों से (ख़्वाह जेहाद करें या न करें) भलाई का वादा कर लिया है मगर ग़िज़ियों को न ख़ाना नशीनों पर अज़ीम सवाब के एतबार से ख़ुदा ने बड़ी फ़ज़ीलत दी है (यानी उन्हें) अपनी तरफ़ से बड़े बड़े दर्जे और बख़्शिश और रहमत (अता फ़रमाएगा) और ख़ुदा तो बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है।
बेशक (2) जिन लोगों की क़ब्जे रुह फरिश्तों ने उस वक्त की है के (दारुल हरब में पड़े) अपनी जानों पर जुल्म कर रहे थे तो फ़रिश्ते क़ब्जे रुह के बाद हैरत से कहते है तुम किस (हालते ग़फ़लत में थे) तो वह (माज़रत के लहजे में) कहते हैं कि हम तो रुए ज़मीन में बेकस थे तो फ़रिश्ते कहते हैं कि ख़ुदा की (ऐसी लम्बी चोड़ी) ज़मीन में इतनी भी गुंजाइश न थी कि तुम (कहीं) हिजरत करके चले जाते पस ऐसे लोगों का ठिकाना जहन्नुम है और वह बुरा ठिकाना है मगर जो मर्द और औरतें और बच्चे इस क़द्र बेबस हैं (1) के न तो (दारुल हरब से निकलने की) कोई तदबीर कर सकते हैं और न उनको अपनी रेहाई की कोई राह दिखाई देती है तो उम्मीद है कि ख़ुदा ऐसे लोगों से दरगुज़र करे और ख़ुदा तो बड़ा माफ़ करने वाला और बक़्शने वाला है।
और जो शख़्स ख़ुदा की राह में हिज़रत करेगा तो वह रुए ज़मीन में बाफ़राग़त (चैन से रहने सहने के) बहुत से कुशादा मक़ाम पाएगा और जो शख़्स अपने घर से जिला वतन होके ख़ुदा और उसके रसूल की तरफ़ निकल खड़ा हुआ फिर उसे (मंज़िले मक़सूद तक पहुंचने से पहले) मौत आ जाऎए तो ख़ुदा पर उस का सवाब लाज़िम हो गया और ख़ुदा तो बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान  है (मुसलमानों) जब तुम रुए ज़मीन पर सफ़र करो और तुमको उस अम्र का ख़ौफ़ हो कि कुफ़्फ़ार (असनाए नमाज़ में) तुमसे फ़साद बरपा करेंगे तो उस में तुम्हारे वास्ते कुछ मोज़ाएक़ा नहीं के नमाज़ में से कुछ कम कर दिया करो(1) बेशक कुफ़्फ़ार तो तुम्हारे ख़ुल्लम खुल्ला दुश्मन हैं।
और (ऐ रसूल) जब तुम मुसलमानों में मौजूद हो और (लड़ाई हो रही हो के) तुम उनको नमाज़ पढ़ाने लगो (3) तो (दो गिरोह करके एक को लड़ाई के वास्ते छोड़ दो और) इनमें से एक जमाअत तुम्हारे साथ नमाज़ पढ़े और अपने हरबे हथियार अपने साथ लिये रहें फिर जब (पहले रकअत के) सज्दे कर (के दूसरी रकअत जल्दी फ़ौरादा पढ़) लें तो तुम्हारे पीछे पुश्त पनाह बने और दूसरी जमाअत जो (लड़ रहीं थी और) अब तक नमाज़ नहीं पढ़ने पाई हैं आएं और (तुम्हारी दूसरी रकअत में) तुम्हारे साथ नमाज़ पढ़ें और अपनी हिफ़ाज़त की चीज़ें और हथियार (नमाज़ में साथ) लिये रहे कुफ़्फ़ार तो यह चाहते ही हैं कि काश अपने हथियारों और अपने साज़ों सामान से ज़रा सी ग़फ़लत करो तो एकबारगी सबके सब तुम पर टूट पड़े,
हाँ अलबत्ता उस में कुछ मुज़ाएक़ा नहीं कि (इत्तेफ़ाक़) तुमको बारिश (के सबब से) कुछ तकलीफ़ पहुंचे या तुम बिमार हो तो अपने हथियार (नमाज़ में) उतार के रख दो और अपनी हिफ़ाज़त करते रहो और ख़ुदा ने तो काफ़िरों के लिए ज़िल्लत का आज़ाब तैयार ही कर रखा है- फ़िर जब तुम नमाज़ अदा कर चुको तो उठते बैठते लेटते (गरज़ हर हाल में) खुदा को याद करो फ़िर जब तुम (दुश्मनों से) मुतमईन हो जाओ तो (अपने मामूल के मुवाफिक़) नमाज़ पढ़ा करो क्योंकि नमाज़ तो ईमानदारों पर वक़्ते मोअय्यन करने फ़र्ज़ की गई है और (मुसलमानों) दुश्मनों के पीछा करने में सुस्ती (1) न करो अगर लड़ाई में तुम को तकलीफ़ पहुंचती है तो जैसी तुम को तकलीफ़ पहुंचती है उन को भी वैसी ही अज़ीयत होती है और (तुमको ये भी तक़वीयत है के) तुम ख़ुदा से वह उम्मीदें रखतें हो जो उनकों (नसीब) नहीं और ख़ुदा तो (सबसे) वाक़िफ़ (और) हिकमत वाला है (ऐ रसूल) हम ने तुम पर बरहक़ किताब उस लिए नाज़िल की है कि जिस तरह खुदा ने तुम्हारी हिदायत की है उसी तरह लोगों के दरम्यान फ़ैसला (2) करो और ख़यानत करने वालों के तरफ़दार न बनों और (अपनी उम्मत के लिए) ख़ुदा से मग़फ़िरत की दुआ मांगों बेशक ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है।
और (ऐ रसूल) तुम उन (बदमाशों) की तरफ़ होकर (लोगों से) न लड़ो जो अपने ही (लोगों) से दग़ाबाजी करते हैं बेशक ख़ुदा ऐसे शख़्स को दोस्त नहीं रखता जो दग़ाबाज़ गुनाहगार हो लोगों से तो (अपनी शरारत) छिपाते हैं और ख़ुदा से नहीं छिपाते, हालाँकि वह तो उस वक्त भी उनके साथ साथ है जब वह लोग रातों को (बैठ कर) उन बातों के मशवरे करते हैं जिन से ख़ुदा राज़ी नहीं और ख़ुदा तो उनके सब करतूतों को (इल्म के अहाते में) घेरे हुए है (मुसलमानों) ख़बरदार हो जाओ भला दुनियां की (ज़रा सी) ज़िन्दगी मे तो तुम उन की तरफ़ होकर ल़ड़ने खड़े हो गए (मगर ये तो बताओ) फ़िर क़यामत के दिन उनका तरफ़दार बनकर ख़ुदा से कौन लड़ेगा या कौन उनका वकील होगा।
और जो शख़्स कोई बुरा काम करे या (किसी तरह) अपने नफ़्स पर जुल्म करे उसके बाद खुदा से अपनी मग़फ़िरत की दुआ मांगे तो ख़ुदा को बड़ा बख्शने वाला मेहरबान पाएगा और ख़ुदा तो (हर चीज़ से) वाकिफ़ (और) बड़ी तदबीर वाला है और जो शख़्स कोई ख़ता या गुनाह करे फ़िर उसे किसी क़सूर उसके सर धोपे तो उससे एक बड़े अफ़तरा और सरीही गुनाह को अपने ऊपर लाद लिया और (ऐ रसूल) अगर तुम पर ख़ुदा का फ़ज़्ल (व करम) और उसकी मेहरबानी न होती तो उन (बदमाशों) में से एक गिरोह (1) तुमको गुमराह करने का ज़रुर क़स्द करता हालाँकि वह लोग सब अपने अपने को गुमराह कर रहें हैं और ये लोग तुम्हें कुछ भी ज़रर नहीं पहुंचा सकते और ख़ुदा ही ने तो (मेहरबानी की कि) तुम पर अपनी किताब और हिकमत नाज़िल की और जो बातें तुम न जानते थे तुम्हें सिखा दी और तुम पर तो ख़ुदा का बड़ा फ़ज़ल है।
(ऐ रसूल) उन के राज़ की (1) बातों से अक्सर में भलाई (का तो नाम तक) नही- मगर (हां) जो शख़्स किसी को सदक़ा देने या अच्छे काम करने या लोगों के दरमियान में मिलाप कराने का हुक्म दे (तो अलबत्ता एक बात है) और जो शख़्स (महज़) ख़ुदा की खुशनुदी की ख़्वाहिश में ऐसे काम करेगा तो हम अनक़रीब ही उसे बड़ा अच्छा बदला अता फरमाएंगे और जो शख़्स (3) राहे रास्त के ज़ाहिर होने के बाद रसूल से सरकशी करे और मोमनीन के तरीक़े के सिवा किसी और राह पर चलें तो जिधर वह फिर गया है हम भी उधऱ ही फेर देंगे-और (आख़िर) उसे जहन्नुम में झोंक देंगे और वह तो बहुत ही बुरा ठिकाना है।
ख़ुदा बेशक उसको तो नहीं बख़्शता के उसका कोई और शरीक बनाया जाए हां उसके सिवा जो गुनाह हो- जिसको चाहे बख़्श दे और (माज़ अल्लाह) जिसने किसी को ख़ुदा का शरीक बनाया वह तो बस भटक के बहुत दूर जा पड़ा-ये मुश्रेकीन ख़ुदा को छोड़ कर बस औरतों (3) ही की इबादत करते हैं (यानी बुतों को जो उनके ख़्याल में औरतें हैं) और (दरहक़ीक़त) ये लोग सरकश शैतान की परस्तिश करते हैं जिस पर ख़ुदा ने लानत की है और जिसमें (इब्तेदा ही में) कहा था कि (ख़ुदा वन्दा) तेरे बन्दों में से कुछ ख़ास लोगों को (अपनी तरफ़) ज़रुर ले लूंगा और फिर उनहे ज़रुर गुमराह करूँगा-और उनहें (बड़ी-बड़ी) उम्मीदें भी ज़रुर दिखाऊंगा और यक़ीनन उन्हें सिखा दूंगा फिर वह (बुतों के वास्ते) जानवरों के कान ज़रुर चीर फाड़ करेंगे –और अलबत्ता उनसे कह दूंगा पस फिर वह (मेरी तालीम के मुआफिक़) खुदा की बनायी हुई सूरत को ज़रुर(1) बदल डालेंगे (ये याद रहे कि) जिस ने ख़ुदा को छोड़ कर शैतान को अपना सरपरस्त बनाया तो उसने ख़ुल्लम खुल्ला सख़्त घाटा उठाया शैतान उनसे अच्छे अच्छे वादे भी करता है (और बड़ी बड़ी) उम्मीदें भी दिलाता है और शैतान उनसे जो कुछ भी वादे करता है वह बस निरा धोका (ही धोका) है यहां तो वह लोग हैं जिनका ठिकाना बस जहन्नुम है और वहां से भागने की जगह भी न पाएंगे।
और जिन लोगों ने ईमान कुबूल किया और अच्छे काम किए उन्हें हम अनक़रीब ही (बेहिश्त के) उन (हरे भरे) बाग़ों में जा पहुँचाएंगे जिन के (दरख़्तों के) नीचे नहरे जारी होंगी और ये लोग उसमें हमेशा अबदुल आबाद तक रहेंगे (ये उनसे) ख़ुदा का पक्का वादा है और ख़ुदा से ज़्यादा (अपनी) बात में सच्चा कौन होगा न तुम लोगों की आरजू से (कुछ काम चल सकता है) न अहले किताब की तमन्ना से कुछ हासिल बल्कि जैसा काम वैसा दाम जो बुरा काम करेगा उसका बदला (1) दिया जाएगा और फिर ख़ुदा के सिवा किसी को न तो अपना सरपरस्त पाएगा और न मददगार और जो शख़्स अच्छे अच्छे काम करेगा (ख़्वाह) मर्द हो या औरत और ईमानदार (भी) हो तो ऐसे ही लोग बेहिश्त में (बेखट्के) जा पहुँचेगें और उन पर तिल भर भी जुल्म न किया जाएगा- और उस शख़्स से दीन में बेहतर कौन होगा जिसने ख़ुदा के सामने अपना सिर तसलीम झुका दिया और वह नेकूकार भी है और इब्राहीम के तरीक़े पर चलता है जो बातिल से कतरा के चलते थे और ख़ुदा ने इब्राहीम को तो अपनी ख़लील (2) (दोस्त) बना लिया और जो कुछ आसमान में है और जो कुछ ज़मीन में है (ग़रज़ सब कुछ) ख़ुदा ही का है और ख़ुदा ही सब चीज़ को (अपनु कुदरत से) घेरे हुए है।
(ऐ रसूल) ये लोग तुम से (यतीम) लड़कियों (से निकाह) के बारे में फ़त्वे तलब करते हैं- तुम (उनसे) कह दो कि ख़ुदा तुम्हें उन (से निकाह करने) की इजाज़त देता है और हुक्म (मनाही का) कुरआन में तुम्हें (पहले) सुनाया जा चुका है वह हक़ीक़तन उन यतीम ल़ड़कियों के वास्ते था जिन्हें तुम उनका मोअय्यन किया हुआ हक़ नहीं देते और चाहते हो (के यूं ही) उन से निकाह कर लो और उन कमज़ोर नातवां बच्चों के बारे में हुक्म फ़रमाता है और (वह) ये है कि तुम यतीमों के हुकूक के बारे में इंसाफ पर क़ायम रहो और (यक़ीन रखो कि) जो कुछ तुम नेकी करोगे तो ख़ुदा उससे ज़रुर वाक़िफ़ कार है।
और अगर कोई औरत (1) अपने शौहर की ज़्यादती और बे-तवोज्जही से (तलाक़ का) खौफ़ रखती हो तो मिया बीवी के बाम किसी तरह मिलाप कर लेने में दोनो (में से किसी) पर कुछ गुनाह नहीं है और सुलहा तो (बहरहाल) बेहतर है और बोख़्ल से तो क़रीब क़रीब हर तबीयत के हम पहलू हैं और अगर तुम नेकी करो और (ख़िस्त से) बचे रहो तो ख़ुदा तुम्हारे हर काम से ख़बरदार है वहीं तुमको अज़्र देगा और अगर चे तुम बेहतर चाहो (लेकिन) तुम में इतनी सकत तो हरगिज़ नहीं है कि अपनी मुतअदिद बीवियों में (पूरा पूरा) इंसाफ (3) कर सको (मगर) ऐसा भी तो न करो कि (एक ही की तरफ़) हमातन इतना माएल हो जाओ कि (दूसरी को बीच अधड़ में) लटकी (1) हुई (मोअल्लक़) छोड़ दो और अगर बाहम मेल कर लो और (ज़्यादती से) बचे रहो तो ख़ुदा यक़ीनी बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है
अगर दोनों मियाँ बीवी एक दूसरे से (बज़रिए तलाक़) जुदा हो जाएं तो ख़ुदा अपने वसी ख़ज़ाने से (फ़ारेगुल बाली अता फ़रमा कर) दोनों को एक दूसरे से बेनियाज़ कर देगा और ख़ुदा तो बड़ी गुंजाइश (और) तद्बीर वाला है और जो कुछ आसमान में है और जो कुछ ज़मीन में है (गरज़ सब कुछ) ख़ुदा ही का है और जिन लोगों को तुम से पहले किताब (ख़ुदा) अता की गई है उनको और तुम को भी उस की हमने वसीयत की थी के ख़ुदा (की नाफ़रमानी) से डरते रहो और अगर (कहीं) तुम ने कुफ़्र इख़्तेयार किया (याद रहे कि) जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है (गरज़ सब कुछ) ख़ुदा ही का है (जो चाहे कर सकता है) और ख़ुदा तो सबसे बेपरवाह और (हम सिफ़त) मौसूफ़ है और जो कुछ आसमान में है और जो कुछ ज़मीन में है (गरज़ सब ही) ख़ास ख़ुदा का है और ख़ुदा तो कारसाज़ी के लिए काफ़ी है ऐ लोग अगर ख़ुदा चाहे तो तुम को (दुनिया के परदे से) बिल्कुल उठा ले और (तुम्हारे बदले) दूसरों को ला (बसा)ऐ और ख़ुदा तो उस पर क़ादिर व तवाना है।
जो शख़्स (अपने आमाल का) बदला दुनिया ही में चाहता है तो ख़ुदा के पास दुनिया और आखेरत दोनों का अज्र मौजूद है और ख़ुदा तो (हर शख़्स की) सुनता (और सब को) देखता है ऐ ईमानवालों मज़बूती के साथ इंसाफ़ (1) पर क़ायम रहो और ख़ुदा लगती गवाही दो अगरचे (यह गवाही) खुद तुम्हारे या तुम्हारे माँ बाप या क़राबतदारों के लिए मुज़िर (ही क्यों) न हो ख़्वाह मालदार हो या मोहताज (क्योंकि) खुदा तो (तुम्हारी बनिस्बत) उन पर ज़्यादा मेहरबान है तुम तो (हक़ से) कतराने ख़्वाहिशे नफ़सानी की पैरवी न करो और अगर घुमा फ़िरा के गवाही दोगें या बिल्कुल इंकार करोगें तो (याद रहे जैसी करनी वैसी भरनी क्योंकि) जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा उससे खूब वाकिफ़ है।
ऐ ईमानवालों और उसके रसूल पर और सकी किताब पर जो उसने अपने रसूल (मुहम्मद स0) पर नाज़िल की है- और उस किताब पर जो उसने पहले नाज़िल की ईमान लाओ और (ये भी याद रहे के) जो शख़्स खुदा और उसके फ़रिश्तों और उसकी किताबों और उसके रसूलों और रोज़े आख़रत का मुनकिर हो तो वह राहे रास्त से भटक के दूर जा पड़ा बेशक जो लोग ईमान लाए उसके बाद फिर काफ़िर हो गए फ़िर ईमान लाए और फ़िर उसके बाद काफ़िर हो गए- और फ़िर कुफ़्र में बढ़ते चले गये तो ख़ुदा उनकी मग़फ़िरत करेगा- और न उन्हें राहे रास्त की हिदायत ही करेगा (ऐ रसूल) मुनाफ़िकों को खुशखबरी दे दो के उनके लिए ज़रुर दर्दनाक अज़ाब है जो लोग मोमिनों को छोड़ कर काफ़िरों को अपना सरपरस्त बनाते हैं क्या उनके पास इज्ज़त (वा आबरू) की तलाश करते हैं- इज़ज़त तो सारी बस ख़ुदा ही के लिए ख़ास है।
(मुसलमानों) हालाँकि ख़ुदा तुम पर अपनी किताब कुऱआन में ये हुक्म नाज़िल कर चुका है के जब तुम सुन लो के ख़ुदा की आयतों से इंकार किया जाता है और उससे मस्ख़रापन किया जाता है तो तुम उन (कुफ़्फ़ार) के साथ मत बैठो यहां तक कि वह किसी दूसरी बात में ग़ौर करने लगे वरना तुम भी उस वक्त उनके बराबर हो जाओगे उस में तो शक ही नहीं के ख़ुदा तमाम मुनाफ़िकों और काफ़िरों को (एक न एक दिन) जहन्नुम में जमा ही करेगा (वह मुनाफ़िक़ीन) जो तुम्हारे (माला ए कार के) मुनतज़िर हैं (के देखिये फ़तेह होती है या शिकस्त) तो अगर ख़ुदा की तरफ़ से तुम्हे फ़तेह हुई तो कहने लगे के क्या हम तुम्हारे साथ न थे और अगर (फ़तेह का) हिस्सा काफ़िरों को मिला तो (काफ़िरों के तरफ़दार बन कर) कहते हैं क्या हम तुम पर गालिब न आ गे थे (मगर क़सदन तुमको छोड़ दिया) और तुमकों मोमीनीन (के हाथों) से हम ने बचाया नहीं था (मुनाफ़िक़ों) क़यामत के दिन तो ख़ुदा तुम्हारे दरम्यान फ़ैसला करेगा और ख़ुदा ने काफ़िरों को मोमिनीन पर दर (1) रहने की हरगिज़ कोई राह नहीं क़रार दी बेशक मुनाफ़िक़ीन (अपने ख़याल मे) ख़ुदा को फ़रेब देते हैं हालाँकि ख़ुदा ख़ुद उन्हें धोका देता है और ये लोग जब नमाज़ पढ़ने खड़े होते हैं तो (ब दिलों से) अलकसाये हुए खड़े हैं और फ़क़त लोगों को दिखाते हैं और दिल से तो ख़ुदा को कुछ यूहीं सा याद करते हैं इस (कुफ़्र व ईमान) के बीच अधड़ में पड़े झूल रहे हैं न उन (मुसलमानों) की तरफ़ न उन (काफ़िरों) की तरफ़
और (ऐ रसूल) जिसे ख़ुदा गुमराही में छोड़ दे उस की (हिदायत की) तुम हरगिज़ कोई सवाल नहीं कर सकते ऐ ईमान वालों मोमिनीन को छोड़ कर काफ़िरों को (अपना) सरपरस्त न बनाओ क्या ये तुम चाहते हो कि ख़ुदा का सरीही इल्ज़ाम अपने ऊपर क़ायम कर लो उस में तो शक ही नहीं के मुनाफ़िक़ीन जहन्नुम के सबसे पीछे तबक़े में होंगे और (ऐ रसूल) तुम वहां किसी को उनका हिमायती भी न पाओगे मगर (हां) जिन लोगों ने (नेफ़ाक़ से) तौबा कर ली और अपनी हालत दुरुस्त कर ली और ख़ुदा से लगे लिपटे रहे और अपने दीन के साथ (बेहिश्त में) होंगे और मोमिनीन को तो अनक़रीब ही बड़ा (अच्छा) बदला अता फ़रमाएगां-अगर तुमने ख़ुदा का शुक्र किया और उस पर ईमान लाए तो ख़ुदा तुम पर अज़ाब करके क्या करेगा बल्कि ख़ुदा तो (खुद शुक्र करने वालों का) क़दरदान और वाकिफ़कार है।

Comments powered by CComment