शक़्क़ुलक़मर

महीने की मुनासबते
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शुरू करता हुँ अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम करने वाला है।


क़यामत क़रीब आ पहुंची है और चाँद टुकड़े टुकड़े हो गया और अगर ये (काफिर) हमारी कोई निशानी देखते हैं तो मुंह फेर लेते हैं और कहते हैं कि यह एक हमेशा का जादू है।


( सूराऐ अलकमर)

 

 

13 ज़िलहिज वो दिन के जिस दिन अल्लाह के नबी ने काफिरो की कहने पर चाँद के दो टुकड़े किये थे और ये हमाऱे नबी का एक बड़ा मौजिज़ा क़रार पाया।

 

जिसको पूरी दुनिया के मुसलमानो ने देखा और तहक़ीक़ ये साबित होता है कि रसूले ख़ुदा (स.अ.व.व) के शक्कुल क़मर (चाँद के दो टुकड़े करने) के मौजिज़े से हिन्दुस्तान इस्लाम की रोशनी से नूरानी हो गया था।

 

किताबे “बयानुल हक़ व सिदक़ुल मुतलक़” कि जो 1322 हिजरी मे तेहरान मे छपी है, मे फ़ख्रुल इस्लाम लिखते है कि हाफिज मुर्री ने इब्ने तीमीया से नक़्ल किया है कि बाज़ मुसाफिरो ने बताया कि हम ने हिन्दुस्तान मे ऐसे आसार देखे जो शक़्क़ुल क़मर के मोजिज़े के बारे मे थे।

 

जिन मे से एक दरगाह ज़िला जे पी नगर (अमरोहा) की तहसील धनौरा मे नौगावाँ सादात से तक़रीबन 16 km  के फासले पर गंगा नदी के किनारे पर मौजूद है। जिसमे कुँवर सेन और हाजी रतन सेन दफ्न है और रतन सेन ही वो शख्स है कि अपने राजा कुँवर सेन के कहने पर 3 हिजरी मे अरबीस्तान गया और चंद साल वहा रह कर मुसलमान होकर वापस आया और इसके सुबुत इस मकबरे के मुजाविर के पास अब भी है।

 

रतनसेन के बारे मे मौलाना सैय्यद पैगंबर अब्बास नौगांवी ने एक तहकीकी आरटीकल लिखा है।

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