तरजुमा कुरआने करीम (मौलाना फरमान अली) पारा-4

कुरआन मजीद
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(लोगों) जब तुम अपनी पसंदीदा(1) चीज़ों में से कुछ राहे ख़ुदा में ख़र्च न करोगे हरगिज़ नेकी के दर्ज़े पर फ़ाएज़ नहीं हो सकते और तुम कोई सी चीज़ भी ख़र्च करो ख़ुदा तो उसको ज़रूर जानता है तौरैत के नाज़िल होने के क़ब्ल याकूब ने जो जो चीज़ें अपने ऊपर हराम कर ली थी उन के सिवा बनी इस्राईल के लिए सब खाने हलाल थे (ऐ रसूल(2) उन यहूद से) कहो के अगर तुम अपने (दावे में) सच्चे हो तो तौरैत ले आओ और उसको (हमारे सामने) पढ़ो फिर उसके बाद भी जो भी ख़ुदा पर झूठमूठ तूफ़ान जोड़े तो (समझ लो कि) यही लोग ज़ालिम (हट धर्म) हैं|
(ऐ रसूल) कह दो कि ख़ुदा ने सच फ़रमाया तो अब तुम मिल्लते इब्राहीम (इस्लाम) की पैरवी करो जो बातिल से क़तरा के चलते थे और मुश्रकीन से न थे लोगों (की इबादत) के वास्ते जो घर सब से पहले बनाया गया वह तो यक़ीनन यही (काबा) है जो मक्के में है बड़ी (ख़ैर व) बरकत वाला और सारे जहाँ के लोगों का राहनुमा इसमें (हुरमत की) बहुत सी वाज़ेह व रौशन निशानियाँ हैं( मिनजुम्ला इसके) मक़ामे इब्राहीम है (जहाँ आपके क़दमों का पत्थर पर निशान है) और जो इस घर में दाख़िल हुआ अमन में आ गया और लोगों पर वाजिब है के महज़ ख़ुदा के लिए ख़ाना-ए-क़ाबा का हज करें जिन्हें वहां तक पहुँचने की इसतेताअत(1) (कुदरत) हो और जिसने बावजूद कुदरत हज से इंकार किया तो (याद रखिए कि) ख़ुदा सारे जहान से बापरवाह है|
(ऐ रसूल) तुम कह दो के ऐ अहले किताब तुम ख़ुदा की आयतों से क्यों मुनकिर होते जाते हो हालाँकि जो काम काज तुम करते हो ख़ुदा को उसकी (पूरी) पूरी इत्तेलाअ है| (ऐ रसूल इनसे) कह दो कि ऐ अहले किताब दीदा ओ दानिस्ता ख़ुदा की (सीधी) राह में (नाहक़ की) कजी (ढ़ूंढ़ ढ़ूंढ़ के) ईमान लाने वालों को इससे क्यों रोकते हो और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा उससे बेख़बर नहीं है| ऐ ईमान वालों(2) अगर तुमने अहले किताब के किसी फिरक़े का भी कहना माना तो (याद रखो के) वह तुमको ईमान लाने के बाद (भी) फिर दोबारा काफ़िर बना छोड़ेंगे और (भला) तुम क्यों कर काफ़िर बन जाओगे हालाकें तुम्हारे सामने ख़ुदा की आयतें (बराबर) पढ़ी जाती हैं और उसके रसूल (मुहम्मद) भी तुमसे (मौजूद) है
और जो शख़्स ख़ुदा से वाबस्ता हो वह (तो) ज़रुर सीधी राह पर लगा दिया गया ऐ ईमान वालों ख़ुदा से डरो जितना उससे डरने का हक़ है और तुम (दीन) इस्लाम के सिवा किसी और दीन पर हरगिज़ न मरना और तुम सबके सब (मिल कर) ख़ुदा की रस्सी(1) मज़बूती से थामे रहो और आपस में फूट(2) न डालो और अपने हाल (ज़ार) पर ख़ुदा के अहसान को तो याद करो जब तुम आपस में (एक दूसरे के) दुश्मन(3) थे तो खुदा ने तुम्हारे दिलों में (एक दूसरे की) उल्फ़त पैदा कर दी तो तुम उसके फ़ज्ल से आपस में भाई भाई हो गये और तुम गोया सुलगती हुई आग की भट्टी (दोज़ख़) के लब पर (खड़े थे) (और गिरा ही चाहते थे) कि ख़ुदा ने तुमको उससे बचा लिया तो खुदा अपने अहकाम यूं वाज़ेह करके बयान करता है ताकि तुम राहे रास्त पर आ जाओ
और तुममें से एक गिरोह (ऐसे लोगों का भी) तो होना चाहिए जो (लोगों को) नेकी की तरफ़ बुलाए और अच्छे कामों का हुक्म दे और बुरे कामों से रोको और ऐसे ही लोगों (आख़रत में) अपनी दिली मुरादें पाऐंगे और तुम (कहीं) उन लोगों के ऐसे न हो जाना जो आपस में फूट डाल कर बैठे रहे और रौशन दलीलें आने के बाद भी एक मुंह एक ज़बान न रहे और ऐसे ही लोगों के वास्ते बड़ा (भारी) अज़ाब है
(उस दिन से डरो) जिन दिन कुछ लोगों के चेहरे तो सफ़ेद नूरानी होंगे और कुछ (लोगों) के चेहरे स्याह पस जिन लोगों के मुंह में कालिख़ होगी (उनसे कहा जाएगा) हाए क्यों तुम तो ईमान लाने के बाद काफ़िर हो गए थे अच्छा तो (लो अब) अपने कुफ़्र की सज़ा(1) में अज़ाब के (के मज़े) चखो और जिनके चेहरे पर नूर बरसता होगा वह तो ख़ुदा की रहमत (बेहिश्त) में होंगे (और) उसी में सदा रहें (सगेगें
(ऐ रसूल) ये खुदा की आयतें हैं। जो हम तुमको ठीक (ठीक) पढ़ के सुनाते है। औऱ खुदा सारे जहान के लोगों (से किसी) पर जुल्म करना नहीं चाहता और जो कुछ आसमानों में है। और जो कुछ ज़मीन में है (सब) ख़ुदा ही का है। और (आख़िर) सब कामों की रुजुअ ख़ुदा ही की तरफ़ से है। तुम क्या(2) अच्छे गिरोह हो के अच्छे काम का तो हुक्म करते हो और बुरे कामों से रोकते हो और ख़ुदा पर ईमान रखते हो और अगर अहले किताब भी (इसी तरह) ईमान लाते तो उनके हक़ में बहुत अच्छा होता इनमें से कुछ ही तो ईमानदार हैं और अक्सर बदकार (मुसलमानों) ये लोग मामूली अज़ीयत के सिवा तुम्हे हरगिज़ ज़रर नहीं पहुंचा सकते और अगर तुमसे लड़ेंगे तो इन्हें तुम्हारी तरफ़ पीठ ही करनी पड़ेगी और फ़िर उनकी कहीं से मदद भी नहीं पहुंचेगी और जहां कहीं हत्थे जढ़ें उन पर रुसवाई की मार पड़ी मगर ख़ुदा के अहद (या) और लोगों के अहद के ज़रिये से (उनको कहीं पनाह मिल गयी) औऱ फ़िर हेर फ़ेर के ख़ुदा के ग़ज़ब में पड़ गये और उन पर मोहताजी की मार (अलग) पड़ी ये (क्यों) इस सबब से कि वो ख़ुदा की आयतों से इंकार करते थे और पैग़म्बरों को नाहक़ (नाहिक़) क़त्ल करते थे ये सज़ा इसकी है के उन्होंने नाफ़रमानी की और हद से गुज़र गये थे
और ये लोग भी सब के सब यकसा नहीं हैं। (बल्कि) अहले किताब से कुछ लोग(1) तो ऐसे हैं के (ख़ुदा के दीन पर) इस तरह साबित क़दम हैं के रातों को ख़ुदा की आयतें पढ़ा करते हैं और वह बराबर सजदे किया करते हैं ख़ुदा और रोज़े आख़रत पर ईमान रखते हैं और अच्छे काम का तो हुक्म करते हैं और बुरे कामों से रोकते हैं और नेक कामों में दौड़ पड़ते हैं और यही लोग तो नेक बंदों में से हैं और वो जो कुछ बी नेकी करेंगे उसकी हरगिज़ नाक़दरी न की जाएगी और ख़ुदा परहेज़गारों से खूब वाकिफ हैं
बेशक जिन लोगों ने कुफ़्र इख़्तेयार किया ख़ुदा (के अज़ाब) से बचाने में हरगिज़ न उनके माल ही कुछ काम आएंगे न उनकी औलाद और यही लोग जहन्नुमी हैं और हमेशा उसी में रहेंगें दुनिया की चंद रोज़ा ज़िन्दगी में ये लोग जो कुछ (ख़िलाफ़ शराअ) ख़र्च करते हैं इस की मिसल अंधड़ की मिसल है जिसमें बहुत पाला हो और वो उन लोगों के खेत पर जा पड़े जिन्होंने (कुफ़्र की वजह से) अपने जानवरों पर सितम ढ़ाया हो और फिर पाला उसे मार (के नास कर) दे और ख़ुदा ने उन पर जुल्म कुछ नहीं किया बल्कि उन्होंने आप अपने ऊपर ज़ुल्म किया
ऐ ईमानदारों अपने (मोमिनो के) सिवा (गैरों को) अपना राज़दार न बनाओ (क्योंकि) यह गैर लोग तुम्हारी बरबादी में कुछ उठा नहीं रखेगे (बल्कि) जितना तुम ज़्यादा तकलीफ़ में पड़ोगे उतना ही ये लोग खुश होंगे दुश्मनी तो उनके मुंह से टपकती पड़ती है और जो (बुग्ज़) उनके दिलों में भरा है वह कीं इससे बढ़ के है(1) हम ने तुमसे (अपने) अहकाम साफ़ साफ़ बयान कर दिये अगर तुम समझ रखते हो ऐ लोगों तुम ऐसे (सीधे) हो के तुम तो उनसे उल्फ़त रखते हो और वह तुम्हे (ज़रा भी) नहीं चाहते हैं। और तुम तो पूरी किताब (ख़ुदा) पर ईमान रखते हो और वह (ऐसे नहीं है मगर) जब तुम से मिलते हैं तो कहने लगते हैं कि हम भी ईमान लाए और जब अकेले होते हैं तो तुम पर ग़ुस्से के मारे उंगलियाँ(1) काटते हैं (ऐ रसूल) तुम कहो कि (काटना क्या) तुम अपने गुस्से में (जल) मरो जो बातें तुम्हारे दिलों में है बेशक ख़ुदा ज़रुर जानता है
(ईमानदारों) अगर तुम को भलाई छू भी गयी तो उनको बुरा मालूम होता है और जब तुम पर कोई भी मुसीबत पड़ती है तो वह ख़ुश हो जाते हैं औऱ अगर तुम सब्र करो औऱ परहेज़गारी इख़्तेयार करो तो उन का फ़रेब तुम्हें कुछ भी ज़रर नहीं पहुंचा पाएगा (क्योंकि) ख़ुदा तो उनकी कारस्तानियों पर हावी है
और (ऐ रसूल) एक वक्त वह भी था जब तुम अपने बाल बच्चों से तड़के ही निकल खड़े हुए और मोमिनीन को लड़ाई के मोर्जों पर बिठा रहे थे और ख़ुदा सब कुछ जानता है औऱ सुनता है वे उस वक्त का वाक़या है जब तुम में से दो गिरोहों(3) ने ठान लिया था के पसपाई करें और (फिर संभल गए) क्योंकि ख़ुदा तो उनका सरपरस्त था औऱ मोमीनीन को ख़ुदा ही पर भरोसा रखना चाहिए यक़ीनन ख़ुदा ने जंगे बदर में तुम्हारी मदद की ईसके बावजूद कि तुम (दुश्मन के मुक़ाबला में) बिल्कुल बे हक़ीक़त थे (फिर भी ख़ुदा ने फतह दी) पस तुम ख़ुदा से डरते रहो ताकि (उसके) शुक्रगुज़ार बनों
(ऐ रसूल) उस वक़्त तुम मोमनीन से कह रहे थे कि क्या तुम्हारे लिए काफ़ी नहीं है कि तुम्हारा परवरदिग़ार तीन हज़ार(3) फरिश्ते आसमान से भेज कर तुम्हारी मदद करें हां (ज़रुर काफ़ी है) बल्कि अगर तुम साबित क़दम रहो और (रसूल की मुख़ालेफ़त से) बचो और कुफ़्फ़ार अपने (जोश में) अभी तुम पर चढ़ भी आए तो तुम्हारा परवरदिगार ऐसे पाँच हज़ार फरिश्तों से तुम्हारी मदद करेगा जो निशाने जंग लगाए हुए डटें होंगे और ख़ुदा ने ये (इम्दाद) सिर्फ़ तुम्हारी खुशी के लिए की है और ताकि इससे तुम्हारे दिल को ढ़ारस हो और (ये तो ज़ाहिर है कि) मदद जब हुई है तो ख़ुदा ही की तरफ़ से जो सब पर ग़ालिब (और) हिक़मत वाला है।
(और ये मदद की भी तो) इसलिए के काफिरों के एक गिरोह को कम कर दे या ऐसा चौपट कर दें कि (अपना सा मुंह ले कर) नामुराद अपने घर वापस चले जाएँ (ऐ रसूल) तुम्हारा तो इस में बस नहीं चाहे ख़ुदा उनकी तौबा क़बूल करे या उनकी सज़ा करे क्योंकि वह ज़ालिम तो ज़रुर हैं और जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में हैं सब ख़ुदा ही का है जिस को चाहे बख़्श दे और जिस को चाहे सज़ा दे और ख़ुदा बड़ा बख़्शने वला मेहरबान है।
ऐ ईमानदारों सूद(1) दोगुना या चौगुना खाते न चले जाओ और ख़ुदा से डरो कि तुम छुटकारा पाओ और जहन्नुम की उस आग से डरो जो काफ़िरों के लिए तैयार की गयी है औऱ ख़ुदा औऱ रसूल की फ़रमाबरदारी करो ताकि तुम पर रहम किया जाए और अपने परवरदिगार के (सबब) बख़्शिश औऱ जन्नत की तरफ़ दौड़ पड़ो जिस की वुसअत सारे आसमान व ज़मीन के बराबर है और उन परहेज़गारों के लिए मुहय्या की गयी है जो ख़ुशहाली और घुटन के वक़्त में भी (ख़ुदा की राह पर) ख़र्च करते हैं और गुस्से(1) को रोकते हैं और लोगों (की ख़ता) से दरगुज़र करते हैं और नेकी करने वालों से अल्लाह उल्फ़त रखता है औऱ लोग (इत्तेफ़ाक से) कोई बदकारी कर बैठते हैं या अपने ऊपर ज़ुल्म करते हैं तो ख़ुदा को याद करते हैं और अपने गुनाहों की माअफ़ी माँगते हैं और ख़ुदा के सिवा गुनाहों का बख़्शने वाला और है ही कौन
और जो (क़सूर) वह (नागहानी) कर बैठते तो दीदा-ओ-दानिस्तां उस पर हट नहीं करते(2) ऐसे ही लोगों की जज़ा उनके परवरदिगार की तरफ़ से बख़्शिश है और वह बागात है जिनके नीचे नहरे जारी हैं के वह उनमे हमेशा रहेंगे और (अच्छे) चलन वालों की भी) क्या ख़ैब (ख़री) मज़दूरी(3) तुम से पहले बहुत से वाक़ेयात गुज़र चुके हैं पस ज़रा रुआ ज़मीन पर चल फ़िर के देखो तो के (अपने अपने वक़्त के पैग़म्बरों को) झुठलाने वालों का अंजाम क्या हुआ ये (जो हम ने कहा) आम लोगों के लिये तो सिर्फ़ बयान (वाक़या) है (अगर) और परहेज़गारों के लिऐ हिदायत व नसीहत है
और (मुसलमानों) काहिली न करो और (इस इत्तेफ़ाक़ी शिकस्त औहद से) कुढ़ो नहीं (क्योंकि) अगर तुमसच्चे मोमिन हो तो तुम ही ग़ालिब औऱ वर रहोगे अगर (जंगे ओहद) में तुम को ज़ख़्म लगा है तो उसी तरह (बदर में) तुम्हारी फ़रीक़ (कुफ़्फ़ार) को जख़्म लग चुका है (इस पर उनकी हिम्मत तो न टूटी) ये तो इत्तेफ़ाक़ ज़माना है जो हम लोगों के दरम्यान बारी बारी उलट फ़ेर किया करते हैं और ये (इत्तेफ़ाक़ी शिकस्त इस लिए थी) ताकि खुदा सच्चे ईमानदारों के (ज़ाहरी) मुसलमानों से अलग देख ले और तुम में से बाज़ को दर्जा-ऐ-शहादत पर फ़ाएज़ करे और खुदा (हुक्मे रसूल से) सरताबी करने वालों को दोस्त नहीं रखता
औऱ ये (भी मंजूर था) के सच्चे ईमानदार को (साबित क़दमों की वजह से) निरा ख़रा अलग कर ले और नाफ़रमानों (भागने वालों) को मलयानेऩ कर दे (मुसलमानों) क्या तुम ये समझते हो के सब के सब बेहिश्त में चले ही जाओगे और क्या ख़ुदा ने अभी तक तुम में से उन लोगों को भी नहीं पहचाना-जिन्होंने जेहाद किया और न साबित क़दम रहने वालों ही को पहचाना और तुम तो मौत के आने से पहले (लड़ाई में) मरने की तमन्ना करते थे पस अब तो तुम ने इसको (अपनी) आँखों से देख लिया और तुम (अब भी) देख रहे हो(1) (फ़िर लड़ाई से जी क्यों चुराते हो)
और मुहम्मद तो सिर्फ़ रसूल हैं (ख़ुदा नहीं) इनसे पहले और भी बहुत से पैग़म्बर गुज़र चुके हैं फ़िर क्या अगर (मुहम्मद) अपनी मौत से मर जाए या मार डाले जाए तो तुम उलटे पाओं (अपने कुफ़्र की तरफ़) पलट जाओगे और जो उलटे पाओं फ़िरेगा (भी) तो (समझ लो कि) हरगिज़ ख़ुदा का कुछ भी न बिगड़ेगा
और अन्क़रीब ख़ुदा का शुक्र करने वालों का अच्छा बदला देगा और बग़ैर हुक्मे ख़ुदा के तो कोई शख़्स मर ही नहीं सकता वक़्त मौअय्यन तक हर एक की मौत लिखी हुई है औऱ जो शख़्स (अपने किए का) बदला दुनिया में चाहे तो हम उस को उसमें से दे देते हैं और जो शख़्स आख़िरत का बदला चाहे उसे उसी में से देंगे और (ऩेअमत ईमान के) शुक्र करने वालों को बहुत जल्द हम जज़ा-ए-ख़ैर देंगे
और (मुसलमानों कुछ तुम ही नहीं) ऐसे पैग़म्बर बहुत से गुज़र चुके हैं जिन के साथ बहुत से अल्लाह वालों ने (राहे ख़ुदा में) जेहाद किया और फिर उनको खुदा की राह में जो मुसीबत पड़ी है नतो उन्होंने हिम्मत हारी न बोदापन किया और न (दुश्मन के सामने) गिड़गिड़ाने लगे और साबित क़दम रहने वालों से ख़ुदा उल्फ़त रख़ता है और (लुत्फ़ ये है कि) उनका क़ौल इसके सिवा कुछ न था के दुआएं मांगने लगे के ऐ हमारे पालने वाले हमारे गुनाह और अपने कामों में हमारी ज़्यादती मुआफ़ कर और दुश्मनों के मुक़ाबले में हमको साबित कद़म रख और काफ़िरों के गिरोह पर हम को फ़तह दे तो ख़ुदा ने उन को दुनिया में बदला (दिया) और आख़रत में अच्छा बदला इनायत फ़रमाया और ख़ुदा नेकी करने वालों को दोस्त रख़ता (ही) है।
ऐ ईमानदारों अगर तुम लोगों ने काफ़िरों की पैरवी कर ली तो (याद रखो कि) वह तुम को उलट पावों (कुफ़्र की तरफ़) फ़ेर कर ले जाएंगे फ़िर उलटे तुम ही घाटे में आ जाओगे (तुम किसी की मदद के मोहताज नहीं) बल्कि ख़ुदा तुम्हारा सरपरस्त है और वह सब मददगारों से बेहतर है (तुम घबराओ नहीं) हम अन्क़रीब तुम्हारा रोब(1) काफ़िरों के दिलों में जमा देंगे इसलिये के उन लोगों ने ख़ुदा का शरीक बनाया (भी तो) इस चीज़ (बुत) को जिसे ख़ुदा ने किसी क़िस्म की हुकूमत नहीं दी और (आख़िरकार) उन का ठिकाना दोज़ख़ है और ज़ालिमों का (भी क्या) बुरा ठिकाना है।
और बेशक ख़ुदा ने (जंगे ओहद में भी) अपना (फ़तह का) वादा सच्चा(1) कर दिखाया था जब तुम उसके हुक्म से (पहले ही हमले में) उन (कुफ़्फ़ार) को खूब क़त्ल कर रहे थे यहाँ तक कि तुम्हारी पसंद की चीज़ (फ़तह) तुम्हे दिखा दी इसके बाद भी तुमने (माले ग़नीमत देख कर) बुज़दिलपन किया और हुक्म रसूल (मोरचे पर जमे रहने) में बाहम झगड़ा किया और रसूल की नाफ़रमानी की तुम मे से कुछ तो तालिबे दुनिया हैं (के माले ग़नीमत की तरफ झुक पड़े) और कुछ तालिबे आख़ेरत(1) (के रसूल पर अपनी जान फ़िदा कर दी) फ़िर (बुजदिलपन ने) तुम्हें उन (कुफ़्फ़ार) की तरफ़ से फ़ेर दिया (और तुम भाग खड़े हुए) इससे ख़ुदा को तुम्हारा (ईमान इख़लास) आज़माना मंजूर था और (इस पर भी) ख़ुदा ने तुम से दरगुज़र की और खुदा मोमिनीन पर बड़ा फज़्ल व करम करने वाला है।
(मुसलमानों तुम उस वक़्त को याद करके शरमाओ) जब तुम (बदहवास) भागे पहाड़ पर चले जाते थे और बावजूद ये के रसूल तुम्हारे पीछे (खड़े) तुम को बुला रहे थे मगर तुम (जान के ख़ौफ़ से) किसी को मुड़ के भी न देखते थे पस (चूंके रसूल को तुम ने आजूरदाह किया) ख़ुदा ने भी तुमको उस (रंज) की सज़ा में (शिकस्त का) रंज दिया ताकि जब कभी तुम्हारी कोई चीज़ हाथ से जाती रहे या कोई मुसीबत पड़े तो तुम रंज न करो(2)
(और सब्र करना सीखो) और जो कुछ तुम करते हो खुदा इस से ख़बरदार है फ़िर ख़ुदा ने इस रंज के बाद तुम पर इतमीनान की हालत तारी की के कतु में से एक गिरोह को (जो सच्चे ईमानदार थे) खूब गहरी नींद आ गई और एक गिरोह जिन को उस वक़्त भी (भागने की शर्म से) जान के लाले पड़े थे ख़ुदा के साथ (ख़्वाह म ख़्वाह) ज़माना जाहिलियत की ऐसी बदगुमानियाँ करने लगें (और) कहने लगे भला क्या ये अम्र (फ़तह) कुछ भी हमारे इख़्तेयार में है
(ऐ रसूल) कह दो के हर अम्र का इख्तेयार ख़ुदा ही को है (ज़बान से तो कहते ही है नहीं) ये अपने दिलों में ऐसी बातें छिपाए हुए हैं जो तुम से ज़ाहिर नहीं करते (अब सुनों) कहते हैं के इस अम्र (फ़तह) में अगर हमारा कुछ भी इख़्तेयार हो तो हम यहां मारे न जाते (ऐ रसूल इन से) कह दो के तुम अपने घरों में भी रहते हो तो जिन की जिन की तक़दीर में लड़के मर जाना लिखा था वह अपने (घरों से) निकल निकल के अपने मरने की जगह ज़रुर आ जाते और (ये इस वास्ते किया गया) ताकि जो कुछ तुम्हारे दिल में है ख़ुदा उसका इम्तेहान कर ले (और लोग देख ले) और ताकि जो कुछ तुम्हारे दिलों में है साफ कर दें और ख़ुदा तो दिलों का राज़ खूब जानता हैं
बेशक जिस दिन (जंग ओहद में) दो जमाअते(1) आपस में गुथ गयी उस दिन जो लोग तुम (मुसलमानों) में से भाग खड़े हुए (उस की वजह ये थी) उनके बाज़ गुनाहों (मुख़ालफ़ते रसूल) की वजह से शैतान ने बहका के उनके पांव उख़ाड़ दिए और (उसी वक्त) ख़ुदा ने ज़रुर उन से दरगुज़ार की बेशक ख़ुदा बड़ा बख़्शने वाला बुर्दबार है
ऐ ईमानदारों इन लोगों के ऐसे न बनो जो काफ़िर हो गए और जो भाई बनदू इन के परदेस में निकले हैं या जिहाद करने गए हैं (और वहां मर गए) तो उनके बारे में कहने लगे कि अगर वह हमारे पास रहते तो न मरते और न मारे जाते (और ये इस वजह से कहते हैं) ताकि ख़ुदा (इस ख़्याल का) उनके दिलों में (बाएस) हसरत बनादे(1) और (ये तो) ख़ुदा ही जलाता औऱ मारता है और जो कुछ भी तुम करते हो ख़ुदा उसे देख रहा है और अगर तुम ख़ुदा की राह में मारे जाओ या (अपनी मौत से) मर जाओ तो बेशक ख़ुदा की बख़्शिश और रहमत इस (माल व दौलत) से जिस को तुम जमा करते हो ज़रुर बेहतर है और अगर तुम (अपनी मौत से) मर जाओ या मारे जाओ (आख़िर कार) ख़ुदा ही की तरफ (क़बरों से) उठाए जाओगे
(तो ऐ रसूल ये भी) ख़ुदा की एक मेहरबानी है कि तुम (सा) नर्म दिल (सरदार) इन को मिला और तुम अगर बद मिज़ाज और सख़्त दिल होते तब तो ये लोग (ख़ुदा जाने कब के) तुम्हारे गिर्द से तितर बितर हो गए होते पस (अब भी) तुम इन से दरगुज़र करो और इन के लिए मग़फिरत की दुआ मांगो और (साबिक़ दस्तूर ज़ाहिरा) उनके काम काज में मशवरह कर लिया करो (मगर) इस पर भी जब किसी काम को ठान लो तो ख़ुदा ही पर भरोसा रखो (क्योंकि) जो लोग ख़ुदा पर भरोसा रखते हैं ख़ुदा उन को ज़रुर दोस्त रखता है
(मुसलमानों याद रखो कि) अगर ख़ुदा ने तुम्हारी मदद की तो फिर कोई तुम पर ग़ालिब नहीं आ सकता और अगर तुम को छोड़ दे तो फिर कौन ऐसा है जो इस के बाद तुम्हारी मदद को खड़ा हो और मोमीनीन को चाहिए के ख़ुदा ही पर भरोसा(2) रखें और (तुम्हारा गुमान बिल्कुल ग़लत है) किसी नबी की (हरगिज़) ये शान नहीं कि ख़यानत करे और जो ख़यानत करेगा तो जो चीज़ ख़्यानत की है क़यामत के दिन वही चीज़ (बेऐनेह ख़ुदा के सामने) लाना होगा और फिर हर शख़्स अपने किए का पूरा बदला भर पाएगा और उनकी किसी तरह हरक़तल्फ़ी नहीं की जाएगी(1)
भला जो शख़्स ख़ुदा की खुशनूदी का पाबन्द हो क्या वह इस शख़्स के बराबर हो सकता है जो ख़ुदा के गज़ब में गिरफ़्तार हो और जिस का ठिकाना जहन्नुम है और वह क्या बुरा ठिकाना है वह लोग ख़ुदा के हां मुख़्तलिफ़ दर्जा के हैं और जो कुछ वह करते हैं ख़ुदा उसे देख रहा है ख़ुदा ने तो ईमानदारों पर बड़ा अहसान किया कि उन के वास्ते उन्हीं की क़ौम मे एक रसूल भेजा जो उन्हें ख़ुदा की आयतें पढ़-पढ़ के सुनाता है और उनकी (तबीयत) को पाकीज़ा करता है और उन्हें किताबे (ख़ुदा) और अक़्ल की बात सिखाता है अगरचे वह पहले खुली हुई गुमराही में (पड़े) थे
मुसलमानों क्या जब तुम पर (जंगे ओहद में) वह मुसीबत पड़ी जिस की दुगनी मुसीबत(2) तुम (कुफ़्फ़ार पर) डाल चुके थे तो (घबरा के) कहने लगे यह (आफ़त) कहाँ से आ गई (ऐ रसूल) तुम कह दो के ये तो खुद तुम्हारी ही तरफ़(3) से है (न रसूल की मुख़ालफ़त करते न सज़ा होती) बेशख ख़ुदा हर चीज़ पर क़ादिर है और जिस दिन दो जमाअत (जंगे औहद में( आपस में गुथ गई उस दिन तुम पर जो मुसीबत पड़ी वह (तुम्हारी शरारत की वजह से) ख़ुदा के इज्न से आई और ताकि ख़ुदा सच्चे ईमान वालों को देख ले (के कौन हैं) और मुनाफ़िक़ों को देख ले (के कौन है) और मुनाफ़िकों से कहा गया के आओ ख़ुदा की राह में जेहाद करो या (ये न सही अपने दुश्मन को) हटा दो तो कहने लगे (हाए क्या कहें) अगर हम लड़ना जानते, तो ज़रुर तुम्हारा साथ देते ये लोग इस दिन बनिस्बत ईमान के कुफ़्र से ज़्यादा क़रीब थे अपने मुंह से वह बाते कह देते हैं जो उन के दिल में (ख़ाक) नहीं(1) होते और जिसे वह छिपाते हैं ख़ुदा उसे खूब जानता है
(ये वही लोग हैं) जो (आप चैन से घर में) बैठे रहे और अपने (शहीद) भाइयों के बारे में कहने लगे काश हमारी पैरवी करते तो न मारे जाते (ऐ रसूल इनसे) कहो (अच्छा) अगर तुम सच्चे हो तो ज़रा अपनी जान से मौत को तो टाल दो और जो लोग ख़ुदा की राह में शहीद किए गये उन्हें हरगिज़ न समझना बल्कि वह लोग जीते(1) जागते मौजूद हैं अपने परवरदिगार के हां से वह (तरह तरह की) रोज़ी और खुदा ने जो जो फ़ज्ल व करम इन पर किया है उस (की ख़ुशी) से फूले नहीं समाते और जो लोग उनसे पीछे रह गए और उनमें आकर शामिल नहीं हुए इनकी निस्बत ये (ख़याल कर के) ख़ुशियां मनाते हैं के (ये भी शहीद हों तो) इन पर न किसी किस्म का खौफ़ होगा और न आजूरदा ख़ातिर होंगे
खुदा की नेमत और इसके फ़ज्ल (व करम) और इस बात की खुशख़बरी पाकर के खुदा मोमीनीन के सवाब को बरबाद नहीं करता नेहाल हो रहे हैं (जंगे ओहद में) जिन लोगों ने नेकी और परहेज़गारी की (सब के लिए नहीं सिर्फ़) इन के लिए बड़ा सवाब है ये वह हैं कि जब उन से लोगों ने (आकर) कहना शुरु किया के (दुश्मन) लोगों ने तुम्हारे (मुक़ाबले के) वास्ते (बड़ा लश्कर) जमा किया है पस उन से डरते रहो (तो बजाए ख़ौफ़ के) उनका ईमान और ज़्यादा हो गया और कहने लगे (होगा भी) खुदा हमारे(1) वास्ते काफ़ी है और वह क्या अच्छा कारसाज़ है
फ़िर (ये तो हिम्मत कर के गए मगर जब लड़ाई न हुई तो) ये लोग ख़ुदा की नेअमत और फ़ज्ल के साथ (अपने घर) वापस आए और उन्हें कोई बुराई छू भी नहीं गई और खुदा की खुशनूदी के पाबंद करे और ख़ुदा बड़ा फ़ज्ल करने वाला है ये (मुख़बिर) बस शैतान था जो सिर्फ़ अपने दोस्तों को (रसूल के साथ देने से) डराता है पस तुम उनसे तो डरो नहीं अगर सच्चे मोमिन हो तो मुझ ही से डरते रहो और जो (ऐ रसूल) लोग कुफ़्र की (ऐआनत) में पेश क़दमी कर जाते हैं इन की वजह से तुम रंज न करो क्यों के वे लोग ख़ुदा को कुछ भी ज़रर नहीं पहुंचा सकते (बल्कि) ख़ुदा तो ये चाहता है के आख़रत में इन का कुछ हिस्सा न क़रार दे और इनके लिए बड़ा (सख़्त) अज़ाब है बेशक जिन लोगों ने ईमान के एवज़ कुफ़्र ख़रीद किया वह हरगिज़ खुदा का कुछ भी नहीं बिगाड़ेंगे (बल्कि आप अपना) और उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है
और जिन लोगों ने कुफ़्र इख्तेयार किया वह हरगिज़ ये न ख़याल करे कि हमने जो उनको मोहलत व फ़ारिग-उल बाली दे रखी है वह उनके हक़ में बेहतर है (हालाँकि) हमने मोहलत व फ़ारिग़ उल बाली सिर्फ़ इस वजह से दी है ताकि वह और खूब गुनाह कर लें और (आख़िर तो) इनके लिए रुसवा करने वाल अज़ाब है (मुनाफ़िको) ख़ुदा ऐसा नहीं है के बुरे भले की तमीज़ किए बग़ैर जिस हालत पर तुम हो उसी हालत पर मोमिनों को भी छोड़ दे और खुदा ऐसा भी नहीं है कि तुम्हे ग़ैब की बातें(1) बता दे मगर (हाँ) खुदा अपने रसूलों में से जिसे चाहता है (ग़ैब बताने के वास्ते) चुन लेता है।
पस ख़ुदा औऱ उस के रसूलों पर ईमान लाओ और अगर तुम ईमान लाओगे और परहेज़गारी करोगे तो तुम्हारे वास्ते बड़ी जज़ाए ख़ैर हैं और जिन लोगों को ख़ुदा ने अपने फज़्ल (व करम) से कुछ दिया है (और फ़िर) बुख़ल करते हैं वह हरगिज़ इस ख़याल में न रहें कि ये उन के लिये (कुछ) बेहतर होगा। बल्कि ये उनके हक़ में बदतर है क्योंकि जिस (माल) का बुख़ल करते हैं अनक़रीब ही क़यामत के दिन उसका तौक़(1) बना कर उनके गले में पहनाया जाएगा-और सारे आसमान व ज़मीन की मीरास ख़ुदा ही की है और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा उससे ख़बरदार है।
जो लोग (यहूद) ये कहते हैं के ख़ुदा तो कंगाल है और हम बड़े मालदार हैं ख़ुदा ने उनकी ये बकवास सुनी उन लोगों ने जो कुछ किया उस को और उनका पैग़म्बरों को नाहक़ क़त्ल करना हम अभी से लिख लेते हैं और (आज तो जो जी में आए कहें मगर क़यामत के दिन हम कहेंगे के अच्छा तो लो (अपनी शरारत के एवज़ मेँ) जलाने वाले अज़ाब का मज़ा चखो ये उन्हीं कामों का बदला है जिनको तुम्हारे हाथों ने (ज़ादे आख़रत बना के) पहले से भेजा है वरना ख़ुदा तो कभी (अपने) बन्दों पर जुल्म करने वाला नहीं (ये वही लोग हैं) जो कहते हैं के ख़ुदा ने तो न हमसे अहद किया है कि जब तक कोई रसूल हमें ये (मोजिज़ा) न दिखा दे के वह कुरबानी करे और उसको (आसमानी) आग आकर चट(2) कर जाए उस वक़्त तक हम ईमान न लाएंगे
(ऐ रसूल) तुम कह दोके (भला ये तो बताओ) बेहतर पैग़म्बर मुझ से क़ब्ल तुम्हारे पास वाज़ेह और रौशन मोजिज़ात और जिस चीज़ को तुम ने (इस वक्त) फरमाइश की है (वह भी) ले कर आए, फिर तुम अगर (अपने दावे में) सच्चे हो तो तुम ने उन्हें क्यों क़त्ल किया
(ऐ रसूल) अगर वह इस पर भी तुम्हे झूठलाए तो (तुम आज़ूरदाह न हो क्यों के) तुम से पहले भी बहुत से पैग़म्बर रौशन मोजिज़े और सहीफ़े औऱ नूरानी किताब लेकर आ चुके हैं (मगर) फिर भी लोगों ने आख़िर झुठला ही छोड़ा
हर जान एक न एक (दिन) मौत का मज़ा चखेगी औऱ तुम लोग क़यामत(1) के दिन (अपने किए का) पूरा पूरा बदला भर पाओगे पस जो शख़्स जहन्नुम से हटा दिया गया और बेहिश्त में पहुंचाया गया पस वही कामयाब हुआ और दुनियां की (चन्द रोज़ा) ज़िन्दगी धोके की टट्टी सिवा कुछ नहीं
(मुसलमानों) तुम्हारे मालों और जानों का तुम से ज़रुर इम्तेहान लिया जाएगा और जिन लोगों को तुम से पहले किताबे ख़ुदा दी जा चुकी है (यहूद व नसारा) इन से और मुश्रकीन से बहुत सी दुःख दर्द की बातें तुम्हें ज़रुर सुननी पड़ेगी और अगर तुम (इन मुसीबतों को) झेल जाओगे और परहेज़गारी करते रहोगे तो बेशक ये बड़ी हिम्मत का काम है
और (ऐ रसूल) उनको वह वक़्त तो याद दिलाओ (जब ख़ुदा ने इन अहले किताब से) अहदो पैमान(2) लिया था के तुम किताबे ख़ुदा को साफ़ साफ़ बयान कर देना और (ख़बरदार) इस की कोई बात छिपाना नहीं मगर इन लोगों ने (ज़रा भी ख़याल न किया) और इस को पसे पुश्त फेक दिया और इस के बदले में (बस) थोड़ी (सी) क़ीमत हासिल कर ली पस ये क्या ही बुरा (सौदा) है जो ये लोग ख़रीद रहे हैं
(ऐ रसूल) तुम उन्हें ख़याल में भी न लाना जो अपनी कारस्तानी पर इतराए जाते हैं और किया कराया खाक(1) नहीं (मगर) तारीफ के ख़वास्तगार हैं पस तुम हरगिज़ ये न ख़याल करना के इन को अज़ाब से छुटकारा है बल्कि इन के लिए दर्दनाक अज़ाब है और आसमान व ज़मीन सब ख़ुदा ही का मुल्क है और ख़ुदा ही हर चीज़ पर क़ादिर है इस में तो शक ही नहीं है के आसमान व ज़मीन की पैदाइश और रात व दिन के फेर बदल में अक़लमन्दों के लिए (कुदरते ख़ुदा की) बहुत सी निशानियाँ करते हैं
और आसमानों और ज़मीनों की बनावट में ग़ौर(2) व फ़िक्र करते हैं और (बेसाख़्ता) कह उठते हैं के ख़ुदा वन्दे तूने इस को बेकार पैदा नहीं किया तो (फेअले अबस से) पाक व पाकीज़ा है, बस हम को दोज़ख के अज़ाब से बचा ऐ हमारे पालने वाले जिसको तूने दोज़ख में डाला तो यक़ीनन उसे रुस्वा कर डाला और ज़ुल्म करने वालों का कोई मददगार नहीं
ऐ हमारे पालने वाले (जब) हम ने एक आवाज़ लगाने वाले (पैग़म्बर) को सुना के वह ईमान के वास्ते यूं पुकारता था अपने परवरदिगार पर ईमान लाओ तो हम ईमान लाए पस ऐ हमारे पालने वाले हमें हमारे गुनाह बख़्श दे और हमारी बुराईयों को हम से दर कर दे और हमें नेकियों के साथ (दुनिया से) उठा ले और ऐ पालने वाले। अपने रसूलों की मग़फ़िरत जो कुछ हम से वादा किया है हमें दे और हमें क़यामत के दिन रुसवा न कर तू तो वादा ख़िलाफ़ी करता ही नहीं तो उनके परवरदिगार ने उनकी दुआ क़बूल कर ली और (फ़रमाया) कि हम तुम में से किसी काम करने वाले के काम को अकारत नहीं करते मर्द हो या औरत(1)
(इसमें कुछ किसी की ख़सूसीयत नहीं क्योंकि) तुम एक दूसरे (की जिन्स) से हो जो लोग (हमारे लिए) वतन आवारह हुए और शहर बदर के लिए गए और उन्होंने हमारी राह में अज़ीयतें उठाई और (कुफ़्फ़ार से) जंग की और शहीद हुए मैं उनकी बुराईयों से ज़रुर दरगुज़र करुंगा औऱ उन्हें बेहिश्त के उन बागों में ले जाऊँगा जिन के नीचे नहरें जारी हैं।
ख़ुदा के यहाँ ये उनके किए का बदला है और ख़ुदा (ऐसा ही है के इस) के यहां तो अच्छा ही बदला है
(ऐ रसूल) काफ़िरों का शहरों शहरों चैन करते फिरना तुम्हें धोके में न डाले ये चन्द रोज़ा फ़ाएदा हैं फिर तो (आख़िर कार) उन का ठिकाना जहन्नुम ही है और क्या ही बुरा ठिकाना है
मगर जिन लोगों ने अपने परवरदिगार की परहेज़गारी इख्तेयार की उनके लिए बेहिश्त के वह बाग़ात हैं जिनके नीचे नहरें जारी हैं और वह हमेशा उसी में रहेंगे ये ख़ुदा की तरफ़ से उनकी दावत है औऱ जो (साज़ व सामान) ख़ुदा के यहाँ है वह नेकीकारों के वास्ते (दुनियां से) कहीं बेहतर है
और अहले(1) किताब में से कुछ लोग तो ऐसे ज़रुर हैं जो ख़ुदा पर और जो (किताब) तुम पर नाज़िल हुई और जो (किताब) इन पर नाज़िल हुई सब पर ईमान रखते हैं और ख़ुदा के आगे सर झुकाए हुए हैं और ख़ुदा की आयतों के बदले थोड़ी सी क़ीमत (दीनवीं फ़ायदे) नहीं लेते ऐसे ही लोगों के वास्ते उनके परवरदिगार के यहाँ अच्छा बदला है बेशक ख़ुदा बहुत जल्द हिसाब करने वाला है
ऐ ईमानदारों (दीन की तकलीफ़ों को) झेल जाओं और दूसरों को बरदाशत की तालीम दो और (जेहाद के लिए) कमरें कस लो और ख़ुदा ही से डरो ताकि तुम अपनी दिली मुरादें पाओ।

 

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

सूरे: निसा


ऐ लोगों अपने पालने वाले से डरो जिसने तुम सब को (सिर्फ़) एक शख़्स से पैदा किया और (वह इस तरह) के (पहले) उन (की बाक़ी मिट्टी) से इनकी बीवी (हव्वा) को पैदा किया और (सिर्फ) उन्हीं दो (मिया बीवी) से बहुत से मर्द और औरतें दुनिया में फैला दिये(2) और उस ख़ुदा से डरो जिसके वसीले से आपस में एक दूसरे से सवाल करते हो और क़तए हरम से भी (डरो) बेशक ख़ुदा तुम्हारी देखभाल में है और यतीमों को उनके माल दे दो और बुरी चीज़ (माले हराम) को भली चीज़ (माले हलाल) के बदले में न लो और उनके माल अपने मालों में मिलाकर न चख जाओ क्योंकि ये बहुत ही बड़ा गुनाह है और अगर तुम को अन्देशा हो (निकाह करके) तुम यतीम लड़कियो (के रख-रखाव) में इंसाफ न कर सकोगे तो और औरतों से अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ दो दो और तीन तीन चार(1) चार निकाह करो फिर अगर तुम्हे इसका अंदेशा हो के (मुतादिद बीवियों में भी) इंसाफ न कर सकोगे तो हाँ एक पर इक्तेफ़ा करो या जो (लौंडी) तुम्हारी ज़रख़रीद हो (उसी पर क़नाअत करो) ये तद्बीर बेइंसाफी न करने की बहुत क़रीन क़यास है।
और औरतों को उनकी महर खुशी खुशे दे डालो फिर अगर वह तुम्हें खुशी खुशी कुछ छोड़ दे तो शौक़ से नोश जान खाओ पियो
और अपने वह माल जिन पर ख़ुदा ने तुम्हारी गुज़रान क़रार दी है बेवकूफ़ों (ना समझ यतीम) को न दे बैठो हां इसमें से उन्हें खिलाओ और उनको पहनाओ तो (मुज़ाएक़ा नहीं) और उन से (शौक़ से) अच्छी तरह बात करो और यतीमों को कारोबार में लगाए रखों यहां तक के ब्याहने के क़ाबिल हो फिर (उस वक्त) तुम उन्हें (एक महीने का खर्च उनके हाथ से करा के) अगर होशियार पाओ तो उनका माल उनके हवाले कर दो
और (ख़बरदार) ऐसा न करना के इस ख़ौफ़ से कि कहीं बड़े हो जाएंगे फजूल खर्ची करके झटपट उनका माल चट कर जाओ और जो (वली या सरपरस्त) दौलत मंद हो तो वह (माले यतीम अपने सर्फ में लाने से) बचता रहे और (हां) जो मोहताज हो वह अलबत्ता (वाजबी वाजबी) दस्तूर के मुताबिक़ खा सकता है पस जब उनके माल उनके हवाले करने लगो तो लोगों को उन का गवाह बना लो औऱ (यूं तो) हिसाब लेने को ख़ुदा काफ़ी है।
मां बाप औऱ क़राबत दारों के तरके में कुछ हिस्सा तो ख़ास मर्दों का है और (इसी तरह) मां बाप और क़राबत दारों के तरके में कुछ हिस्सा ख़ास(1) औरतों का भी है ख़्वाह तरका कम हो या ज़्यादा (हर शख़्स का) हिस्सा (हमारी तरफ़ से) मुक़र्रर किया हुआ है और जब (तरके की) तक़सीम के वक्त (वह) क़राबत दार (जिन का कोई हिस्सा नहीं) औऱ यतीम बच्चे और मोहताज लोग आ जाए तो उन्हें भी कुछ इस में से दे दो और उनसे अच्छी तरह (उन्वाने शाइस्ता से) बात करो और उन लोगों को न डराना
(और ख़याल करना) चाहिए कि अगर वह लोग ख़ुद अपने (नन्हे नन्हे) नातवा बच्चे छोड़ जाते तो उन पर (किस क़दर) तरस आता पस इनको (ग़रीब बच्चों पर सख़्ती करने में) ख़ुदा से डरना चाहिए और उन से सीधी तरह बात करनी चाहिए
जो लोग यतीमों के माल नाहक़ चबा कर जाया करते हैं वह अपने पेट में बस अंगारे(2) भरते हैं और अनक़रीब जहन्नुम वासिल होंगे
(मुसलमानो) ख़ुदा तुम्हारी औलाद के हक़ में तुम से वसीयत करता है के लड़के का हिस्सा दो लड़कियों(3) के बराबर है औऱ अगर (मय्यत की औलाद में) सिर्फ़ लडकियाँ ही हों (दो) या (दो से) ज़्यादा तो इनका (मुक़र्रर हिस्सा) कुल तरके की दो तेहाई है और अगर एक लड़की हो तो इस का आधा है और मय्यत के बाप मां हर एक का अगर मय्यत की कोई औलाद मौजूद न हो तो माले मुतरुका में से मुअयन (ख़ास चीज़ में) छठा हिस्सा है और अगर मय्यत के कोई औलाद न हो और इसके सिर्फ़ माँ बाप ही वारिस हो तो मां का एक मुअय्यन (ख़ास चीज़ों में) तिहाई है और बाक़ी बाप का लेकिन अगर मय्यत के (हक़ीक़ी या सौतेले) भाई भी मौजूद हों तो (अगरचे उन्हें कुछ न मिले मगर) इस वक़्त माँ का हिस्सा छठा ही होगा (और वह भी) मय्यत ने जिस के बारे में वसीयत की है उस की तामील और (अदाए) क़र्ज के बाद तुम्हारे बाप हो या बेटे तुम ये नहीं, जानते हो के उन में से कौन तुम्हारी नफ़ा रसानी में ज़्यादा क़रीब है (फ़िर तुम क्या दख़्ल दे सकते हो) हिस्सा तो सिर्फ़ ख़ुदा की तरफ़ से (मुअय्यन) होता है क्योंकि ख़ुदा तो ज़रुर हर चीज़ को जानता और तदबीर वाला है।
और जो कुछ तुम्हारी बीवियां छोड़ कर (मर) जाए पस अगर उनके कोई औलाद न हो तो तुम्हारा आधा आधा है और अगर उनके कोई औलाद हो तो जो कुछ वह तर्के छोड़े उसमें से बाज़ चीज़ों में जो चौथाई तुम्हारा है (और वह भी) औरत ने जिसकी वसीयत की हो और (अदाए) क़र्ज़ के बाद और अगर तुम्हारे कोई औलाद न हो तो तुम्हारे तरके में से तुम्हारी बीवियों का(1) बाज़ चीज़ों में चौथाई है और अगर तुम्हारी कोई औलाद हो तो तुम्हारा तरके में से उनका ख़ास चीज़ों में आठवां हिस्सा है।
(और वह भी) तुम ने जिसके बारे में वसीयत की है उसकी तामील और (अदाए) क़र्ज़ के बाद और अगर कोई मर्द या औरत अपनी मादर जलू (अदाए) क़र्ज़ के बाद और अगर कोई मर्द या औरत अपनी मादर जलू (अख़यानी) भाई या बहन को वारिस छोड़े तो उन में से हर एक का ख़ास चीज़ों में छठा हिस्सा है और अगर इससे ज़्यादा हो तो सब के सब एक ख़ास तिहाई में शरीक रहेंगे औऱ (यह सब) मय्यत ने जिसके बारे में वसीयत की है उसकी तामील और (अदाए) क़र्ज के बाद मगर
हां वह वसीयत(1) (वारिसों के ख़्वाम ख़्वाह) नुक़सान पहुंचाने, वाली न हो (तब) ये वसीयत खुदा की तरफ़ से हे और खुदा तो हर चीज़ का जानने वाला और बुर्दबार है ये खुदा की (मुक़र्रर की हुई) हदें हैं।
और जो ख़ुदा और रसूल की एताअत करे उसको ख़ुदा आख़रत में ऐसे (हरे भरे) बागों में पहुंचा देगा जिसके नीचे नहरे जारी होगी और वह उनमें हमेशा (चैन से) रहेंगे और यही तो बड़ी कामयाबी है और जिस शख़्स ने ख़ुदा और रसूल की नाफ़रमानी की और उसकी हदों से गुज़र गया तो बस ख़ुदा उसको जहन्नुम में दाख़िल करेगा और वह उसमें हमेशा (अपना किया भुगता) रहेगा और इसके लिए बड़ी रुसवाई का अज़ाब है।
और तुम्हारी औरतों में से जो औरतें बदकारी करें तो उनकी बदकारी पर अपने लोगों में से चार की गवाही लो फिर अगर चारों गवाह उसकी तसदीक़ करें तो (उनकी सज़ा ये है के) इनको घरों में बंद(1) रखो यहां तक के मौत आ जाए या खुदा उनकी कोई (दूसरी) राह निकाले और तुम लोगों में जिनसे बदकारी सरज़द हुई हो उनको मारो पीटो फ़िर अगर वह दोनों (अपनी हरकत से) तौबा करें और इस्लाह कर लें तो उनको छोड़ दो बेशक ख़ुदा बड़ा तौबा कुबूल करने वाला है मेहरबान है मगर ख़ुदा की बारगाह में तौबा तो सिर्फ़ उन लोगों की (ठीक) है जो नादिनिस्तां बुरी हरकत कर बैठें (और) फ़िर जल्दी से तौबा कर लें तो अलबत्ता ख़ुदा भी ऐसे लोगों की तौबा कुबूल कर लेता है(2) और ख़ुदा तो बड़ा जानने वाला हकीम है।
और तौबा उन के लिए (मुफ़ीद) नहीं जो जो (उम्र भर तो) बुरे काम करते रहे यहां तक के जब उन में से किसी के सर पर मौत आ खड़ी हुई तो कहने लगे अम मैंने तौबा की और (इसी तरह) इन लोगों के लिए (भी तौबा मुफ़ीद) नहीं है जो कुफ़्र की हालत में मर गए ऐसे ही लोगों के वास्ते हमने दर्दनाक अज़ाब मोहय्या कर रखा है।
ऐ ईमानदारों(1) तुमको ये जाएज़ नहीं है कि (अपने मूरिस की) औरतों (से निकाह कर) के (ख़्वाह म ख़्वाह) ज़बरदस्ती वारिस बन जाओ और जो कुछ तुम ने उन्हें (शौहर के तरक से) दिया है उसमें से कुछ वापस ले लेने की नियत से उन्हें दूसरे के साथ (निकाह करने से) न रोको हां जब वह खुल्लम ख़ुल्ला कोई बदकारी करें (तो अलबत्ता रोकने में मुज़ाएका नहीं) और बीवियों के साथ अच्छा सलूक करते रहो और अगर तुम किसी वजह से उन्हें ना पसन्द करो (तो भी सब्र करो क्योंकि) अजब नही के किसी चीज़ को तुम ना पसन्द करते हो और ख़ुदा तुम्हारे लिए उसमें बहुत बेहतरी कर दे।
और अगर तुम एक बीवी (को तलाक़ दे कर उस) की जगह दूसरी बीवी (निकाह करके) तब्दील करना चाहो तो अगर चे तुम उनमें से एक को (जिसे तलाक़ देना चाहते हो) बहुत सा माल दे चुके हो ताहम उसमें से कुछ वापस न लो क्या (तुम्हारी यहीं ग़ैरत है के ख़्वाह म ख़्वाह) कोई बोहतान बांध कर या सरीह जुर्म लगा कर (वापस ले लो) औऱ तुम क्यों कर उसको वापस लोगे हालांके तुम में से एक दूसरे के साथ ख़िल्वत कर चुका है।
और बीवियां तुम से (निकाह के वक्त नफ़क़ा वगैरह का) पक्का इरक़रार ले चुकी हैं और जिन औरतों से तुम्हारे बाप दादाओं ने निकाह (जमाअ अगर चे जिना) किया हो तो तुम उनसे निकाह न करो मगर जो हो चुका (यह तो हो चुका ताहम) वह बदकारी औऱ खुदा की ना खुशी की बात ज़रुर (1) थी और बहुत बुरा तरीक़ा था
(मुसलमानों हस्बज़ैल (निम्नलिखित)) औरतें तुम पर हराम की गयीं तुम्हारी मांए दादी (दादी नानी वगैरह सब) और तुम्हारी बेटियाँ (1) (पोतियां नवासियां वग़ैरह) और तुम्हारी बहने (3) और तुम्हारी फुफियाँ (4) और तुम्हारी ख़लाएं (5) और भतीजियां (6) और भांजियां (7) और तुम्हारी वह मांए (8) जिन्होंने तुमको दूध पिलाया है और तुम्हारी रज़ाई (दूध शरीक) बहने और तुम्हारी बीवियों की माँए (9) (सास) औऱ वह (मादर जलू) लड़कियाँ (10) जो (गोया) तुम्हारी गोद में परवरिश पा चुकी हैं और उन औरतों (के पेट) से (पैदा हुई) हैं जिन से तुम हमबिस्तरी कर चुके हों हां अगर तुम ने उन बीवियों से (सिर्फ निकाह किया हो) हमबिस्तरी न की हो तो (अलबत्ता उन मादर जलू) लड़कियों (से निकाह करने में) तुम पर कुछ गुनाह नहीं है और तुम्हारी सुल्बी लड़कों (11) (पोतों नवासों वगैरह) की (4) बिवियां (बहुएं) औऱ दो बहनों से एक (12) साथ निकाह करना मगर जो हो चुका (वह माफ़ है) बेशक ख़ुदा बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान (5) है।

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