पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहु अलैहे व आलेही वसल्लम के परिजनों ने धर्म से दिगभ्रमित करने वाले विचारों और अत्याचारी शासनों के अंधकारमयी कालों में, चमकते हुए सूर्य की भांति अत्याचार व अज्ञानता के अंधकार को मिटाया और मिटाना सिखाया ताकि उन मूल्यों को जनता के सामने लाएं जिनका पालन मानवता के लिए आवश्यक है परन्तु जिनकी अनदेखी की जा रही है। वे धर्म से संबंधित बातों के सही उत्तर देने वाले थे।
उन्होंने इस्लामी शिक्षाओं की व्याख्या और उनकी रक्षा की तथा लोगों का सही मार्गदर्शन किया। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के शुभ जन्म दिवस से रजब की पहली तारीख़ सुशोभित हो उठी। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने 57 हिजरी क़मरी में मदीना नगर में आंखें खोलीं। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहु अलैहे व आलेही वसल्लम ने बहुत पहले जाबिर इबने अब्दुल्लाह अंसारी नामक अपने एक साथी को इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के जन्म की शुभ सूचना देते हुए कहा थाः हे जाबिर! तुम उस समय जीवित रहोगे और मेरे पुत्रों में से एक पुत्र का दर्शन करोगे कि जिनका उपनाम बाक़िर होगा। तो मेरा सलाम उन तक पहुंचा देना।
इस प्रकार पैग़म्बरे इस्लाम ने पांचवे इमाम को बाक़िर की उपाधि दी। इमाम को बाक़िरुल उलूम कहा जाता था जिसका अर्थ होता है ज्ञान की गुत्थियों को सुलझाने और उसका विस्तार करने वाला। जाबिर इबने अब्दुल्लाह अंसारी जीवित रहे और वृद्धावस्था में उन्होंने इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के दर्शन किए और पैग़म्बरे इस्लाम का सलाम उन तक पहुंचाया। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम का एक प्रसिद्ध कथन जो उन्होंने अपने एक मित्र को संबोधित करते हुए जिनका नाम जाबिर इबने यज़ीदे जोअफ़ी था कहाः हे जाबिर! क्या किसी के लिए केवल मित्रता का दावा करना पर्याप्त है? ईश्वर की सौगंध कोई व्यक्ति हमारा अनुयायी नहीं मगर यह कि वह ईश्वर से डरे और उसके आदेश का पालन करे।
हमारे अनुयाइयों की पहचान है कि वे विनम्र और ईमानदार होते हैं तथा ईश्वर को बहुत अधिक याद करते हैं। रोज़ा रखते हैं और नमाज़ पढ़ते हैं। माता पिता के साथ भलाई करते हैं, सच बोलते हैं और क़ुरआन की तिलावत करते हैं। निर्धन पड़ोसियों की सहायता करते हैं और दूसरों से अच्छे ढंग से अच्छी बात करते हैं। तो ईश्वर के प्रकोप से डरो और जो कुछ ईश्वर के पास है उसे प्राप्त करने के लिए प्रयास करो।
इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने लगभग 19 वर्षों तक इमामत अर्थात जनता के मार्गदर्शन का ईश्वरीय दायित्व संभाला।
इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के व्यवहार में दो बातें सबसे अधिक दिखायी देती हैं। एक ज्ञान के विस्तार के लिए अथक प्रयास और दूसरे इस्लामी समाज में इमामत के विषय की व्याख्या। इमामत का विषय ऐसा है जो इस्लामी जगत के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। इस बात में संदेह नहीं कि इस्लामी समाजों के सांसारिक मामलों का बेहतर ढंग से संचालन और एक आदर्श जीवन की प्राप्ति, एक ओर इन समाजों के नेताओं के व्यवहार तो दूसरी ओर देश के ज्ञान, संस्कृति एवं अर्थव्यवस्था संबंधी प्रगति पर निर्भर है।
आज विभिन्न ज्ञानों का उत्पादन और उनमें विस्तार तथा उनका स्थानांतरण देशों की सबसे मूल्यवान संपत्ति है। यदि मानव समाज की आवश्यकताओं को शैक्षिक, वैज्ञानिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और सुरक्षा संबंधी क्षेत्रों में विभाजित किया जाए तो वही समाज ऐश्वर्य एवं शांति प्राप्त कर सकता है जो इन आवश्यकताओं को पूरा करने में सफल हो जाए। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने इस बात के दृष्टिगत कि व्यापक ज्ञान और उच्च संस्कृति से संपन्न मुसलमान सफलता की उच्च चोटियों पर पहुंच सकते हैं, इस्लामी शिक्षाओं की व्याख्या की और उनके प्रसार के लिए अथक प्रयास किया और मदीना नगर में एक बड़े विद्यालय की स्थापना की। इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम के वैज्ञानिक व सांस्कृतिक आंदोलन में ज्ञान की विभिन्न शाखाएं शामिल थीं और इमाम ने इस्लामी समाज की निहित क्षमताओं को निखारा।
सभी विद्वानों का यह मानना है कि इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने इस्लामी धर्मशास्त्र की एक शाखा उसूले फ़िक़्ह अर्थात ज्यूरिसप्रूडेन्स के सिद्धांतों का आधार रखा और इस प्रकार इस्लामी विद्वानों के लिए इजतेहाद अर्थात धार्मिक नियमों में शोध का द्वार खोला। जिस समय अत्याचारी उमवी शासक धार्मिक शिक्षाओं में चिंतन से मना करते थे, इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने अपनी चर्चाओं भाषणों और क्लासों में बुद्धि के महत्व का उल्लेख करते हुए लोगों को चिंतन मनन की ओर बुलाया। जैसा कि इस सदंर्भ में इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम का एक कथन हैः ईश्वर लोगों को उनकी बुद्धि के आधार पर परखेगा और उनसे पूछताछ करेगा।
इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम, विद्वानों, विचारकों और धर्मगुरुओं को राष्ट्रों के कल्याण और दुर्भाग्य के लिए ज़िम्मेदार मानते थे। क्योंकि यही लोग अपने वैचारिक व सांस्कृतिक मार्गदर्शन से समाज को परिपूर्णतः या पतन की ओर ले जाते हैं। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की दृष्टि में सत्ता के ध्रुव के रूप में शासक की भी राष्ट्रों के कल्याण या उनकी पथभ्रष्टता में भूमिका होती है। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के एक स्वर्ण कथन का हवाला देते हुए कहते थेः जब भी हमारे समुदाय के दो गुट अच्छे होंगे तो समुदाय के सभी मामले सही दिशा में होंगे और यदि वे दोनों गुट पथभ्रष्ट हो जाएं तो हमारे पूरे समुदाय को पथभ्रष्टता की ओर ले जाएंगे एक धर्मगुरुओं व विद्वानों का गुट और दूसरा शासकों व अधिकारियों का।
इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम धार्मिक शिक्षाओं को अंधविश्वास व भ्रांतियों से शुद्ध करने के लिए दो महत्वपूर्ण स्रोतों अर्थात क़ुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम के व्यवहार व शिष्टाचार पर बल देते हुए इन दोनों को शिक्षाओं व विचारों का मानदंड बताते थे। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम क़ुरआन के सर्वश्रेष्ठ व्याखयाकार के रूप में क़ुरआनी आयतों की सही व पथप्रदर्शक व्याख्या कर विरोधियों व अवसरवादियों को लाजवाब कर देते थे। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम अपनी बात के तर्क के रूप में सदैव ईश्वर के कथन को पेश करते और अपने साथियों से कहा करते थेः जब भी मैं कोई बात कहूं तो पवित्र क़ुरआन से उसका संबंध हमसे पूछो ताकि उससे संबंधित आयत की मैं तुम्हारे सामने तिलावत करूं।
इमाम चाहते थे कि जो भी बात इस्लाम के हवाले से कही जाए उसका मापदंड क़ुरआन हो और समाज में सत्य और असत्य के बीच अंतर करने वाली किताब के रूप में क़ुरआन का स्थान हो। इमाम मोहम्म बाक़िर अलैहिस्सलाम सत्य और असत्य के बीच अंतर के लिए दूसरा मापदंड पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम और उनके पवित्र परिजनों के शिष्टाचार व व्यवहार को बताते थे। इमाम मोहम्म बाक़िर अलैहिस्सलाम इस बात पर बहुत बल देते थे कि पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजन ही मार्गदर्शक हैं।
इमाम मोहम्म बाक़िर अलैहिस्सलाम इस्लामी एक इस्लामी समाज में मार्गदर्शक की आवश्यकता को बयान करते हुए एक तुल्नात्मक बयान में इमाम व मार्गदर्शक के महत्व का इन शब्दों में उल्लेख करते हैः जब भी कोई व्यक्ति किसी लंबे मार्ग पर चलता है तो उसका प्रयास होता है कि उसे मार्गदर्शन करने वाली कोई ऐसी चीज़ मिल जाए जो उसे ग़लत मार्ग पर जाने से बचा ले अब जबकि मनुष्य के सामने ईश्वरीय मूल्यों व आध्यात्मिक मार्गों की पहचान के मार्ग में बहुत सी समस्याएं व जटिल स्थिति होती है और उसे परिपूर्णतः तक पहुंचने के लिए एक ऐसे मार्गदर्शक की आवश्यकता होती है जिससे वह संतुष्ट रहे तो प्रयास करो कि धर्म के मार्ग और आध्यात्मिक वास्तविकताओं को समझने के लिए अपने लिए एक मार्गदर्शक चुन लो।
इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम इमामत अर्थात जनता के ईश्वरीय मार्गदर्शन के महत्व के बारे में कहते हैः इस्लाम पांच खंबो पर टिका हैः नमाज़, रोज़ा, ज़कात हज और विलायत और विलायत इन सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। विलायत का अर्थ होता है इस्लामी नियमों के अनुसार चलायी जाने वाली व्यवस्था का प्रमुख और स्पष्ट है कि यह काम पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास के पश्चात उनके पवित्र परिजनों और उनके प्रतिनिधियों के अतिरिक्त कोई नहीं कर सकता था।
यदि समाज का संचालक व मार्गदर्शक सही न होगा तो बहुत से इस्लामी आदेशों का पालन नहीं हो सकेगा या यह कि उनके मुख्य बिन्दुओं की अनदेखी की जाएगी। यदि इस्लामी समाज के उपासना संबंधी, आर्थिक, सैन्य और राजनैतिक मामलों में से हर एक का सही निरीक्षण न होगा तो उसके सही पालन की गारेंटी नहीं दी जा सकती और इस बात में संदेह नहीं कि एक सदाचारी व समझदार नेता समाज में न्याय के व्यवहारिक होने की भूमि प्रशस्त करते हैं।
इस संदर्भ में इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैः न्याय का विभूतियों भरा मैदान कितना व्यापक है कि जब शासक लोगों पर न्याय के साथ शासन करते हैं तो आम लोग को आर्थिक समृद्धता व शांति प्राप्त होती है।
इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम संसार में चमक रहे सूर्य की भांति ज्ञान के क्षितिज पर चमके और उनके महान स्थान की व्याख्या के लिए इस इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि इस्लामी स्रोतों में सबसे अधिक कथन इमाम मोहम्मद बाक़िर और उनके सुपुत्र हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम के हैं। एक बार फिर इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के शुभ जन्म दिन पर हार्दिक बधाई के साथ कार्यक्रम का अंत उनके एक स्वर्ण कथन से कर रहे हैः
इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैः परिपूर्णतः तीन चीज़ों में निहित हैः धर्म का ज्ञान और उसमें सोच विचार, समस्याओं के समय धैर्य और जीवन की आवश्यकताओं की प्राप्ति के लिए सुनियोजित कार्यक्रम में।
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