तरजुमा कुरआने करीम (मौलाना फरमान अली) पारा-16

कुरआन मजीद
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ख़िज़्र ने कहा क्यों ने आप से (मुक़र्रर) न कह दिया था कि आप मेरे साथ हरगिज़ नहीं सब्र कर सकेंगे मूसा ने कहा (ख़ैर जो हुआ सो हुआ) अब अगर मैं आप से किसी चीज़ के बारे में पूछ गछ करूं तो आप मुझे अपने साथ न रखिएगा बेशक आप मेरी तरफ से माज़रत (की हद को) पहुंच गए ग़रज़ (ये सब को हुआ कर फिर) दोनों आगे चले यहां तक कि जब एक गांब वालों के पास पहुंचे तो वहां के लोगों से कुछ खाने को मांगा तो उन लोगों ने दोनों को मेहमान बनाने से इंकार कर दिया फ़िर उन दोनों ने उसी गांव में एक दीवार को देखा कि गिरना ही चाहती थी तो ख़िज़्र ने उसे सीधा खड़ा कर दिया उस पर मूसा ने कहा(1) अगर आप चाहते तो (उन लोगों से) उसकी मज़दूरी ले सकते थे (ताकि खाने का सहारा होता) ख़िज़्र ने कहा मेरे और आप के दरमियान(2) छुट्टम छुट्टा
अब जिन बातों पर आप से सब्र न हो सका मैं अभी आप को उनकी अस्ल हक़ीक़त बताए देता हूं (लिजिए सूनिए) वह कश्ती (जिस में मैंने सुराख़ कर दिया था) तो चन्द ग़रीबों की थी जो दरिया में मेहनत करके गुज़ारा करते थे मैंने चाहा कि उसे ऐबदार बना दूं (क्योंकि) उनके पीछे पीछे एक (ज़ालिम) बादशाह आता था कि तमाम कश्तियां ज़बरदस्ती बेगार में पकड़ लेता था और वह जो लड़का जिस को मैंने मार डाला तो उसके मां बाप दोनों (सच्चे) ईमानदार हैं तो मुझ को अंदेशा हुआ कि (ऐसा न हो कि ब़ड़ा होकर) उनको भी अपनी सरकशी और कुफ़्र में फंसा दे तो हमने चाहा कि (हम उसको मार डालें और) उनका परवरदिगार उसके बदले में (ऐसा फ़रज़न्द) अता फ़रमाए जो उससे पाक नफ़्सी और पाक क़रांबत में बेहतर हो
और वह जो दिवार थी (जिसे मैंने खड़ा कर दिया) तो वह शहर के दो यतीम लड़कों की थी और उसके नीचे उन्हीं दोनों लड़कों का ख़ज़ाना(1) (गाड़ा हुआ था) और उन लड़कों का बाप एक नेक आदमी था तो तुम्हारे परवरदिगार ने चाहा कि दोनों लड़के अपनी जवानी को पहुंचे तो तुम्हारे परवरदिगार की मेहरबानी से अपना ख़ज़ाना निकाल लें और मैंने (जो कुछ किया) कुछ अपने इख़तेयार से नहीं किया (बल्कि खुदा के हुक्म से) ये हक़ीक़त हैं कि उन वाक़ेयात की जिन पर आप से सब्र ने हो सका

और (ऐ रसूल) तुम से लोग(2) जुलक़रनैन का हाल (इम्तेहान) पूछा करते हैं तुम उनके जवाब में कह दो कि मैं भी तुम्हें उसका कुछ हाल बताए देता हूं (ख़ुदा फ़रमाता है कि) बेशक हमने उनको ज़मीन पर कुदरत हुकूमत अता की थी और हमने उसे हर चीज़ के साज़ व सामान दे रखे थे वह एक सामान (सफ़र के) पीछे पड़ा यहां तक कि जब (चलते-चलते) आफ़ताब के गुरूब होने की जगह पहुचा तो आफ़ताब उनको ऐसा दिखाई दिया कि (गोया) वह काली-काली कीचड़ के चश्में में डूब रहा है और उसी चश्में के क़रीब एक क़ौम को भी(3) आबाद पाया हमने कहा ऐ जुलक़रनैन (तुमको इख़्तेयार है) ख़्वाह उनके कुफ़्र की वजह से उनकी सज़ा करो (कि ईमान लाएं) या उनके साथ हुस्ने सलूक का शेवा इख़्तेयार करो (कि ख़ुद ईमान क़बूल करें) जुलक़रनैन ने अर्ज़ की जो शख़्स सरकशी करेगा तो हम उसकी फ़ौरन सज़ा करेंगे (आख़िर) फिर तो वह (क़यामत में) अपने परवरदिगार के सामने लौटा कर लाया ही जाएगा और वह बुरी से बुरी सज़ा ही देगा और जो शख़्स ईमान कबूल करेगा और अच्छे-अच्छे काम करेगा तो (वैसा ही) उसके लिए अच्छे से अच्छा बदला है और हम न बहुत जल्द उसे अपने कामों में से आसान काम (करने) को कहेंगे
फिर उसने एक दूसरी राह इख्तेयार की यहां तक कि जब चलते-चलते आफ़ताब के तुलूअ होने की जगह पहुंचा तो आफ़ताब उसे ऐसा ही दिखाई दिया (गोया) कुछ लोगों के सर पर उस तरह तुलूअ कर रहा है जिन के लिए हमने आफ़ताब के सामने कोई आड़ नहीं(1) बनाया था और था भी ऐसा ही और जुलक़रनैन के पास जो कुछ भी था हम को उससे पूरी वाक़फ़ियात थी (गरज़) उसने फिर एक और राह इख़्तेयार की यहां तक कि जब चलते-चलते रोम में एक पहाड़ के कंगूरों के दिवारों के बीचे बीच पहुंच गया तो उन दोनों दिवारों के उस तरफ़ एक क़ौम को (आबाद) पाया जो बात चीत कुछ समझ ही नहीं सकती थी उन लोगों ने मुतरजिम के ज़रिए से अर्ज़ की ऐ जुलक़रनैन (इसी घाटी के उधर) याजूज माजूज(2) की क़ौम है जो मुल्क में फ़साद फैलाया करते हैं तो अगर आप की इजाज़त हो तो हम लोग उस ग़रज़ से आप के पास चन्दा जमा करें कि आप हमारे और उनके दरमियान कोई दीवार बना दें जुलक़रनैन ने कहा कि मेरे परवरदिगार ने ख़र्च की जो कुदरत मुझे दे रखी है वह (तुम्हारे चंदे से) कहीं बेहतर है (माल की ज़रुरत नहीं) तुम फ़क़त मुझे कूवत से मदद दो तो मैं तुम्हारे और उनके दरमियान एक सेक बनादूं (अच्छा तो) मुझे (कहीं से) लोहे की सिलें ला दो (चुनांचे वह लोग लाए और एक बड़़ी दिवार बनाई) यहा तक कि जब दोनों कंगूरों के दरमियान दिवार को बुलंद करके उनको बराबर कर दिया तो हुक्म दिया कि (उसके गिर्द आग लगाकर) धौको यहां तक कि जब उसके (धौकते धौकते) लाल अंगारा बना दिया तो कहा कि अब हमको तांबा दो कि उसको पिंघला कर उस दीवार पर उंडेल दें (गरज़) वह ऐसी ऊंची मज़बूत दिवार बनी कि न तो याजूज व माजूज उस पर चढ़ ही सकते थे और न उसमें नक़ब लगा सकते थे जुलक़रनैन ने (दिवार को देखकर) कहा यह मेरे परवरदिगार की मेहरबानी है मगर जब मेरे परवरदिगार का वादा (क़यामत) आयेगा तो उसे ढ़ा कर हमवार कर देगा(1) और मेरे परवरदिगार का वादा दरिया की लहरों की तरह गड-मड(2) हो जांए और सूर फूंका जाएगा तो हम सबको इक़ट्ठा करेंगे और उसी दिन जहन्नुम को उन काफ़िरों के सामने खुल्लम खुल्ला पेश करेंगे जिन की आँखे हमारी याद से परदे थीं।
और (रसूल की दुश्मनी की सच्ची बात) कुछ भी सुन ही न सकते थे तो क्या जिन लोगों ने कुफ्र इख्तेयार किया इस ख़याल में है कि हमको छोड़ कर हमारे बंदो को अपना सरपरस्त बना लें (कुछ पूछ गछ न होगी अच्छा सुनों) हमने काफ़िरों की मेहमानदारी के लिए जहन्नुम तैयार कर रखी है (ऐ रसूल) तुम कह दो कि क्या हम उन लोगो का पता बता दें जो लोग आमाल की हैसियत से बहुत घाटे में हैं (यह) वह लोग (हैं) जिनकी दुनायावी ज़िन्दगी की सई व कोशिश सब अकारत(1) हो गयी और वह इस ख़ाम ख़याल में हैं कि वह यक़ीनन अच्छे अच्छे काम कर रहे हैं यही वह लोग हैं जिन्होंने अपने परवरदिगार की आयतों से और (क़यामत के दिन) उसके सामने हाज़िर होने से इंकार किया तो उनका सब किया कराया अकारत हुआ तो हम उसके लिये क़यामत के दिन मीज़ाने हिसाब भी क़ायम न करेंगे (और सीधे जहन्नुम में झोंक देंगे) यह जहन्नुम उन की करतूतों का बदला है कि उन्होंने कुफ्र इख्तेयार किया और मेरी आयतों और मेरे रसूलों को हंसी ठठ्ठा बना लिया बेशक जिन(2) लोगों ने ईमान कुबूल किया और अच्छे अच्छे काम किये उनकी मेहमानदारी के लिये फिरदौस (बरी) के बाग़ात होंगे जिन में वह हमेशा रहेंगे और वहां से हिलने की भी ख़्वाहिश न करेंगे
(ऐ रसूल उन लोगों से) कहो कि अगर मेरे परवरदिगार की बातों के (लिखने के) वास्ते समंदर (का पानी) भी स्याही बन जाए तो क़ब्ल उसके कि मेरे परवरदिगार की बातें ख़त्म हों समंदर ही ख़त्म हो जाएगा अगरचे हम वैसा ही (एक समंदर) उसकी मदद को लाएं (ऐ रसलू) कह दो कि मैं भी तुम्हारा ही ऐसा एक आदमी हूं (फ़र्क़ इतना है) कि मेरे पास यह वही आई है कि तुम्हारा माबूद यक्ता माबूद है- तो जो शख़्स आरजूमंद होकर अपने परवरदिगार के सामने हाजि़र होगा तो उसे अच्छे काम करने चाहिए और अपने परवरदिगार की इबादत में किसी को शरीक(1) न करें।
सूरे: मरियम
सूरे: मरियम मक्के में नाज़िल हुआ और इसकी 68 आयतें हैं।
(ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला हैं।
क हा या अस यह तुम्हारे परवरदिगार की मेहरबानी का ज़िक्र है जो (उसने) अपने ख़ास बन्दे ज़करिया के साथ की थी कि जब ज़करिया ने अपने परवरदिगार को धीमी आवाज़ से(3) पुकारा (और) अर्ज़ की ऐ मेरे पालने वाले मेरी हड्डिया कमज़ोर हो गयी और सर है कि बुढ़ापे कि (आग से) भड़क उठा (सफ़ेद हो गया) है और ऐ मेरे पालने वाले मैं तो तेरी बारगाह में दुआ करके कभी महरूम नहीं रहा हूं और मैं अपने (मरने के) बाद अपने वारिसों से सहमा जाता हूं (कि मुबादा दीन को बरबाद करें) और मेरी बीवी (उम्मे कुलसूम बिन्ते इमरान) बांझ है पस तू मुझको अपनी बारगाह से एक जानाशीन फ़रज़न्द अता फ़रमा जो मेरी और याकूब की नस्ल की मीरास का मालिक हो और मेरे परवरदिगार और उसको अपना पसंदीदा बंदा बना
(ख़ुदा ने फ़रमाया) हम तुमको एक लड़के की खुशख़बरी देते हैं जिसका नाम यहिया होगा और हमने उससे पहले किसी को उसका हमनाम पैदा नहीं किया(4) ज़करिया ने अर्ज़ कि या इलाही (भला) मुझे लड़का क्यों कर होगा और हालत यह है कि मेरी बीवी तो बांझ है और मैं ख़ुद हद से ज़्यादा बुढ़ापे को पहुँच गया हूँ (खुदा ने) फ़रमाया ऐसा ही होगा तुम्हारा परवरदिगार फ़रमाता है कि यह बात हम पर (कुछ दुश्वार नहीं) आसान है और (तुम अपने को तो ख़याल करो कि) उससे पहले तुमको पैदा किया हालांकि तुम कुछ भी न थे ज़करिया ने अर्ज़ कि इलाही मेरे लिये कोई अलामत मुक़र्रर कर दे हुक्म हुवा तुम्हारी पहचान यह है कि तुम तीन रात (दिन) बराबर लोगों से बात नहीं कर सकोगे फिर ज़करिया (अपने इबादत के) हुजरे से अपनी क़ौम के पास (हिदायत देने के लिये) निकले तो उन से इशारा किया कि तुम लोग सुबह व शाम बराबर उसकी तरबीह (व तक़दीस) किया करो।
(ग़रज़ यहिया पैदा हुए और हमने उनसे कहा) ऐ यहिया किताब (तौरेत) मज़बूती के साथ लो और हमने उन्हें बचपन ही में अपनी बारगाह से नबूवत और रहमदिली और पाकिज़गी अता फ़रमाई और वह (खुद भी)(1) परहेज़गार और अपने मां बाप के हक़ में सआदत मंद थे और सरकश नाफ़रमान न थे और (हमारी तरफ़ से) उन पर (बराबर) सलाम है जिस दिन(2) पैदा हुए और जिस दिन मरेंगे और जिस दिन (दोबारा) ज़िन्दा उठा खड़े किये जाएंगे।
और (ऐ रसूल) कुरआन में मरियम का भी(3) तज़किरा करो कि जब वह अपने लोगों से अलग होकर पूरब वाले मकान में (गुस्ल के वास्ते) जा बैठी फिर उसने उन लोगों से परदा कर लिया तो हम ने अपनी रूह (जिब्राईल) को उन के पास भेजा तो वह अच्छे खासे आदमी की सूरत बन कर उन के सामने खड़ा हुवा (वह उसको देख कर घबराई और) कहने लगी अगर तू परहेज़गार है तो मैं तुझ से खुदा की पनाह मांगती हूं (मेरे पास से हट जा) जिब्राईल ने कहा तो मैं साफ़ तुम्हारे परवरदिगार का पैग़म्बर (फ़रिश्ता) हूं ताकि तुम को पाक व पाकीज़ा लड़का अता करूं मरियम ने कहा मुझे लड़का क्योंकर हो सकता है हालांकि किसी मर्द ने मुझे छुआ तक नहीं है और मैं न बदकार हूं।
जिब्राईल ने कहा तुमने कहा ठीक (मगर) तुम्हारे परवरदिगार ने फ़रमाया है, कि ये बात (बे बाप के लड़का पैदा करना) मुझ पर आसान है ताकि उस को (पैदा करके) लोगों के वास्ते (अपनी क़ुदरत की) निशानी क़रार दे और अपनी ख़ास रहमत (का ज़रिया) बना ले और ये बात फ़ैसल-शुदा है ग़रज़ लड़के के साथ आप ही आप हामला हो गई फिर उसकी वजह से लोगों से अलग एक दूर के मकान में चली गई फिर जब जनने का वक़्त क़रीब आया तो दर्दज़ाह उन्हें एक खजूर के (सूखे) दरख़्त के जड़ में ले आया और (बेकसी व शर्म से) कहने लगी काश मैं उस से पहले मर जाती और (नापैद होकर) बिलकुल भूली बिसरी(1) हो जाती तब जिब्राईल ने मरियम के पास की तरफ़ से आवाज़ दी कि तुम कुढ़ो नहीं देखो तो तुम्हारे परवरदिगार ने तुम्हारे क़रीब ही नीचे चश्मा जारी कर दिया है और खुरमें की जड़ (पकड़ कर) अपनी तरफ़ हिलाओ तुम पर पक्के पक्के ताज़ा खुरमे झड़ पड़ेंगे फिर (शौक़ से ख़ुरमे) खाओ और (चश्मे का पानी) पियो और (लड़के से) अपनी आँख ठंडी करो फिर अगर तुम किसी आदमी को देखो (और वह तुम से कुछ पूछे) तो तुम (इशारे से) कह देना कि मैं ने खुदा के वास्ते रोज़े की नज़्र की थी तो मैं आज हरगिज़ किसी से बात नहीं कर सकती फिर मरियम उस लड़के को अपनी गोद में लिये हुए अपनी क़ौम के पास आई वह लोग देख कर कहने लगे।
ऐ मरियम तुमने तो यक़ीनन बहुत बुरा काम किया ऐ हारून(1) की बहन न तो तेरा बाप ही बुरा आदमी था और न तो तेरी माँ ही बदकार थी (ये तूने क्या किया) तो मरियम ने उस ल़ड़के कि तरफ़ ईशारा किया (कि जो कुछ पूछना है उस से पूछ ले) और वह लोग बोले (भला) हम गोद के बच्चे से क्यों कर बात करे) (उस पर वह बच्चा) (कुदरते ख़ुदा से) बोल उठा कि मैं बेशक ख़ुदा का बंदा हूं मुझको उसी ने किताब (इंजील) अता फ़रमाई है और मुझको नबी बनाया और मैं (चाहे) कहीं रहूं मुझको मुबारक बनाया और मुझको जब तक ज़िन्दा हूँ नमाज़ पढ़ने ज़कात देने की ताकीद की है और मुझको अपनी वालदा का फ़रमाबरदार (बनाया) और (अल्हम्दोलिल्लाह कि) मुझ को सरकश नाफ़रमान नहीं बनाया और (खु़दा की तरफ़ से) जिस दिन मैं पैदा हुआ हूं और जिस दिन मरूंगा मुझ पर सलाम है और जिस दिन (दोबारा) ज़िन्दा उठा कर खड़ा किया जाऊंगा।
ये है मरियम के बेटे ईसा का सच्चा (सच्चा) क़िस्सा जिस में ये लोग (ख़्वाह म ख़्वाह) शक किया करते(2) हैं ख़ुदा के लिये ये किसी तरह सज़ावार नहीं कि वह (किसी को) बेटा बनाए वह पाक व पाकीज़ा है जब वह किसी काम का करना ठान लेता है तो बस उसक को कह देता है कि हो जा तो वह हो जाता है और उस में तो शक ही नहीं कि ख़ुदा (ही) मेरा (भी) परवरदिगार है और तुम्हारा (भी) है तो सब के सब उसी की इबादत करो यही (तौहीद) सीधा रास्ता है।
(और यही दीन ईसा ले कर आए थे) फिरक़ों ने बाहर इख्तेलाक़ किया तो जिन लोगों ने कुफ़्र इख़्तेयार किया उन के लिए बड़े (सख़्त दिन ख़ुदा के हजूर) हाज़िर होने से ख़राबी है जिस दिन ये लोग हमारे हजूर में हाज़िर होंगे क्या कुछ सुनते देखते होंगे मगर आज तो नाफ़रमान लोग खुल्म-खुल्ला गुम्राही में है।
और (उस वक़्त तो) ये लोग ग़फ़्लत में (व अफ़सोस) के दिन से डराओ जब (क़तई) फ़ैसला कर दिया जाएगा और (उस वक़्त तो) ये लोग ग़फ़्लत में (पड़े हैं) और ईमान नहीं लाते उसमें शक नहीं कि (एक दिन) ज़मीन के और जो कुछ उस पर है (उसके) हम ही वारिस होंगे (और सब नेस्त व नाबूद हो जाएंगे) और सब के सब हमारी तरफ़ लौटा जाएंगे और (ऐ रसूल) कुरआन में इब्राहीम का (भी) तज़किरा करो उसमें शक नहीं कि वह बड़े सच्चे नबी थे- जब उन्होंने अपने (चचा और मुँह बोले) बाँप से कहा कि ऐ अब्बा आप क्यों ऐसी चीज (बुत) की इबादत करते हैं जो न सुन सकता है और न देख सकता है और न कुछ आप के काम ही आ सकता है- ऐ मेरे अब्बा यक़ीनन मेरे पास वह इल्म आ चुका है जो आप के पास नहीं आय़ा तो आप मेरी पैरवी कीजिए- मैं आप को (दीन की) सीधी राह दिखा दूंगा ऐ अब्बा, आस शैतान की पैरवी न कीजिए (क्योंकि) शैतान यक़ीनन ख़ुदा का नाफ़रमान (बन्दा) है ऐ अब्बा मैं यक़ीनन उस से डरता हूँ कि (मुबादा) खुदा की तरफ़ से आप पर कोई अज़ाब नाज़िल हो तो (आख़िर) आप शैतान के साथी बन जाएं।
(आज़र ने) कहा (क्यों) इब्राहीम। क्या तू मेरे माबूदों को नहीं मानता है- अगर तू (उन बातों से) किसी तरह बाज़ न आएगा तो (याद रहे) मैं तुझे संगसार करूंगा और तू मेरे पास से हमेशा के लिए दूर हो जा इब्राहीम ने कहा (अच्छा तू) मेरा सलाम(1) कीजिए (मगर उस पर भी) मैं अपने परवरदिगार से आपकी बख़शिश की दुआ करूंगा (क्योंकि) बेशक वह मुझ पर ब़ड़ा मेहरबान है और मैं ने आपको (भी) और उन बुतों को (भी) जिन्हें आप लोग ख़ुदा को छोड़ कर पूजा करते हैं (सब को) छोड़ और अपने परवरदिगार ही की इबादत करूंगा उम्मीद है कि मैं अपने परवरदिगार से महरूम न रहूंगा गरज़ इब्राहीम ने उन लोगों को और जिसकी ये लोग ख़ुदा को छोड़ कर इबादत करते थे छोड़ा तो हमने उन्हें इसहाक़ व याकूब (सी औलाद) अता फ़रमाई और हर एक को नबुवत के दर्जे कर फाएज़ किया और उन सबको अपनी रहमत से कुछ इनायत फ़रमाया और हमने उनके लिए आला दर्जे का ज़िक्रे ख़ैर(2) (दुनियाँ में भी) क़रार दिया
और (ऐ रसूल) कुरआन में (कुछ) मूसा का (भी) तज़कीरा करो उसमें शक नहीं कि वह (मेरा) बन्दा और साहिबे किताब व शरीअत नबी था और हमने उनको (कोहे) तूर की दाहिनी तरफ़ से आवाज़ दी और हमने उन्हें राज़ व नियाज़ की बातें करने के लिए अपने क़रीब बुलाया और हमने उन्हें अपनी ख़ास मेहरबानी से उन के भाई हारून को (उन का वज़ीर बना कर) इनायत फ़रमाया
(ऐ रसूल) कुरआन में इस्माईल का (भी) तज़कीरा करो उस में शक नहीं कि वह वादे के(1) सच्चे थे और भेजे हुए पैग़म्बर थे और अपने घर के लोगों को नमाज़ पढ़ाने और ज़कात देने की ताकीद किया करते थे और अपने परवदिगार की बारगाह में पसंदीदा थे।
और (ऐ रसूल) कुरआन में इद्रीस(2) का भी तज़कीरा उस में शक नहीं कि वह बड़े सच्चे (बन्दे और) नबी थे और हमने उनको बहुत ऊंची जगह (बेहिश्त में) बुलन्द कर (के पहुंचा) दिया ये अम्बिया लोग जिन्हें ख़़ुदा ने अपनी नेमत दी आदम की औलाद से हैं और उनकी नस्ल से जिन्हें हमने (तूफ़ान के वक़्त) नूह के साथ (कश्ती पर) सवार कर लिया था और इब्राहीम व याकूब की औलाद से हैं और उन लोगों में से हैं जिन की हमने हिदायत की और मुन्तख़ब किया जब उनके सामने ख़ुदा की (नाज़िल की हुई) आयते पढ़ी जाती थी तो सज्दे में ज़ारो क़तार रोते हुए गिर प़ड़ते थे फिर उनके बाद कुछ मख़लूक़ (उनके) जानाशीन(1) हुए जिन्होंने नमाज़े खोई और नफ़सानी ख़्वाहिशों के चेले बन बैठे अनक़रीब ही यह लोग (अपनी) गुमराही (के ख़मयाज़े) से मिलेंगे मगर (हां) जिसने तौबा कर लिया और अच्छे-अच्छे काम किये तो ऐसे लोग बेहिश्त में दाख़िल होंगे और उन पर कुछ भी जुल्म नहीं किया जाएगा (वह) सदाबहार बागात में (रहेंगे) जिनका ख़ुदा ने अपने बन्दों से ग़ाएबाना वादा कर लिया है बेशक उसका वादा आने वाला है।
वह लोग वहां सलाम के सिवा कोई बेहूद बात सुनेंगे ही नहीं मगर हर तरफ़ से इस्लाम ही इस्लाम (की आवाज़ आएगी) और वहां उनका खाना सुबह व शाम (जिस वक़्त चाहेंगें) उनके लिए (तैयार) रहेगा यही बेहिश्त है कि हमारे बन्दों में जो परहेज़गार होगा हम उसे उसका वारिस बनाएं और (ऐ रसूल) हम लोग(2) (फ़रिश्ते) आपके परवरिदगार के हुक्म बगै़र (दुनियां में) नहीं नाज़िल होते जो कुछ हमारे सामने है और जो कुछ हमारे पीठ पीछे है और जो कुछ उनके दरमियान मे हैं (गरज़ सब कुछ) उसी का है और तुम्हारा परवरदिगार कुछ भुलक़्कड़ नहीं सारे आसमान व ज़मीन का मालिक है उन चीज़ों का भी जो दोनों के दरमियान में है तो तुम उसी की इबादत करो और उसी की इबादत पर साबित क़दम रहो भला तुम्हारे इल्म में उसका कोई हमनाम भी है।
और (बाज़) आदमी(3) (अबी बिन ख़लफ़) ताज्जुब से कहा करते हैं कि क्या जब मैं मर जाऊँगा तो जल्दी से जीता जागता (क़ब्र से) निकाला जाऊँगा क्या वह (आदमी) उस को नहीं याद करता कि उसको उससे पहले जब वह कुछ भी न था पैदा किया था तो वह (ऐ रसूल) तुम्हारे परवरदिगार की (अपनी) क़सम हम उनको और शैतान को इकट्ठा करेंगे फिर उन सब को जहन्नुम के गिरदा गिर्द घुटनों के बल हाज़िर करेंगे फिर हर गिरोह में से ऐसे लोगों को अलग निकाल लेंगे (जो दुनिया में) ख़ुदा से औरों की निसबत अकड़े-अकड़े फिरते थे फिर जो लोग जहन्नुम में झोंके जाएंगे ज़्यादा सज़ावार हैं हम उनसे खूब वाक़िफ हैं और तुममें से कोई ऐसा नहीं जहन्नुम पर से होकर न गुज़रे (क्योंकि पुले सिरात उसी पर है) यह तुम्हारे परवरदिगार पर हतमी और लाज़िमी (वादा) है फिर हम परहेज़गारी को बचाएंगे और नाफ़रमानों को घुटनों के बल उसी पर छोड़ देंगे और जब हमारी वाज़ेह रौशन आयतें उनके सामने पढ़ी जाती हैं तो जिन लोगों ने कुफ़्र किया ईमानदारों से पूछते हैं (भला ये तो बताओ कि हम तुम) दोनों फ़रीक़ों में से मरतबे में से कौन ज़्यादा बेहतर है और किसकी महफ़िल ज़्यादा अच्छी है क्योंकि हमने उनसे पहले बहुत सी जमातों को हलाक कर छोड़ा जो उनसे साज़ व समान और ज़ाहिरी नमूद में कहीं बढ़ चढ़ के थीं
(ऐ रसूल) कह दो कि जो शख़्स गुमराही में पड़ा है तो ख़ुदा उसको ढ़ील देता चला जाता है यहां तक कि उस चीज़ को (अपनी आंखों से) देख लेंगे जिनका उनसे वादा किया गया है या अज़ाब या क़यामत को उस वक़्त उन्हें मालूम हो जाएगा कि मर्तबे में कौन बेहतर है और लश्कर (जत्थे) मैं कौन कमज़ोर है (बेक़स) है और जो लोग राहे रास्त पर हैं ख़ुदा उनकी हिदायत और ज़्यादा करता जाता है और बाक़ी रह(1) जाने वाली लेकियां तुम्हारे परवरदिगार के नज़दीक सवाब की राह से भी बेहतर हैं और अंजाम के एतबार से (भी) बेहतर हैं।
(ऐ रसूल) क्या तुमने उस शख़्स(2) पर भी नजर की जिसने हमारी आयतों से इंकार किया और कहने लगा कि (अगर क़यामत हुई तो भी) मुझे माल और औलाद ज़रुर मिलेगी क्या उसे ग़ैब का हाल मालूम हो गया है या उसने ख़ुदा से कोई अहद (व पैमान) ले रखा है हरगिज़ नहीं जो कुछ ये बकता है (सब) हम अभी से लिखे लेते हैं और उसके लिये और ज़्यादा अज़ाब बढ़ाते हैं और जो माल व औलाद की निसबत बक रहा है हम ही उसके मालिक हो बैठेंगे और यह हमारे पास तन्हा (नीकबीनी व दोगोश) आएगा और उन लोगों ने ख़ुदा को छोड़ कर दूसरे दूसरे माबूद बना रखे थे ताकि वह उनकी इज्ज़त की बाएस हों हरगिज़ नहीं (बल्कि) वह माबूद खुद उनकी इबादत से इंकार करेंगे और (उल्टे) उनके दुश्मन हो जाएंगे (ऐ रसूल) क्या तुमने उस बात को नहीं देखा कि हमने शैतान को काफिरों पर छो़ड़ रखा है कि वह उन्हें बहकाते हैं तो (ऐ रसूल) तुम काफिरों पर (नजूले आज़ाब की) जल्दी न करो हम तो बस उनके लिये (अज़ाब के) दिन गिन रहे हैं कि जिस दिन परहेजगारों को (खुदाए) रहमान के (अपने) सामने मेहमानों की तरह जमा करेंगे और गुनाहगारों को जहन्नुम की तरफ़ प्यार से (जानवर) की तरह हाकेंगे (उस दिन) ये लोग सिफ़ारिश पर भी क़ादिर न होंगे मगर (वहीं) जिस शख़्स ने ख़ुदा से (सिफ़ारिश का) इक़रार(1) ले लिया हो।
और (यहूदी) लोग कहते हैं कि ख़ुदा ने (उज़ैर को) बेटा बना लिया है (ऐ रसूल तुम कह दो कि) तुमने इतनी बड़ी सख़्त बात (अपनी तरफ़ से गढ़ के) कही है कि क़रीब है कि आसमान उससे फट पड़े और ज़मीन शागाफ़्ता हो जाए और पहाड़ टुकडे-टुकडे होकर गिर पड़े उस बात से की उन लोगों ने खु़दा के लिए बेटा क़रार दिया हालांकि ख़ुदा के लिए ये किसी तरह शाया नहीं कि वह (किसी को अपना) बेटा बना ले सारे आसमान व ज़मीन में जितनी चीज़ें है सब की सब ख़ुदा के सामने बन्दा ही बन कर आने वाली हैं उसने यक़ीनन उन सब को अपने (इल्म के) अहाते में घेर लिया है और सब को अच्छी तरह गिन लिया है और ये सब उसके सामने क़यामत के दिन अकेले (अकेले) हाजि़र होंगे।
बेशक जिन लोगों ने ईमान क़बूल किया और अच्छे-अच्छे काम किए अनक़रीब ही खुदा उनकी मुहब्बत (लोगों के दिलों में) पैदा कर देगा तो (ऐ रसूल) हमने उस कुरआन को तुम्हारी (अरबी) ज़बान में सिर्फ़ इसलिए आसान कर दिया है ताकि तुम उसके ज़रिए से परहेज़गारों को (जन्नत की) ख़ुशख़बरी दो और (अरब की) झगडालू क़ौम को (अज़ाबे ख़ुदा से) डराओ और हमने उनसे पहले कितनी जमातों को हलाक कर डाला भला तुम उनमें से किसी को (कहीं) देखते हो या उसकी कुछ भनक भी सुनते हो।
सूरे: ताहा

सूरे: ताहा(1) मक्के में नाज़िल हुआ और इसकी 135 आयतें हैं।
(ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला हैं।
(ऐ) ताहा(2) (रसूल अल्लाह) हमने तुम पर कुरआन इसलिए नाज़िल नहीं किया कि तुम (इस क़द्र) मशक़्कत उठाओ मगर जो शख़्स (ख़ुदा से) डरता है उसके लिए नसीहत (क़रार दिया) है (ये) उस शख़्स की तरफ़ से नाज़िल हुआ है जिसने ज़मीन और ऊंचे-ऊंचे आसमानों को पैदा किया (वह) रहमान है जो अर्श पर (हुक्मरानी के लिए) आमदा व मुस्तैद है जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है और जो कुछ दोनों के बीच में है और जो कुछ जम़ीन के नीचे है (ग़रज़ सब कुछ) उसी का है और अगर तू पुकार कर बात करे (तो भी आहिस्ता करे तो भी) वह यक़ीनन भेद और उससे ज़्यादा पोशीदा चीज़ को जानता है अल्लाह (वह माबूद है कि) उसके सिवा कोई माबूद नहीं हे (अच्छे-अच्छे) उसी के नाम है
और (ऐ रसूल) क्या तुम तक मूसा की ख़बर पहुंची है कि जब उन्होंने दूर से आग देखी तो अपने घर के(3) लोगों से कहने लगे की तुम लोग (ज़रा यही) ठहरो मैंने आग देखी है क्या अजब है कि मैं वहां (जाकर) उसमें से एक अंगारा तुम्हारे पास ले आँऊं, या आग के पास किसी राह का पता पा जाऊँ फिर जब(1) मूसा आग के पास आए तो उन्हें आवाज़ आई कि ऐ मूसा बेशक मैं ही तुम्हारा परवरदिगार हूँ तो तुम अपनी जूतियाँ उतार डालो(2) क्योंकि तुम उस वक़्त) तूबा (नामी) पाकीज़ा चटियल मैदान में हो और मैंने तुमको अपनी पैग़म्बरी के वास्ते मुन्तख़ब किया है तो जो कुछ तुम्हारी तरफ़ वही की जाती है उसे कान लगा कर सुनों उसमें शक नहीं कि मैं ही वह अल्लाह हूँ कि मेरे सिवा कोई माबूद नहीं, तो मेरी ही इबादत करो और मेरी याद के लिए नमाज़ (बराबर) पढ़ा करो (क्योंकि) क़यामत ज़रुर आने वाली है और मैं उसे ला मुहाला छिपाए रखूंगा, ताकि हर शख़्स (उसके ख़ौफ़ से नेकी करे) और जैसी कोशिश की है उसका उसे बदला दिया जाए तो (कहीं) ऐसा न हो कि जो शख़्स उसे दिल से नहीं मानता और अपनी नफ़्सयानी ख़्वाहिश के पीछे पड़ा है वह तुम्हे उस (फि़क्र) से रोक दे तो तुम तबाह हो जाओगे
और ऐ मूसा ये तुम्हारे दाहिने हाथ में क्या चीज़ है, अर्ज़ की ये तो मेरी लाठी है- मैं उस पर सहारा करता हूं और उससे अपनी बकरियों पर (दरख़्तों की) पत्तियां झाड़ता हूँ- और उसमें मेरे और भी मतलब है फ़रमाया ऐ मूसा उसको ज़रा ज़मीन पर डाल तो दो-मूसा ने उसे ड़ाल दिया-तो फ़ौरन वह सांप बन कर दौड़ने लगा (ये देख कर मूसा भागे) तो फ़रमाया कि तुम उसको पकड़ लो और डरो नहीं मैं अबी उसकी पहली सी सूरत फिर किए देता हूँ और अपने हाथों को समेट कर अपने बग़ल में तो कर लो (फिर देखो कि) वह बग़ैर किसी बिमारी के सफ़ेद चमकता दमकता हुआ निकलेगा (ये) दूसरा मोजज़ा है (ये) ताकि हम तुम को अपनी (कुदरत की) बड़ी-बड़ी निशानियाँ दिखाँए अब-तुम फ़िरऔन के पास जाओ उसने बहुत सर उठाया है। मूसा ने अर्ज़ की परवरदिगार (मैं जाता हूं मगर) मेरे सीने को कुशादा फ़रमा (दिलेर बना) और मेरा काम मेरे लिये आसान कर दे और मेरी ज़बान से लुकनत की गिरह खोल दे ताकि लोग मेरी बात अच्छी तरह समझें और मेरे कुन्बे वालों में से मेरे भाई हारून को मेरा वज़ीर (बोझ हटाने वाला) बना दे उसके ज़रिये से मेरी पुश्त मज़बूत कर दे और मेरे काम में उसको मेरा शरीक बना ताकि हम दोनों (मिलकर) कसरत से तेरी तसबीह करें और कसरत से तेरी याद करें तू तो हमारी हालत देख ही रहा है।
फ़रमाया ऐ मूसा तुम्हारी सब दरख़्वास्ते मंजूर की गयी और हम तो तुम पर एक बार और एहसान कर चुके हैं जब हमने तुम्हारी मां को इल्हाम किया जो अब तुम्हें वही के ज़रिये से बताया जाता है कि तुम उसे (मूसा को) संदूक में रख कर संदूक को दरिया में डाल दो फिर दरिया उसे ढ़केल के किनारे डाल देगा कि मूसा को मेरा दुशमन और मूसा का दुश्मन (फ़िरऔन) उठा लेगा और मैंने तुम पर अपनी मुहब्बत का (परती) डाल दिया (जो कि देखता प्यार करता) ताकि तुम मेरी ख़ास निगरानी में पाले पोसे जाओ (उस वक़्त) जब तुम्हारी बहन चली (और फ़िरऔन के घर में आकर) कहने लगी कि कहो तो मैं तुम्हें ऐसी दाई बताऊँ कि उसे अच्छी तरह पाले तो (उस तदबीर से) हमने फिर तुमको तुम्हारी मां के पास पहुंचा दिया ताकि उसकी आँखें ठंडी रहें और (तुम्हारी जुदाई पर) कुढ़े नहीं और तुमने एक शख़्स क़िबती को मार डाला था (और सख़्त परेशान थे) तो हमने तुमको (उस) ग़म से निजात दी
और हमने तुम्हारा अच्छी तरह इम्तेहान कर लिया फिर तुम कई बरस तक मदीने के लोगों में जाकर रहे ऐ मूसा फिर तुम (उम्र के) एक अंदाज़े पर आ गये (और नबूवत के क़ाबिल हुए) और मैंने तुमको अपनी रिसालत के वास्ते मुन्तख़ब किया- तुम अपने भाई समेत हमारे मोजज़े लेकर जाओ और (देखो) मेरी याद में सुस्ती न करना-तुम दोनों फिरऔन के पास(2) जाओ बेशक वह बहुत सरकश हो गया है फिर उससे (जाकर) नरमी से बातें करों ताकि वह नसीहत मान ले या डर जाए दोनों ने अर्ज़ की ऐ हमारे पालने वाले हम डरते हैं कि कहीं वह हम पर ज़्यादती (न) कर बैठे या और ज्यादा सरकशी कर ले-फ़रमाया तुम डरो नहीं मैं तुम्हारे साथ हूं (और सब कुछ) सुनता और देखता हूं गरज़ तुम दोनों उसके पास जाओ और कहो कि हम आपके परवरदिगार के रसूल हैं तो बनी इस्राईब को हमारे साथ भेज दीजिए और उन्हें सताईये नहीं हम आपके पास आफके परवरदिगार का मोजज़ा लेकर आए हैं और जो राहे रास्त की पैरवी करे उसी के लिए सलामती है।
हमारे पास ख़ुदा की तरफ से वही नाज़िल हुई है कि यक़ीनन अज़ाब उसी शख़्स पर है जो ख़ुदा की आयतों को झुटलाये और उसके हुक्म से मुंह मोड़े (गरज़ गये और कहा) फ़िरऔन ने पूछा ऐ मूसा आख़िर तुम दोनों का परवरदिगार कौन है- मूसा ने कहा हमारा परवरदिगार वह है जिसने हर चीज़ को उसके मुनासिब सूरत अता फ़रमाई-फिर उसने ज़िन्दगी बसर करने के तरीक़े बताए-फ़िरऔऩ ने पूछा-भला अगले लोगों का हाल तो बताओ कि क्या हुआ मूसा ने कहा उन बातों का इल्म मेरे परवदिगार के पास एक किताब (लौह महफूज़) में लिखा हुआ है मेरा परवरदिगार न बहकता है न भूलता है वह वही है जिसने तुम्हारे फ़ायदे के वास्ते ज़मीन को बिछौना बनाया और तुम्हारे लिये उसमें राहे निकाली और उसी ने आसमान से पानी बरसाया फिर (खुदा फरमाता है कि) हम ही ने उस पानी के ज़रिये से मुख़्तलिफ़ क़िस्मों की घासे निकाली (ताकि) तुम ख़ुद भी खाओ और अपने चौपायों को भी चराओ कुछ शक नहीं कि उसमें अक़लमंदों के वास्ते कुदरत ख़ुदा की बहुत सी निशानियां हैं हमने उसी ज़मीन से तुमको पैदा किया और मरने के बाद उसमें लौटा कर लाएंगे और उसी से दूसरी बार (क़यामत के दिन) तुमको निकाल खड़ा करेंगे
और मैंने फ़िरऔन को अपनी सारी निशानियां दिखा दीं उस पर भी उसने सबको झुटला दिया और न माना और कहने लगा ऐ मूसा क्यो तुम हमारे पास इसलिए आए हो कि हमको हमारे मुल्क मिस्र से अपने जादू के ज़ोर से निकाल बाहर करो अच्छा तो (रहो) हम भी तुम्हारे सामने ऐसा ही जादू पेश करते हैं फिर तुम अपने और हमारे दरमियान एक वक़्त मुक़र्रर करो कि न हम उसके ख़िलाफ़ करें और न तुम और मुक़ाबला एक साफ़ ख़ुले मैदान में हो- मूसा ने कहा तुम्हारे मुक़ाबले की मियाद ज़ीनत (ईद) का दिन है और उस रोज़ सब लोग दिन चढ़े(1) जमा किए जाएं उसके बाद फ़िरऔन अपनी जगह लौट गया फिर अपने चलतर (जादू के सामान) जमा करने लगा फिर (मुक़ाबले को) आ मौजूद हुआ- मूसा ने (फ़िरऔनियों से) कहा तुम्हारा नास हो ख़ुदा पर झूठी-झूठी इफ़तरा परवाज़ियां न करो वरना वह अज़ाब नाज़िल करके उससे तुम्हारा मलिया मेट कर छोड़ेगा और याद रखो कि जिस न इफ़तरा परवाज़िया की वह यक़ीनन नामुराद रहा
उस पर वह लोग अपने काम में बाहम झगड़ने और सरगोशियां करने लगे (आख़िर) वह लोग बोल उठे ये दोनों यक़ीनन जादूगर हैं और चाहते हैं कि अपने जादू के ज़ोर से तुम लोगों को तुम्हारे मुल्क से निकाल बाहर करें और तुम्हारे अच्छे ख़ासे मज़हब को मिटा छोड़े तो तुम भी ख़ूब अपने चलतर (जादू वग़ैरह) दुरुस्त कर लो फिर परा बांध के उनके मुक़ाबले में आ पड़ो और जो आज डर रहा है वही फ़ाएजुल मराम रहा (ग़रज़ जादूगरों ने कहा) ऐ मूसा या तो तुम ही (अपने जूदा) फेंको या ये कि पहले जो जादू फेंके वह हम ही हो- मूसा ने कहा (मैं नहीं डालूंगा) बल्कि तुम ही पहले डालो गरज़ उन्होंने अपने करतब दिखाए तो बस मूसा का उनके जादू के ज़ोर से ऐसा मालूम हुआ कि उनकी रस्सियां और उनकी छड़ियां दौड़ रही हैं तो मूसा ने उपने दिल में कुछ दहशत सी पाई- हमने कहा (मूसा) इससे डरो नहीं यक़ीनन तुम ही वर रहोगे और तुम्हारे दाहिने हाथ में जो (लाठी) है उसे डाल तो दो कि जो करतब उन लोगों ने की है उसे हड़प कर जाएं-क्योंकि उन लोगों ने जो कुछ करतब की वह एक जादूगर की करतब है और जादूगर जहां जाए कामयाब नहीं हो सकता गरज़ मूसा की लाठी ने, सब ह़ड़प कर लिया ये देखते ही वह सब जादूगर सज्दे में गिर पड़े और कहने लगे कि हम मूसा और हारून के परवरदिगार पर ईमान लाए
फ़िरऔन ने उन लोगों से कहा (हाए) उन से पहले कि हम तुम को इजाज़त दें तुम उस पर ईमान ले आए- उसमें शक नहीं कि तुम सब का बड़ा (गिरोह) है जिस ने तुमको जादू सिखाया है तो मैं तुम्हारे एक तरफ़ के हाथ और दूसरी तरफ़ के पांव ज़रुर काट डालूंगा- और तुम्हें यक़ीनन खुरमों की शाख़ों पर सूली चढ़ा दूंगा और उस वक़्त तुम को अच्छी तरह मालूम हो जाएगा कि हम दोनों फ़रीक़ों से अज़ाब मे ज़्यादा बढ़ा हुआ कौन और किसको क़याम ज़्यादा है- जादूगर बोले कि ऐसे वाज़ेह रौशन मोजज़ात जो हमारे सामने आए है उन पर और जिस ख़ुदा ने हमको पैदा किया उस पर तो हम तुम को किसी तरह तरजीह नहीं दे सकते तो जो तुझे करना हो कर गुज़र तू बस दुनियां की (उसी ज़रा) ज़िन्दगी पर हुकूमत कर सकता है और कहा हम तो अपने परवरदिगार पर इसलिए ईमान लाए हैं ताकि हमारे वास्ते हमारे सारे गुनाह माफ कर दें और (ख़ास कर) जिस पर तूने हमें मजबूर किया था और ख़ुदा ही सबसे बेहतर है और उसी को सब से ज़्यादा क़याम है।
इसमें शक नहीं कि जो शख़्स मुजरिम हो कर अपने परवरदिगार के सामने हाज़िर होगा तो उसके लिए यक़ीनन जहन्नुम (धरा हुआ) है जिसमें न तो बह मरे ही गा और न ज़िन्दा ही रहेगा (सिसकता रहेगा) और जो शख़्स उसके सामने ईमानदार होकर हाजि़र होगा और उसने अच्छे-अच्छे काम भी किए होंगे तो ऐसे ही लोग हैं जिनके लिए बड़े-बड़़े बुलन्द रुत्बे हैं वह सदा बहार बाग़ात हैं जिन के नीचे नहरे जारी हैं वह लोग उसमें हमेशा रहेंगे और जो गुनाह से पाक व पाकीजा रहे उसका यही सिला है।
और हमने मूसा के पास वही भेजी की मेरे बन्दों (बनी इस्राईल) को (मिस्र से0 रातो-रात निकाल ले जाओ फिर दरिया में (लाठी मार कर) उनके लिए एक सूखी राह निकालो और तुमको पीछा करने का कोई ख़ौफ़ न रहेगा न (डूबने की) कोई दहशत-ग़रज़ फ़िरऔन ने अपने लश्कर समेत उनका पीछा किया फिर दरिया के पानी का रेला जैसा कुछ उन पर छाया गया वह छा गया और फ़िरऔन ने अपनी क़ौम को गुमराह करके हलाक कर डाला और उनकी हिदायत न की
ऐ बनी इस्राईल हमने तुम को तुम्हारे दुश्मन के पंजे से छुड़ाया और तुमसे (कोहे तूर) के दाहिनी तरफ़ का वादा किया और हम ही ने तुम पर मन-ओ-सलवा नाज़िल किया और (फ़रमाया) कि हमने जो पाक व पाकीज़ा रोज़ी तुम्हें दे रखी है उसमें से खाओ (पियो) और उसमें किसी क़िस्म की शरारत न करो-वरना तुम पर मेरा अज़ाब नाज़िल हो जाएगा और याद रखो कि जिस पर मेरा ग़ज़ब नाज़िल हुआ तो वह यक़ीनन गुमराह (हलाक हुआ) और जो शख़्स तौबा करे और ईमान लाए और अच्छे अच्छे काम करे फिर साबित क़दम रहे(1) तो हम उसको ज़रुर बख़्शने वाले हैं फिर जब मूसा सत्तर आदमियों को लेकर चले और खुद बढ़ आए तो हमने कहा कि ऐ मूसा तुमने अपनी क़ौम से (आगे चलने में क्यों जल्दी की) ग़रज़ की वह भी तो मेरे पीछे ही पीछे चले आ रहे हें और उसी लिए मैं जल्द करके तेरे पास इस लिए आगे बढ़ आया हूं ताकि तू मुझसे खुश रहे
फ़रमाया तो हमने तुम्हारे आने के बाद तुम्हारी क़ौम का इम्तेहान लिया और सामरी(2) ने उनको गुमराह कर छो़ड़ा फिर (तो) मूसा गुस्से में भरे पछताये हुए अपनी क़ौम की तरफ़ पलटे और आकर कहने लगे ऐ मेरी (कमबख़्त) क़ौम क्या तुमसे तुम्हारे परवरदिगार ने एक अच्छा वादा (तौरेत देने का) न किया था तो क्या तुम्हारे वादे में अरसा लग गया या तुमने यह चाहा कि तुम पर तुम्हारे परवरदिगार का ग़ज़ब टूट पड़े कि तुमने मेरे वादा (ख़ुदा की इबादत) के ख़िलाफ़ किया, वह लोग कहने लगे हमने आपके वादे के खिलाफ़ नहीं किया बल्कि (बात ये हुई कि फ़िरऔन की) क़ौम के ज़ेवर के बोझे जो (मिस्र से निकलते वक़्त) हम पर लादे गये थे उनको हम लोगों ने (सामरी के कहने से आग में) डाल दिया फिर उसी तरह सामरी ने भी डाल दिया फिर सामरी ने उन लोगों के लिये (उसी ज़ेवर से) एक बछड़े की मूरत बनाई जिस की आवाज़ भी बछड़े की सी थी।
उस पर बाज़ लोग कहने लगे यही तुम्हारा भी माबूद है और मूसा का भी माबूद है मगर वह भूल गया है भला उन लोगों को इतनी भी न सूझी के ये बछड़ा न तो उन लोगों को पलट कर उन की बात का जवाब ही देता है और न उन का ज़रर ही उसके हाथ में है और न नफ़ा और हारून ने उन से पहले कहा भी था कि ऐ मेरी क़ौम तुम्हारा सिर्फ़ उस के ज़रिये से इम्तेहान किया जा रहा है और उम में शक नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार (बस ख़ुदा) रहमान है तो तुम मेरी पैरवी करो- और मेरा कहा मानो वह लोग कहने लगे जब तक मूसा हमारे पास पलट कर न आए हम तो बराबर उस की इबादत पर डटे बैठे रहेंगे
मूसा ने (हारून की तरफ़ ख़िताब करके) कहा ऐ हारून, जब तुम ने उन को देख लिया था गुमराह हो गये हैं तो तुम्हें मेरी पैरवी क़ता करने को किस ने मना किया तो क्या तुम ने मेरे हुक्म की नाफ़रमानी की-हारून ने कहा ऐ मेरे मजाए (भाई) मेरी दाढ़ी न पकड़िये और न मेरे सर के बाल में तो इस से डरा कि (कहीं) आप (वापस आकर) ये न कहे कि तुम ने बनी इस्राईल में फूट डाल थी और मेरी बात का भी खयाल न रखा (तब सामरी से) कहने लगे कि ओ सामरी तेरा क्या हाल है उस ने (जवाब में) कहा मुझे वह चीज़ दिखाई दी जो औरों को न सूझी (जिब्राईल घोड़े पर सवार जा रहे थे) तो मैंने जिब्राईल फ़रिश्ते के घोड़े के निशाने क़दम की एक मिट्टी (ख़ाक) की उठा ली फ़़िर मैं ने (बछड़े के क़ालिब में) डाल दी (तो वह बोलने लगा) और उस वक़्त मुझे मेरे नफ़्स ने यही सुझाई-मूसा ने कहा चल (दूर हो तेरे लिये इस दुनिया की) ज़िन्दगी में तो (ये सज़ा है) तो कहता फिरेगा कि मुझे(1) न छूना (और न बुख़ार चढ़ जाएगा) और (आख़िरत में भी) यक़ीनी तेरे लिये (अज़ाब का) वादा है कि हरगिज़ तुम से ख़िलाफ़ न किया जाएगा और तो अपने माबूद को तो देख जिस की इबादत पर तू डटा बैठा था कि हम उसे यक़ीनन जला कर (राख) कर डालेंगे-फिर हम उसे तितर बितर करके दरिया में उड़ा देंगे।
तुम्हारा माबूद तो बस वही ख़ुदा है जिस के सिवा कोई और माबूद बरहक़ नहीं कि उस का इल्म हर चीज़ पर छा गया है (ऐ रसलू) हम तुम्हारे सामने यू वाक़िआत बयान करते हैं जो गुज़र चुके और हम ने ही तुम्हारे पास अपनी बारगाह से कुरआन अता किया- जिस ने उस से मुंह फेरा वह क़यामत के दिन यक़ीनन अपने बुरे आमाल का बोझ उठाएगा और उसी हाल मे हमेशा रहेंगे और क्या बुरा बोझ है- क़यामत के दिन ये लोग उठाएं होंगे जिस दिन सूर फूंका जाएगा- और हम उस दिन गुनाहगारों को (उन की) आंखे मैली (अंधी) करके अपने सामने जमा करेंगे- (और) आपस में चुपके-चुपके कहते होंगे कि (दुनियां या क़ब्र में) हम लोग बहुत से बहुत नौ दस दिन ठहरे होंगे-जो कुछ ये लोग उस दिन कहेंगे- हम खूब जानते हैं कि जो उन में सब से ज़्यादा होशियार होगा बोल उठेगा कि तुम बस बहुत से बहुत एक दिन ठहरे होगे
(और ऐ रसलू) तुम से लोग पहाड़ों के बारे में पूछते हैं (कि क़यामत के रोज़ क्या होंगे) तो तुम कह दो कि मेरा परवरदिगार बिल्कुल रेज़ा-रेज़ा करके उड़ा डालेगा और ज़मीन को एक चटियल मैदान कर छोड़ेगा कि (ऐ शख़्स) न तो तू उस में मोडज़ देखेगा और न ऊंच नीच उस दिन लोग एक पुकारने वाले (इस्राफ़ील की आवाज़) के पीछे इस तरह सीधे दौड़ पड़ेंगे कि उस में कुछ भी कजी न होगी और आवाज़े उस दिन ख़ुदा के सामने (इस तरह) घुनघुनाएंगे कि तूं घुंनघुनाहट के सिवा और कुछ न सुनेगा-उस दिन किसी की सिफ़ारिश काम न आएगी-मगर जिस को ख़ुदा ने इजाज़त दी हो और उस का बोलना पसन्द करे जो कुछ उन लोगों के सामने है और जो कुछ उन के पीछे है (ग़रज़ सब कुछ) वह जानता है और ये लोग अपने इल्म से उस पर हावी न हो सकते।
और क़यामत में सारी (ख़ुदाई के) मुंह ज़िन्दा ख़ुदा के सामने झुक जाएंगे और जिसने जुल्म का बोझ अपने सर पर उठाया वह यक़ीनन नाकाम रहा और जिस ने अच्छे-अच्छे काम किए और वह मोमिन भी है तो उसको न किसी तरह की बे इंसाफी का डर है और न किसी नुक़सान का हमने उसको उसी तरह अरबी ज़बान का कुरआन नाज़िल फ़रमाया और उसमें अज़ाब के तरह तरह के वादे बयान किए ताकि ये लोग परहेज़गार बने या उन के मिजाज़ में इबरत पैदा करें- पस (दो जहान का) सच्चा बादशाह ख़ुदाए बरतर व आला है।
और (ऐ रसूल) कुरआन (के पढ़ने) में उससे पहले कि तुम पर उस की वही पूरी कर दी जाए(1) जल्दी न करो और दुआ करो कि ऐ मेरे पालने वाले मेरे इल्म को और ज़्यादा फरमा और हमने आदम से पहले ही अहद ले लिया था (कि उस दरख़्त के पास न जाना) तो आदम ने उसे तर्क कर दिया और हमने उन में सबात व इस्तेक़ाल न पाया और जब हमने फ़रिश्तों से कहा कि आदम को सज्दा करो तो सब ने सज्दा किया मगर शैतान न इंकार किया तो मैंने आदम से कहा कि एक आदम ये यक़ीनी तुम्हारा और तुम्हारी बीवी का दुश्मन है तो कहीं तुम दोनों को बेहिश्त से निकलवा न छोड़े तो तुम दुनियां की मुसीबत में फंस जाओ कुछ शक नहीं के (बेहिश्त में) तुम्हें ये आराम है कि न तो तुम यहां भूखे रहोगे और न नंगे और न यहां प्यासे रहोगे और न धूप खाओगे(1)
तो शैतान ने उन के दिल में वसवसा डाला और कहा ऐ आदम। क्या मैं तुम्हें (हमेशा की ज़िन्दगी) का दरख़्त और वह सल्तनत जो कभी ज़ाएल न हो बता दूं- चुनाँचे दोनों मियाँ बीवी ने उसी में से कुछ खाया तो उनका आगा पीछा उन पर ज़ाहिर हो गया- और दोनों बेहिश्त के दरख़्त के पत्ते के अपने आगे पीछे पर चिपकाने लगे और आदम ने अपने परवरदिगार की नाफ़रमानी की तो (राहे सवाब से) बे राहे हो गए उस के बाद उन के परवरदिगार ने बुरगुज़ीदा किया फिर उनकी तौबा क़बूल कि और उन की हिदायत की
फ़रमाया कि तुम दोनों बेहिश्त से नीचे उतर(2) जाओ तुम में से एक का एक दुश्मन है फिर अगर तुम्हारे पास मेरी तरफ़ से हिदायत पहुंचे तो तुम उसकी पैरवी करना क्योंकि जो शख़्स मेरी हिदायत पर चलेगा न तो वह गुमराह होगा और न मुसीबत में फंसेगा और जिस शख़्स ने मेरी याद से मुंह फेरा तो उस की ज़िन्दगी बहुत तंगी में बसर होगी और हम उस को क़यामत के दिन अंधा (बना के) उठाएंगे वह कहेगा इलाही मैं तो (दुनिया में) आंख वाला था तूने मुझे अंधा करके क्यों उठाया ख़ुदा फरमाएगा ऐसा ही होना चाहिए हमारी आयतें भी तो तेरे पास आयीं तो तू उन्हें भुला बैठा और उसी तरह आज तू भी भुला दिया जाएगा और जिस ने (हद से) तजावुज़ किया और अपने परवरिदगार की आयतों पर ईमान न लाया उसको ऐसा ही बदला देंगे और आख़ेरत का अज़ाब तो यक़ीनी बहुत सख़्त और बहुत देरपा है।
तो क्या (अहले मक्का) को उस ख़ुदा ने ये नहीं बता दिया था कि हमने उस के पहले कितने लोग को हलाक कर डाला जिनके घरों में ये लोग चलते फिरते हैं उसमें शक नहीं कि उसमें अक़्लमंदों के लिए (कुदरत ख़ुदा की) यक़ीनी बहुत सी निशानियां है और अज़ाब का एक वक़्त मुअय्यन होता तो उन की हरकतों से फ़ौरन अज़ाब का आना लाज़मी बात थी।
(ऐ रसूल स0) जो कुछ कुफ़्फ़ार बका करते हैं तो उस पर सब्र करो और आफ़ताब(1) निकलने के क़ब्ल और उस के ग़रूब होने के क़ब्ल अपने परवरदिगार की हम्दो सना के साथ तस्बीह किया करो और कुछ रात के वक़्तों में और दिन के किनारों में तस्बीह करो ताकि तुम निहाल हो जाओ और (ऐ रसूल) जो उनमें से कुछ लोगों को दुनियाँ की उस ज़रा सी ज़िन्द्गी की रौनक़ से नेहाल कर दिया है ताकि हम उन को उस में आज़माएं तुम अपनी नज़रे इधऱ(1) न बढ़ाओ और उससे तुम्हारे परवरदिगार की रोज़ी (सवाब) कहीं बेहतर और ज़्यादा पाएदार है और अपने घरों को नमाज़ का हुक्म दो(2) और तुम ख़ुद भी उस के पाबन्द रहो।
हम तुम से रोज़ी तो तलब करते नहीं बल्कि हम तो खुद तुम को रोज़ी देते हैं और परहेज़गारी का तो अंजाम बख़ैर है और (अहले मक्का) कहते हैं कि अपने परवरदिगार की तरफ़ से हमारे पास कोई मोजज़ा (हमारी मर्जी के मुवाफिक़) क्यों नहीं लाता तो क्या जो (पेशीनगोइयाँ) अगली किताबों (तौरेत़, इंजील) में उसकी गवाह हैं वह भी उन के पास नहीं पहुँची
और अगर हम उन के उस रसूल से पहले अज़ाब से हलाक कर डालते तो ज़रुर कहते कि ऐ हमारे पालने वाले तूने हमारे पास अपना रसूल क्यों न भेजा तो हम अपने ज़लील व रुसवा होने से पहले तेरी आयतों की पैरवी ज़रूर करते
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि हर शख़्स (अपने अंजाम कार का) मुन्तज़िर है तो तुम भी इनतेज़ार करो फिर तो तुम्हें बहुत जल्द मालूम हो जाएगा कि सीधी राह वाले कौन हैं (और कजी पर कौन है) हिदायत याफ़्ता कौन है और गुमराह कौन है।


सूरे: अंबिया

सूरे: मरयम मक्के में नाज़िल हुआ और इसकी 112 आयतें हैं।
(ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला हैं।

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