प्रलय है क्या?

अकीदाऐ क़यामत
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परलोक पर विश्वास के लिए क़यामत व प्रलय का अत्यधिक महत्व है किंतु वास्तव में क़यामत या प्रलय है क्या?

 

प्रलय उस दिन को कहते हैं जिस दिन लोगों के कर्मों का हिसाब होगा और कर्म के अनुसार दंड या पुरस्कार दिया जाएगा किंतु इसके लिए एक विषय पर चर्चा आवश्यक है।

 

वास्तव में क़यामत में जो दंड या प्रतिफल की बात होती है उस पर एक शंका यह की जाती है कि मनुष्य का शरीर विभिन्न कोशिकाओं के समूह से बना है जो बनती और बिगड़ती रहती है

 

और उनमें निरंतर परिवर्तन होता रहता है किंतु जन्म से लेकर मृत्यु तक उनकी संख्या, में बदलाव नहीं आता। प्राणियों विशेषकर मनुष्य के शरीर में होने वाले इन

 

परिवर्तनों के दृष्टिगत यह प्रश्न उठता है कि इस परिवर्तनशील समूह को कौन से मापदंड के आधार पर एकल समूह कहा जा सकता है?

 

दूसरे शब्दों में यह कि यदि किसी व्यक्ति ने पाप किया है तो पाप के समय उसके हाथ पैर मन व मस्तिष्क तथा ह्रदय की जो कोशिकाएं थीं वह मृत्यु के समय तक कई बार

 

बदलाव का शिकार हो चुकी होंगी तो फिर जिस शरीर को क़यामत में लौटाया जाएगा और जिसे दंड दिया जाएगा क्या उन्हीं कोशिकाओं से बना शरीर होगा जो पाप करते समय थीं

 

या बदल चुका होगा और यदि बदल चुका होगा तो फिर उसे दंड या प्रतिफल क्यों? इस लिए इस सब से मूल प्रश्न यह है कि मनुष्य में वह कौन सी वस्तु है

 

जो उसकी कोशिकाओं में परिवर्तन के बाद भी उसकी पहचान बाक़ी रखती है और उसके अस्तित्व की अखंडता को सुरक्षित रखती है। अर्थात अस्तित्व की एकता का मापदंड क्या है?

 

दर्शन शास्त्र के एक प्रसिद्ध सिद्धान्त के अनुसार हर प्राकृतिक अस्तित्व में एकता का मापदंड प्रवृत्ति व प्रारूप नामक एक वस्तु होती है जिसे जो न तो मिश्रित होती है और न ही उसका

 

आभास किया जा सकता है और इस वस्तु में पदार्थ में परिवर्तन के साथ बदलाव नहीं आता विषय को सरल बनाने के लिए हम उसे आत्मा का नाम दे सकते हैं।

 

इस संदर्भ में हमारी चर्चा चूंकि मनुष्य के बारे में इस लिए वनस्पति और पशु आत्मा या उस की जैसी वस्तु पर चर्चा को छोड़ते हुए केवल मानव आत्मा की पर

 

संक्षिप्त सी वार्ता करेंगे जो वास्तव में क़यामत और हिसाब किताब के दिन में समझने के लिए आवश्यक है।

 

मनुष्य, की रचना आत्मा व शरीर से हुई है शरीर पदार्थ है इस लिए नश्वर है किंतु आत्मा पदार्थ नहीं है इस लिए उसका अंत नहीं होता तो इस प्रकार से हम यह कह सकते हैं

 

कि हर प्राणी में एकता व अखंडता का मापदंड आत्मा होती है। अस्तित्व व आत्मा के मध्य संबंध बल्कि आत्मा के अस्तित्व की बात भौतिकतवादी विचारधारा में स्वीकार नहीं की

 

जाती बल्कि नवीन भौतिकवादी हर उस वस्तु का इन्कार करते हैं जिसका किसी साधन से आभास न किया जा सके किंतु यदि एसे विचार रखने वालों से मनुष्य के अस्तित्व में एकता

 

के मापदंड के बारे में प्रश्न किया जाए तो उनके पास इसका उत्तर नहीं होता है।


मनुष्य की आत्मा चूंकि निराकार होती है इस लिए शरीर के नष्ट होने के बाद भी बाक़ी रह सकती है और जब उसका शरीर से पुनः संपर्क स्थापित हो तो वह एक एकता व प्रवृत्ति

 

को सुरक्षित रख सकती है जैसा कि उसने मृत्यु से पूर्व मनुष्य की प्रवृत्ति को एक रखा है अर्थात जिस प्रकार से जीवन के समय यद्यपि मनुष्य के शरीर की कोशिकाएं बदलती रहती हैं

 

किंतु उसे भिन्न मनुष्य नहीं कहा जाता क्योंकि उसका शरीर धीरे धीरे और चरणों में भले ही बदल जाता है किंतु चूंकि उसकी आत्मा एक ही रहती है इस लिए वह मरते दम तक अपनी

 

पहचान पर बाक़ी रहता है।

 

क़यामत या हिसाब किताब के दिन क्या होगा और कैसे हिसाब लिया जाएगा अथवा दंड या पारितोषिक दिया जाएगा इन सब बातों को सही रूप से समझने के

 

लिए इस बात का विश्वास आवश्यक है कि आत्मा भौतिक नहीं होती और न ही भौतिक शरीर की भांति नष्ट होती है क्योंकि यह यह मान लिया जाए कि आत्मा

 

शरीर की भांति भौतिक होती है और शरीर के नष्ट होने के साथ ही नष्ट हो जाती है तो फिर क़यामत और हिसाब किताब के दिन की कल्पना अत्याधिक कठिन बल्कि अंसभव हो जाएगी।

 

इस प्रकार से हमारी आज की चर्चा का निष्कर्ष जो वास्तव में क़यामत के बारे में व्यापक चर्चा की भूमिका है, यह निकला कि मृत्यु के बाद एक नये जीवन की कल्पना उसी समय संभव है

 

जब आत्मा को शरीर और उसकी विशेषताओं से भिन्न माना जाए बल्कि यह भी न माना जाए कि आत्मा शरीर में समा जाने वाले एक भौतिक वस्तु है कि जो शरीर के नष्ट होते ही नष्ट हो

 

जाएगी इस प्रकार से सब से पहले से आत्मा को स्वीकार करना होगा और फिर उसे भौतिक विशेषताओं से दूर तथा तूल तत्व माना चाहिए न की शरीर की विशेषता। अर्थात आत्मा को एक

 

भिन्न अस्तित्व समझा जाना चाहिए जिसका संपर्क शरीर से होता है किंतु वह शरीर का अंश नहीं होती बल्कि स्वंय उसका अपना अस्तित्व होता है और उसका शरीर से संपर्क होता है

 

किंतु यहां पर प्रश्न यह उठता है कि यदि आत्मा अलग अस्तित्व है और शरीर का भाग या शरीर में समायी हुई नहीं है तो फिर शरीर में उसकी स्थिति क्या है?

 

इस प्रश्न के उत्तर में हम यह कह सकते हैं कि शरीर व आत्मा से मेल जो शरीर की रचना इस प्रकार नहीं है जैसे जल आक्सीजन व हाइड्रोजन से मिल कर बना होता है क्योंकि यदि

 

आक्सीजन और हाइड्रोजन एक दूसरे से अलग हो जाएं तो जल नामक वस्तु का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है किंतु आत्मा और शरीर का मेल एसा नहीं है

 

अर्थात एसा नहीं है कि जब शरीर और आत्मा का मेल समाप्त हो जाए तो मनुष्य का अस्तित्व भी समाप्त हो जाता है बल्कि मनुष्य नामक अस्तित्व का मूल तत्व वास्तव में आत्मा है

 

और जब तक आत्मा रहती है मनुष्य की मनुष्यता और उसका व्यक्तित्व अपनी समस्त विशेषताओं के साथ रहता है और शरीर का स्थान वस्त्र की भांति होता है

 

और यही कारण है कि शरीर की कोशिकाओं में बदलाव से मनुष्य की पहचान व व्यक्तिव में बदलाव नहीं आता ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार वस्त्र बदलने से मनुष्य की पहचान नहीं बदलती किंतु

 

इस पूरी चर्चा का आधार यह है कि हम आत्मा को भौतिक न माने किंतु प्रश्न यह है कि हम आत्मा को भौतिक क्यों न माने?

 

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