उलूमे क़ुरआन का इतिहास

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मानवता के इतिहास में कोई ऐसी किताब नही मिलती जिसकी रक्षा और व्याख्या के लिए क़ुरआन के समान अत्याधिक प्रबन्ध किये गये होँ।

क़ुरआन और उलूमे क़ुरआन के परिचय के लिए इस्लाम के प्रथम चरण में ही असहाबे रसूल, (वह लोग जो रसूल के जीवन में मुस्लमान हुए तथा रसूल के साथ रहे) ताबेईन (वह लोग जो रसूल स.के स्वर्गवास के बाद मुस्लमान हुए या पैदा हुए और रसूल के असहाब के सम्मुख जीवन यापन किया) और ज्ञानियों ने बहुत काम किया।कुछ लोगों ने क़ुरआन को हिफ़्ज़ किया तो कुछ ने इसकी तफ़सीर की।क़ुरआन की विभिन्न दृष्टिकोणो से तफ़सीर की गयी। क़ुरआन विशेषज्ञों के अनुसार हज़रत अली अलैहिस्सलाम वह प्रथम व्यक्ति है जिन्होने क़ुरआने करीम की तफ़सीर की और उलूमे क़ुरआनी की आधार शिला रखी।

सुन्नी सम्प्रदाय के प्रसिद्ध ज्ञानी व मुफ़स्सिर जलालुद्दीन सयूती लिखते हैं कि वह खलीफा जिन्होने उलूमे क़ुरआन के सम्बन्ध में सबसे अधिक जानकारी प्रदान की हज़रत अली अलैहिस्सलाम हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम के अलावा दूसरे असहाब ने भी उलूमे क़ुरआन पर काम किया है। जैसे अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास, अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद, उबाई इब्ने कअब इत्यादि परन्तु इन सब ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम से ही यह ज्ञान प्राप्त किया।

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