हम सब जानते हैं कि ख़ुदा ने इस फैली हुई दुनिया को बे मक़सद पैदा नही किया है और यह भी वाज़ेह है कि इंसान को पैदा करने से ख़ुदा को कोई फ़ायदा नही पहुचता है। इस लिये कि हम पिछले सबक़ों में पढ़ चुके हैं कि ख़ुदा किसी चीज़ को मोहताज नही है लिहाज़ा इंसान को पैदा करने का मक़सद और उस का फ़ायदा इंसान को ही मिलता है और वह फ़ायदा व मक़सद यह है कि तमाम मौजूदात अपने कमाल की मंज़िलों को तय करे। ख़ास तौर पर इंसान हर लिहाज़ से कमाल तक पहुच सके।
लेकिन यहाँ यह सवाल पैदा होता है कि इंसान किस तरह और किस के सहारे से हर लिहाज़ से अपने कमाल की मंज़िलें तय कर सकता है? वाज़ेह है कि इंसान उसी वक़्त अपने कमाल तक पहुच सकता है जब उसे आसमानी क़वानीन और सही तरबीयत करने वाले के ज़रिये सहारा मिले, उस के बग़ैर इंसान के लियह मुम्किन न होगा कि वह कमाल तक पहुचे।
इस लिये कि ग़ैर आसमानी रहबर अपनी अक़्ल और समझ के महदूद होने की वजह से सही तौर पर इंसान की रहनुमाई नही कर सकता और चुँ कि वह भूल चूक और ग़लतियों से महफ़ूज़ नही होता लिहाज़ा रहबरी के लायक़ भी नही है। (मगर यह कि वह आसमानी रहबरों की पैरवी करे।)
लेकिन अल्लाह के नुमाइंदे (दूत) ग़ैब की दुनिया से राब्ता और हर तरह की ख़ता व ग़लती से महफ़ूज़ होने की वजह से इंसान को हक़ीक़ी कमाल और ख़ुशियों तक पहुचा सकते हैं।
इन सब बातों का नतीजा यह हुआ कि इंसान की हिदायत व तरबीयत उस पैदा करने वाले की तरफ़ से होना चाहिये जो उस की तमाम ख़्वाहिशों से वाक़िफ़ है और यह भी जानता है कि कौन सी चीज़ इंसान के लिये नुक़सान का सबब है और कौन सी चीज़ उस के फ़ायदे का सबब है और यह इलाही क़वानीन भी ख़ुदा के उन नबियों के ज़रिये ही लागू होने चाहिये। जो हर तरह की ख़ता और ग़लतियों से महफ़ूज़ होते हैं। इंसान एक समाजी मख़लूक़ है सभी का इस बात पर इत्तेफ़ाक़ है कि इंसान एक समाजी मख़लूक़ है यानी किसी कोने में अकेला बैठ कर ज़िन्दगी नही गुज़ार सकता बल्कि वह मजबूर है कि दूसरे इंसानों के साथ ज़िन्दगी गुज़ारे, इसी को समाजी ज़िन्दगी कहते हैं।
अकसर इंसान नफ़सानी ख़्वाहिशों की वजह से इख़्तिलाफ़ात और ग़ैर आदिलाना कामों में फँस जाता है। अब अगर सही और आदिलाना क़ानून न हो तो यह समाज और मुआशरा हरगिज़ कमाल और सआदत की राह पर नही जा सकता। लिहाज़ा वाज़ेह हो जाता है कि एक ऐसा सही और आदिलाना क़ानून लाज़िम व ज़रूरी है जो शख़्सी और समाजी हुक़ूक़ की हिफ़ाज़त करे लेकिन सवाल यह पैदा होता है कि यह क़ानून कौन बनाये? बेहतर क़ानून बनाने वाला कौन है? उस की शर्त़े क्या हैं? क़ानून बनाने वाले की पहली शर्त यह है कि वह जिनके लियह क़ानून बनाना चाहता है उन की रूहानी और जिस्मानी ख़ुसूसियात और ख़्वाहिशात वग़ैरह से आगाह हो, हम जानते हैं कि ज़ाते ख़ुदा के अलावा कोई और नही जो इंसान के मुस्तक़बिल में होने वाले उन हादसों से आगाह हो, जो समाज को एक मुश्किल में तब्दील कर देते हैं लिहाज़ा सिर्फ़ उसी को हक़ है कि इंसान के लिये ऐसा क़ानून बना यह जो उसकी पूरी ज़िन्दगी में फ़ायदे मंद साबित हो और उसे नाबूदी से निजात दे।
ख़ुदा उन क़वानीन को इंसान तक अपने बुलंद मर्तबे, मुम्ताज़ और ख़ता व लग़ज़िश से मासूम मुन्तख़ब बंदों के ज़रिये पहुँचाता है ताकि इंसान उन क़वानीन की मदद से कमाल तक पहुँचे। इंसानों की रहबरी में पैग़म्बरों का दूसरा अहम किरदार यह है कि वह ख़ुद सबसे पहले क़ानून पर अमल करते हैं यानी वह उन क़वानीन के बारे में इंसान के लिये ख़ुद नमून ए अमल होते हैं ताकि दूसरे अफ़राद भी उनकी पैरवी करते हुए ख़ुदा के नाज़िल किये गये क़वानीन को अपनी ज़िन्दगी में लागू करें, यही वजह है कि हर मुसलमान का अक़ीदा है कि ख़ुदा ने हर ज़माने में एक या चंद पैग़म्बरों को भेजा है ताकि आसमानी तालीम व तरबियत के ज़रिये इंसानों को कमाल व सआदत की मंज़िलों तक पहुँचाये। एक शख़्स ने इमाम सादिक़ (अ) से सवाल किया: पैग़म्बरों के आने का सबब क्या है? इमाम ने उसके जवाब में फ़रमाया: जब मोहकम और क़तई दलीलों से साबित हो गया कि एक हकीम ख़ुदा है जिसने हमें वुजूद बख़्शा है जो जिस्म व जिस्मानियात से पाक है, जिसको कोई भी देख नही सकता तो उस सूरत में ज़रूरी है कि उसकी तरफ़ से कुछ रसूल और पैग़म्बर हों जो लोगों को ख़ैर और सआदत की तरफ़ हिदायत करें और जो चीज़ उनके ज़रर व नुक़सान का सबब है उससे आगाह करें। ऐसे आसमानी हादी व रहबर से ज़मीन कभी ख़ाली नही रह सकती।
ख़ुलासातमाम नबियों की नबुव्वत और रिसालत पर ऐतेक़ाद रखना उसूले दीन में से है ।
ख़ुदा वंदे आलम ने जिन असबाब की ख़ातिर पैग़म्बरों को भेजा है वह यह हैं:
1. इंसान कमाल की मंज़िलों तक पहुँचे।
2. इंसानों के लिये पैग़म्बर नमून ए अमल बनें।
3. इंसानों की सही हिदायत व रहनुमाई हो सके।
सिर्फ़ ख़ुदा ही को हक़ है कि वह इंसानों के लियह क़ानून बनाये।
इस लिऐ कि उसी ने उन्हे पैदा किया है और वही उन की रुहानी व जिस्मानी हालात, ख़्वाहिशों, उन की पिछली, हाल की और आईन्दा की ज़िन्दगी और सारे हालात के बारे में पूरी तरह से जानता है।
ख़ुदा अपने बनाये हुए क़ानून को अपने ख़ास बंदों के ज़रिये इंसानों तक पहुचाता है जो बुलंद मर्तबा, मुम्ताज़ और ख़ता व ग़लतियों से महफ़ूज़ और मासूम होते हैं।
नबी की ज़रुरत
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