इमाम अली नक़ी (अ.) की ज़िंदगी पर एक संक्षिप्त नज़र।

इमाम अली नक़ी अ.स.
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इमाम अली नक़ी (अ.) ने इस्लामी अहकाम के प्रसारण व प्रकाशन और जाफ़री मज़हब के प्रचार के लिए महत्वपूर्ण क़दम उठाये। और हमेशा लोगों को धार्मिक तथ्यों से अवगत करने में प्रयत्नशील रहे।

हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.) 15 ज़िलहिज्जा 212 हिजरी या 5 रजब को मदीना में पैदा हुए। आपके पिता इमाम मुहम्मद तक़ी (अ.) और माँ समाना हैं। आपका नाम अली, उपनाम हादी व नक़ी और कुन्नियत अबुल हसने सालिस (तीसरा) है। आपको अबुल हसन सालिस कहने का कारण यह है कि चार इमामों की कुन्नीयत अबुल हसन है।


अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली इब्ने अबी तालिब (अ.), हज़रत इमाम मूसा काज़िम (अ.), हज़रत इमाम अली रज़ा (अ.) और इमाम अली नक़ी (अ.)। जब केवल अबुल हसन कहा जाए तो मुराद हज़रत अली (अ.) होते हैं, अबुल हसन अव्वल (प्रथम) इमाम काज़िम (अ.), अबुल हसन सानी (द्वितीय) इमाम रज़ा (अ.) और इसी लिए अबुल हसन सालिस इमाम अली नक़ी (अ.) को कहा जाता है, ताकि पता रहे कि इस अबुल हसन से मुराद कौन है। इमाम अली नक़ी (अ.) और इमाम हसन असकरी (अ.) काफी समय तक सामर्रा के असकर नामक मुहल्ले में रहते थे इसलिए इन दोनों इमामों को अस्क्रीऐन भी कहा जाता है।

इमाम अली नक़ी (अ.) और इमाम हसन असकरी (अ.) काफी समय तक सामर्रा के असकर नामक मुहल्ले में रहते थे इसलिए इन दोनों इमामों को असकरीयेन भी कहा जाता है। इमाम अली नक़ी (अ.) दानशीलता और स्वाभिमान में मशहूर थे और अनाथों के पालन पोषण और फक़ीरों की सहायता में प्रसिद्ध थे।

अली नक़ी (अ.) दानशीलता और स्वाभिमान में मशहूर थे और अनाथों के पालन पोषण और फक़ीरों की सहायता में प्रसिद्ध थे।

इमाम के ज़माने में जो राजा गुज़रे हैं उनके नाम इस प्रकार हैं:

मोतसिम, वासिक़, मुतवक्किल, मुंतसिर, मुसतईन, मोतज़। यह सबके सब दुनिया और पद व धन दौतल के कारण इमाम से ईर्ष्या व बैर रखते थे और अपनी दुश्मनी को ज़ाहिर भी करते थे लेकिन इसके बावजूद इमाम के उच्च गुणों व विशेषताओं को स्वीकार करने पर मजबूर थे। इमाम अ. के ज्ञान का अनुभव उन्होंने कई बार ज्ञानात्मक वाद - विवाद के माध्यम से किया था।

 

इमाम अली नक़ी (अ.) की रातें, अल्लाह तआला से राज़ व नियाज़ व इबाबत में जाग कर गुज़रती थीं। हमेशा सादे कपड़े पहना करते थे। हमेशा उनके चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट सजी रहती थी लेकिन इसके बावजूद उनका रोब लोगों के दिलों पर रहता था।

इमाम अली नक़ी (अ.) को 254 हिजरी में जहर द्वारा शहीद कर दिया गया। मोतज़ अब्बासी ने इमाम अ. को सामर्रा में ज़हर दिया और इमाम को उन्हीं के घर में दफनाया गया, जहां आज आपका पवित्र रौज़ा है।


इमाम अली नक़ी (अ.) के पवित्र कथनः
1. जो तुम से उम्मीदवार हो उसे निराश नहीं करना वरना अल्लाह प्रकोप का शिकार हो जाओगे।
2. लोगों से अदब के साथ बातचीत करो ताकि सम्मानजनक जवाब सुन सको।

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