ईश्वर के बारे में सकारात्मक विचार के सुपरिणाम

अकीदाऐ तोहीद
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ईश्वर के बारे में सकारात्मक विचार, ईश्वर को प्रसन्न करने के मार्ग में व्यवहार करने के लिए मनुष्य को प्रोत्साहित करता है, और सुखमय जीवन एवं नेक कार्य करने के लिए आवश्यक शांति एवं सुख प्रदान करता है। पैग़म्बरे इस्लाम का कथन है कि उस ईश्वर की सौगंध कि जिसके अलावा कोई और उपासना के योग्य नहीं है किसी भी निष्ठावान व्यक्ति को लोक एवं परलोक की भलाई नहीं दी गई परन्तु सकारात्मक सोच, ईश्वर पर भरोसा, शिष्टाचार तथा धर्म में आस्था रखने वालों की पीठ पीछे बुराईयां न करने के कारण।


उसके बाद कहा कि अतः ईश्वर के प्रति अच्छी सोच रखो और उसकी ओर आकर्षित हो जाओ।


निश्चित रूप से आप जानते हैं कि आज मनुष्य के मानसिक सुख व शांति के विषय ने अधिकांश विद्वानों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया हुआ है। इसलिए कि व्यक्ति एवं समाज विशेषकर औद्योगिक समाज में संबंधों में जटिलता के कारण लोगों में तनाव व चिंता का स्तर कहीं ज़्यादा है। अनेक मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि धार्मिक शिक्षाओं का अनुसरण करते हुए शिष्टाचार व नैतिक कार्य, मनुष्य में आतंरिक सुख व शांति उत्पन्न करने के महत्वपूर्ण कारक हैं। धर्मों में उपासना पर बल का भी यही कारण है। समस्त उपासनाओं की संयुक्त विशेषता यह है कि उनमें से हर एक किसी न किसी तरह मनुष्य के हृद्य में ईश्वर की याद जीवित रखती है। ईश्वर को याद करने के परिणामों में से एक ऐसा विषय है कि जो वास्तव में आज के मनुष्य की खोई हुई कोई महत्वपूर्ण वस्तु है और वह है मानसिक सुख व शांति या क़ुराने मजीद के शब्दों में हार्दिक निश्चिंतता। मनुष्य मानसिक सुख व शांति तथा तनाव से छुटकारा पाने के लिए जीवन में आराम के हर संभव माध्यम प्राप्त करता है। किन्तु वह जितना अधिक से अधिक प्रयास करत रहता है उसे प्राप्त नहीं कर पाता। भौतिक माध्यम जैसे कि धन, पद व स्थान सब के सब मृगतृष्णा के समान हैं। मरुस्थल में प्यासा व्यक्ति उसे पानी समझता है लेकिन जब उसके निकट पहुंचता है तो वहां कुछ नहीं पाता।


आज का मनुष्य अपनी खोई हुई मूल वस्तु कि जो सौभाग्य एवं ख़ुशी  है दिशाहीन हो गया है तथा अपनी मनोकामनाओं की प्राप्ति हेतु धन, पैसा एवं वासना को कारण समझता है। यही कारण है कि वह रात दिन एक किए हुए है ताकि अधिक धन एवं शक्ति द्वारा अपनी कामनाओं तक पहुंच सके। हालांकि जितना भी आगे बढ़ता है और गति प्राप्त करता है सुख व शांति एवं सौभाग्य से दूर होता चला जाता है।


इस्लामी विद्वान शहीद मुतहरी इस संदर्भ में कहते हैं कि कुछ लोग अपने भीतर चिंता की अनुभूति करते हैं। वे प्रसन्न नहीं हैं, उन्हें नहीं है। मुरझाए व निराश हैं। किन्तु इस चिंता का कारण नहीं जानते। इसके बावजूद कि देखते हैं कि जीवन की समस्त सुविधाएं उनके पास हैं लेकिन फिर भी जीवन से प्रसन्न नहीं हैं। इस प्रकार के लोगों को जानना चाहिए कि निश्चित ही उनकी ऐसी आवश्यकताएं हैं कि जो पूरी नहीं हुई हैं। वे अपनी आत्मा में ख़ालीपन और कमी का एहसास करते हैं, उन्हें पता होना चाहिए कि वे अपनी एक प्राकृतिक आवश्यकता कि जो आस्था है अनभिज्ञ हैं। जब कभी भी आस्था के स्रोत तक पहुंच जाएं और ईश्वर के प्रकाश को देख लें तथा अपने मन एवं आत्मा में उसकी अनुभूति कर लें तो उस समय आनंद एवं सौभाग्य का अर्थ समझ पायेंगे। जैसा कि क़ुरान में पढ़ते हैं। केवल ईश्वर का नाम जपने और उसे याद करने से मन को सुख प्राप्त होता है और हृदय को शांति मिलती है। क़ुराने मजीद के सूरए रअद की 28वीं आयत में स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि मन की शांति एवं चिंता व घटियापन से मुक्ति ईश्वर में आस्था की शरण में प्राप्त होती है।


-मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि दृढ़ आस्था रखने वाले लोग दूसरों की तुलना में बहुत कम आत्मिक परेशानी एवं मानसिक असंतुलन का शिकार होते हैं। अमरीकी लेखक डेल करनेगी अपनी किताब चिंता छोड़ो और जीवन शुरू करो में लिखते हैं कि निष्ठावान व्यक्ति चिंताओं के सामने आत्मसमर्पण नहीं करता बल्कि अपने व्यक्तित्व के संतुलन को बनाए रखता है। वह अप्रसन्नताओं से मुक़ाबला करने के लिए हमेशा तैयार रहता है।


-जीवन में ईश्वर की ओर मनुष्य के ध्यान के महत्व के कारण ही क़ुरान ने अनेक बार निष्ठावान व्यक्तियों को सदैव ईश्वर की याद में लीन रहने पर बल दिया है। सूरए अहज़ाब की 41वीं आयत में उल्लेख है कि हे ईमान लाने वालों ईश्वर को अधिक याद करो। सूरए निसा की 103वीं आयत में ईश्वर चाहता है कि मनुष्य न केवल नमाज़ में बल्कि हर अवस्था एवं स्थिति में उसकी याद में लीन रहे। निःसंदेह इस ध्यान एवं स्मरण के मनुष्य की आत्मा एवं मन पर पड़ने वाले सकारात्मक प्रभावों में से एक आंतरिक सुख व शांति है। सुख व शांति प्राप्ति के लिए ईश्वर की याद के प्रभाव के संबंध में क़ुराने मजीद के व्याख्याकार अल्लामा तबातबाई लिखते हैं कि केवल ईश्वर की याद ही मनुष्य को सुख व शांति प्रदान करती है तथा कोई और वस्तु इसका विकल्प नहीं बन सकती। इस एकाधिकार का कारण यह है कि मनुष्य अपने जीवन में कल्याण एवं अनुकंपा तक पहुंचना चाहता है और दुर्भाग्य से डरता है। इस बीच ईश्वर एकमात्र ऐसी शक्ति है कि जिसके अधिकार में सब कुछ है और जो वह चाहेगा, अंजाम दे सकता है। अतः समस्याओं में घिरा हुआ मनुष्य कि जो एक ऐसे मज़बूत सहारे की तलाश में है जो उसके कल्याण को निश्चित बना सके, सांप के डसे हुए उस रोगी के समान है कि जिसे सर्वरोगहारी मिल गया है जिसके कारण वह प्रसन्न है।


यद्यपि आंतरिक क्षमता एवं तैयारी के दृष्टिगत ईश्वर की याद, मनुष्यों को विभिन्न प्रकार से प्रभावित करती है। ईश्वर की याद के समय मनुष्य का हृदय उस आईने की भंति होता है कि जो सूर्य की किरणों के सामने रखा हो। वह ईश्वरीय प्रकाश को आंतरिक क्षमता एवं तैयारी के अनुपात से प्राप्त करता है। निःसंदेह हृदय जितना भी अंधकार एवं दोष से साफ़ होगा उतना ही ईश्वरीय प्रकाश की किरणों को अधिक प्राप्त करेगा। मनुष्य का ईश्वर की ओर ध्यान, वास्तव में हार्दिक रूप से उसका ईश्वर से संपर्क है, स्पष्ट है कि इस आतंरिक एवं आत्मिक संबंध में उसे अधिक आध्यात्मिक यहां तक कि भौतिक आशीर्वाद प्राप्त होता है।


-अब हम समझ सकते हैं कि क्यों ईश्वरीय दूतों एवं मित्रों को क़ुरान के अनुसार, भय और डर नहीं होता। जो कोई असीम अस्तित्व, शक्तिशाली, बुद्धिमान और ज्ञानी से जुड़ जाता है तो उसके अलावा हर चीज़ उसकी नज़र में छोटी और अस्थिर हो जाती है। जो कोई सूर्य को देख रहा हो तो वह एक छोटे से दीप पर ध्यान नहीं देता। जो लोग इस प्रकार की शक्ति पर भरोसा करते हैं, समस्या उत्पन्न होने या भौतिक सुविधाओं के हाथ से चले जाने से परेशान नहीं होते तथा भविष्य का डर उनके विचारों पर हावी नहीं हो पाता। मनुष्यों में भय और डर सामान्य रूप से दुनियादारी एवं दुनियापरस्ती के कारण पैदा होता है लेकिन जो लोग सदैव ईश्वर का समर्थन एवं सहायता प्राप्त करते हैं तो वे हर प्रकार की चिंता एवं आशंकाओं से मुक्त रहते हैं। उल्लेखनीय है कि ईश्वर का स्मरण और याद केवल ज़बानी स्मरण और उसका नाम जपना नहीं है। बल्कि हर स्थिति में ईश्वर को याद किया जा सकता है। कभी पाप का सामना होते ही मनुष्य के मन में ईश्वर की याद आ जाती है और वह पाप छोड़कर आध्यात्मिक सुख व शांति का आभास करत है या कठियाइयों एवं समस्याओं के समय ईश्वर से अपना संबंध मज़बूत करता है। यह सब ईश्वर में आस्था और उसकी याद के प्रभाव हैं कि जो अंततः मनुष्य को सुख प्रदान करते हैं।  

 

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