गुल फिशा है रहमते परवरदिगार
मूसाऐ काज़िम के घर आई बहार।
कौन आया सर फरीश्तो के झुके
फातिमा की तरह से आली विक़ार।
किसकी आमद है के लब पर दीन के
फातिमा का नाम आये बार बार।
नूर के घर नूर की उतरी किरन
दामने ज़ुल्मत हुआ है तार तार।
फातिमा, मासूमाऐ क़ुम आ गई
आ गया क़ल्बे पयम्बर को करार।
हो मुबारक आपको मौला रज़ा
आमदे हमशीराऐ आली विक़ार।
मुस्कराहट है लबे इस्लाम पर
आ गई दीने नबी की जिम्मेदार।
फ़ख्रे मरियम फ़ख़्रे हव्वा के लिए।
गिर रहे है इस्मतो के आबशार।
अज़मतो की इस बुलंदी पर है ये
उनके आगे सिर ब सजदा कोहसार।
रिज्स इनके पास आ सकता नहीं
आयते ततहीर है खेंचे है हिसार।
अहलेबैत मुस्तफा के वास्ते
आपका रोज़ा हुआ सद इफ़्तिख़ार।
फिर सजाई जा रही है कायनात
धुल रही है फिर कबाऐ दागदार।
एक जानिब भाई इक जानिब बहन
दरमियाँ उम्मीद है मिदहत गुजार
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