तरजुमा कुरआने करीम (मौलाना फरमान अली) पारा-12

कुरआन मजीद
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और ज़मीन पर चलने वालों में कोई ऐसा नहीं जिस की रोज़ी ख़ुदा के ज़िम्मे न हो और ख़ुदा उन के ठिकाने और (मरने के बाद) उनके सौंपे जाने की जगह (कब्र) को भी जानता है। सब कुछ रौशन किताब (लौहे महफूज़) मैं मौजूद है और वह तो बही (क़ादिर मुत्तलक़) है जिस ने आसमानों और ज़मीन को छः दिन में पैदा किया और (उस वक़्त) उस का अर्श (फ़लक़ नहुम) पानी पर था (उस ने आसमान व ज़मीन इसे ग़रज़ से बनाया) ताकि तुम लोगों को आज़माए कि तुम में ज़्यादा अच्छी कारगुज़ारी वाला कौन है।
और (ऐ रसूल) अगर तुम (उनसे) कहोगे कि मरने के बाद तुम सब के सब दोबारा (कहाँ से) उठाए जाओगे तो काफ़िर लोग ज़रुर कह बैठेंगे कि ये तो बस ख़ुला हुआ जादू है और अगर हम गिनती के चन्द रोज़ों तक उन पर अज़ाब उतारने में देर भी करें तो ये लोग (अपनी शरारत से) बे ताअम्मुल ज़रुर कहने लगेंगे कि (हाए) अज़ाब को कौन सी चीज़ रोक रही है सुन रखो जिस दिन उन पर अजाब आ पड़े तो (फिर) उनके टाले न टलेगा और जिस (अज़ाब) कि ये लोग हंसी उड़ाया करते थे वह उन को हर तरफ से घेर लेगा और अगर हम इंसान को अपनी रहमत का ज़ाएका चखाएं फिर उस को हम उस से छीन लें तो (उस वक़्त) यक़ीनन बड़ा बेआस और नशुक्रा हो जाता है (और हमारी शिकायत करने लगता है) और अगर हम तकलीफ़ के बाद जो उसे पहुंची थी राहत व आराम का ज़ाएका चखाएं तो ज़रुर कहने लगता है कि अब तो सब सख्तियां मुझ से दफ़ा हो गई इस में शक नहीं कि वह बड़ा (जल्दी) खुश हो जाने वाला शेखी बाज़ है।
मगर जिन लोगों ने सब्र किया और अच्छे (अच्छे) काम किए (वह ऐसे नहीं) ये वह लोग हैं जिन के वास्ते (कुदा की) बख्शिश और बहुत बडी (खरी) मज़दूरी है तो जो चीज़(1) तुम्हारे पास वही के ज़रिए से भेजी है उनमें से बाज़ को (सुनाने के वक़्त) शायद तुम फ़क़त इस ख़्याल से छोड़ देने वाले हो और तुम तंग दिल होते हो कि मुबादा ये लोग कह बैठे कि उन पर खज़ाना क्यों नहीं नाज़िल किया गया या (उन के तस्दीक़ के लिए) उनके साथ कोई फ़रिश्ता क्यो न आया तो तुम सिर्फ़ (अज़ाब से) डरने वाले हो तुम्हे उन का ख़्याल न करना चाहिए और ख़ुदा हर चीज़ का ज़िम्मेदार है।
क्या ये लोग कहते हैं कि उस शख़्स (तुम) ने उस (कुरआन) को अपनी तरफ़ से गढ़ लिया है तो तु (उन से साफ़ साफ़) कह दो कि अगर तुम (अपने वादे में) सच्चे हो तो (ज़्यादा नहीं) ऐसी दस सूरेः(2) अपनी तरफ से गढ़ के ले जाओ और ख़ुदा के सिवा जिस जिस को तुम्हें बुलाते बन पड़े मदद के वास्ते बुला लो उस पर अगर वह तुम्हारी न सुने तो समझ लो कि (ये कुरआन) सिर्फ़ ख़ुदा के इल्म से नाज़िल किया गया है और ये कि ख़ुदा के सिवा कोई माबूद नहीं तो क्या तुम अब भी इस्लाम लाओगे (या नहीं)
नेकी करने वालों में से जो शख़्स दुनियां की ज़िन्दगी और उस की रौनक़ का तालिब हो वो हम उन्हें उनकी कारगुज़ारियों का बदला दुनिया ही मैं पूरा भर देते हैं ये लोग दुनिया में घाटे में नहीं रहेंगे मगर (हां) ये वह लोग हैं जिन के लिये आख़ेरत में (जहन्नुम की) आग के सिवा कुछ नहीं और जो कुछ दुनियां में उन लोगों ने किया धरा था सब अकारत हो गया और जो कुछ ये लोग करते थे सब मलयामेट हो गया तो क्या जो शख़्स अपने परवरिदगार की तरफ़ से दलील रौशन पर हो और उस के पीछे ही पीछे उन का एक गिरोह हो(1) और उसके क़ब्ल मूसा की किताब (तौरेत) जो (लोगों के लिये) पेशवा और रहमत थी (उसकी) तसदीक़ करती हो वह बेहतर है या कोई दूसरा) वही लोग सच्चे ईमान लाने वाले हैं और तमाम फ़िरकों में से जो शख़्स उस का इंकार करे तो उस का ठिकाना बस आतिश (जहन्नुम) है तो फ़िर तुम कहीं उस की तरफ से शक में न पड़े रहना, बेशक ये कुरआन तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से बरहक है मगर बहुतसे लोग ईमान नहीं लाते और ये जो शख़्स ख़ुदा पर झूट मूट बोहतान बांधे उस से ज़्यादा ज़ालिम कौन होगा ऐसे लोग अपने परवरदिगार के हुजूर में पेश किये जाएंगे और गवाह(2) इज़्हार करेंगे कि यही वह लोग हैं जिन्होंने अपने परवरदिगार पर झूट (बोहतान) बांधा सुने रखो कि ज़ालिमों पर ख़ुदा की फ़टकार है।
जो ख़ुदा के रास्ते से लोगों को रोकते हैं और उस में कजी निकालना चाहते हैं और वही लोग आख़ेरत के भी मुनकर हैं ये लोग रुऐ ज़मीन में न ख़ुदा को हरा सकते हैं और न ख़ुदा के सिवा उन का कोई सरपरस्त होगा उन का अज़ाब दुना कर दिया जाएगा ये लोग (हसद के मारे) न तो (हक़ बात) सुन सकते थे न देख सकते थे ये वह लोग हैं जिन्होंने कुछ अपना आप ही घाटा किया और जो फितना परवाज़िया ये लोग करते थे (क़यामत में सब) उन्हें छोड़ के चम्पत हो गऐ उस में शक नहीं कि (चार) न चार यही लोग आख़ेरत में बड़े घाटा उठाने वाले होंगे।
बेशक जिन लोगों ने ईमान कुबूल किया और अच्छे अच्छे काम किये और अपने परवरदिगार के सामने आजिज़ों से झुके यही लोग जन्नती हैं कि ये बेहिश्त में हमेशा रहेंगे
(काफ़िर मुसलमान) दोनों फ़िरकों की मसल अंधे और बहरे और देखने वाले और सुनने वाले की सी है क्या ये दोनों मसल में बराबर हो सकते हैं लोग ग़ौर नहीं करते और हम ने नूह को ज़रुर उन की क़ौम के पास भेजा (और उन्होंने अपनी क़ौम से कहा कि) मैं तो तुम्हारा (अज़ाब ख़ुदा से) सरीही धमकाने वाला हूं (और) ये (समझता हूं) कि तुम ख़ुदा के सिवा किसी कि इबादत न करो मैं तुम पर एक दर्दनाक दिन (क़यामत) के अज़ाब से डरता हूं तो उन के सरदार जो काफ़िर थे कहने लगे कि हम तो तुम्हें अपना ही सा एक आदमी समझते हैं और हम तो देखते हैं कि तुम्हारे पैरोकार हुए भी हैं तो सब सिर्फ़ हमारे चंद रज़ील(1) लोग (और वह भी बे सोचे समझे सरसरी नज़र में) और हम तो अपने ऊपर तुम लोगों की कोई फज़ीलत नहीं देखते बल्कि तुम को झूटा समझते हैं (नूह ने) कहा ऐ मेरी क़ौम क्या तुम ने समझा है कि अगर मैं अपने परवरदिगार की तरफ़ से एक रौशन दलील पर हूं और उस ने सरकार से रहमत (नबूवत) अता फ़रमाई है और वह तुम्हे सुझाई नहीं देती तो क्या मैं उसको (ज़बरदस्ती) तुम्हारे गले मंढ सकता हूं और तुम हो कि नापसंद किये चले जाओ।
और ऐ मेरी क़ौम में तो तुमसे उस के सिले में कुछ माल का तालिब नहीं मेरी मज़दूरी तो सिर्फ़ ख़ुदा के ज़िम्मे है और मैं तो तुम्हारे कहने से उन लोगों को जो ईमान ला चुके हैं निकाल नहीं सकता (क्योंकि) ये लोग भी ज़रुर अपने परवरदिगार के हुजूर में हाजि़र होंगे मगर मैं तो देखता हूं कि तुम ही लोग (नाहक़) जिहालत करते हो और मेरी क़ौम अगर मैं उन (बेचारे ग़रीब ईमानदारों) को निकाल दूं तो खुदा (के अज़ाब) से (बचाने में) मेरी मदद कौन करेगा तो क्या तुम इतना भी ग़ौर नहीं करते और मैं तो तुम से ये नहीं कहता कि मेरे पास ख़ुदा ख़जाने हैं और न (ये कहता हूं कि) मैं ग़ैबदा हूं और न ये कहता हूं कि मैं फ़रिश्ता हूं और जो लोग तुम्हारी नज़रों में ज़लील हैं उन्हें में ये नहीं कहता कि ख़ुदा उन के साथ हरगिज़ भलाई नहीं करेगा उन लोगों के दिलों की बात ख़ुदा ही ख़ूब जानता है और अगर मैं ऐसा कहूं तो मैं भी यक़ीनन ज़ालिम हूं।
वह लोग कहने लगे ऐ नूह तुम हम से यक़ीनन झगड़े और बहुत झगड़ चुके फिर अगर तुम सच्चे हो तो जिस (अज़ाब) की तुम हमें धमकी देते थे हम पर ला चुको नूह ने कहा अगर चाहेगा बस ख़ुदा ही तुम पर अज़ाब लाएगा और तुम लोग किसी तरह उसे हरा नहीं सकते और अगर मैं चाहूं तो तुम्हारी (कितनी ही) ख़ैर ख्वाही करूं अगर ख़ुदा को तुम्हारा बहकान मंजूर है तो मेरी ख़ैर ख़्वाही कुछ भी तुम्हारे काम नहीं आ सकती वही तुम्हारा परवरदिगार है और उसी की तरफ़ तुम लौट जाना है।
(ऐ रसूल) क्या (कुफ़्फ़ारे मक्का भी) कहते हैं कि कुरआन को उस (तुम) ने गढ़ लिया है तुम कह दो कि अगर मैं ने इसको गढ़ा है तो मेरे गुनाह का बवाल मुझ पर होगा और तुम लोग जो (गुनाह कर के) मुजरिम होते हो उस से मैं बरी ज़िम्मा हूं और नूह के पास ये वही भेज दी गई थी कि जो ईमान ला चुका (वह ला चुका) उनके सिवा अब कोई शख़्स तुम्हारी क़ौम से हरगिज़ ईमान न लाएगा तो तुम ख़्वाह मख़्वाह उन की कारस्तानियों का (कुछ) ग़म न खाओ और (बिस्मिल्लाह करके) हमारे रुबरु और हमारे हुक्म से कश्ती बना डालो और जिन लोगों ने जुल्म किया है उन के बारे में मुझ से सिफ़ारिश न करना क्योंकि वे लोग जरुर डुबा दिए जाएंगे और नूह कश्ती(1) बनाने लगे और जब कभी उन की क़ौम के सरबर आवरदाह लोग उनके पास से गुज़रते थे तो उनसे मस्ख़रापन करते नूह (जवाब में) कहते कि अगर इस वक़्त तुम हम से मस्ख़रापन करते हो तो जिस तरह तुम हम पर हंसते हो हम तुम पर एक वक़्त हसेंगे और तुम्हें अन्क़रीब ही मालूम हो जाएगा कि किस पर अज़ाब होता है कि (दुनिया में) उसे रुसवां कर दे और किस पर (क़यामत में) दाएमी अज़ाब नाज़िल होता है।
यहां तक कि जब हमारा हुक्म (अज़ाब) आ पहुंचा और तनूर(2) जोश मारने लगा तो हम ने हुक्म दिया (ऐ नूह) हर क़िस्म के जानदारों में से (नर व मादा का) (यानी) दलीलों और जिस (कि) हलाकत का हुक्म पहले ही हो चुका है उस के सिवा अपने सब घर वाले(3) और जो लोग ईमान ला चुके हैं उन सब को कश्ती में बिठा लो और उनके साथ ईमान भी थोड़े ही लोग लाए थे और नूह ने (अपने साथियों से) कहा बिस्मिल्लाह मजरीहा वमुरसाहा (ख़ुदा ही के नाम से नूह ने (अपने साथियों से) कहा बिस्मिल्लाह मजरीहा वमुरसाहा (ख़ुदा ही के नाम से उसका बहाओ और ठहराओ है) कश्ती में सवार हो जाओ बेशक मेरा परवरदिगार बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है।
और कश्ती है कि पहाड़ों कि सी (ऊंची) लहरों में उन लोगों को लिए हुए चली जा रही है और नूह ने अपने बेटे(1) को जो उन से अलग थलग एक गोशा में था आवाज़ दी ऐ मेरे फ़रज़न्द (आ) हमारी कश्ती में सवार होले और काफ़िरों के साथ न रह वह बोला (मुझे माफ़ कीजिए) मैं तो अभी किसी पहाड़ का सहारा पकड़ता हूं और मुझे पानी (में डूबने) से बचा लेगा़ नूह ने (उस से) कहा (ऐ कम्बख़त) आज ख़ुदा के अज़ाब से कोई बचाने वाला नहीं मगर ख़ुदा की जिस पर रहम फ़रमाएगा और (ये बात हो रही थी कि) यक़ायक दोनों बाप बेटे के दरमियान एक मौज हाएल हो गई और वह डूब कर रह गया और (जब ख़ुदा की तरफ से) हुक्म दिया गया कि ये ज़मीन अपना पानी जज़्ब कर ले और ऐ आसमान (बरसने से) थम जा पानी घट गया और (लोगों का) काम तमाम कर दिया गया और कश्ती जूदी (पहाड़) पर जा ठहरी और (हर चहार तरफ़) पुकार दिया गया कि ज़ालिम लोगों को (ख़ुदा की रहमत से) दूरी हो
और (जिस वक़्त नूह का बेटा ग़र्क़ हो रहा था) तो नूह ने अपने परवरदिगार को पुकारा और अर्ज़ की ऐ मेरे परवरदिगार इसमें तो शक नहीं कि मेरा बेटा मेरे अहल में शामिल है और तूने वादा किया था कि तेरे अहल को बचा लूंगा और उसमें तो शक नहीं कि तेरा वादा सच्चा है और तू सारे (जहान) में हाकिमो से बड़़ा हाकिम है (तू मेरे बेटे को निजात देदे) ख़ुदा ने फ़रमाया ऐ नूह तुम (ये क्या कह रहे हो) हरगिज़ वह तुम्हारे(1) अहल में शामिल नहीं वह बेशक बदचलन है (देखो) जिस का तुम्हें इल्म नहीं है मुझ से उसके बारे में दरख़्वास्त न किया करो, और मैं तुम्हें समझाये देता हूं कि नादानों की सी बातें न किया करो, नूह ने अर्ज़ किया ऐ मेरे परवरिदगार मैं तुझ ही से पनाह मांगता हूं कि जिस चीज़ का मुझे इल्म न हो मैं उस की दरख़्वास्त करूं, और अगर तू मुझे मेरे कुसूर न बख़्श देगा और मुझ पर रहम न खाएगा तो मैं सख़्त घाटा उठाने वालों में हो जाऊँगा (जब तूफ़ान जाता रहा तो) हुक्म दिया गया ऐ नूह हमारी तरफ से सलामती और बरकतों के साथ कश्ती से उतरो जो तुम पर है और जो लोग तुम्हारे साथ हैं उनमें से न कुछ लोगों पर और (तुम्हारे बाद) कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें हम थोड़े ही दिन बाद बहरावर करेंगे फ़िर हमारी तरफ़ से उनको नाफ़रमानी की वजह से दर्दनाक अज़ाब पहुंचेगा।
(ऐ रसूल) ये ग़ैब की चंद ख़बरे हैं जिन को तुम्हारी तरफ वही के ज़रये पहुंचाते हैं जो उस के क़ब्ल न तुम जानते थे और न तुम्हारी क़ौम ही (जानती थी) तो तुम सब्र करो उस में शख नहीं कि आख़ेरत (की खूबियां) परहेज़गारी ही के वास्ते हैं और (हम ने) कौ़म आद के पास उन के भाई हूद को (पैग़म्बर बना कर भेजा और) उन्हें अपनी कौ़म से कहा ऐ मेरी क़ौम ख़ुदा ही की इबादत करो उसके सिवा कोई तुम्हारा माबूद नहीं तुम बस निरे फितना परवाज़ हो ऐ मेरी क़ौम में उस (समझाने) पर तुम से कुछ मज़दूरी नहीं मांगता मेरी मज़दूरी तो बस उस शख़्स के ज़िम्मे है जिसने मुझे पैदा किया तो क्या तुम (इतना भी) नहीं समझते।
और ऐ मेरी क़ौम अपने परवरदिगार से मग़फ़िरत की दुआ मांगो फिर उसकी बारगाह में अपने (गुनाहों से) तौबा करो तो वह तुम पर मूसलाधार मेंह आसमान से बरसाएगा खुश्क साली न (होगी) और तुम्हारी कुव्वत में और कुव्वत और कुव्वत बढ़ा देगा(1) और बन कर उस से मुंह न मोड़ो वह लोग कहने लगे
ऐ हूद तुम हमारे पास कोई दलील ले कर आए नहीं और हम तुम्हारे कहने से अपने खुदाओं को तो छोड़ने वाले नहीं और न हम तुम पर ईमान लाने वाले हैं हम तो बस ये कहते हैं कि हमारे खुदाओं में से किसी ने तुम्हें मजनून बना दिया है (इस वजह से तुम) बहकी बहकी बातें करते हो हूद ने जवाब दिया बेशक में ख़ुदा को गवाह करता हूं तुम भी गवाह रहो कि तुम ख़ुदा के सिवा दूसरों को उसका शरीक बनाते हो उससे मैं बेज़ार हूं तो तुम सब के सब मेरे साथ मक़्कारी करो और मुझे (दम मारने की) मोहलत भी न दो भी तो मुझे परवाह नहीं क्यों कि मैं तो सिर्फ़ ख़ुदा पर भरोसा रखता हूं जो मेरा भी परवरिदगार है और तुम्हारा भी परवरदिगार है और रूऐ ज़मीन पर जितने चलने वाले हैं सबकी चोटी उसी के हाथ में है।
इसमें तो शक ही नहीं कि मेरा परवरदिगार (इंसाफ़ की) सीधी राह है उस पर भी अगर तुम उसके हुक्म से मुंह फ़ेर रहे हो तो हुक्म देकर मैं तुम्हारे पास भेजा गया था उशे तो मौं यक़ीनन पहुंचा चुका और मेरा परवरदिगार (तुम्हारी नाफ़रमानी पर तुम्हें हलाक कर के) तुम्हारे सिवा दूसरी क़ौम को तुम्हारा जानाशीन करेगा और तुम उसका कुछ भी बिगाड़ नहीं सकते उसमें तो शक नहीं कि मेरा परवरदिगार हर चीज़ का निगेहबान है और जब हमारा (अज़ाब का) हुक्म आ पहुंचा तो हमने हूद को और जो लोग उसके साथ ईमान लाए(2) थे अपनी मेहरबानी से निजात दिया और उन सबको सख़्त अज़ाब से बचा लिया
(ऐ रसूल) ये हालत क़ौम आद के हैं जिन्होंने अपने परवरदिगार की आयतों से इंकार किया और उसके पैग़म्बरों की नाफ़रमानी की और हर सरकश दुश्मन (ख़ुदा) के हुक्म पर चलते रहे और इस दुनिया में भी लानत उन की पीछे लगा दी गयी और क़यामत के दिन भी (लगी रहेगी)
देख क़ौम आद(2) ने अपने परवरदिगार का इंकार किया देखो हूद की क़ौमे आद (हमारी बारगाह से) धितकारी पड़ी है और हम ने क़ौमे समूद के पास उनक भाई सालेह को पैग़म्बर बना कर भेजा तो उन्होंने (अपनी क़ौम से) कहा ऐ मेरी क़ौम ख़ुदा ही की इबादत करो उसके सिवा कोई तुम्हारा माबूद नहीं है उस ने तुमको ज़मीन (की मिट्टी से) से पैदा किया और तुमको उसमें बसाया तो उससे मगफ़िरत की दुआ मांगो फिर उसकी बारगाह में तौबा करो बेशक मेरा परवरिदगार हर शख़्स के क़रीब और सबकी सुनता है और दुआ कुबूल करता है वह लोग कहने लगे ऐ सालेह इसके पहले तो तुमसे हमारी उम्मीदे वाबस्ता थी तो क्या अब तुम जिस चीज़ की इबादत हमारे बांप दादा करते थे उसकी इबादत से हमें रोकते हो और जिस दीन की तरफ़ हमें बुलाते हो हम तो उसकी निस्बत ऐसे शक में पड़े हैं कि उसे मुतहय्यर कर दिया है।
सालेह ने जवाब दिया ऐ मेरी क़ौम भला देखो तो कि अगर मैं अपने परवरदिगार की तरफ से रौशन दलील पर हूं और उसमे मुझे अपनी (बारगाह) से रहमत (नबुवत) अता की है उस पर भी अगर मैं उसकी नाफ़रमानी करूं तो खुदा (के अज़ाब से बचान में) मेरी मदद कौन करेगा फिर तुम सिवा नुक़सान के मेरा कुछ बढ़ा तो दोगे नहीं ऐ मेरी क़ौम ये ख़ुदा की (भेजी हुई) ऊटनी है तुम्हारे वास्ते (मेरी नबूवत का) एक मोजज़ा है तो उसको (उसके हाल पर) छोड़ दो कि ख़ुदा की ज़मीन में (जहां चाहे) खाए और उसे कोई तकलीफ़ न पहुंचाओ (वरना) फिर तुम्हे फ़ौरन ही ख़ुदा का अज़ाब ले डालेगा उस पर भी उन लोगों मे उसकी कूंचे काट कर (मार) डाला तब सालह ने कहा अच्छा तीन दिन तक (और) अपने अपने घर में चैन (उड़ा लो) यही ख़ुदा का वादा है जो कभी झूठा नहीं होता फ़िर जब हमारा (अज़ाब का) हुक्म आ पहुंचा तो हमने सालेह और उन लोगों को जो उसके साथ ईमान लाए थे मेहरबानी से निजात दी और उस दिन की रुसवाई से बचा लिया उसमें शक नहीं कि तेरा परवरदिगार ज़बर्दस्त ग़ालिब है और जिन लोगों ने ज़ुल्म किया था उन्हें एक सख़्त चिंघाड़ ने ले डाला तो वह लोग अपने अपने घरों में आँधे पड़े रह गए और ऐसे मर मिटे कि गोया उनमें कभी बसे ही न थे।
तुम देखे क़ौमे समूद(1) ने अपने परवरदिगार की नाफ़रमानी की और (सज़ा दी गई) सुन रखो कि क़ौम समूद (उसकी बारगाह से) धुतकारी हुई है और हमारे भेजे हुए (फ़रिश्ते) इब्राहीम के पास खुशख़बरी ले कर आए और उन्होंने (इब्राहीम को) सलाम किया (इब्राहीम ने) सलाम का जवाब दिया, फिर इब्राहीम बिला तवक्कुफ़ एक बछड़े का भुना हुआ (गोश्त) ले आये (और साथ खाने बैठे) फिर जब देखा कि उनके हाथ उस की तरफ़ नहीं बढ़ते तो उनकी तरफ़ से बदगुमान हुए और जी में डर गए (उसको वह फ़रिश्ते समझे और कहने लगे आप डरिये नहीं हम तो कौ़म लूत की तरफ़ उनकी सज़ा के लिए) भेजे गए हैं और इब्राहीम की बीवी (सारा) खड़ी हुई थी वह (ये ख़बर सुन कर) हंस पड़ी तो हमने (उन्हें फ़रिश्तों के ज़रिए से) इसहाक़ (के पैदा होने) की खुशख़बरी दी और उस इसहाक़ के बाद याकूब की वह कहने लगी ऐ है क्या अब मैं बच्चा जनूँगी मैं तो बुढ़िया हूं और मेरे मियां भी बूढ़े हैं ये तो एक बड़ी ताअज्जुब वाली बात है वह फ़रिश्ते बोले (हाँय) तुम खुदा की कुदरत से तआज्जुब हो ऐ अहले बैत(3) नबुवत तुम पर ख़ुदा की रहमत और उसकी बरकतें (नाज़िल हो) उसमें शक़ नहीं कि वह क़ाबिल हम्द (व सना) बुजुर्ग हैं फिर जब इब्राहीम (के दिल) से ख़ौफ़ जाता रहा और उनके पास (औलाद की) ख़ुशख़बरी भी आ चुकी तो हम से कौ़म लूत के बारे में(1) झगड़ने लगे (नाज़ से) रुजू करने वाले थे (हमने कहा) ऐ इब्राहीम उस बात मे हट मत करो उस बार हमें जो हुक्म तुम्हारे परवरदिगार का था वह क़तअन आ चुका और उसमें शक नहीं कि उन पर ऐसा अज़ाब आने वाला है जो किसी तरह टल नहीं सकता
और जब हमारे भेजे हुए फ़रिश्ते (लड़कों की सूरत में) लूत के पास आए तो उनके ख़्याल से रंजीदा हुए और उनके आने से तंग दिल हो गये और कहने लगे कि ये (आज का दिन) सख़्त मुसीबत का दिन है  और उनकी क़ौम (लड़कों की आवाज़ सुन कर बुरे इरादे से) उनके पास दौड़ती हुई आई और ये लोग उसके क़ब्ल भी बुरे बुरे काम किया करते थे लूत ने (जब उनको आते देखा तो) कहा ऐ मेरी क़ौम ये मेरी क़ौम की बेटियां (मौजूद हैं) उनसे निकाह कर लो ये तुम्हारे वास्ते जाएज़ और ज़्यादा साफ़ सुथरी है तो ख़ुदा से डरो और मुझे मेरे मेहमान के बारे में रुसवा न किया करो क्या तुम में से कोई भी समझदार आदमी नहीं है उन (कम्बख़्त) ने जवाब दिया तुम को तो खूब मालूम है कि तुम्हारी क़ौम की लड़कियों की हमें कुछ हाजत नहीं है और जो बात हम चाहते हैं वह तो तुम खूब जानते हो लूत ने कहा काश मुझ में तुम्हारे मुक़ाबले की कुव्वत(3) होती या मैं किसी मज़बूत किले में पनाह ले सकता वह फ़रिश्ते बोले ऐ लूत हम तुम्हारे परवरदिगार के भेजे हुए (फ़रिश्ते) हैं तुम घबराओ नहीं ये लोग तुम तक हरगिज़ दस्तरस नहीं पा सकते तो तुम कुछ रात रहे अपने लड़कों बालों समेत निकल भागो और तुममें से कोई उधर मुड़ कर भी न देखे मगर तुम्हारी बीवी कि उस पर भी यक़ीनन वही अजाब नाज़िल होने वाला है जो उन लोगों पर नाज़िल होगा और (उन के अज़ाब का) वादा बस सुबह है क्या सुबह क़रीब नहीं है
फ़िर जब हमारा (अज़ाब का) हुक्म आ पहुंचा तो हमने उस (बस्ती के ज़मीन के तबक़े) उलट कर उस के ऊपर के हिस्से को नीचे का बना दिया और उस पर हम ने खरंजेदार पत्थर ताबड़ तोड़ बरसाए जिन पर तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से निशान बनाए हुए थे और वह बस्ती (उन) ज़ालिमों (कुफ़्फ़ार मक्का) से कुछ दूर नहीं
और हमने मदायन वालों के पास उनके भाई शुएैब को पैग़म्बर बना कर भेजा उन्होंने (अपनी क़ौम से कहा) ऐ मेरी क़ौम खुदा की इबादत करो उस के सिवा कोई तुम्हारा माबूद नहीं और नाप तोल में कमी न किया करो मैं तो तुम को आसूदगी में देख रहा हूं (फ़िर घटाने की क्या ज़रुरत है) और मैं तो तुम पर उस दिन के अज़ाब से डरता हूँ जो (सब को) घेर लेगा और ऐ मेरी क़ौम पैमाना और तराजू के साथ पूरे रखा करो और लोगों को उन की चीज़ें कम न दिया करो और रुए ज़मीन में फ़साद न फ़ैलाते फ़िरो
अगर तुम सच्चे मोमिन हो तो ख़ुदा का बाक़िया(1) तुम्हारे वास्ते कहीं अच्छा है और मैं तो कुछ तुम्हारा निगेहबान नहीं
वह लोग कहने लगे ऐ शुएैब क्या तुम्हारी नमाज़ (जिसे तुम पढ़ा करते हो) तुम्हें ये सिखाती है कि जिन (बुतों) की इबादत हमारे बाप दादा करते आए उन्हें हम छोड़ बैठें या हम अपने मालों में जो कुछ चाहें कर बैठे तुम ही तो बस एक बुर्दबार और समझदार (रह गये) ही शुऐैब ने कहा ऐ मेरी क़ौम अगर मैं अपने परवरदिगार की तरफ से रौशन दलील पर हूं और उस ने मुझे (हलाल) रोज़ा खाने को दी है (तो मैं भी तुम्हारी तरह हराम ख़ाने लगूं) और मैं तो यह नहीं चाहता कि जिस काम से तुमको रोकू तुम्हारे बरख़िलाफ़ आप उस को करने लगूं मैं तो जहां तक मुझ से बन पड़े इस्लाह के सिवा (कुछ और) चाहता ही नहीं और मेरी ताईद तो ख़ुदा के सिवा और किसी से हो ही नहीं सकती उस पर मैंने भरोसा कर लिया है और उसी की तरफ रुजूअ करता हूं और ऐ मेरी क़ौम मेरी ज़िद कहीं तुमसे ऐसा जुर्म न करा दे जैसे मुसीबत कौमे नूह या क़ौमे हूद या क़ौमे सालेह पर नाज़िल हुई थी वैसी ही मुसीबत तुम पर भी आ पड़े और लूत की क़ौम (का ज़माना) तो (कुछ ऐसा) तुम से दूर नहीं (उन ही से इबरत हासिल करो) और अपने परवरदिगार से अपनी मग़फ़िरत की दुआ मांगों फ़िर उसी की बारगाह में तौबा करो बेशक मेरा परवरदिगार बड़ा मेहरबान और मुहब्बत वाला और है।
और वह लोग कहने लगे ऐ शुएैब जो बाते तुम कहते हो उन में से अक़्सर तो हमारी समझ में ही नहीं आतीं और इसमें तो शक ही नहीं कि हम तुम्हें अपने लोगों में बहुत कमज़ोर समझते हैं और अगर तुम्हारा क़बीला न होता तो हम तुमको (कब का) संगसार कर चुके होते और तुम तो हम पर किसी तरह ग़ालिब नहीं आ सकते
शुएैब ने कहा ऐ मेरी क़ौम क्या मेरे क़बीले का दबाव तुम पर ख़ुदा से भी बढ़ कर है (के तुमको उसका ये ख़याल है) और ख़ुदा को तुम लोगों ने अपने पसे पुश्त डाल दिया है बेशक मेरा परवरिदगार तुम्हारे सब आमाल पर अहाता किये हुए है और ऐ मेरी क़ौम तुम अपनी जगह (जो चाहे) करो मैं भी (बजाए ख़ुद) कुछ करता हूँ अन्क़रीब ही तुम्हें मालूम हो जाएगा कि किस पर अज़ाब नाज़िल होता है जो उसको (लोगों की नज़रों मे) रुसवा कर देगा और (ये भी मालूम हो जाएगा कि) कौन झूठा है तुम भी मुंतजि़र रहो मैं भी तुम्हारे साथ इन्तेज़ार करता हूँ।
और जब हमारा (अजाब का) हुक्म आ पहुंचा तो हमने शुएैब और उन लोगों को जो उसके साथ ईमान लाए थे अपनी मेहरबानी से बचा लिया और जिन लोगों ने ज़ुल्म किया था उनको एक चिघांड़ ने ले डाला फिर तो वह सब के सब अपने घरों में आँधे पड़े रह गए (और वह ऐसे मर मिटे) कि गोया उन बस्तियों में बसे ही न थे सुन रखो कि जिस तरह समूद (ख़ुदा की बारगाह से) धुत्कारे गए उसी तरह अहले मदायन(1) की भी धुतकार हुई
और बेशक हमने मूसा को अपनी निशानियां और रौशन दलील (दे कर) फ़िरऔन और उसके वज़ीरो के पास (पैग़म्बर बना कर) भेजा तो लोगों ने फिरऔन ही का हुक्म मान लिया (और मूसा की एक न सुनी) हालांकि फ़िरऔन का हुक्म कुछ जांचा समझा हुआ न था क़यामत के दिन वह अपनी क़ौम के आगे आगे चलेगा और उनको दोज़ख़ में ले जाकर झोंक देगा और ये लोग किस क़दर बुरे घाड़ उतारे गए और (इस दुनिया) में भी लानत उनके पीछे पीछे लगा दी गई और क़यामत के दिन भी (लगी रहेगी) क्या बुरा ईनाम है जो उन्हें मिला
(ऐ रसूल) ये चन्द बस्तियों के हालात हैं जो हम तुमसे बयान करते हैं उनमें से बाज़ तो (इस वक़्त तक) क़ायम है और बाज़ का तहस नहस हो गया और हमने किसी तरह उन पर जुल्म नहीं किया फिर जब तुम्हारे परवरदिगार का (अज़ाब का) हुक्म आ पहुँचा तो न उसके वह माबूद ही कुछ काम आए जिन्हें ख़ुदा को छोड़ कर पुकारा करते थे और न उन माबूदों ने हलाक करने के सिवा कुछ फ़ायदा ही पहुँचाया बल्कि उन्हीं की इबादत की बदौलत अज़ाब आया
और (ऐ रसूल) बस्तियों के लोगों की सरकशी से जब तुम्हारा परवरदिगार अज़ाब में पकड़ता है तो उसकी पकड़ ऐसी होती है बेशक उसकी पकड़ तो दर्दनाक (और सख़्त) होती है उसमें तो शक नहीं कि उसमें उस उस शख़्स के वास्ते जो अज़ाब ऐ आख़ेरत से डरता है (हमारी क़ुदरत की) एक निशानी है ये वह रोज़ होगा कि सारे (जहान) के लोग जमा किए जाएंगे और यही वह दिन होगा कि (हमारी बारगाह में) सब हाज़िर किए जाएंगे और हम बस एक मुअय्यन मुद्दत तक उसमें देर कर रहें हैं जिस दिन वह आ पहुँचेगा तो बग़ैर हुक्मे ख़ुदा कोई शख़्स बात भी तो नहीं(1) कर सकेगा फिर कुछ लोग उनमें से बदबख़्त होंगे
और कुछ नेक बख़्त तो जो लोग बदबख़्त हैं वह दोज़ख़ में होंगे और उसमें उनकी हाए वाए और चीख पुकार होगी वह लोग जब तक आसमान और ज़मीन में हैं हमेशा उसी में रहेंगे मगर जब तुम्हारा परवरदिगार (निजात देना) चाहे बेशक तुम्हारा परवरदिगार जो चाहता है कर ही के रहता है और जो लोग नेक बख़्त हैं वह तो बेहिश्त में होंगे (और) जब तक आसमान(2) व ज़मीन (बाक़ी) वह हमेशा उसी में रहेंगे मगर जब तेरा परवरदिगार चाहे (सज़ा देकर आख़िर में जन्नत में ले जाए) ये वह बख़्शिश है जो कभी मुन्तक़ा न होगी तो ये लोग (ख़ुदा के अलावा) जिसकी इबादत करते हैं तुम असमें शक में न पड़ना ये लोग ही बस वैसी इबादत करते हैं जैसी उनसे पहले उनके बाप दादा करते थे और हम ज़रुर (क़यामत के दिन उनके अज़ाब का पूरा पूरा हिस्सा बिला कम व कास्त देंगे और हमने मूसा को किताब तौरेत अता की तो उसमें भी झगड़े डाले गये और अगर तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से (अज़ाब मे देर का) हुक्म कतई पहले ही न हो चुका होता तो उनके दरमियान (कब का) फ़ैसला यक़ीनन हो गया होता और ये लोग (कुफ़्फ़ारे मक्का) भी उस (कुरआन) की तरफ से बहुत गहरे शक में पड़े हैं और उसमें तो शक ही नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार उनकी कारस्तानियों का बदला भरपूर देगा (क्योंकि) जो उनकी करतूतें हैं उससे वह खूब वाक़िफ़ है तो ऐ रसूल जैसा तुम्हें हुक्म दिया गया और वह लोग भी जिन्होंने तुम्हारे साथ कुफ़्र से तौबा की वह ठीक साबित क़दम रहो और सरकशी न करो क्योंकि तुम लोग जो कुछ भी करते हो उसे वह यक़ीनन देख रहा है।
मुसलमानों जिन लोगों ने हमारी नाफ़रमानी कर के अपने उपर ज़ुल्म किया है उनकी तरफ़ माएल न होना वरना तुम तक भी दोज़ख़ की आग आ लपटे गी और ख़ुदा के सिवा और लोग तुम्हारे सर परस्त भी नहीं हैं तो फिर तुम्हारी मदद कोई भी नहीं करेगा और ऐ रसूल दिन के दोनों किनारे और कुछ रात गए नमाज़(1) पढ़ा करो (क्योंकि) यक़ीनन गुनाहों को दूर कर देती है और (हमारी) याद करने वालों के लिये ये (बातें) नसीहत व इबरत हैं और (ऐ रसूल) तुम सब्र करो क्योंकि ख़ुदा नेकी करने वालों का अज्र बरबाद नहीं करता फिर जो लोग तुम से पहले गुज़र चुक हैं (उन में कुछ लोग ऐसे अक़्ल वालें क्यों न हुए जो लोगों को) रुए ज़मीन पर फ़साद फ़ैलाने से रोका करते (ऐसे लोग थे तो) मगर बहुत थोड़े से और (ये उन्हीं लोगों से थे जिनको हमने अज़ाब से (बचा लिया) और जिन लोगों ने नाफ़रमानी की थी वह उन्हीं (लज़्ज़ती) के पीछे पड़े रहे और जो उन्हें दी गई थी और ये लोग मुजरिम थे ही और तुम्हारा परवरदिगार ऐसा (बे इंसाफ़) कभी न था कि बस्तियों को ज़बरदस्ती उजाड़ देता और वहां के लोग नेक चलन हों और अगर तुम्हारा परवरदिगार चाहता तो बेशक तमाम लोगों को एक ही (क़िस्म की) उम्मत बना देता (मगर उसने न चाहा उसी वजह से) लोग हमेशा आपस में फूड डाला करेंगे मगर जिस पर तुम्हारा परवरदिगार रहम फ़रमाऐ।
और उसी लिए तो उनसे उन लोगों को पैदा किया (और उसी वजह से तो) तुम्हारे परवरदिगार का हुक्म क़तई पूरा होकर रहा कि हम यक़ीनन जहन्नुम को तमाम जिन्नात और आदमियों से भर देंगे और (ऐ रसूल) पिछले पैग़म्बरान सल्फ़ के हालात में से हम उन तमाम क़िस्सों को तुम से बयान किये देते हैं जिनसे हम तुम्हारे दिल को मजबूत कर देंगे और उन्हीं क़िस्सों में तुम्हारे पास हक़ (कुरआन) और मोमिनीन के लिए नसीहत और याद दहानी भी आ गई और (ऐ रसूल) जो लोग ईमान नहीं लाते उनसे कहो कि तुम बजाए ख़ुद अमल करो हम भी कुछ (बजाए ख़ुद) करते हैं और (नतीजे का) तुम भी इन्तेज़ार करो हम (भी) मुन्तज़िर हैं और सारे आसमान व ज़मीन की पोशीदा बातों का इल्म ख़ास खुदा ही को है और उसी की तरफ़ हर काम हिर फ़िर कर लौटता है तुम उसी की इबादत करो और उइसी पर भरोसा रखे और जो कुछ तुम लोग करते हो उससे ख़ुदा बेख़बर नहीं।
सूरे: युसूफ


सूरे: युसूफ(1) मक्के में नाज़िल हुआ और इसमें 111 आयतें हैं।
(ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला हैं।
अलिफ़-लाम-रा- ये वाज़ेह और रौशन किताब की आयतें हैं हमने इस किताब (कुरआन) को अरबी में नाज़िल किया है ताकि तुम समझो (ऐ रसूल) हम तुम पर ये कुरआन नाज़िल करके तुमसे एक निहायत उम्दा(1) क़िस्सा बयान करते हैं अगरचे तुम उससे पहले बिल्कुल बेख़बर थे (वह वक़्त याद करो) जब युसुफ़ ने अपने बाप से कहा ऐ अब्बा मैंने ग्यारह(1) सितारों (ख़्वाब में) देखा है मैंने देखा है कि ये सब मुझे सजदा कर रहे हैं याकूब ने कहा ऐ बेटा (देखो ख़बरदार) कहीं अपना ख़्वाब अपने भाइयों से न दोहराना (वरना) वह लोग तुम्हारे लिये मक़्कारी की तदबीर करने लगेंगे इसमें तो शक ही नहीं कि शैतान आदमी का खुला हुआ दुश्मन है और (जो तुमने देखा है) ऐसा ही होगा कि तुम्हारा परवरदिगार तुमको बरबुज़ीदा करेगा और तुम्हें ख़्वाहों की ताबीर सिखाएगा और जिस तरह इससे पहले तुम्हारे दादा परदादा इब्राहीम और इसहाक़ पर अपनी नेअमत पूरी कर चुका है और उसी तरह तुम पर और याक़ूब की औलाद पर अपनी नेमत पूरी करेगा बेशक तुम्हारा परवरदिगार बड़ा वाकिफ़दार हकीम है।
(ऐ रसूल) यूसुफ़ और उनके भाइयों के क़िस्से में(1) पूछने वाले (यहूद) के लिए (तुम्हारी नबूवत) की यक़ीनन बहुत सी निशानियां हैं कि जब (यूसुफ़ के भाईयों ने) कहा कि बावजूद ये कि हमारी बड़ी जमाअत है तो हम युसूफ़ और उसका हक़ीक़ी भाई (बिनयामीन) हमारे वालिद के नज़्दीक बहुत ज़्यादा प्यारे हैं(2) उसमें कुछ शक नहीं कि हमारे वालिद यक़ीनन सरीह ग़ल्ती में पड़े हैं (ख़ैर तो अब मुनासिब ये है के कि या तो) यूसुफ़ को मार(3) डालो (कम अज़ कम) उसको किसा जगह (चल कर) फेंक आओ तो अलबत्ता तुम्हारे वालिद की तवज्जा सिर्फ़ तुम्हारी तरफ़ हो जाएगी और उसके बाद तुम सबके सब (बाप की तवज्जा से) भले आदमी हो जाओगे उनमें से एक कहने वाला बोल उठा कि यूसुफ़ को तो जान से न मारो हां अगर तुमको ऐसा ही करना है तो उसको किसी अंधे कुएं में (ले जाकर) डाल दो कोई राहगीर उसे निकाल कर ले जाएगा (और तुम्हारा मतलब हासिल हो जाएगा)
सब ने (याकूब से) कहा अब्बा जान आख़िर उसकी क्या वजह है कि आप यूसुफ़ के बारे में हमारा एतबार नहीं करते हालाँकि हम लोग तो उसके ख़ैर ख़्वाह हैं आप उसको कल हमारे साथ भेज दीजिए कि ज़रा (जंगल) से फल फलारी खाए और खेले कूदे और हम लोग तो उसके निगहबान हैं ही याक़ूब ने कहा उसको ले जाना मुझे सख़्त सदमा पहुंचता है और मैं तो उससे डरता हूँ कि तुम सब के सब उससे बेख़बर हो जाओ और (मबादा) उसे भेड़िया फाड़ खाए(4) वह लोग कहने लगे जब हमारी बड़ी जमाअत है (उस पर भी) अगर उसको भेड़िया खा जाए तो हम लोग यक़ीनन बड़े घाटा उठाने वाले (निकम्मे) ठहरेंगे गरज़ यूसुफ़(1) को जब ये लोग ले गए और उस इत्तेफ़ाक़ कर लिया कि उसको अंधे कुएं में डाल दें(3) और (आख़िर ये लोग कर गुजरें तो) हमने यूसुफ़ के पास वही भेजी कि तुम घबराओ नहीं हम अनक़रीब तुम्हें बड़े मर्तबे पर पहुँचाएंगे।
(तब तुम) उनके इस फ़ेल (बद) से मुतन्बा करोगे जब उन्हें कुछ ध्यान भी न होगा और ये लोग रात को अपने बाप के पास (बनावट) से रोते पीटते हुए आए और कहने लगे ऐ अब्बा हम लोग तो जाकर दौड़ लगाने लगे और यूसुफ़ को अपने अस्बाब के पास छोड़ दिया इतने में भेड़िया आकर उसे खा गया और हम लोग अगर सच्चे भी हो मगर आप को तो हमारी बात का यक़ीन आने का नहीं और ये लोग यूसुफ़ के कुर्ते पर झूट मूठ (भेड़) का ख़ून भी (लगा के) लाए थे, याकूब ने कहा भेड़िये ने नहीं खाया (बल्कि) तुम्हारे दिल ने तुम्हारे बचाओ के लिए एक बात गढ़ी (वरना कुर्ता फ़टा हुआ ज़रुर होता) फिर सब्र व शुक्र है और जो कुछ तुम बयान करते हो उस पर ख़ुदा ही से मदद मांगी जाती है
और (ख़ुदा की शान देखो) एक काफ़ला (वहां) आकर उतरा उन लोगों ने अपने सक़्क़े को (पानी भरने) फेजा गरज़ उसने अपना डोल डाला ही था (कि यूसुफ़ उसमें हो बैठे) उसने खींचा तो निकल आए वह पुकारा आह ये तो लड़का है और काफले वालों ने यूसुफ को क़ीमती सरमाया समझ कर छिपा रखा हालांकि जो कुछ ले लोग करते थे ख़ुदा उससे खूब वाख़िफ़ था (जब यूसुफ़ के भाईयों को ख़बर लगी तो आ पहुँचे और उनको अपना गुलाम बताया और उन लोगों ने यूसुफ़ को गिनती के खोटे चन्द दिरहम बहुते थोड़े दाम पर बेच डाला) और वह लोग तो यूसुफ़ से बेज़ार हो ही रहे थे (यूसुफ़ को लेकर मिस्र पहुंचे और वहां उसे बड़े नफ़े से बेच डाला)
और मिस्र के लोगों में से (अज़ीज़े मिस्र)(1) जिसने उनको ख़रीदा था अपनी बीवी (जुलेख़ा) से कहने लगा उसको इज़्जत व आबरू से रखो अजब नहीं ये हमें कुछ नफ़ा पहुँचाए या (शायद) उसको अपना बेटा ही बना डालें और यूं हमने यूसुफ़ को मुल्क (मिस्र) में (जगह देकर) क़ाबिज़ बनाया और गर्ज़ ये थी कि हम उसे ख़्वाब की बातों की ताबीर सिखाँए और ख़ुदा तो अपने काम पर (हर तरह) ग़ालिब व क़ादिर है मगर बहुतरसे लोग (उसको) नहीं जानते और जब यूसुफ़ अपनी जवानी को पहुंचे तो हमने उनको हुक्म (नबुव्वत) और इल्म अता किया और नेकूकारों को हम यूं ही बदला दिया करते है और जिस औरत के घर में यूसुफ़ रहते थे (ज़ुलेख़ा) उसने अपने (नाजाएज़) मतलब हासिल करने के लिए ख़ुद उनसे आरजू की और सब दरवाज़े बन्द कर दिए और (बेताबाना) कहने लगी लो आओ यूसुफ़ ने कहा माअज़ अल्लाह (तुम्हारे मियाँ) मेरे मालिक हैं उन्होंने मुझे अच्छी तरह रखा है मैं ऐसा ज़ुल्म क्यों कर कर सकता हूँ बेशक ऐसा ज़ुल्म करने वाले फ़लाह नहीं पाते ज़ुलेख़ा ने तो उनके साथ (बुरा) इरादा कर ही लिया था और अगर ये भी अपने परवरदिगार की दलील न देख चुके होते तो क़सद कर बैठते (हम ने उसक को यूं बचाया) ताकि हम उस से बुराई और बदकारी को दूर रखें बेशक वह हमारे ख़ालिस बंदों से था और दोनों दरवाज़े की तरफ़ झपट पड़े और जुलेख़ा ने पीछे से उन का कुर्ता (पकड़ कर खींचा और फाड़ डाला) और दोनों ने जुलेख़ा के ख़ाविन्द को दरवाज़े के पास खड़ा(1) पाया ज़ुलेख़ा झट (अपने शौहर से) कहने लगी कि जो तुम्हारी बीवी कि साथ बदकारी का इरादा करे उसकी सज़ा इसके सिवा और कुछ नहीं कि या तो क़ौद कर दिया जाए या दर्दनाक अज़ाब मे मुब्तिला कर दिया जाए
यूसुफ़ ने कहा उसने खुद मुझ से मेरी आरज़ू की थी और जुलेख़ा ही के कुंबे वालों मे से एक गवाही देने वाले (दूध पीते बच्चे)(2) ने गवाही दी कि अगर उन का कुर्ता आगे से फटा हुआ हो तो ये सच्ची और वह झूटे और अगर उनका कुर्ता पुछे से फटा हो तो ये झूटी और वह सच्चे फ़िर जब अज़ीज़ मिस्र ने उन का कुर्ता पीछे से फटा हुआ देखा तो (अपनी औरत से) कहने लगा ये तुम ही लोगों के चलत्तर हैं उसमें शक नहीं कि तुम लोगों के चलत्तर बड़े (ग़ज़ब के) होते हैं (और यूसुफ़ से कहा) ऐ यूसुफ़ इस को जाने दो और (औरत से कहा) कि तू अपने गुनाह की माफ़ी मांग क्योंकि बेशक तू ही अज़ सर-ता-पा ख़तावार है
और शहर (मिस्र) में औरतें चर्चा करने लगी कि अज़ीज़े (मिस्र) की बीवी अपने ग़ुलाम से (नाजाएज) मतलब हासिल करने की आरजूमंद है बेशक गुलाम ने उसे उल्फ़त में लुभा लिया है हम लोग तो यक़ीनन उसे सरीही ग़ल्ती में मुब्तिला देखते हैं तो जब ज़ुलेख़ा ने उनके ताने सुने तो उस ने उन औरतों को बुला भेजा(1) और उन के लिये ऐ मजलिस आरास्ती की और उस में से हर एक के हाथ में एक औरत के हाथ में एक छुरी और एक (नारंज) दी (और कह दिया कि जब तुम्हारे सामने आए तो काट के एक क़ाश उस को दे देना) और यूसुफ़ से कहा कि अब उनके सामने से निकल जाओ तो जब उन औरतों ने उसे देखा तो उसको बड़ा हसीन पाया तो सब के सब ने (बेख़ुदी में) अपने अपने हाथ काट डाले और कहने लगी हाशा लिल्लाह ये आदमी नहीं है ये तो हो न हो बस एक मुअज़िज़ फ़रिश्ता है (तब जुलैख़ा उन औरतों से) बोली कि बस ये वही तो है जिस कि बदौलत तुम सब मुझे मलामत करती थी और हां बेशक में उस से अपना मतलब हासिल करने की खुद उस से आरजू मंद थी मगर ये बचा रहा और जिस काम का मैं हुक्म देती हूं अगर ये न करेगा तो ज़रुर क़ैद भी किया जाएगा और ज़लील भी होगी
(ये सब बातें सुन कर यूसुफ़ ने मेरी बारगाह में) अर्ज़ की ऐ मेरे पालने वाले जिस बात की ये औरतें मुझ से ख़्वाहिश रखती हैं उसकी बा निसबत मुझे क़ैदख़ाना मुझे ज़्यादा पसंद है और अगर तू उन औरतों के फ़रेब से मुझ से दफ़ा न फ़रमाएगा तो (मबादा) मैं उन की तरफ़ माएल हो जाऊं और ज़ाहिलों से शुमार किया जाऊँ तो उनके परवरदिगार ने उन की सुन ली और उन से उन औरतों के मकर को दफ़ा कर दिया उसमें शक नहीं कि वह बड़ा सुनने वाला और वाक़िफ़क़ार है फ़िर (अजीज़ मिस्र और उसके लोगों ने) बावजूद ये कि युसुफ़ के (पाक दामनी की) निशानियां देख ली थी उसके बाद उनको यही मुनासिब मालूम हुआ कि कुछ मियाद के लिये उनको क़ैद ही कर दें।
और यूसुफ़ के साथ और भी दो(1) जवान आदमी (क़ैदख़ाने) मैं दाख़िल हुए (चंद दिन के बाद) उन में से एक ने कहा कि मैं ने (ख़्वाब देखा) है कि (शराब बनाने के वास्ते अंगूर) निचोड़ रहा हूं और दूसरे ने कहा (मैं ने भी ख़्वाब में) अपने को देखा कि मैं अपने सर पर रोटियां उठाऐ हुए हूं और चिडियों उसमें से खा से रही हैं (यूसुफ़) हम को उसकी ताबीर बताओ क्योंकि हम तुम को यक़ीनन नेकूकारों से समझते हैं
यूसुफ़ ने कहा जो खाना तुम्हें (क़ैद खाने से) दिया जाता है वह आने भी न पाएगा कि मैं उसके तुम्हारे पास आने के क़ब्ल ही(2) तुम्हें उस की ताबीर बता दूंगा ये (ताबीर ख़्वाब भी) मिनजुम्ला उन बातों के हैं जो मेरे परवरदिगार ने मुझे तालीम फ़रमाई है मैं उन लोगों का मज़हब छोड़ बैठा हूं जो ख़ुदा पर ईमान नहीं लाते और वह लोग आख़ेरत के भी मुन्कर हैं और मैं तो अपने बाप दादा इब्राहीम व इसहाक़ व याकूब के मज़हब का पैरोकार हूँ हमें मुनासिब नहीं कि हम ख़ुदा के साथ किस चीज़ को (उसका) शरीक बनाए ये भी ख़ुदा की एक मेहरबानी है हम पर भी और तमाम लोगों पर मगर बहुतेरे लोग उस का शुक्रिया (भी) अदा नहीं करते ऐ मेरे क़ैद ख़ाने के दोनों रफ़ीक़ों (ज़रा ग़ौर तो करो कि) भला जुदा माबूद अच्छे या ख़ुदाए यक्ता जबरदस्त (अफ़सोस) तुम लोग तो ख़ुदा को छोड़ कर बस उन चंद नामों ही की इबादत करते हो जिन को तुम ने और तुम्हारे बाप दादाओं ने गढ़ लिया है ख़ुदा ने तो उनके लिये कोई दलील नहीं नाज़िल की हुकूमत तो बस ख़ुदा ही के वास्ते ख़ास है उस ने तो हुक्म दिया है कि उसके सिवा किसी की इबादत न करो यही सीधा दीन है।
मगर (अफ़सोस) बहुतेरे लोग नहीं जानते हैं ऐ मेरे क़ैद ख़ाने के दोनों रफ़ीक़ों (अच्छा अब ताबीर सुनों) तुम में से एक (जिस ने अंगूर देखा रिहा होकर अपने मालिक को शराब पिलाने का काम करेगा और दूसरा (जिसने रोटियां सर पर देखीं हैं) तो सूली दिया जायेगा और चिड़ियां उसके सर से (नोच नोच) कर खाएंगी जिस अमर को तुम दोनों दरयाफ़्त करते थे (वह ये है और) फ़ैसल(1) हो चुका है और उन दोनों में से जिसकी निसबत युसुफ़ ने समझा था कि वह रिहा हो जाएगा उस से कहा कि अपने मालिक के पास मेरा भी तज़किरा करना (के मैं बे जुर्म कै़द हूं) तो शैतान ने उसे अपने आक़ा से ज़िक्र करना भुला दिया तो यूसुफ़ क़ैदखाना में कई बरस(1) रहे
और (उसी असना में) बादशाह ने(2) (भी ख़्वाब देखा और) कहा मैं ने देखा है कि सात मोटी ताज़ी गाएं हैं उन को सात दुबली पतली गाए खाए जाती हैं और सात ताज़ी सब्ज़ बालियां (देखी) और फिर (सात) सूखी बालियां एख (मेरे दरबार के) सरदारों अगर तुम लोगों को ख़्वाब की ताबीर देनी आती तो मेरे (उस) ख़्वाब के बारे में हुक्त लगाओ उन लोगों ने अर्ज़ किया कि ये तो (कुछ) ख़्वाब परेशी (सा) है और हम लोग ऐसे ख़्वाब (परेशों) की ताबीर तो नहीं जानते हैं और जिस ने उन दोनों में से रिहाई पाई थी (साक़ी) और उसको एक ज़माने के बाद (यूसुफ़ का क़िस्सा) याद आया बोल उठा के मुझे (क़ैद ख़ाने तक) जाने दीजिए तो मैं उसकी ताबीर बताए देता हूं (गरज़ वह गया और यूसुफ़ से कहने लगा) ऐ यूसुफ़ ऐ बड़े सच्चे (यूसुफ़) ज़रा हमें ये बताईये कि सात मोटी ताज़ी गायों को सात दुबली पतली गाएं खाए जाती हैं, और सात बालिया है हरी तरो ताज़ा और फिर (सात) सूखी मुरझाई (उसकी ताबीर क्या है) तो मैं लोगों के पास पलट कर जाऊ (और बयान करूं) ताकि उनको भी (तुम्हारी क़दर) मालूम हो जाए
यूसुफ़ ने कहा (उसकी ताबीर ये है) कि तुम लोग लगातार सात बरस काश्तकारी करते रहोगे जो (फ़सल) काटो उस (के दानों) को बालियों ही में रहने देना (छुड़ाना नहीं) अगर थोड़ा (बहुत) जो तुम ख़ुद खाओ उसके बाद बड़े सख़्त (खुश्क साली के) सात बरस आएगे कि जो कुछ तुम लोगों ने उन सात साल के वास्ते पहले जमा कर रखा होगा सब खा जाएंगे मगर क़दर क़लील जो तुम (बीच के वास्ते) बचा रखोगे (बस) फ़िर उसके बाद एक साल ऐसा आएगा जिसमें लोगों के लिए खूब मेह बरसेगा (और अंगूर भी खूब फलेगा) और लोग उस साल (उन्हें) शराब के लिए निचोड़ेंगे (ये ताबीर सुनते ही) बादशाह ने हुक्म दिया कि यूसुफ़ को मेरे हुजरे में तो ले आओ फिर जब (शाही) चोबदार (ये हुक्म लेकर) यूसुफ़ के पास आया तो यूसुफ़ ने कहा कि तुम अपनी सरकार के पास पलट जाओ और उन से पूछो कि (आप को) कुछ उन औरतों का हाल मालूम है जिन्होंने (मुझे देख कर) अपने अपने हाथ काट डाले थे कि आया मैं उनका तालिब था या वह (मेरी) इसमें तो शक ही नहीं कि मेरा परवरदिगार ही उनके मकरो से खूब वाक़िफ़ हैं चुनांचे बादशाह ने (उन औरतों को तलब किया) और पूछा कि जिस वक़्त तुम लोगो ने यूसुफ़ से अपना मतलब हासिल करने की ख़ुद उनसे तमन्ना की थी तो तुम्हें क्या मामला पेश आया था वह सब की सब अर्ज़ करने लगी हाय अल्लाह हम ने यूसुफ़ में तो किसी तरह की बुराई नहीं देखी (तब) अज़ीज़ मिस्र की बीवी (जुलेख़ा) बोल उठी अब तो ठीक ठीक हाल सब पर ज़ाहिर हो ही गया (असल बात ये है कि) मैंने ख़ुद उस से अपने मतलब हासिल करने की तमन्ना की थी और वह बेशक यक़ीनन सच्चा है (ये वाक़िया चोबदार ने यूसुफ़ से बयान किया यूसुफ़ ने कहा) ये क़िस्सा मैं ने (इसलिए छेड़ा) ताकि तुम्हारे बादशाह को मालूम हो जाए कि मैं ने अज़ीज़ की ग़ैबत में उसकी (अमानत में ख़यानत नहीं कि) और ख़ुदा ख़यानत करने वालों की मक्कारी हरगिज़ चलने नहीं देता।

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