रसूले अकरम की ज़िन्दगी से कुछ पाठ

नबी अकरम (स.अ.व.व)
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 अमल करके दिखाना

इंसानी समाज की तरबियत और ट्रेनिंग का एक तरीक़ा यह है कि उन्हें ज़बान से बताया जाए और समझाया जाए कि वह नेक बनें, अच्छी आदतें अपनाएं, ख़ुदा के रास्ते में सब्र से काम लें, अपनी जगह पर अटल रहें, किसी पर अत्याचार न करें और हक़ व इन्साफ़ का साथ देने की पूरी कोशिश करें, इस तरह की बातें करना और ज़बान से कहना और उसकी शिक्षा देना बहुत अच्छा है। रसूलुल्लाह स.अ. भी ऐसा करते थे जैसा कि क़ुरआने मजीद नें फ़रमाया है:   
’’وَیُعَلِّمُھُمُ الکِکتَابَ‘‘

उनका एक काम शिक्षा देना भी था लेकिन एक काम उससे बड़ा, कठिन और प्रभाव शाली है, वह है अपने अमल से दूसरों को सही रास्ता दिखाना, ख़ुद मैदान में उतरना, इस्लाम को अपने एक एक अंग में अमल करके दिखाना, ग़लत चीज़ों और अंध विश्वास के विरुद्ध लड़ना। रसूले ख़ुदा का कमाल यह था कि उन्होंनें इन्सानों को अपने अमल से अच्छे व्यवहार से मुसलमान बनाया वरना बातें करने तो उनसे पहले भी बहुत थे लेकिन वह इस तरह लोगों को प्रभावित नहीं कर सके जिस तरह आपनें किया। क्यों? इसका कारण यही है कि आप जो कहते थे वही करते थे बल्कि पहले ख़ुद करते थे फिर दूसरों से कहते थे।

 

 
मुहब्बत, सहकारिता और भाईचारा

लोग पैग़म्बर स. के पास आकर एक दूसरे की बुराइयां करने लगते थे, झूठी सच्ची बातें सुनाने लगते थे, आपनें सब को इस काम से रोका और कहा कि मेरे असहाब के बारे में इस तरह की बातें न किया करो, मेरे पास आकर एक दूसरे की बुराइयां न किया करो क्योंकि मैं चाहता हूँ कि जब मैं तुम्हारे पास आऊँ और तुम मेरे पास आओ तो हमारा दिल बिल्कुल पाक साफ़ हो और उसमें किसी के लिये कोई बुरा ख़्याल न आए। रसूले इस्लाम स.अ. का मक़सद यह था कि मुसलमान दिल में एक दूसरे के लिये बुरा ख़्याल न रखें, एक दूसरे के बारे में बुरा न सोचें ताकि उनके बीच मुहब्बत और भाईचारा बढ़े, आज हमारी ज़िम्मेदारी भी यही है कि एक दूसरे के लिये दिल में अच्छे ख़्याल और अच्छी सोच रखें। दूसरे यह कि इस्लाम चाहता है कि इस्लाम इस तरह अपनी अपनी दुनिया में न खोए रहें बल्कि एक दूसरे की सहायता करें। एक दूसरे के काम आएं।

 

 क़ुरैश को माफ़ कर देना

रसूले ख़ुदा स. को यह बात बिल्कुल पसंद नहीं थी कि मुसलमानों के बीच एक दूसरे के लिये नफ़रत, जलन और दुश्मनी पैदा हो इसी लिये आपकी हमेशा यही कोशिश होती थी कि उनके बीच मुहब्बत के बीज बोएं और उनकी दूरियां मिटाकर उन्हें एक दूसरे के क़रीब करें। यहाँ तक कि जब आपने मक्के पर चढ़ाई की और मक्का उनके क़ब्ज़े में आ गया तो सारे मक्के वालों को माफ़ कर दिया जबकि यह वही मक्के वाले थे जिन्होंनें आपको तेरह साल तक परेशान कर रखा था, आपके रास्ते में काँटे बिछाते थे, आप पर कूड़ा फेंकते थे, आपको पत्थर मारते थे, जिन्होंनें आपके साथ कई बार जंग की थी और बहुत सारे मुसलमानों को शहीद किया था। बहुत से मुसलमान जिनके दिलों में मक्के वालों के लिये नफ़रत थी वह उनसे बदला लेना चाहते थे और अगर ऐसा होता तो मुसलमानों के बीच हमेशा के लिये लड़ाई शुरू हो जाती लेकिन रसूले ख़ुदा स. नें सारे मक्के वालों को माफ़ कर के ही इस लड़ाई को शुरू होने से पहले ही ख़त्म कर दिया।

 

 सारे मुसलमान भाई भाई

मदीने में आने के बाद रसूले ख़ुदा स. नें जो काम सबसे पहले किये उनमें से एक मुसलमानों को एक दूसरे का भाई बनाना था। रसूलुल्लाह स. नें सबको बुलाया और सबको एक दूसरे का भाई बनाया। यह जो कहा जाता है कि हम सब भाई भाई हैं यह यूँ ही नहीं कहा जाता है बल्कि मुसलमान सच में एक दूसरे के भाई हैं और एक दूसरे पर उसी तरह से अधिकार रखते हैं जिस तरह दो सगे भाई एक दूसरे पर अधिकार रखते हैं। आपनें मुसलमानों को इस तरह भाई भाई बनाया कि बड़े छोटे, अमीर ग़रीब, मुहाजिर अंसार और इस तरह के सारे अंतर मिटा दिये और सारे मुसलमानों को एक लाइन में खड़ा किया।

 

रसूले इस्लाम स. की नज़रों से गिर गया

रसूलुल्लाह स.अ. विभिन्न तरीक़ों से लोगों को काम और मेहनत करने पर उत्तेजित किया करते थे। अगर किसी जवान को निकम्मा देखते तो फ़रमाते: “ख़ुदा ऐसे जवान को पसंद नहीं करता जो बेकार और निकम्मा हो” या जब किसी तन्दुरुस्त और स्वस्थ जवान को देखते तो उस से पूछते थे: क्या तुमने शादी कर ली है? अगर उसका जवाब यह होता था कि मैंनें अभी तक शादी नहीं की है और ना ही कोई काम करता हूँ तो आप फ़रमाते: “यह जवान मेरी नज़रों से गिर गया”।

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