· बुख़ारः- सेब खाओ कि बदन की हरारत को आराम पहुँचाता है। अन्दरूनी गर्मी को ठन्डा करता है और बुखार को खत्म करता है।
· अगर लोग सेब के फ़ायदे को जानते तो अपने मरीज़ों का इलाज हमेशा सेब से करते। (इमाम सादिक़ अ0)
· मोहम्मद बिन मुस्लिम ने नक़्ल किया है कि जब भी इमाम मोहम्मद बाक़िर अ0 को बुख़ार होता था तो इमाम सादिक़ अ0 दो कपड़ों को भिगोते थे एक को बदन पर रखते थे और ज बवह खुश्क हो जाता था तो बदल देते थे। (इमाम सादिक़ अ0)
· बुख़ार ख़त्म करने के लिये ठन्डा पानी और दुआ के मानिन्द कोई चीज़ नहीं है। (इमाम सादिक़ अ0)
· बारिश के पानी को पियो कि बदन को पाकीज़ा और दर्दों का इलाज करता है, जैसा कि परवरदिगार सूर-ए-इन्फाल आयत 11 में फ़रमाता है ‘‘और तुम पर आसमान से पानी बरसा रहा था ताकि उससे तुम्हें पाक व पाकीज़ा कर दे और तुम से शैतान की गन्दगी दफ़ा करे और तुम्हारे दिल मज़बूत कर दे’’। (इमाम मूसा काज़िम अ0)
· प्याज़ खाओ कि बुख़ार को ख़त्म करती है। (इमाम सादिक़ अ0)
· एक सहाबी को अर्से से बुख़ार था इमाम सादिक़ अ0 ने फ़रमाया मुँह को कुर्ते में दाखि़ल करके अज़ान और इक़ामत कहो फ़िर सात मरतबा सूर-ए-हम्द पढ़ो, सहाबी कहता है कि मैंने ऐसा किया तो शिफा हासिल हुई।
· गर्मियों में साहिबे बुख़ार पर ठन्डा पानी डालो, बुख़ार को सुकून अता करता है। (इमाम सादिक़ अ0)
· हमाद बिन उसमान ने इमाम सादिक़ अ0 की खि़दमत में बुख़ार की शिकायत की, आपने फ़रमाया ‘‘एक बरतन में आयतलकुर्सी लिखकर उसमें कुछ पानी डालकर पियो।’’
· शहद को कलौंजी के साथ मिला कर तीन दफ़ा उंगली से चाट लो बुखार में आराम मिलेगा। (इमाम मूसा काज़िम अ0)
· बुखार के मर्ज़ में गुले बनफ़शा को ठण्डे पानी में मिलाकर उस शरबत को पियें आराम मिलेगा। (इमाम अली अ0)
· हमारा ज़िक्र तेज़ बुख़ार, शक व वसवसों में शिफ़ा देता है। (इमाम अली अ0)
· किरमे मेदा (पेट के कीड़े) ः अंगूर का सिरका पियो कि पेट के कीड़ों को मारता है। (इमाम अली अ0)
· सोते वक़्त सात दाने ख़ुरमा खाओ कि पेट के कीड़े मर जाते हैं। (इमाम सादिक़ अ0)
· दर्दे पहलूः उबैद बिन सालेह कहता है कि इमाम सादिक़ अ0 से दर्दे पहलू की शिकायत की। आप अ0 ने फ़रमाया दस्तरख़्वान पर बची हुई और गिरी हुई ग़िज़ा को खाओ, कहता है ऐसा किया और पहलू का दर्द ठीक हो गया।
· दर्दे शिकमः इमाम सादिक़ अ0 ने फ़रमाया एक शख़्स जनाबे अमीरूल मोमेनीन की खि़दमत में आया और दर्दे शिकम की शिकायत की। इमाम अ0 ने पूछा ज़ौजा है? उसने कहा हाँ, आप अ0 ने फ़रमाया ज़ौजा से कुछ रूपिया ब-उनवाने हदिया हासिल कर, उससे शहद ख़रीद और उसमें बारिश का पानी मिलाकर पियो कि परवरदिगार फ़रमाता हैः
· 1. और हमने आसमान से नाज़िल किया मुबारक पानी (सूर-ए-काफ़ आयत 10)
· 2. उन मक्खियों के पेट से पीने की एक चीज़ निकलती है (शहद) जिसके मुख़तलिफ़ रंग होते हैं लोगों (की बीमारी) के लिये शिफ़ा है। (सूर-ए-नहल आयत 69)
· 3. फ़िर अगर वह (ज़ौजा) अपनी मर्ज़ी से तुम्हें कुछ (दे) तो खाओ बेहतर और मुफ़ीद है सूर-ए-निसा, आयत 4।
· चावल को धो कर साये में सुखाओ फिर भून कर अच्छी तरह कूट लो और रोज़ाना सुबह को एक मुट्ठी खा लिया करो, दर्दे शिकम में मुफ़ीद है। (इमाम सादिक़ अ0)
· सेब खाओ मेदे को पाक करता है। (इमाम अली अ0)
· अमरूद मेदे को साफ़, क़ल्ब में जिला और दर्द में सुकून पैदा करता है। (इमाम सादिक़ अ0)
· अमरूद खाना दिल को जिला देता है और अन्दरूनी दर्दों को ख़त्म करता है। (इमाम अली अ0)
दफ़ा-ए-बलग़म, रूतूबत और ज़ियादती अक्ल
· क़ुरआन पढ़ना, मिसवाक करना और कुन्दुर खाना बलग़म में फ़ायदा करता है। (अमीरूल मोमेनीन अ0)
· मुनक़्क़ा सफ़रा को दुरूस्त करता है, बलग़म को दूर करता है, पुटठों को मज़बूत करता है और नफ़्स को पाकीज़ा करता है और रंज व ग़म को दूर करता है।
· सिरका ज़ेहन को तेज़ करता है और अक़्ल को ज़्यादा करता है। (हज़रत अली अ0)
· कंघा करना दाफ़े बलग़म है। (इमाम मो0 बाक़िर अ0)
· सिरका क़ल्ब को ज़िन्दा करता है। (इमाम सादिक़ अ0)
· मिसवाक करना, क़ुरआन पढ़ना बलग़म को निकालता है। (इमाम सादिक़ अ0)
· मूली खाने से गैस ख़ारिज होती है, पेशाब खुल कर होता है और बलग़म साफ़ होता है। (इमाम सादिक़ अ0)
· मूली में तीन ख़ासियतें हैंः पत्ता ज़हरीली हवा को बदन से निकालता है, रेशा बलग़म को दूर करता है और तुख़्म हाज़िम है।
· प्याज़ दहन (मुँह) की बदबू दूर करती है, बलग़म कम करके सुस्ती व थकन को मिटाती है, मुबाशरत की कुव्वत में इज़ाफ़ा करती है, नस्ल को बढ़ाती है, बुख़ार को ख़त्म करती है और बदन ख़ुशरंग हो जाता है। (इमाम सादिक़ अ0)
· क़ुरआन पढ़ने से, शहद खाने से, और दूध पीने से हाफ़िज़ा बढ़ता है। (इमाम रेज़ा अ0)
सफेद दाग़ (बरस) का इलाज
· इमाम जाफ़रे सादिक़ अ0 ने फ़रमाया बनी इस्राईल में कुछ लोग सफ़ेद दाग़ में मुब्तिला हुए, जनाबे मूसा को वही हुई कि उन लोगों को दस्तूर दो कि गाय के गोश्त को चुक़न्दर के साथ पका कर खायें।
· किसी ने इमाम जाफ़रे सादिक़ अ0 से सफ़ेद दाग़ की शिकायत की। आपने फ़रमाया नहाने से पहले मेहदी को नूरा में मिला कर बदन पर मलो।
· एक शख़्स ने इमाम जाफ़रे सादिक़ अ0 से बीमारी बरस की शिकायत की, आपने फ़रमाया तुरबते इमामे हुसैन अ0 की ख़ाक बारिश के पानी में मिलाकर इस्तेफ़ादा करो।
· सहाबी इमाम जाफ़रे सादिक़ अ0 के बदन पर सफ़ेद दाग़ पैदा हो गए। आपने फ़रमाया सूर-ए-या-सीन को पाक बरतन पर शहद से लिख कर धो कर पियो।
· जो खाने के पहले लुक़्मे पर थोड़ा सा नमक छिड़क कर खाये, चेहरे के धब्बे ख़त्म हो जाएंगे।
सेहते चश्म
· अगर आँख में तकलीफ़ हो तो जब तक ठीक न हो जाये बायीं करवट सो। (रसूले ख़ुदा स0)
· मिसवाक करने से आँख की रौशनी में इज़ाफ़ा होता है। (हज़रत अली अ0)
· जब भी तुम में से किसी की आँख दर्द करे तो चाहिये कि उस पर हाथ रख कर आयतल कुर्सी की तिलावत करे इस यक़ीन के साथ कि इस आयत की तिलावत से दर्दे चश्म ठीक हो जायेगा। (इमाम अली अ0)
· जो सूर-ए-दहर की तीसरी आयत हर रोज़ पढ़े आँख की तकलीफ़ से महफ़ूज़ रहेगा। (इमाम अली अ0)
· खाने के बाद हाथ धो कर भीगे हाथ आँख पर फेरे दर्द नहीं करेगी। (इमाम जाफ़रे सादिक़ अ0)
· तीन चीज़ें आँख की रोशनी में इज़ाफ़ा करती हैं। सब्ज़े पर, बहते पानी पर और नेक चेहरे पर निगाह करना। ( इमाम मूसा काज़िम अ0)
पेशाब की ज़्यादतीः
· इमाम जाफ़रे सादिक़ अ0 से एक शख़्स ने पेशाब की ज़्यादती की शिकायत की तो आप अ0 ने फ़रमाया ः काले तिल खा लिया करो।
दस्तूराते उमूमी आइम्मा-ए-ताहिरीन अ0
· बीमारी में जहाँ तक चल सको चलो। (इमाम अली अ0)
· जो उम्र ज़्यादा चाहता है वह सुबह जल्दी नाश्ता खाये। (इमाम अली अ0)
· रसूले ख़ुदा को अनार से ज़्यादा रूए ज़मीन का कोई फल पसन्द नहीं था। (इमाम मो0 बाक़िर अ0)
· गाय का ताज़ा दूध पीना संगे कुलिया में फ़ायदा करता है। (इमाम मो0 बाक़िर अ0)
· खड़े होकर पानी पीना दिन में ग़िज़ा को हज़म करता है और शब में बलग़म पैदा करता है। ( इमाम जाफ़रे सादिक़ अ0)
· हज़रत अली अ0 फ़रमाते हैं कि जनाबे हसने मुज्तबा अ0 सख़्त बीमार हुए। जनाबे फ़ातेमा ज़हरा स0 बाबा की खि़दमत में आयीं और ख़्वाहिश की कि फ़रज़न्द की शिफ़ा के लिये दुआ फ़रमायें उस वक़्त जिबराईल अ0 नाज़िल हुए और फ़रमाया ‘‘या रसूलल्लाह स0 परवरदिगार ने आप अ0 पर कोई सूरा नाज़िल नहीं किया मगर यह कि उसमें हरफ़े ‘फ़े’ न हो और हर ‘फ़े’ आफ़त से है ब-जुज़ सूर-ए-हम्द के कि उसमें ‘फ़े’ नहीं है। पस एक बर्तन में पानी लेकर चालीस बार सूर-ए-हम्द पढ़ कर फूकिये और उस पानी को इमाम हसन अ0 पर डालें इन्शाअल्लाह ख़ुदा शिफ़ा अता फ़रमाएगा।’’
· अपने बच्चों को अनार खिलाओ कि जल्द जवान करता है। (इमाम जाफ़रे सादिक़ अ0)
· ख़रबूज़ा मसाने को साफ़ करता है और संग-मसाना को पानी करता है। (इमाम सादिक़ अ0)
· चुक़न्दर में हर दर्द की दवा है आसाब को क़वी करता है ख़ून की गर्मी को पुरसुकून करता है और हड्डियों को मज़बूत करता है। (इमाम सादिक़ अ0)
· जिस ग़िज़ा को तुम पसन्द नहीं करते उसको न खाना वरना उससे हिमाक़त पैदा होगी। (इमाम सादिक़ अ0)
· खजूर खाओ कि उस में बीमारियों का इलाज है।
· दूध से गोश्त में रूइदगी और हड्डियों में कुव्वत पैदा होती है। (इमाम सादिक़ अ0)
· अन्जीर से हड्डियों में इस्तेक़ामत और बालों में नमू पैदा होती है और बहुत से अमराज़ बग़ैर इलाज के ही ख़त्म हो जाते हैं। (इमाम सादिक़)
खाना खाने के आदाब
· तन्हा खाने वाले के साथ शैतान शरीक होता है। (रसूले ख़ुदा स0)
· जब खाने के लिये चार चीज़ें जमा हो जायें तो उसकी तकमील हो जाती है। 1. हलाल से हो 2. उसमें ज़्यादा हाथ शामिल हों 3. उसमें अव्वल में अल्लाह का नाम लिया जाये और 4. उसके आखि़र में हम्दे ख़ुदा की जाये। (रसूले ख़ुदा स0)
· सब मिल कर खाओ क्योंकि बरकत जमाअत में है। (रसूले ख़ुदा स0)
· जिस दस्तरख़्वान पर शराब पी जाये उस पर न बैठो। (रसूले ख़ुदा स0)
· जो शख़्स ग़िज़ा कम खाये जिस्म उसका सही और क़ल्ब उसका नूरानी होगा। (रसूले ख़ुदा स0)
· चार चीज़ें बरबाद होती हैंः शोराज़ार ज़मीन में बीज, चांदनी में चिराग़, पेट भरे में खाना और न एहल के साथ नेकी। (इमाम सादिक़ अ0)
· जो शख़्स क़ब्ल व बाद ग़िज़ा हाथ धोए ताहयात तन्गदस्त न होए और बीमारी से महफ़ूज़ रहे। (इमाम सादिक़ अ0)
· क़ब्ल तआम खाने के दोनों हाथ धोए अगर चे एक हाथ से खाना खाये और हाथ धोने के बाद कपड़े से ख़ुश्क न करे कि जब तक हाथ में तरी रहे तआम में बरकत रहती है। (इमाम सादिक़ अ0)
हज़रत अली अ0 फ़रमाते हैंः
· कोई ग़िज़ा न खाओ मगर यह कि अव्वल उस तआम में से सदक़ा दो।
· ज़्यादा ग़िज़ा न खाओ कि क़ल्ब को सख़्त करता है, आज़ा व जवारेह को सुस्त करता है नेक बातें सुनने से दिल को रोकता है और जिस्म बीमार रहता है।
· ज़िन्दा रहने के लिये खाओ, खाने के लिये ज़िन्दा न रहो।
· जो ग़िज़ा (लुक़्मे) को ख़ूब चबाकर खाता है फ़रिश्ते उसके हक़ में दुआ करते हैं, रोज़ी में इज़ाफ़ा होता है और नेकियों का सवाब दो गुना कर दिया जाता है।
· जो शख़्स वक़्ते तआम खाने के बिस्मिल्लाह कहे तो मैं ज़ामिन हूँ कि वह खाना उसको नुक़्सान न करेगा।
· वक़्त खाना खाने के शुक्रे खुदा और याद उसकी और हम्द उसकी करो।
· जिस शख्स को यह पसन्द है कि उसके घर में खैर व बरकत ज़्यादा हो तो उसे चाहिये कि खाना जब हाजिर हो तो वज़ू करे।
· जो कोई नाम ख़ुदा का अव्वल तआम में और शुक्र ख़ुदा का आखि़र तआम पर करे हरगिज़ उस खाने का हिसाब न होगा।
· जो ज़र्रा दस्तरख्वान पर गिरे उनका खाना फक्ऱ को दूर करता है और दिल को इल्म व हिल्म और नूरे ईमान से मुनव्वर करता है।
· जनाबे अमीरूल मोमेनीन अ0 ने फ़रमाया के ऐ फ़रज़न्द! मैं तुमको चार बातें ऐसी बता दूँ जिसके बाद कभी दवा की ज़रूरत न पड़े- 1.जब तक भूख न हो न खाओ। 2. जब भूख बाक़ी हो तो खाना छोड़ दो। 3. खूब चबा कर खाओ। 4. सोने से पहले पेशाब करो।
· रौग़ने ज़ैतून ज़्यादतीए हिकमत का सबब है। (इ0 ज़माना अ0)
· भरे पेट कुछ खाना बाएस कोढ़ और जुज़ाम का होता है।
ग़ुस्ल और सेहत
· नहार मुँह ग़ुस्ल करने से बलग़म का ख़ात्मा होता है। (इमाम मो0 बाक़िर अ0)
· नहाने से पहले सर पर सात चुल्लू गरम पानी डालो कि सर दर्द में शिफ़ा हासिल होगी। (इमाम सादिक़ अ0)
· ख़ाली या भरे हुए पेट में हरगिज़ नहीं नहाना चाहिये, बल्कि नहाते वक़्त कुछ ग़िज़ा मेदे में मौजूद होना चाहिए। ताकि मेदा उसे हज़म करने में मशग़ूल रहे, इस तरह मेदे को सुकून मिलता है। (इमाम सादिक़ अ0)
· एक रोज़ दरमियान नहाना गोश्त बदन में इज़ाफ़ा का सबब है। (इमाम मूसा काज़िम अ0)
· नहाना इन्सानी बदन के लिये इन्तेहायी मुफीद है। ग़ुस्ल इन्सानी जिस्म को मोतदिल करता है, मैल कुचैल को जिस्म से दूर करता है आसाब और रगों को नरम करता है और जिस्मानी आ़ा को ताक़त अता करता है। गन्दगी को ख़त्म करता है और जिस्म की जिल्द से बदबू को दूर करता है। (इमाम रिज़ा अ0)
· अगर चाहते हो कि खाल दाने, आबले, जलन से महफ़ूज़ रहे तो नहाने से पहले रौग़ने बनफ़शा बदन पर मलो। (इमाम रिज़ा अ0)
माँ के दूध की अहमियत
· बतौर ग़िज़ा दूध की एहमियत से कौन इनकार कर सकता है, दूध ऐसी मुतावाज़िन ग़िज़ा है जिसमें ग़िज़ा के तमाम अजज़ा (कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, फैट, विटामिन, मिनीरल और पानी) पाया जाता है। यही सबब है कि दूध बीमारी, सेहत और हर उम्र के अफ़राद के लिये मुफ़ीद है। अगर किसी का जिस्म दूध क़ुबूल न करता हो तो उबालते वक़्त चन्द दाने इलाइची के डाल दें।
· क़ुरआन दूध की अहमियत को इस तरह बयान करता है और चैपायों के वजूद में तुम्हारे पीने के लिये हज़मशुदा ग़िज़ा (फ़रस) और ख़ून में से ख़ालिस और पसन्दीदा दूध फ़राहम करते हैं (सूर-ए-हिजर आयत 66) यानी माँ जो कुछ खाती है उससे फरस बनता है और फिर उससे ख़ून बनता है और उन दोनों के दरमिया में से दूध वुजूद में आता है। मतलब यह कि दूध में हज़म शुदा ग़िज़ा के अजज़ा के साथ ख़ून के अनासिर भी शामिल होते हैं। आयत में दूध को ख़ालिस और मुफ़ीद क़रार दिया गया है।
· दूध के बाज़ अनासिर ख़ून में नही होते और पिसतान के गुदूद में बनते हैं मसलन काज़ईन, ख़ून के कुछ अनासिर बग़ैर किसी तग़य्युर के ख़ून के प्लाज़मा से तुरशह होकर दूध में दाखि़ल होते हैं मसलन मुख़तलिफ़ विटामिन, खूरदनी नामक और मुखतलिफ फासफेट। कुछ और मवाद तबदील हो कर खून से मिलते हैं जैसे दूध में मौजूद लेकटोज़ शकर।
· माहिरीन कहते हैं कि पिसतान में एक लीटर दूध पैदा होने के लिये कम अज़ कम पाँच सौ लीटर ख़ून को उस हिस्से से गुज़रना पड़ता है ताकि दूध के लिये ज़रूरी मवाद ख़ून से हासिल किया जा सके। बच्चा जब पैदा होता है तो उसका दिफ़ाई निज़ाम बहुत कमज़ोर होता है इसलिये माँ के ख़ून में पाये जाने वाले दिफ़ाई अनासिर दूध में मुन्तक़िल होते हैं। तहक़ीक़ात में पाया गया है कि माँ के पहले दूध में कोलेस्ट्रम की मिक़दार बहुत ज़्यादा होती है। चूँकि नव मौलूद का माहौल तबदील होता है इसलिये माँ के पहले दूध में कोलेस्ट्रम की इज़ाफ़ी मिक़दार बच्चे के तहफ़्फ़ुज़ के लिये मुआविन साबित होती है। माँ का दूध बच्चे के लिये सिर्फ़ ग़िज़ा नहीं बल्कि दवा है। क़ुरआन में जनाबे मूसा अ0 की विलादत के बाद इरशाद होता है ‘‘हमने मूसा की माँ को वही की कि उसे दूध पिलाओ और जब तुम्हें उस के बारे में ख़ौफ़ लाहक़ हो तो उसे दरया की मौजों के सिपुर्द कर दो’’ सूर-ए-कसस आयत 7 ।
· दूध में सोडियम, पोटेशियम, कैलशियम, मैगनीशियम, काँसा, ताँबा, आएरन, फासफोरस, आयोडीन और गन्धक वग़ैरा मौजूद होते हैं। इसके अलावा दूध में कारबोनिक ऐसिड, लैक्टोज़ शकर, विटामिन ए, बी, सी मौजूद होते हैं। दूध में कैलशियम काफ़ी मिक़दार में होता है जो पुट्ठों और हड्डियों की नशवोनुमा के लिये बहुत ज़रूरी है यानी दूध एक मुकम्मल ग़िज़ा है इसीलिये रसूले ख़ुदा स0 की हदीस है कि ‘‘दूध के सिवा कोई चीज़ खाने पीने का नेमुल बदल नहीं है’’। हामेला औरत दूध पीयें कि बच्चे की अक़्ल में ज़्यादती का सबब है, मज़ीद फ़रमाया कि दूध पियो कि दूध पीने से ईमान ख़ालिस होता है।
· रवायत में है कि दूध आँखों की बीनाई में इज़ाफ़े का सबब है, निसयान को ख़त्म करता है, दिल को तक़वीयत देता है, और कमर को मज़बूत करता है, शरीअत का हुक्म है कि बच्चे के लिये तमाम दूधों में सबसे बेहतर माँ का दूध है।
· जदीद तहक़ीक़ से आज यह बात साबित हो चुकी है कि माँ का दूध बच्चे के लिये न सिर्फ़ मुकम्मल ग़िज़ा है बल्कि बच्चे को मुख़तलिफ़ बीमारियों से भी महफ़ूज़ रखता है हत्ता पाया गया है कि ऐसे बच्चे जो बचपन में माँ का दूध पीते हैं बड़े होकर भी ज़्यादा फ़अआल ज़हीन, तन्दरूस्त और बहुत सी बीमारियों से बचे रहते हैं।
· क़ुरआन में इरशादे परवरदिगार होता है ‘‘माँयें अपनी औलाद को पूरे दो साल दूध पिलायेंगी’’ सूर-ए-बक़रा अ0 224
· और हमने इन्सान को उसके माँ बा पके बारे में वसीयत की, उसकी माँ ज़हमत पर ज़हमत उठा कर हामेला हुई और उसके दूध पिलाने की मुद्दत 2 साल में मुकम्मल हुई है। सूर-ए-अनकबूत आयत 14
अनार
· अनार का नबाताती नाम प्यूनिका ग्रैन्टम है। यूँ तो अनार बहुत से मुल्कों में पाया जाता है लेकिन अफ़ग़ानिस्तान के क़न्धारी अनार मज़े के लिये सबसे ज़्यादा मशहूर हैं। अनार के वह दरख़्त जिनमें फल नहीं आते उसके फूल गुलेनार के नाम से दवाओं में इस्तेमाल होते हैं।
· तहक़ीक़ से यह बात साबित हो चुकी है कि अनार में शकर, कैलशियम, फ़ासफ़ोरस, लोहा, विटामिन सी पायी जाती है। जो ख़ून के बनने और जिस्म की परवरिश में मदद देते हैं इसलिये अनार का फल बीमारी के बाद कमज़ोरी को दूर करने और तन्दरूस्ती को बाक़ी रखने के लिये बहुत मुफ़ीद है।
· रसूले ख़ुदा स0 ने फ़रमाया कि अनारी को बीज के छिलके के साथ खाओ कि पेट को सही करता है, दिल को रौशन करता है और इन्सान को शैतानी वसवसों से बचाता है।
· तिब में अनार का मिज़ाज सर्द तर बताया गया है और दवा के तौर पर मसकन सफ़रा, कातिल करमे शिकम, क़ै, प्यास की ज़्यादती, यरक़ान और ख़ारिश वग़ैरा में इसका इस्तेमाल होता है। बतौर दवा अनार की अफ़ादीयत के बारे में उर्दू का यह मुहावरा ही काफ़ी है। ‘‘एक अनार .......... सौ बीमार’’’
· इस्लामी रिवायत में अनार को सय्यदुल फ़कीहा (फलों का सरदार) कहा गया है। क़ुरआन में भी अनार का ज़िक्र होता है ‘‘इन (जन्नत) में फल कसरत से हैं और खजूर और अनार के दरख़्त हैं’’ (सूर-ए-रहमान आ0 68)
· अहादीस में भी अनार का ज़िक्र हैः ‘‘जो एक पूरा अनार खाये ख़ुदा चालीस रोज़ तक उसके क़ल्ब को नूरानी करता है। शैतान दूर होता है, पेट और ख़ून साफ़ करता है। बदन में फ़ुरती आतीहै और बीमारियों से मुक़ाबले की ताक़त पैदा होती है। (रसूले ख़ुदा स0)
शहद
· ख़ालिक़े कायनात ने इन्सान को जितनी नेअमतें दी हैं उनका शुमार करना भी इन्सान के लिये मुम्किन नहीं है। उन नेअमतों में शहद को एक बुलन्द मुक़ाम हासिल है।
· क़ुरआन (सूर-ए-नहल आयत 49) में शहद को इन्सान के लिये शिफ़ा बताया गया है। इन्जील में 21 मरतबा इसका ज़िक्र किया गया है। जदीद साइंसी तहक़ीक़ात से यह बात साबित हो चुकी है कि शहद निस्फ़ हज़्म शुदा ग़िज़ा है जिसका मेदे पर बोझ नहीं पड़ता है इसीलिये नौ ज़ाएदा बच्चे को बतौर घुट्टी शहद घटाया जाता है और जाँ-बलब मरीज़ के लिये तबीब आखि़री वक़्त में शहद ही तजवीज़ करता है। अहादीस में भी दवा की हैसियत से शहद की ख़ासियत का बहुत ज़िक्र आया है। ‘‘लोगों के लिये शहद की सी शिफ़ा किसी चीज़ में नहीं है’’ (इमाम सादिक़ अ0)। ‘‘जो शख़्स महीने में कम अज़ कम एक मरतबा शहद पिये और ख़ुदा से उस शिफ़ा का तक़ाज़ा करे कि जिस का क़ुरआन में ज़िक्र है तो वह उसे सत्तर क़िस्म की बीमारियों से शिफ़ा बख़्शेगा’’। (रसूले ख़ुदा स0)
फवाएदे आबे नैसाँ
· ज़ादुल मसाल में सय्यद जलील अली इब्ने ताऊस रहमतुल्लाह अलैह ने रिवायत की है कि असहाब का एक गिरोह बैठा हुआ था जनाबे रसूले ख़ुदा स0 वहाँ तशरीफ लाए और सलाम किया असहाब ने जवाबे सलाम दिया। आपने फ़रमाया कि क्या तुम चाहते हो कि तुम्हें वह दवा बतला दूँ जो जिबराईल अ0 ने मुझे तालीम दी है कि जिसके बाद हकीमों की दवा के मोहताज न रहो। जनाबे अमीरूल मोमेनीन अ0 और जनाबे सलमाने फ़ारसी वग़ैरा ने सवाल किया कि वह दवा कौन सी है तो हज़रत रसूले ख़ुदा स0 ने हज़रत अमीर अ0 से मुख़ातिब होकर फ़रमाया माह नैसान रूमी में बारिश हो तो बारिश का पानी किसी पाक बरतन में ले और सूर-ए-अलहम्द, आयतल कुर्सी, क़ुल हो वल्लाह, कु़ल आऊज़ो बिरब्बिन नास, कु़ल आऊज़ो बिरब्बिल फ़लक़ और क़ुल या अय्योहल काफ़िरून सत्तर मरतबा पढ़ो और दूसरी रिवायत में है सत्तर मरतबा इन्ना अनज़लनाह, अल्लाहो अकबर, ला इलाहा इल्लल्लाह और सलवात मोहम्मद स0 व आले मोहम्मद अ0 भी इस पर पढ़ें। किसी शीशे के पाक बरतन में रखें और सात दिन तक हर रोज़ सुब्ह व वक़्ते अस्र इस पानी को पिये। मुझे क़सम है उस ज़ाते अक़दस की जिसने मुझे मबऊस ब-रिसालत किया कि जिबराईल अ0 ने कहा कि ख़ुदाए तआला ने दूर किया उस शख़्स का हर दर्द कि जो उसके बदन में है। अगर फ़रज़न्द न रखता हो तो फ़रज़न्द पैदा हो। अगर औरत बांझ हो और पिये तो फ़रज़न्द पैदा होगा। अगर नामर्द हो और पानी बशर्ते एतेक़ाद पिये तो क़ादिर हो मुबाशिरत पर। अगर दर्दे सर या दर्दे चश्म हो तो एक क़तरा आँख में डाले और पिये और मले सेहत होगी और जड़ें दाँतों की मज़बूत होंगी और मुंह ख़ुशबूदार होगा, बलग़म को दूर करेगा। दर्दे पुश्त, दर्दे शिकम और ज़ुकाम को दफ़ा करेगा। नासूर, खारिश, फ़ोड़े दीवानगी, जज़ाम, सफ़ेद दाग़, नकसीर और क़ै से बे ख़तर होगा। अंधा, बहरा गूँगा न होगा। वसवसा-ए-शैतान और जिन से अज़ीयत न होगी। दिल को रौशन करेगा, ज़ुबान से हिकमत जारी करेगा और उसे बसीरत व फ़हम अता करेगा। माहे नौरोज़ के 23 दिन बाद माह-ए-नैसाँ रूमी शुरू होता है।
तिब्बे इमामे रिज़ा अलैहिस्सलाम
इमामे रिज़ा अलैहिस्सलाम ने तूस में क़याम (सन 201 हि0 से सन 203 हि0) के दौरान मामून रशीद की फ़रमाइश पर इंसानी जिस्म और उसमें होने वाले अमराज़ के सिलसिले में तफ़सील से एक रिसाला तहरीर फ़रमाया जिसमें आप अ0 ने खाना खाने के आदाब, पूरे साल के हर माह की आब व हवा के असरात और उस माह में किन चीज़ों का इस्तेमाल मुफ़ीद है, जिस्म को सेहतमन्द रहने के लिये किन बातों रियायत ज़रूरी है और सफ़र में क्या करना चाहिये तहरीर फ़रमाया जिसमें से कुछ ज़रूरी बातें यह हैं।
दस्तूरे इमामे रिज़ा अलैहिस्सलाम उन ग़िज़ाओं के बारे में जिनको एक साथ नहीं खाना चाहिये
1. अण्डा और मछली कि अगर एक साथ मेदे में जमा हों तो मुम्किन है कि बीमारी नुक़रस, कौलन्ज, बवासीर पैदा करें और दांतों में दर्द हो।
2. दूध और दही कि बीमारी नुक़रस और बरस पैदा करते हैं।
3. मुसल्सल प्याज़ खाना कि चेहरे पर धब्बों का सबब है।
4. ज़्यादा कलेजी, दिल, जिगर खाना कि गुर्दे की बीमारी का सबब होता है।
5. मछली खाने के बाद ठण्डे पानी से (जिस्म) धोना कि फ़ालिज या सकता का सबब हो सकता है।
6. ज़्यादा अण्डा खाने से साँस लेने में तकलीफ़ और मेदा में गैस का सबब होता है।
7. आधा पका गोश्त खाना कि पेट में कीड़े का सबब होता है।
8. गरम और मीठी ग़िज़ा खाने के बाद पानी पीना दाँत ख़राब होने का सबब होता है।
9. ज़्यादा शिकार का गोश्त और गाय का गोश्त खाने से अक़्ल ख़राब और हाफ़िज़ा कमज़ोर होता है।
दस्तूराते उमूमी इमामे रिज़ा अलैहिस्सलाम बराये सेहत
· इमामे रिज़ा अलैहिस्सलाम ने बलग़म के इलाज के लिये फ़रमाया 10 ग्राम हलीला ज़र्द, 20 ग्राम ख़रदिल और 10 ग्राम आक़िर करहा को पीस कर मन्जन करो, इन्शाअल्लाह बलग़म को निकालता है मुँह को ख़ुशबूदार और दाँतों को मज़बूत करता है।
· हर जुमे को बेरी के पत्तों से सर धोना बर्स और पागलपन से महफ़ूज़ रखता है।
· रौग़ने ज़ैतून और आबे कासनी नफ़्स को पाक करती है, बलग़म को दूर करती है और शब-बेदारी की तौफ़ीक़ होती है।
· ज़ैतून का तेल बड़ी अच्छी ग़िज़ा है मुंह को ख़ुशबूदार बनाता है बलग़म को दूर करता है चेहरे को सफ़ाई और ताज़गी बख़्श्ता है, आसाब को तक़वीयत देता है, बीमारी और ददै को दूर करता है और ग़ुस्से की आग को बुझाता है।
· खाने के बाद सीधे लेट जाओ और दाहिना पाँव बायें पाँव पर रख लो।
· जो चाहता है कि दर्द मसाना (गुर्दा) न हो उसे चाहिये कि कभी पेशाब न रोके अगर चे सवारी पर हो।
· जो चाहता है कि मेदा सही रहे वह खाने के दरमियान पानी न पिये बल्कि खाने के बाद पानी पिये। खाने के दरमियान पानी पीने से मेदा कमज़ोर हो जाता है।
· जो चाहता है कि हाफ़िज़ा ज़्यादा हो उसे चाहिये कि सात दाना किशमिश सुबह के वक़्त खाये।
· जो चाहता है कि कानों में दर्द न हो चाहिये कि सोते वक़्त कानों में रूई रख ले।
· जो चाहताा है कि उसे जाड़ों में ज़ुकाम न हो उसे चाहिये कि हर रोज़ तीन लुक़मा शहद जिसमें मोम मिला हो खाये।
· जो चाहता है कि गर्मियों में जु़काम से महफ़ूज़ रहे उसे चाहिये कि हर रोज़ एक खीरा खाये और धूप में बैठने से परहेज़ करे।
· जो चाहता है कि तन्दरूस्त रहे और बदन हल्का और गोश्त (मोटापा) कम हो उसे चाहिये कि रात की ग़िज़ा कम खाये।
· जो चाहता है कि नाफ़ दर्द न करे उसे चाहिये कि जब सर पर तेल लगाये तो नाफ़ पर भी तेल लगाये।
· जो चाहता है कि गले में कव्वा न बढ़े उसे चाहिये कि मीठी चीज़ खाने के बाद सिरके से ग़रारा करे।
· जो चाहता है कि जिगर की तकलीफ़ से महफ़ूज़ रहे वह शहद का मुस्तक़िल इस्तेमाल करे।
· जो तूले (लंबी) उम्र चाहता है उसको लाज़िम है कि सुब्ह के वक़्त कुछ खाया करे।
· जो चाहता है कि क़ब्ज़ न हो वह नहार मुँह एक प्याली गरम पानी में एक चम्चा शहद घोल कर पिये।
· जो चाहता है कि उसके बदन में गैस न बरे उसे चाहिये कि हफ़्ते में एक बार लहसुन खाये।
· जो चाहता है कि उसके दाँत ख़राब न हों उसे चाहिये कि कोई मीठी चीज न खाये। मगर यह कि उसके बाद एक लुक़्मा रोटी खा ले।
· जो चाहता है कि ग़िज़ा ख़ूब हज़म हो उसे चाहिये कि सोने से पहले दाहनी करवट लेटे फिर बायीं करवट लेटे।
· जो चाहता है कि बीमार न हो वह खाने और पीने में एतेदाल से काम ले।
· दाँतों की हिफ़ाज़त के लिये ठण्डी और गर्म चीज़ें खाने से परहेज़ करना चाहिये और बहुत ज़्यादा गर्म और सख़्त चीज़ों को दाँतों से नहीं तोड़ना चाहिये।
· मसूर की दाल दिल को नर्म करती है।
· गेहूँ की रोटी पर जौ की रोटी को ऐसी फ़ज़ीलत है जैसी हम अहलेबैत को तमाम आदमियों पर और हर पैग़म्बर ने दुआ की जौ की रोटी खाने वालों के लिये।
· अपने बीमारों को चुक़न्दर के पत्ते खिलाओ कि उनमें शिफ़ा ही शिफ़ा है।
· शहद सत्तर क़िस्म की बीमारियों को दूर करता है। सफ़रा को घटाता है, प्यास की ज़्यादती को दूर करताा है और मेदे को साफ़ करताा है।
· अगर लोग कम खायें तो बदन सेहतमन्द रहेंगे।
· गाजर कोलिज (आतों के दर्द) और बवासीर से महफ़ूज़ रखती है और मरदाना क़ुव्वत में इज़ाफ़़ा करती है।
इरशादाते पैग़म्बरे इस्लाम अलैहिस्सलाम
बीमारी तीन तरह की है और दवा भी तीन तरह की है, बीमारी ख़ून, सफ़रा और बलग़म से है, दवाये ख़ून हजामत, दवाये बलग़म नहाना और दवाये सफ़रा चलना है। परवरदिगार ने कोई मर्ज़ नहीं पैदा किया मगर यह कि उसकी दवा भी पैदा की, सिवाये मौत के। ग़िज़ा उस वक्त खाओ जब ख्वाहिश हो और उस वक्त ग़िज़ा से हाथ रोक लो जब खाने की ख्वाहिश बाक़ी हो। ख़ुदा के नज़दीक बेहतरीन और महबूब खाना वह है जिसकी तरफ़ ज़्यादा हाथ बढ़ें। (खाना साथ में खायें) एक उँगली से खाना खाना शैतान का तरीक़ा है, दो उँगलियों से खाना खाना मुताकब्बेरीन (घमण्डियों) का तरीक़ा है और तीन उँगलियों से खाना खाना पैग़म्बरों का तरीक़ा है।
खाने को ठण्डा करके खाओ कि गरम खाने में बरकत नहीं है। ग़िज़ा खाने के वक़्त जूतों को उतार दो कि तुम्हारे पैरों को राहत होगी और यह तरीक़ा पसन्दीदा है। नौकरों के साथ खाना खाओ के यह तरीक़ा तवाज़ों और इन्केसारी का है, जो नौकरों के साथ खाना खाता है बहिश्त उसकी मुश्ताक़ होती है।
बाज़ार में खाना खाना पस्त और नापसन्दीदा तरीक़ा है। मोमिन वह खाना खाता है जो घर के अफ़राद को पसन्द होता है और मुनाफ़िक़ घर के अफ़राद को वह खाना किखलाता है, जो ख़ुद पसन्द करता है। दस्तरख्वान पर मुख्तलिफ़ ग़िज़ाओं को एक साथ न खाओ। पाँच चीज़ें ज़िन्दगी भर मेरी सीरत में रहेंगी। ख़ाक पर बैठकर खाना खाना, खच्चर की सवारी करना, बकरी दुहना, अदना कपड़े पहनना, बच्चों को सलाम करना ताकि क़ौम की सीरत बन जाये।
जब खाना दस्तरख्वान पर खाओ तो खाना अपने सामने के हिस्से से लो, खाने के दरमियान और ऊपरी हिस्से में बरकत होती है और तुममें से कोई भी खाना खाने से हाथ न रोके और दस्तरख्वान से न उठे यहाँ तक कि सभी अफ़राद सेर होकर उठ जायें क्योंकि दूसरों से पहले खाने से हाथ रोकना और खड़े हो जाना उनकी शरमिन्दगी का सबब होगा।
बरकत तीन चीज़ों में हैः एक साथ खाने में, (वक्ते) सहर खाने में और जिस खाने में तरी हो। जो बरतन में बची हुई ग़िज़ा को खाता है तो बरतन उसके लिये अस्तग़फ़ार करता है। जो भी दस्तरख्वान पर गिरे हुए टुकड़ों को खाता है, जब तक ज़िन्दा रहता है रोज़ी में इज़ाफ़ा होता है और बच्चे हराम से महफ़ूज़ रहते हैं।
शिकम पुर होकर खाना खाने के नुक़सान
ज़्यादा ग़िज़ा न खाओ कि क़ल्ब सख़्त करता है, आज़ा व जवारेह में सुस्ती पैदा करता है और वाज़ व अहकामे इलाही को सुनने से दिल को बेबहरा करता है।
जो शख़्स ग़िज़ा कम खाये जिस्म उसका सही और क़ल्ब उसका नूरानी होगा और जो शख़्स ग़िज़ा बहुत खाये जिस्म उसका बीमार और दिल में उसके सख्ती पैदा होती है। एक बार दिन में और एक बार रात में ग़िज़ा खाओ। ग़िज़ा खाने के बाद अपने दाँतों में खि़लाल करो और मुँह में पानी हिलाकर कुल्ली करो, क्योंकि यह अमल सामने के दाँतों और अक्ल की सेहत और सलामती का सबब है। अपने दाँतों में खि़लाल करो कि पाकीज़गी और सफ़ाई का सबब है और सफ़ाई ईमान से है और ईमान अपने साहब की बहिश्त तक हमराही करता है।
पानीः पानी खड़े होकर रात में नहीं पीना चाहिये। पानी को घूँट घूँट करके पियो एक साथ न पियो। जो पानी पीने में तीन बार साँस लेता है ईमान में रहेगा। बेहतरीन सदक़ा और एहसान पानी देना है। बेहतरीन पीने की शय दुनिया और आखि़रत में पानी है। रोटी तुम्हारी बेहतरीन ग़िज़ा रोटी और बेहतरीन फल अंगूर है। रोटी को चाक़ू से न काटो और रोटी की क़द्र व क़ीमत समझो कि ख़ुदा ने उसका एहतेराम किया है।
नमकः ग़िज़ा खाने से पहले अगर कोई तीन लुक़मा नमक से खाये तो सत्तर तरह की बीमारियां उससे दूर होंगी जिनमें से बाज़ यह हैं ः जुनून, जुज़ाम और बरस! जो हर खाना खाने से पहले और बाद में नमक खाता है तो ख़ुदावन्दा 73 तरह की बलाओं और अमराज़ को उससे दूर करता है। ग़िज़ा को नमक से शुरू करो कि यह सत्तर अमराज़ की दवा है। अगर लोग नमक की ख़ूबियों से वाक़िफ़ होते तो किसी दवा के मोहताज न होते।
गोश्त गोश्त खाना बदन के गोश्त में इज़ाफ़ा करता है। जो चालीस दिन गोश्त न खाये उसका क़ल्ब ख़राब हो जाता है। चालीस दिन (लगातार) गोश्त का खाना क़ल्ब में सख़्ती और तारीकी पैदा करता है। (गोश्त खाना सुन्नते पैग़म्बर स0 है इसलिये तर्क न करे लेकिन ज़ियादती नुक्सानदेह है एक दिन में दो बार गोश्त न खाओ।)
चावलः खाने में चावल की मिसाल ऐसी है जैसे क़ौम और क़बीले में सय्यद व आक़ा की।
दूधः अपनी हामिला औरतों को दूध पिलाओ ताकि तुम्हारे बच्चों की अक़्ल ज़्यादा हो। दूध पीने के बाद कुल्ली करो कि दूध में चर्बी होती है जो मुँह में बाक़ी रह जाती है। दूध पीना ईमान को ख़ालिस करता है।
मिसवाकः या अली अ0 तुमको चाहिये कि मिसवाक हर वुज़ू के लिये करो। मिसवाक आँखों को रोशन करती है, बालों को उगाती है और दूर करती है आँखों से पानी निकलने को। मिसवाक का ज़्यादा करना इन्सान के लिये उसकी फसाहत को ज़्यादा करता है।
फलः फलों को फस्ल के आग़ाज़ (शुरू) में और पकने पर खाओ कि बदन को सालिम और ग़म को दूर करते हैं। फ़सल ख़त्म होने पर न खाओ, कि बदन में बीमारी का सबब होते हैं। जो फलों को अलग-अलग खाता है उसे नुक़सान नहीं पहुँचता। फल के छिलके पर ज़हर होता है जब खाओ तो धो लिया करो।
ख़ुरमाः बच्चे की विलादत के बाद माँ को सबसे पहले जो चीज़ खानी चाहिये वह मीठा ख़ुरमा है क्योंकि अगर इससे बेहतर कोई चीज़ होती तो परवरदिगार जनाबे मरियम को उसी से तआम कराता। नाशते में ख़ुरमा खाओ कि बदन के कीड़ों को ख़त्म करता है। जो ख़ुरमा हासिल कर सकता है उसे चाहिये कि ख़ुरमे से अफ़तार करे। ख़ुरमा अल्लाह से क़ुरबत का और शैतान से दूरी का बाएस है।
ख़रबूज़ा ख़रबूज़े को फल की जगह खाओ और दाँतों से खाओ (छील कर नहीं) कि उसका पानी रहमत है, उसकी मिठास ईमान की मिठास है जो उसका एक टुकड़ा खाता है परवरदिगार उसे सत्तर हज़ार नेकी देता है और सत्तर हज़ार बुराईयों को दूर करता है। ख़रबूज़ा बेहिश्ती फल है उसमें हज़ार बरकत, हज़ार रहमत और हर दर्द की शिफ़ा है। ख़रबूज़ा मुबारक और पाकीज़ा फल है जो मुँह को पाक करता है क़ल्ब को नूरानी करता है, दाँतों को सफ़ेद और ख़ुदा को ख़ुश करता है। उसकी ख़ुशबू अम्बर, उसका पानी कौसर से, उसका गूदा फ़िरदौस से, उसकी लज़्ज़त बेहिश्ती और उसका खाना इबादत है। ख़रबूज़ा का खाना मुबारक हो कि उसमें दस ख़ुसूसियात हैं। ग़िज़ा और पीने की चीज़ है, दाँतों को पाक करता है, मसाना (गुर्दों) को साफ करता है, शिकम को धोता है, चेहरे की ताज़गी को बढ़ाता है, जिन्सी क़ुव्वत में इज़ाफ़ा करता है और चेहरे की खाल को पाक और नर्म करता है। अगर हामिला औरत ख़रबूज़ा और पनीर खाये तो बच्चे का अख़लाक़ नेक होगा।
अनारः अनार को दाना-दाना खाओ कि इस तरह बेहतर है। अनार खाओ कि क़ल्ब को रौशन करता है और इन्सान को चालीस दिन तक शैतान के वसवसों से दूर करता है। जो एक पूरा अनार खाता है परवरदिगार चालीस दिन उसके क़ल्ब को नूरानी करता है। तुमको अनार चाहिये कि वह भूखे को सेर करता है पेट भरे के लिये हाज़िम है।
कद्दूः जो शख्स कद्दू मसूर की दाल के साथ खाये उसका दिल ज़िक्रे ख़ुदा के वक्त रक़ीक़ (नर्म) हो जायेगा। कद्दू खाओ कि ख़ुदा ने उससे नर्म कोई दरख्त पैदा किया होता तो जनाबे यूनुस अ0 के लिये वही उगाता। कद्दू खाओ कि दिमाग़ और अक्ल को ज़्यादा करता है और क़ल्बे ग़मगीन को ख़ुशहाल करता है।
किशमिश: दो चीज़ों को दोस्त रखों और एहतेराम करोः किशमिश और खुरमा। बेहतरीन चीज़ जिससे रोज़ादार अफ़तार कर सकता है किशमिश व ख़ुरमा या कोई मीठी चीज़ है। जितना मुमकिन हो किशमिश इसतेमाल करो कि सफ़रा को निकालती है, बलग़म को ख़त्म करती है, आसाब को क़ुव्वत देती है, बदन की कमज़ोरी को दूर करती है और क़ल्ब को हयात बख़्शती है। किशमिश से आसाब में मज़बूती और नफ़्स में पाकीज़गी पैदा होती है।
अंगूरः अंगूर खाओ कि ग़म व अन्दोह को दूर करता है। मेरी उम्मत की बहार अंगूर और ख़रबूज़ा है।
अंजीरः अंजीर की मुँह की बदबू को दूर करती है, हड्डियों को मज़बूत करती है, दर्द में फाएदेमन्द है। जो चाहता है कि दिल नर्म हो तो अंजीर बराबर खाये।
रौग़ने बनफ़शाः रौग़ने बनफ़शा को दूसरे तेलों के मुक़ाबले में वैसी ही बरतरी हासिल है जैसे इस्लाम को दूसरे दीनों (मज़हबों) के मुक़ाबले में।
इतरे बनफ़शाः अपने को इतरे बनफ़शा से मोअत्तर करो कि यह गर्मियों में खुनकी और सरदियों में गर्मी का सबब होता है।
हिना (मेंहदी) ः हिना इस्लाम का खि़ज़ाब है, मोमिन के अमल में इज़ाफ़ा करता है, सर दर्द दूर करता है, और आँखों की रौनक़ में इज़ाफ़ा करता है।
परवरदिगार ने कोई दरख्त नहीं पैदा किया जिसे हिना से ज़्यादा दोस्त रखता हो।
लहसुनः लहसुन खाओ कि सत्तर दर्दों की दवा है।
प्याज़ः जब तुम किसी शहर में पहुँचो तो सबसे पहले वहाँ की प्याज़ खा लिया करो ताकि उस शहर की बीमारियाँ तुमसे दूर रहेंे।
शहदः जो शख्स महीने में कम से कम एक बार शरबते शहद पिये और ख़ुदा से उस शिफ़ा का सवाल करे जिसका ज़िक्र क़ुरआन में है तो (ख़ुदा) उसको सत्तर बीमारियों से शिफ़ा देगा। अगर कोई तुम्हें शरबते शहद पेश करे तो इन्कार न करो। अगर कोई शहद खाता है तो हज़ार दवायें उसके पेट में दाखि़ल होती हैं और हज़ार तकलीफ़ें दूर होती है।। जो चाहता है कि याद्दाश्त ज़्यादा हो उसे शहद खाना चाहिये। शहद बेहतरीन पीने की शय है कि क़ल्ब को हयात देता है और सीने की सर्दी को निकालता है। पाँच चीज़ें निसयान (भूल) को दूर करती हैं, हाफ़िज़े को ज़्यादा और बलग़म को दफ़ा करती हैं, मिसवाक करना, रोज़ा रखना, क़ुरआन पढ़ना, शहद खाना और कुन्दुर खाना। शहद खाओ कि पाकीज़गी और शादाबी का सबब है। इमाम जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम से मनक़ूल है कि किसी शख्स ने हज़रत रसूले ख़ुदा स0 से अज़ की कि मेरे भाई के पेट में दर्द है हुज़ूर ने फ़रमाया ‘‘थोड़ा शहद गरम पानी में मिला कर पिला दो’’।
रौग़ने ज़ैतून ः रौग़ने ज़ैतून ग़ुस्से को कम करता है। रौग़ने ज़ैतून चालीस दिन तक शैतान को क़रीब नहीं आने देता।
——- क्यों हैं? ——
मन्सूर दवानक़़ी के दरबार में सादिक़़े आले मोहम्मद अलैहिस्सलाम तशरीफ़ फ़रमा थे, एक हिन्दी तबीब ने अपने इल्म पर नाज़ किया, मालूमात का इज़हार किया, इमाम ख़ामोशी से सुनते रहे, हिन्दी ने जराअत की और कहा के आप इस इल्म से ज़रूर इस्तेफ़ादा करें। इरशाद हुआ के मुझे तेरे इल्म की कोई ज़रूरत नहीं, तेरे मालूमात से मेरे इल्म कहीं ज़्यादा हैं उसने अज़ की कुछ इरशाद हो। फ़रमाया ख़ुदा पर भरोसा रख कर हर मर्ज़ का इलाज उसकी ज़िद से किया जाए, यानी गर्मी का इलाज ठण्डक से और ख़नकी का इलाज हरारत से, ख़ुश्की का तरी से और तरी का ख़ुश्की से। ऐ तबीब! जान ले के मेदा बीमारियों का घर है और बहुत बेहतरीन इलाज परहेज़ है और इन्सान जिस चीज़ का आदी हो वही उसके मिज़ाज के मवाफ़िक़ और सबबे सेहत होगी। तबीब ने अर्ज़ किया, यही उसूले तिब है, इरशाद फ़रमाया के यह इल्म मिनजानिब इलाही है। क्या तू बता सकता है के आंसू व रुतूबत के जारी होने की जगह सर में क्यों क़रार पाई? सर पर बाल क्यों पैदा किये गये? पेशानी बालों से क्यों ख़ाली हुई? माथे पर ख़ुतूत व शिकन क्यों होते हैं? दोनों पलकें आंखों के ऊपर क्यों हैं? दोनों आंखें बादाम की शक्ल जैसी क्यों हैं? नाक दोनों आंखों के दरम्यान में क्यों है? नाक का सूराख़ नीचे की जानिब क्यों हुआ? मुंह के ऊपर दोनों होंठ क्यों बनाए गए? सामने के दाँत तेज़ क्यों हुए? दाढ़ चैड़ी क्यों हुई और दोनों के दरम्यान लम्बे दांव क्यों हैं? दोनों हथेलियाँ बालों से ख़ाली क्यों हैं? मर्दों को दाढ़ी किस लिये होती है? नाख़ून और बाल में जान क्यों नहीं दी गई? दिल सनोबर का हमशक्ल क्यों हुआ? फेफड़ों को दो टुकड़ों में क्यों तक़सीम किया गया और वह मुतहर्रिक क्यों है? जिगर की शक्ल महदब (कुबड़ी) क्यों है? गुर्दा लूबिये की तरह पर क्यों बनाया गया? दोनों घुटने आगे की तरफ़ झुकते हैं, पीछे की तरफ़ क्यों नहीं झुकते? दोनों पांव के तलवे बीच से ख़ाली क्यों हैं? और आखि़र में जब उसने महवे हैरत होकर इन सवालात के जवाबात में अपनी लाइल्मी का इज़हार किया तो ख़ुद ही इरशाद फ़रमाया के- अगर सर में रूतूबत व फ़ज़ालत की जगह न होती तो ख़ुश्की के बाएस फट जाता इसलिये ख़ुदा ने आँसुओं की रवानी का बन्दोबस्त वहाँ किया ताके इस रूतूबत से दिमाग़ तर रहे और फटने न पाए। बाल सर के ऊपर इसलिये उगते हैं के इनकी जड़ों से रौग़न वग़ैरा दिमाग़ तक पहुंच जाए, इन मसामों से दिमाग़ी बुख़ारात भी निकलते हैं। दिमाग़ ज़्यादा गर्मी और ज़्यादा सर्दी से महफ़ूज़ रहता है, पेशानी बालों से इसलिये ख़ाली हुई के इस जगह से आँखों में नूर पहुंचता है और माथे में ख़ुतूते शिकन इसलिये हुए के सर से जो पसीना गिरे वह आँखों में न पड़ जाए। जब शिकनों में पसीना जमा हो तो इन्सान पोंछ कर फेंक दे जिस तरह ज़मीन पर पानी फैल कर गड्ढों में जमा हो जाता है और दोनों पलकें इसलिये आंखों पर क़रार दी गईं के आफ़ताब की रौशनी उसी क़द्र आँखों पर पड़े जिस क़द्र के ज़रूरत हो, तूने देखा होगा जब इन्सान ज़्यादा रोशनी में बलन्दी की जानिब किसी चीज़ को देखना चाहता है तो हाथ को आंखों पर रखकर साया कर लेता है और नाक को दोनों आंखों के बीच में इसलिये क़रार दिया के मुनब्बेअ नूर से रोशनी तक़सीम होकर दोनों आँखों में बराबर पहुँचे, आँखों की बादामी शक्ल इसलिये है के इसमें सुर्मा और दवाई वग़ैरा आसानी से डाली जा सके, अगर मुरब्बेअ शक्ल या गोल होती तो इसमें सलाई का लगाना या दवाई डालना मुश्किल होता और आँखों की बीमारी आसानी से रफ़़ा न होती। नाक का सूराख़ नीचे की तरफ़ इसलिये बनाया गया के दिमाग़ के फ़ाज़िल व ग़ैर ज़रूरी माद्दे ब-आसानी दफ़ा होँ और हर शै की बू बसहूलत दिमाग़ तक पहुँच जाए, अगर नाक का सूराख़ ऊपर की जानिब होता तो न ही फ़ुज़ूलात ख़ारिज होते और न ही दिमाग़ तक बू व ख़ुशबू पहुंच पाती। दोनों होंठ इसलिये मुंह के ऊपर बनाए गए के जो रुतूबतें दिमाग़ से मुंह में आ जाएं वह रूकी रहें और खाना-पीना भी इन्सान के इख़्तेयार में रहे, खाए चाहे फेंक दे। मर्दों की दाढ़ी इसलिये है के औरत और मर्द में तमीज़ हो सके और आगे के दाँत इसलिये तेज़ हुए के किसी शै का काटना सहल हो और दाढ़ें चैड़ी इस वास्ते बनाईं के ग़िज़ा का चबाना और पीसना आसान हो और उनके दरम्यान वाले दाँत लम्बे इसलिये बनाए के दोनों के इस्तेहकाम और क़याम का बाएसे सुतून होँ। हथेलियों पर बाल इसलिये नहीं हुए के किसी चीज़ को छू लेने से उसकी मुलाएमी, गर्मी, सर्दी वग़ैरा का एहसास हो सके अगर हथेलियों पर बाल उगे होते तो इन बातों का महसूस करना मुश्किल हो जाता। बाल व नाख़ून बेजान इसलिये हैं के इसका ज़्यादा बढ़ जाना ख़राबी पैदा करता है और इसकी कमी हुस्न पैदा करती है, अगर इनमें जान व हिस होती तो इनको काटते वक़्त इन्सान को तकलीफ़ शदीद होती। दिल की शक सनोबर के मानिन्द इसलिये (यानी इसका सर पतला और जड़ चैड़ी है) के आसानी से फेफड़ों में टिका रहे और फेफड़ों की हवा उसे मिलती रहे और ठण्डक पहुंचती रहे ताके दिमाग़ की तरफ़ बुख़ारात चढ़ कर बीमारियां पैदा न करें और फेफड़़े के दो हिस्से इसलिये हुए के दिल उनके दरम्यान में महफ़ूज़ रहे और फेफड़े बतौर पंखे उसको हवा मुहय्या करते रहें। जिगर को झुका हुआ और ख़मीदा इसलिये बनाया गया के पूरे तौर पर मेदा क़रार ले और अपने बोझ व गर्मी से ग़िज़ा हज़म करे और बुख़ारात को दफ़ा करे, गुर्दे को लोबिया के दाने की तरह इसलिये बनाया के पुश्त की जानिब से इसमें माद्दहे तौलीद आता है और ब-सबब कुशादगी व तंगी के इसमें से बतदरीज थोड़ा थोड़ा निकलता है जिसके बाएस लज़्ज़त महसूस होती है अगर वह गोल या चैकोर होता तो उससे यह बात हासिल न होती और घुटने पीछे की तरफ़ इसलिये नहीं झुकते हैं के चलने में आसानी हो ताके इन्सान आगे को सहूलत के साथ चल सके अगर ऐसा न होता तो चलने में इन्सान गिर पड़ता और दोनों क़दम बीच से ख़ाली इसलिये हुए के अगर ख़ाली न होते तो पूरा बोझ ज़मीन पर पड़ता और सारे बदन का बोझ उठाना मुश्किल होता और क़दम के किनारे पर बोझ पड़ने से ब-आसानी पाँव उठा सकते हैं जब कोई बच्चा मुंह के बल गिरने लगे तो बच्चों पन्जों के ज़ोर पर सम्हल सकता है यह फ़रमाकर तबीबे हिन्दी से इरशाद हुआ के यह इल्म रसूल (स0) रब्बुल आलमीन से हासिल किया है और यह इल्मे लदन्नी है’’
तिब्बे मासूमीन क़ुराने हकीम के आलिम का क्या कहना- वह तबीबे रूहानी होता है और इल्मे तशरीह से पूरी तरह वाक़िफ़। सादिक़े आले मोहम्मद अलैहिस्सलाम ने नोमान से फ़रमाया के बता आँखों में शूरियत कानों में तल्ख़ी, नाक में रुतूबत और लबों में शीरीं उस हकीमे मुतलक़ ने क्यों पैदा की? फ़िर ख़ुद ही आपने इरशाद फ़रमाया- ‘‘दोनों आंखें चर्बी की हैं, अगर शूरियत न हो तो दोनों पिघल जाएं, कानों की तल्ख़ी रात को सोते वक़्त हशरातुल अर्ज़ को कानों में घुसने नहीं देती, नाक की रूतूबत कसांस की आमद व रफ़्त में इन्तेहाई सहूलत पैदा करती है और ख़ुशबू व बदबू का एहसास करवाती है, लब और ज़बान की मिठास से इन्सान को खाने में लज़्ज़त महसूस होती है।’’ अमीरूल मोमेनीन अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं के चार बातों से दवा व इलाज के मोहताज न होगे- 1. जब तक भूक न लगे खाना न खाओ। 2. कुछ खाने की ख़्वाहिश बाक़ी रहने पर खाना तर्क कर दो। 3. खाना ख़ूब चबाकर खाओ। 4. सोते वक़्त रफ़ए हाजत करके सोओ। नुस्ख़हाए जामअ -इमाम अलीउन्नक़ी अलैहिस्सलाम ने जो दवाए जामा इरशाद फ़रमाई वह यह है - सम्बल (सन्बलुत्तबीब) एक तोला, ज़ाफ़रान एक तोला, क़ाक़्ला (इलाएची) एक तोला, ख़रबक़ सफ़ेद एक तोला, अजवाएन ख़ुरासानी एक तोला, फ़लफ़ल सफ़ेद एक तोला यानी हर चीज़ का वज़्न बराबर। और यह सब एक हिस्सा इसके बराबर एक हिस्सा यानी छः तोले फ़रफ़्यों को मिलाकर ख़ूब कूट छान कर दो हिस्सा यानी बारा तोले शहद (कफ़ गिरफ़ता यानी झाग उतारा हुआ) के साथ मिलाकर (चने के दाने के बराबर) गोलियां बना लें और 1- सांप, बिच्छू वग़ैरा के काटे हुए मरीज़ को एक गोली हींग के पानी के साथ खिलाएं। 2- संगे मसाना (पथरी) के लिये एक गोली मूली के अर्क़ के साथ खिलाएं। 3- लक़वा और फ़ालिज के लिये एक गोली आबे मर्ज़़न्जोश (तकसी बूटी के अर्क़) के साथ नाक में टपकाएं। 4- दफ़ाए हेफ़क़ान (दिल की बेचैनी और घबराहट वग़ैरा) के लिये एक गोली ज़ीरा के ख़ुशान्द़ह के साथ खिलाएं। 5- सर्दी मेदा के लिये एक गोली ख़ु़शान्दहे ज़ीरा के साथ खिलाएं। 6- दाएं पहलू के दर्द के लिये तरकीब बाला पर अमल कराएं। 7- अगर बाएं पहलू में दर्द हो तो यही गोली रेशए कर्फ़स (एक दवा का नाम है) को जोश कर्दा पानी से इस्तेमाल कराएं। 8- मर्ज़े सिल के लिये एक गोली गर्म पानी के साथ खिलाएं।
तिब्बे इमामे सादिक़ अलैहिस्सलाम
· अपनी सेहत की हिफ़ाज़त के लिये जो कुछ भी ख़र्च किया जाये वह इसराफ़ में नहीं आता क्योंकि इसराफ़ उस सूरत में होता कि जब पैसा इन्सानी नफ़्स को तकलीफ़ देने के लिये ख़र्च किया जाये।
· क़ल्बे मोमिन के लिये ज़्यादा ग़िज़ा से कोई चीज़ ज़्यादा ज़रर पहुंचाने वाली नहीं है। इस सबब से कि ज़्यादा ग़िज़ा से दो नुक़सान होते हैं एक क़सावते क़ल्ब दूसरे बेजा शहवत।
· मिसवाक में बारह ख़सलतें हैं, मुँह को पाक करती है, आँखों को जिला देती है, ख़ुदा की ख़ुशनूदी का सबब है, दाँतों को सफ़ेद करती है, दाँतों के मैल को दूर करती है, दाढ़ों को मज़बूत करती है, भख बढ़ाती है, बलग़म दूर करती है, नेकियों को दो बराबर करती है, मलाएका ख़ुश होते हैं और मुसतहिब है।
· आप अ0 ने फ़रमाया कि जनाबे नूह ने ख़ुदा से ग़मो अन्दोह की शिकायत की, वही आईः सियाह अंगूर खाओ कि ग़म को दूर करता है।
बीमारियों के सिलसिले में जनाबे जाबिर ने इमाम जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम से सवाल कियाः
· जनाबे जाबिरः बीमारी के बारे में आपका नज़रिया क्या है? आया बीमारी को ख़ुदा इन्सान पर नाज़िल करता है या वह इत्तेफ़ाक़िया तौर पर बीमार होता है?
· इमामे सादिक़ अलैहिस्सलाम ः बीमारी की तीन क़िस्में हैंः-
ख़ुदा की मशीयत से पैदा होती हैं जिनमें से एक बुढ़ापा है कि किसी शख़्स को उससे छुटकारा नहीं, उसमें हर शख़्स मुब्तिला होता है।
जिन में जिहालत या हिर्स व हवस की वजह से इन्सान खुद अपने को मुब्तिला कर लेता है। अगर इन्सान खाने पीने में इसराफ़ न करे और चन्द लुक़्मे कम खाये और चन्द घूट कम पिये तो बीमारी से दो चार न होगा।
जो बदन के दुश्मनों से पैदा होती हैं, वह इन्सान के जिस्म पर हमला करते है और जिस्म अपने अन्दर मौजूद वसाएल ( )के ज़रिये उनका मुक़ाबला करता है।
· जनाबे जाबिरः बदन के दुश्मन कौन हैं?
· इमामे सादिक़ अलैहिस्सलामः बदन के दुश्मन कुछ ऐसे बारीक और छोटे-छोटे मौजूदात (जरासीम) होते हैं जो आँख से नज़र नहीं आते हैं और वही बदन पर हमलावर होते हैं और बदन के अन्दर भी बारीक मख़लूक़ात होते हैं जो नज़र नहीं आते वह दुश्मनों से जिस्म की हिफ़ाज़त करते हैं।
इबादत व आदाबे इस्लामी और सेहत
· रोज़ाः रोज़ा रखो सेहतमन्द हो जाओ। रोज़ा सेहत के दो असबाब में से एक सबब है इसलिये कि इससे बलग़म छटता है, भूल ज़ाएल होती है, अक़्ल व फ़िक्र में जिला पैदा होती है और इन्सान का ज़ेहन तेज़ होता है। (रसूले ख़ुदा स0)
· नमाज़े शब ः तुम लोग नमाज़े शब पढ़ा करो क्योंकि वह तुम्हारे पैग़म्बर की सुन्नते मोअक्केदा सालेहीन का शिआर और तुम्हारे जिस्मानी दुख व दर्द को दूर करने वाली है। ऐ अली अ0 नमाज़े शब हमेशा पढ़ा करो जो शख़्स कसरत से नमाज़े शब पढ़ता है उसका चेहरा मुनव्वर होता है। (रसूले ख़ुदा स0)
· नमाज़े शब चेहरे को नूरानी, मुंह को ख़ुशबूदार करती है और रिज़्क़ में वुसअत होती है। (हदीस)
· नमाज़े शब से अक़्ल में इज़ाफ़ा होता है। (इमाम सादिक़ अ0)
मुतफ़र्रिक़
· सदक़े के ज़रिये अपने मरीज़ों का इलाज करो, दुआओं के ज़रिये बलाओं के दरवाज़े को बन्द करो और ज़कात के ज़रिये अपने माल की हिफ़ाज़त करो। (रसूले ख़ुदा स0)
· बिस्मिल्लाह हर मर्ज़ के लिये शिफ़ा और हर दवा के लिये मददगार है। (हज़रत अली0 अ0)
· बेशक ख़ुदा की याद, दिल को पुर सूकून करती है। (क़ुरआन)
· दुनिया में हर चीज़ की ज़ीनत है और तन्दरूस्ती की ज़ीनत चार चीज़ेंह ैंः कम खाना, कम सोना, कम गुफ़्तगू और कम शहवत करना। (रसूले ख़ुदा स0)
· दुनिया से रग़बत करना हुज़्न व मलाल का सबब है और दुनिया से किनारा-कशी क़ल्ब व बदन के आराम व राहत का सबब है। (रसूले ख़ुदा स0)
· शफ़ाए अमराज़ के लिये शबे जुमा ब-वज़ू दुआए मशलूल पढ़ें।
· किनाअत बदन की राहत है। (इमाम हुसैन अ0)
· हर जुमे को नाख़ून काटो कि हर नाख़ून के नीचे से एक मर्ज़ निकलता है। (इमाम सादिक़ अ0)
· जो शख़्स हर पंजशम्बे को नाख़ून काटेगा उसकी आँखें नहीं दुखेंगी (अगर पंजशम्बे को नाख़ून काटो तो एक नाख़ून जुमे के लिये छोड़ दो)। (इमामे रिज़ा अ0)
· याक़ूत की अंगूठी पहनो कि परेशानी ज़ाएल होती है ग़म दूर होता है, दुश्मन मरग़ूब रहते है और बीमारी से हिफ़ाज़त करता है। (इमामे रिज़ा अ0)
· जो शख़्स सोते वक़्त आयतल कुर्सी पढ़ ले वह फ़ालिज से महफ़ूज़ रहेगा। (इमामे रिज़ा अ0)
· जब लोग गुनाहे जदीद अन्जाम देते हैं तो ख़ुदा उनको नयी बीमारियों में मुबतिला करता है। (इमामे रिज़ा अ0)
· हुसूले शिफ़ा के लिये क़ुरआन पढ़ो। (इमामे रिज़ा अ0)
· अपने बच्चों का सातवें दिन ख़त्ना करो इससे सेहत ठीक होती है और जिस्म पर गोश्त बढ़ता है। (इमामे रिज़ा अ0)
· पजामा बैठ कर पहनो, खड़े होकर न पहनो क्योंकि यह ग़म व अलम का सबब होता है।
· सियाह जूता पहनने से बीनायी कमज़ोर हो जाती है। (इमामे रिज़ा अ0)
· फ़ीरोज़े की अंगूठी पहनो कि फ़ीरोज़ा चश्म को क़ुव्वत देता है सीने को कुशादा करता है और दिल की क़ुव्वत को ज़्यादा करता है। (इमाम सादिक़ अ0)
· चाहिये कि ज़र्द जूते पहनो कि इस में तीन खासियतें पायी जाती हैं, कुव्वते बीनायी में इज़ाफ़ा, ज़िक्रे ख़ुदा में तक़वीयत का सबब और हुज़्न व ग़म को दूर करता है। (इमाम सादिक़ अ0)
· रोज़ा, नमाज़े शब, नाख़ून का काटना इस तरह कि बायें हाथ की छुंगलिया से शुरू करके दाहिने हाथ की छुंगलिया पर तमाम करना असबाबे तन्दरूस्ती इन्सान है।
· अज़ीज़ों के साथ नेकी करने से आमाल क़ुबूल होते हैं माल ज़्यादा होता है बलायें दफ़़ा होती हैं, उम्र बढ़ती है और क़ियामत के दिन हिसाब में आसानी होगी। (हदीस)
· जो क़ब्ल और बाद तआम खाने के हाथ धोये तो ज़िन्दगी भर तंगदस्त न होये और बीमारी से महफ़ूज़ रहे। (रसूले ख़ुदा स0)
· एक शख़्स ने इमाम अली रिज़ा अ0 से अज़ किया कि मैं बीमार व परेशान रहता हूँ और मेरे औलाद नहीं होती, आप अ0 ने फ़रमाया कि अपने मकान में अज़ान कहो। रावी कहता है कि ऐसा ही किया, बीमारी ख़त्म हुई और औलाद बहुत हुई।
मेहमान नवाज़ी
· तुम्हारी दुनियों से तीन चीज़ों को दोस्त रखता हँ, लोगों को मेहमान करना, ख़ुदा की राह में तलवार चलाना और गर्मियों में रोज़ा रखना। (हज़रत अली अ0)
· मकारिमे इख़्लाक़ दस हैंः हया, सच बोलना, दिलेरी, साएल को अता करना, खुश गुफ्तारी, नेकी का बदला नेकी से देना, लोगों के साथ रहम करना, पड़ोसी की हिमायत करना, दोस्त का हक़ पहुँचाना और मेहमान की ख़ातिर करना। (इमाम हसन अ0)
· मेहमान का एहतिराम करो अगरचे वह काफ़िर ही क्यों न हो। (रसूले ख़ुदा स0)
· पैग़म्बरे इस्लाम स0 ने फ़रमाया कि जब अल्लाह किसी बन्दे के साथ नेकी करना चाहता है तो उसे तोहफ़ा भेजता है। लोगों ने सवाल किया कि वह तोहफ़ा क्या है? फ़रमाया ः मेहमान, कि जब आता है तो अपनी रोज़ी लेकर आता है और जब जाता है तो अहले ख़ाना के गुनाहों को लेकर जाता है।
· मेहमान राहे बेहिश्त का राहनुमा है। (रसूले ख़ुदा स0)
· खाना खिलाना मग़फ़िरते परवरदिगार है। (रसूले ख़ुदा स0)
· परवरदिगार खाना खिलाने को पसन्द करता है। (इमाम मो0 बाक़िर अ0)
· जो भी ख़ुदा और रोज़े क़ियामत पर ईमान रखता है उसे चाहिये कि मेहमान का एहतिराम करे। (हदीस)
· तुम्हारे घर की अच्छाई यह है कि वह तुम्हारे तन्गदस्त रिश्तादारों और बेचारे लोगों की मेहमानसरा हो। (रसूले ख़ुदा स0)
· कोई मोमिन नहीं है कि मेहमान के क़दमों की आवाज़ सुन कर ख़ुशहाल हों मगर यह कि ख़ुदा उसके तमाम गुनाह माफ़ कर देता है अगर चे ज़मीनो-आसमान के दरमियान पुर हों। (हज़रत अली अ0)
· अजसाम की कुव्वत खाने में है और अरवाह की कुव्वत खिलाने में है। (हज़रत अली अ0)
· (तुम्हारा फ़र्ज़ है) कि नेकी और परहेज़गारी में एक दूसरे की मदद किया करो (सूर-ए-अल माएदा ः 2)
· ऐ ईमानदारों ख़ुदा से डरो और हर शख़्स को ग़ौर करना चाहिए कि कल (क़ियामत) के वास्ते उस ने पहले से क्या भेजा है? (सूर-ए-अल हश्र ः 18)
· ऐ ईमानदारों क्या मै। तुम्हें ऐसी तिजारत बता दूँ जो तुमको (आखि़रत के) दर्दनाक अज़ाब से नजात दे (यह कि) ख़ुदा और उसके रसूल स0 पर ईमान लाओ और अपने माल और जान से ख़ुदा की राह में जेहाद करो। (सूर-ए-अस सफ़ः 11)
और अगर तुम पूरे मोमिन हो तो तुम ही गालिब होगे। (सूर-ए-आले इमरान ः 139)
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