पैग़म्बरे इस्लाम (स) के जानशीन के उनवान से मुसलमानों के इमाम को चंद बुलंद तरीन सिफ़ात का हामिल होना चाहिये इसलिये कि ख़ुद मक़ामे इमामत भी एक ऐसा मुहिम मक़ाम है, उम्मत की दीनी व दुनियावी रहबरी की ज़िम्मेदारी संभालता है । उनमें से चंद सिफ़तें यह हैं:
1. मासूम होना
इमाम के लिये ज़रूरी है कि वह पैग़म्बर (स) की तरह मासूम हो यानी हर तरह की ख़ता व ग़लती और भूल चूक से महफ़ूज़ हो, वरना वह लोगों के लिये किसी सूरत में नमूने अमल (IDEAL) और क़ाबिले एतिमाद शख़्स नही हो सकता, इसी तरह वह समाज को भी सआदत की मंज़िलों तक नही पहुँच सकता। इसलिये कि जो ख़ुद गुनाहगार होगा वह मुआशरे की बुराईयों को दूर नही कर सकता है।
2. इल्मे ग़ैब का हामिल होना
इमाम पैग़म्बर (स) की तरह ही लोगों के लिये इल्मी पनाहगाह होता है। उसके लिये ज़रूरी है कि वह दीन के तमाम उसूल व फ़ुरूअ, क़ुरआन के ज़ाहिर व बातिन, सुन्नते पैग़म्बर (स) और इस्लाम से मुतअल्लिक़ तमाम उलूम और तमाम जुज़ईयात से कामिल तौर पर वाक़िफ़ हो। इसी तरह यह भी ज़रूरी है कि कायनात के ज़र्रे ज़र्रे का इल्म भी उसके पास हो, इमाम को आलिमे ग़ैब भी होना चाहिये और तमाम उलूमे इलाही से कामिल तौर पर वाक़िफ़ होना चाहिये।
3. शुजाअत होना
इमाम के लिये यह भी ज़रूरी है कि वह मआशरे का सबसे शुजा शख़्स हो। इसलिये कि शुजाअत के बग़ैर हक़ीक़ी रहबरी वजूद में नही आ सकती। इमाम को तमाम तल्ख़ हादिसात, अंदरूरी व बैरूनी दुश्मनों, ख़यानत कार और ज़ालिम अफ़राद और मआशरे की तमाम बुराईयों से मुक़ाबला करने के लिये शुजाअत होना चाहिये।
4. ज़ोहद व तक़वा का हामिल होना
जो दुनिया और उसकी रंगिनियों से दिल लगाते हैं वह जल्दी धोखा खा जाते हैं और उनके गुमराह होने का इम्कान भी ज़्यादा होता है लेकिन इमाम को चाहिये कि वह दुनिया का ‘’असीर’’ न हो बल्कि उसका ‘’अमीर’’ हो। उसके लिये ज़रूरी है कि वह हवा ए नफ़्स और माल व मनाल व जाह व मक़ाम की क़ैद से आज़ाद रहे और ज़िन्दगी के हर लम्हे में ज़ोहद व तक़वा इख़्तियार किये रहे ताकि वह किसी से भी फ़रेब न खा सके।
5. बेहतरीन अख़लाक़ से मुत्तसिफ़ होना
क़ुरआने मजीद में पैग़म्बरे इस्लाम (स) के बारे में इरशाद होता है ‘’अगर तुम सख़्त और संगदिल होते तो लोग तुम्हारे पास से इधर उधर भागते।’’इस आयत से मालूम होता है कि किसी भी क़ाइद व रहबर को बेहतरीन अख़लाक़ का हामिल होना चाहिये ताकि लोग ख़ुद ब ख़ुद उसकी जानिब आयें। हर तरह की बदअख़लाक़ी और संगदिली पैग़म्बर या इमाम के लिये बहुत बड़ा ऐब है, उसे हर तरह के बुराईयों से मुनज़्ज़ह व मुबर्रा व पाक और तमाम बेहतरीन अख़्लाक़ का हामिल होना चाहिये।
6. ख़ुदा की तरफ़ से होना
इमाम ख़ुदा की तरफ़ पैग़म्बरे इस्लाम (स) या गुज़िश्ता इमाम (अ) के ज़रिये मोअय्यन किया जाता है इसलिये कि ख़ुदा वंदे आलम और पैग़म्बरे इस्लाम (स) के अलावा कोई दूसरा किसी के मासूम होने का इल्म नही रखता है और लोग भी किसी के मुस्तक़बिल से आगाह नही हैं कि फ़लाँ शख़्स आइंदा कैसा रहेगा और क्या करेगा? लिहाज़ा इमाम को ख़ुदा की तरफ़ से मंसूब होना चाहिये। लोग किसी को इमाम नही बना सकते इसलिये कि मुम्किन है कि लोग किसी शख़्स को बहुत पाक और मासूम जानें लेकिन हक़ीक़त में वह एक गुनाहगार शख़्स हो लिहाज़ा यह मानना पड़ेगा कि सिर्फ़ और सिर्फ़ ख़ुदा वंदे आलम की ज़ात ही है जिसको ‘’इमाम’’ मोअय्यन करने का हक़ है इसलिये कि वह हर शख़्स के ज़ाहिर व बातिन से आगाह है और कामिल तौर पर जानता है कि कौन मासूम है और कौन ग़ैरे मासूम? कौन शख़्स जानशीने पैग़म्बर बनकर करामत की रहबरी की लियाक़त रखता है और कौन नही रखता?
इमाम की इन सिफ़ात और शराइत के अलावा और भी बहुत सी दूसरी सिफ़ात उलमा ए इस्लाम ने बयान की हैं जो बड़ी किताबों में मौजूद हैं।
ख़ुलासा
- पैग़म्बरे इस्लाम के जानशीन के उनवान से मुसल्मानों के इमाम को चंद बुलंद तरीन सिफ़ात का हामिल होना चाहिये, जिनमें से कुछ का ज़िक्र यहाँ पर किया जा रहा हैं:
1. मासूम होना।
2. बेपनाह इल्म का हामिल होना।
3. शुजा होना।
4. साहिबे ज़ोहद व तक़वा होना।
5. बेहतरीन अख़लाक़ का हामिल होना।
6. ख़ुदा की तरफ़ से होना।
इमाम की सिफ़तें
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