यहूदियों की मज़हबी किताब तलमूद के मुताबिक

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1..यहूदियों के अलावा दुनिया के सारे इन्सान *"गोयन्स"* हैं मतलब सब हयुमन, मतलब मनुष्य के रूप में जानवर, पूर्ण मनुष्य सिर्फ़ यहूदी हैं!

2. इसलिए यहूदियों का अधिकार है कि वह *गोयन्स* का चाहे जैसे इस्तेमाल करें। जैसे हम जानवरों का इस्तेमाल चाहे जैसे कर सकते हैं!

3. तलमूद के मुताबिक़ यहूदियों को अधिकार है कि *गोयन्स* के साथ किसी भी तरह का ज़ुल्म किया जा सकता है चाहे मार पीट की जाय... चाहे गुलाम बनाया जाए... यहां तक कि उसकी हत्या भी की जा सकती है, इस पर कोई गुनाह नहीं..!!

4. तलमूद के मुताबिक अर्ध मनुष्यों की औरतों का चाहे वह बलात्कार करें... चाहे उनसे वेश्यावृति करायें... इन पर कोई गुनाह नहीं..!!

5. यहूदियों में आपस में ब्याज़ लेना देना गुनाह है मगर वह बाकी सब हयुमन से ब्याज़ ले सकते हैं...!!

6. यहूदियों में खिंज़ीर (सुअर) खाना हराम (निषेध) है मगर वह बाकी अर्ध मनुष्यों को सुअर खिला सकते हैं..!!

7. तलमूद के मुताबिक यहूदियों को ईश्वर ने पूरी दुनिया के अर्ध मनुष्यों पर शासन करने के लिए पैदा किया है यही वजह है कि इनकी *ज़ायोनिज़्म* तहरीक सारी दुनिया की अर्थ व्यवस्था को अपने क़ब्ज़े में करना चाहती है..!!

8. तलमूद के मुताबिक बाकी अर्ध मनुष्यों को ईश्वर ने इनकी सेवा करने के लिए पैदा किया है।

इसके अलावा भी और बहुत सी बातें हैं जो तलमूद में लिखी हैं। तलमूद यहूदियों की ऐसी किताब है जो 576 से 300 ई. के बीच लगभग 800 साल में तैयार की गई। इस किताब को यहूदी रब्बियों ने तौरात की व्याख्या के नाम पर तैयार किया यह किताब सैंकड़ों जिल्दों (भागों) में है और बेहद गोपनीय है इस किताब के कुछ हिस्से मुस्लिम स्पेन के पतन के बाद कैथोलिक ईसाइयों के हाथ लगे... जिससे उपरोक्त जानकारी मंज़रे आम पर आ सकी फिर जर्मनी में हिटलर के शासन के दौरान कई ईसाइयों ने दुबारा यह जानकारी छापी..!!

आज कंडीशन यह है कि यहूदियों के लिए तौरात में से सिर्फ़ "टेन कमांडमेंट्स" ही पढ़े जाते हैं वह भी सिर्फ़ सवाब हासिल करने के लिए... अमल करने के लिए तलमूद ही असल किताब है और *इस्राइल* के स्कूलों में यहूदी स्टूडेंट्स के लिए तलमूद के स्पेशल कोर्स कराये जाते हैं..!!

*यहूदी* एक नस्लवादी क़ौम है। नस्ली बरतरी का घमंड इनमें कूट कूट कर भरा हुआ है... यह एक बेहद बुज़दिल क़ौम है जो सिर्फ़ साज़िश करना जानती है इनका इतिहास ख़तरनाक साज़िशों से भरा हुआ है इनकी साज़िशों की वजह से ही जर्मनी की पहले विश्व युद्ध में करारी हार हुई थी और हिटलर की यहूदियों से दुश्मनी भी इनकी गद्दारियों की वजह से ही हुई थी इसीलिये उसने इनके लिए "फाइनल सोल्युशन" का इंतज़ाम किया था।

*इस क़ौम से जिसने हमदर्दी की उसने नुक़सान उठाया है..।।।।*

🔴 *इस्राइल फ़िलिस्तीन का असली मुद्दा क्या है?* 🚫

असली मुद्दा है कि फ़िलिस्तीन की ज़मीन पर इस्राइल बसा कैसे?

फ़िलिस्तीन में 1947 के पहले मुसलमान, इसाई और यहूदी मिल जुल कर रहते थे और वह एक धर्मनिरपेक्ष जगह थी जहाँ सभी धर्म के मानने वाले अपने अपने तरीके से इबादत किया करते थे।

अक्सा कंपाउंड में तीनो मज़हबों के चिन्ह मौजूद है जहाँ यहूदी, मुसलमान और इसाई इबादत करते थे।

*लेकिन अचानक क्या हुआ की मामला गड़बड़ हो गया?*

बात कुछ ऐसे लोगो की है जिन्हें धर्म के नाम पर अपना एक मुल्क चाहिए था, वह लोग सियासी यहूदी जो अपने आप को *ज़ायोनिस्ट* कहलाते है और उनका मानना है की दुनिया में यहूदियों का एक मुल्क होना चाहिए जो किसी भी ख़तरे से अम्न में रहे और उसके दुश्मन को दुनिया से मिटा दिया जाए।

इस प्लान के साथ *ज़ायोनिस्ट* यहूदी 1898 में स्विट्ज़रलैंड के बेसेल शहर में मिले और अपने लिए एक ऐसी जगह चुनी जो इतिहास के हिसाब से उनका जन्म स्थल था. उन्होंने इसे *प्रॉमिस्ड लैंड* का नाम दिया और सारी दुनिया में जहां जहां भी यहूदी थे उन्हें वहां आने के लिए प्रोत्साहित किया।

अपने इस प्लान को पूरा करने के लिए ज़ायोनिस्ट लोगो ने विश्व युद्ध प्रथम के पहले अंग्रेजो के साथ भी एक मुहाएदा किया कि फ़िलिस्तीन की ज़मीन अगर उन्हें दी जाती है तो आने वाली सभी जंगो में वह उनका साथ देगे।

प्रथम विश्व युद्ध में अंग्रेजों की जीत हुई जिसके बाद अंग्रेजों ने उस्मानिया हुकूमत को तोड़ कर उस देश को 18 मुल्कों में बांट दिया. फ़िलिस्तीन के हिस्से को अपने कंट्रोल में रखा. 1920 के बाद से सारी दुनिया के यहूदी फ़िलिस्तीन की ज़मीन पर आने लगे जिन्हें अंग्रेजों ने बहुत सी सहूलियत दी और फ़िलिस्तीनी मुसलमानों ने उन्हें जगह भी दी।

दूसरे विश्व युद्ध के बाद जब अंग्रेज़ फ़िलिस्तीन छोड़ रहे थे तब यहूदियों ने UN में अपनी अर्जी दी के फ़िलिस्तीन की ज़मीन को दो हिस्सों में बांटा जाए और वहां पर उन्हें अपना मुल्क बनाने दिया जाए, जिसे UN ने एक ही दिन में पारित कर के 18 मई 1948 में *इस्राईल* नाम के मुल्क का एलान कर दिया।

फिर क्या था, इस्राईल अपने पंजे पसारने लगा और अंग्रेजों, अमेरिकी और फ्रांस की सेना की मदद से अरब मुल्कों को हरा कर पूरी फ़िलिस्तीनी ज़मीन अपने चंगुल में कर ली।

तब से ले कर आज तक इस्राईल रोज़ फ़िलिस्तीनियों पर हमला करता है और उन्हें छोटी सी गज्ज़ा पट्टी और वेस्ट बैंक में क़ैद कर रखा है. अपनी आज़ादी की आवाज़ उठाने वालों को आतंकवादी बुलाया जाता है और कब्ज़ा करने वाले इस्राइल को शांति का दूत।

*एक अजीब सानिहा है और अजब ज़ुल्म...*

🔴 फ़िलिस्तीन के विशेषज्ञों का कहना है कि ज़ायोनी शासन ने बड़े योजनाबद्ध ढंग से मस्जिदुल अक़्सा की जगह क़ुब्बतुस्सख़रह का प्रचार किया है ताकि लोग मस्जिदुल अक़्सा को भूल जाएं।

*मस्जिदुल अक़्सा और क़ुब्बतुस्सख़रह का फ़र्क़ः*

फ़िलिस्तीन के वरिष्ठ पत्रकार सैफ़ुद्दीन नूफ़ेल का कहना है कि ज़ायोनी शासन ने अपनी स्थापना के शुरु से ही अपनी विस्तारवादी योजनाओं को पूरा करने के लिए युद्ध और रक्तपात के साथ ही तथ्यों में हेरफेर की नीति भी अपनाई। ऐसी ही नीति मस्जिदुल अक़्सा के बारे में भी अपनाई गई। मस्जिदुल अक़्सा के नाम से क़ुब्बतुस्सख़रह का प्रचार किया गया जो वास्तव में मस्जिदें अक़्सा का एक छोटा सा भाग है। खेद की बात यह है कि बहुत से मुसलमान उसी क़ुब्बतुस्सख़रह को मस्जिदुल अक़्सा समझ लेते हैं।

फ़िलिस्तीनी नेता ख़ालिद अल अज़बत ने मस्जिदुल अक़्सा और क़ुब्बतुस्सख़रह के फ़र्क़ के बारे में बताया कि अरब व इस्लामी जगत बहुत बड़ी ग़लत फ़हमी में है और इसके पीछे इस्राईल का हाथ है। इस्राईल ने तथ्यों में उलटफेर करने की बड़ी योजनबद्ध कोशिश की है।

सच्चाई यह है कि सुनहरे गुंबद वाली जो मस्जिद मस्जिदुल अक़्सा के नाम से दिखाई जाती है वह मस्जिदुल अक़्सा का एक भाग है और वह मस्जिदे क़ुब्बतुस्सख़रह है जिसे ख़लीफ़ए दुव्वम उमर बिन ख़त्ताब ने बनाया था।

बैतुल मुक़द्दस के मामलों के विशेषज्ञ शुऐब अबू सनीना ने कहा कि मुसलमानों में फैली इस ग़लत फ़हमी के दो कारण हैं। एक तो यह कि मस्जिदुल अक़्सा को ज़ायोनी शासन ने अपने घेरे में ले रखा है और यह घेराबंदी 1967 से चली आ रही है।

दूसरा कारण यह है कि ज़ायोनी शासन बार बार अफ़वाहें फैलाते हैं जिसका नतीजा यह है कि लोगों से मस्जिदुल अक़्सा को पहचानने में ग़लती हो जाती है। जैसे कि जब वर्ष 2000 में ज़ायोनी प्रधानमंत्री एरियल शेरोन ने 3000 सैनिकों के साथ मस्जिदुल अक़्सा पर हमला किया तो वहां मौजूद नमाज़ियों ने मेज़ और कुर्सी की मदद से उनका मुक़ाबला किया और उसे मस्जिद के प्रांगड़ से बाहर निकाला। एरियल शेरोन ने कहा कि मैं शांति का संदेश लाया हूं मेरा मस्जिदुल अक़्सा में प्रवेश करने का कोई इरादा नहीं है। मैं तो केवल प्रांगड़ में आया हूं। इस तरह शेरोन ने यह कहने का प्रयास किया कि प्रांगड़ मस्जिद का भाग नहीं है।

फ़िलिस्तीन के *जेहादे इस्लामी* संगठन के नेता फ़ुआद अर्राज़िम ने कहा कि सब को पता होना चाहिए कि मस्जिदुल अक़्सा में क़ुब्बतुस्सख़रह भी शामिल है, मस्जिदे क़िबला भी शामिल है इसी प्रकार इससे लगे सभी प्रांगड़ मस्जिदुल अक़्सा का हिस्सा हैं। इसके अलावा 200 से अधिक प्राचीन अवशेष भी हैं जो मस्जिदुल अक़्सा से ही संबंधित हैं।

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