मुवर्रेख़ीन का इत्तेफ़ाक़ है कि आपकी विलादत ब सआदत 15 शाबान 225 हिजरी यौमे जुमा बवक़्ते तुलूए फ़जर वाक़े हुई है। जैसा कि ...
मुवर्रेख़ीन का इत्तेफ़ाक़ है कि आपकी विलादत ब सआदत 15 शाबान 225 हिजरी यौमे जुमा बवक़्ते तुलूए फ़जर वाक़े हुई है। जैसा कि दफ़यातुल अयान , रौज़तुल अहबाब , तारीख़ इब्नुल वरदी , नियाबुल मोवद्दता ,, तारीख़े कामिल , तबरी , कशफ़ुल ग़म्मा , जिला उल अयून , उसूले काफ़ी ,, नूरूल अबसार , इरशाद , जामए अब्बासी , आलाम अल वरा और अनवारूल हुसैनिया वग़ैरा में मौजूद है।
बाज़ उलेमा का कहना है कि विलादत का सन् 256 हिजरी और माद्दए तारीख़ नूर है। यानी आप शबे बराअत के एख़तेताम पर बवक़्ते सुबहे सादिक़ आलमे ज़हूर व शहूद में तशरीफ़ लाये हैं।
हज़रत इमाम हसन असकरी (अ स ) की फुफी जनाबे हकीमा ख़ातून का बयान है कि एक रोज़ मैं हज़रत इमाम हसन असकरी (अ स ) के पास गई तो आपने फ़रमाया कि ऐ फुफी आप आज हमारे ही घर में रहिये , क्यों कि ख़ुदा वन्दे आलम मुझे आज एक वारिस अता फ़रमायेगा। मैंने कहा यह फ़रज़न्द किस के बतन से होगा ? आपने फ़रमाया कि बतने नरजिस से मुतावल्लिद हो गा। जनाबे हकीमा ने कहा ! बेटे मैं तो नरजिस में कुछ भी हमल के आसार नहीं पाती , इमाम (अ स ) ने फ़रमाया कि ऐ फुफी नरजिस की मिसाल मादरे मूसा जैसी है , जिस तरह हज़रते मूसा का हमल विलादत के वक़्त से पहले ज़ाहिर नहीं हुआ उसी तरह मेरे फ़रज़न्द का हमल भी बर वक़्त ज़ाहिर होगा। ग़रज़ कि इमाम के फ़रमाने से उस वक़्त वहीं रही। जब आधी रात गुज़र गई तो मैं उठी और नमाज़े तहज्जुद में मशग़ूल हो गई , और नरजिस उठ कर नमाज़े तहज्जुद पढ़ने लगी। उसके बाद मेरे दिल में यह ख़्याल गुज़रा कि सुबह क़रीब है और इमाम हसन असकरी (अ स ) ने जो कहा था वह अभी तक ज़ाहिर नहीं हुआ। इस ख़्याल के दिल में आते ही इमाम (अ स ) ने अपने हुजरे से आवाज़ दी , ऐ फुफी ! जल्दी न किजिये , हुज्जते ख़ुदा के ज़हूर का वक़्त बिलकुल क़रीब है। यह सुन कर मैं नरजिस के हुजरे की तरफ़ पलटी , नरजिस मुझे रास्ते में ही मिलीं , मगर उनकी हालत उस वक़्त मुताग़य्यर थी। वह लरज़ा बर अन्दाम थीं और उनका सारा जिस्म कांप रहा था। (अल बशरा , शराह मोअद्दतुल क़ुरबा पेज न. 139 )
मैंने यह देख कर उनको अपने सीने से लिपटा लिया और सूरा ए क़ुल हो वल्लाह , इन्ना अनज़लना व आयतल कुरसी पढ़ कर उन पर दम किया। बतने मादर से बच्चे की आवाज़ आने लगी , यानी मैं जो कुछ पढ़ती थी वह बच्चा भी बतने मादर में वही कुछ पढ़ता था। उसके बाद मैंने देखा कि तमाम हुजरा रौशन व मुनव्वर हो गया। अब जो मैं देखती हूं तो एक मौलूद मसऊद ज़मीन पर सजदे में पड़ा हुआ है। मैंने बच्चे को उठा लिया। हज़रत इमाम हसन असकरी (अ स ) ने अपने हुजरे से आवाज़ दी ऐ फुफी ! मेरे फ़रज़न्द को मेरे पास लाईये। मैं ले गई , आपने उसे अपनी गोद में बिठा लिया और ज़बान दर दहाने वै क़रद और अपनी ज़बान बच्चे के मूँह में दे दी और कहा कि ऐ फ़रज़न्द , ख़ुदा के हुक्म से बात करो , बच्चे ने इस आयत बिस्मिल्लाह हिर रहमानिर रहीम व नर यदान नमन अल्ल लज़ीना असतज़अफ़रा फ़िल अर्ज़ व नजअल हुम अल वारीसैन की तिलावत की जिसक तरजुमा यह है , कि हम चाहते हैं कि एहसान करें उन लोगों पर जो ज़मीन पर कमज़ोर कर दिये गए हैं और उनको इमाम बनायें और उन्हीं को रूए ज़मीन का वारिस क़रार दें।
इसके बाद कुछ सब्ज़ तारों ने आकर हमें घेर लिया , इमाम हसन असकरी (अ स ) ने उन मे से एक तारे को बुलाया और बच्चे को देते हुए कहा ख़दह फ़ा हिफ़ज़हू इसको ले जा कर इसकी हिफ़ाज़त करो यहां तक कि ख़ुदा इसके बारे में कोई हुक्म दे। क्यो कि ख़ुदा अपने हुक्म को पूरा कर के रहेगा। मैंने इमाम हसन असकरी (अ स ) से पूछा कि यह तारा कौन था और दूसरे तारे कौन थे ? आपने फ़रमाया कि यह जिब्राईल थे और वह दूसरे फ़रिश्तगाने रहमत थे। इसके बाद फ़रमाया कि ऐ फुफी इस फ़रज़न्द को उसकी माँ के पास ले आओ ताकि उसकी आंखें खुनुक हों और महजून व मग़मूम न हो और यह जान ले कि ख़ुदा का वादा हक़ है। व अकसरहुम ला यालमून लेकिन अकसर लोग इसे नहीं जानते इसके बाद इस मौलूदे मसऊद को उसकी माँ के पास पहुँचा दिया गया। (शवाहेदुन नबूवत पेज न. 212 तबा लखनऊ 1905 ई 0 )
अल्लामा हायरी लिखते हैं कि विलादत के बाद आपको जिब्राईल परवरिश के लिये उड़ा ले गये। (ग़ायतुल मक़सूद जिल्द 1 पेज न. 75 )
किताब शवाहेदुन नबूवत और वफ़यातुल अयान व रौज़ातुल अहबाब में है कि जब आप पैदा हुए तो मख़्तून और नाफ़ बुरीदा थे और आपके दाहिने बाज़ू पर यह आयत मन्कूश थी। जाअल अक़्क़ो वा ज़ाहाक़ल बातिल इन्नल बातेला काना ज़हूक़ा यानी हक़ आया और बातिल मिट गया और बातिल मिटने ही के का़बिल था। यह क़ुदरती तौर पर बहरे मुताक़ारिब के दो मिसरे बन गये हैं। हज़रत नसीम अमरोहवी ने इस पर क्या ख़ूब तज़मीन की है। वह लिखते हैं
चश्मो , चराग़ दीदए नरजिस
ऐने ख़ुदा की आँख का तारा
बदरे कमाल , नीमए शाबान
चौदहवां अख़्तर औज बक़ा का
हामिए मिल्लत माहिए बिदअत
कुफ्र मिटाने ख़ल्क़ में आया
वक़्ते विलादत माशा अल्लाह
कु़रआन सूरत देख के बोला
जाअल अक़्क़ो वल हक़्क़ुल बातिल
इन्नल बातेला काना ज़हुक़ा
मोहद्दिस देहलवी शेख़ अब्दुल हक़ अपनी किताब मनाक़िबे आइम्मा अतहार में लिखते हैं कि हकीमा ख़ातून जब नरजिस के पास आईं तो देखा कि एक मौलूद पैदा हुआ है। जो मख़तून और मफ़रूग़ मुंह है यानी जिसका ख़तना किया हुआ है और नहलाने धुलाने के कामों से जो मौलूद के साथ होते हैं बिलकुल मुसतग़नी है। हकीमा ख़ातून बच्चे को इमाम हसन असकरी (अ स ) के पास लाईं , इमाम ने बच्चे को लिया और उसकी पुश्ते अक़दस और चश्मे मुबारक पर हाथ फेरा। अपनी ज़बाने मुतहत उनके मुंह में डाली और दाहिने कान में अज़ान और बाएं में अक़ामत कही। यही मज़मून फ़सल अल ख़त्ताब और बेहारूल अनवार में भी है। किताब रौज़तुल अहबाब और नियाबुल मोवद्दता में है कि आपकी विलादत बमुक़ाम सरमन राय ‘‘सामरह मे हुई है।
किताब कशफ़ल ग़म्मा पेज न. 120 में है कि आपकी विलादत छिपाई गई और पूरी सई की गई कि आपकी पैदाईश किसी को मालूम न हो सके। किताब दमए साकेबा जिल्द 3 पेज न. 194 में है कि आपकी विलादत इस लिये छिपाई गई कि बादशाहे वक़्त पूरी ताक़त के साथ आपकी तलाश में था। इस किताब के पेज न. 192 में है कि इसका मक़सद यह था कि हज़रते हुज्जत को क़त्ल कर के नस्ले रिसालत का ख़ात्मा कर दे।
तारीख़े अबूल फ़िदा में है कि बादशाहे वक़्त मोतज़ बिल्लाह था। तज़किरए ख़वासुल उम्मता में है कि उसी के अहद में इमाम अली नकी़ (अ स ) को ज़हर दिया गया था। मोतज़ के बारे में मुवर्रेख़ीन की राय कुछ अच्छी नहीं है। तरजुमा तारीख़ अल खुलफ़ा अल्लामा सियूती के पेज न. 363 में है कि उसने अपनी खि़लाफ़त में अपने भाई को वली अहदी से माज़ूल करने के बाद कोड़े लगवाये थे और ता हयात क़ैद में रखा था। अकसर तवारीख़ में है कि बादशाहे वक़्त मोतमिद बिन मुतावक्किल था जिसने इमाम हसन असकरी (अ स ) को ज़हर से शहीद किया। तारीख़े इस्लाम जिल्द 1 पेज न. 67 में है कि ख़लीफ़ा मोतमिद बिन मुतावक्किल कमज़ोर मतलून मिज़ाज और ऐश पसन्द था। यह अय्याशी और शराब नोशी में बसर करता था। इसी किताब के पेज न. 29 में है कि मोतमिद हज़रत इमाम हसन असकरी (अ स ) को ज़हर से शहीद करने के बाद हज़रत इमाम मेहदी (अ स ) को क़त्ल करने के दरपए हो गया था।
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