बहाईयत साम्राज्यवाद की सेवक संस्था

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दो शब्द

 

जनाब मुजतबा सुल्तानी साहब आज के इस विकसित युग के बहुत ही कुशल लेखक हैं। आपने विभिन्न शीर्षकों के तहत विभिन्न पुस्तको की रचना की है। आपका सबसे बड़ा उद्देश्य यह है कि दुनिया के लोग महान शैतान अमरीका और उसके समर्थकों को पहचान लें जो कि इस्लाम के नाम ,इस्लाम के नियम तथा इस्लाम के कानून को मिट्टी मे मिला देने पर तुले हुए हैं।

   आपकी यह किताब पहले एक लेख के रुप मे थीं जो कि उर्दु पत्रिका "तौहिद" मे छपा था - जब यह लेख जनता की नज़रो से गुज़रा तो आम लोगों ने इसको बहुत सराहा।

   इसलिए आवश्यकता पड़ी कि इसे किताब के रुप में लाया जाए और साथ ही दुसरी भाषाओं मे भी अनुवाद किया जाए। ताकि वह लोग भी इस किताब से पुर्ण लाभ उठा सकें जो कि उर्दु या फ़ारसी नही जानते हैं और पहचान ले कि बहाईयत का सहारा लेकर विश्व साम्राज्यवाद ने किस प्रकार इस्लाम को बर्बाद करने की ठान ली थी लेकिन धार्मिक नेताओॆ (उल्माऐ-दीन) ने किस प्रकार उनसे टक्कर ली तथा इस्लाम को जीवित किया हैं।

   आशा है कि पाठय महोदय इस किताब से पूरा-पूरा लाभ उठाकर साम्राज्यवादी साज़िशों से होशियार रहेंगे।

संस्था

साज़माने तबलीग़ाते-इस्लामी

तेहरान-ईरान

 

प्रस्तावना

अन्तर्राष्ट्रीय साम्राज्यवाद अपने उपनिवेशों की रक्षा के लिए आज़ादी चाहने वाली जातियों से तरह तरह की लङाईयां लङ़ता रहा है। और आज़ादी चाहने वाली जातियां भी अपने सामाजिक प्रोयौगिक और मनोवैज्ञानिक साधनों की सहायता लेकर साम्राज्यवादी शक्तियों से टकराती रहती हैं। उसका तोड़ यह है कि शासक चाहते है कि आपस मे मतभेद रखने वाली शक्तियों को एक न होने दिया जाए। राजनीति और इतिहास का अध्यन करने के बाद ज्ञात होता हैं कि शक्तिशाली और दुसरों के अधिकार हड़प करने वाली विस्तारवादी शक्तियों को जड़ से उखाड़ फैकना ही जातियों की एकता है। इसलिए वह शक्तियां इस एकता को तोड़ने का प्रयास करती रहती हैं।

शासकों की लड़ाओं और शासन करो की राजनीति हर जगह और हर मोड़ पर सामने आयी है। सामाजिक और एतिहासिक बन्धनों को तोड़ने और लोगों को आपस में लड़ाने की मुहिम जारी रखी गई है। साम्राज्यवाद ने इसके लिए अपनी शक्ति का प्रयोग किया है। और इसके रास्ते में आने वाली रूकावटों को हटा दिया है। हमलों के समय बडी शक्तियाँ केवल भौगोलिक इलाके और अर्थव्यवस्था से सम्बन्धित केन्द्रों को ही नहीं देखती बल्कि उनकी तेज तलवारों का पहला निशाना जातियों की साँस्कृतिक सभ्यता और धार्मिक विश्वास होते है। जो जाति जाती किसी सांस्कृतिक विचारधारा में पैदा हुई और पली बढी हो या जिसकी सभ्यता मजबूत हो वह अपने सभ्य विचारों से जीवन में शक्ति पाती है। वह अपने इसी सभ्य समाज के जाने माने लोगों, उनके स्वभावों और कार्य प्रणालियों को उजागर करती हैं। विस्तारवाद, जातियों को उनके स्भय विचारों से अलग करता है। क्योकि जब तक किसी जाति की साँस्कृतिक सभ्यता को परखा ना जाए या उसके मज़बुत बन्धनों और लोगों के एकत्रित होने के स्थानों को कमजोर न किया जाए उस समय तक वह अपने समाज और समाज के धार्मिक विश्वासों को सभ्यता प्रदान करती रहेगी।

और लोगो के जीवन मे नई विचार धारा को बाकी रख सकेगी। जब तक जाति (क़ौम) में दृढ़ता (मज़बुती) बनी रहती हैं। उस समय तक शासन और शासन करनें वालों के अधीन होना कठिन है। विस्तारवाद के इतिहास का संक्षिप्त विवरण यह हैं कि उसका सर्व प्रथम कार्य संस्कृतिक सभ्यता और धार्मिक एकता को हानि पहुचाने के साथ ही संगठित समाज को तोड़ना और उसकी विचार धाराओं को अलग अलग करना हैं। इसके बाद वह अपनी शासकीय सभ्यता और संस्कृतिक फैलाने के लिए , गरीब और दबी हुई जातियो की इतिहासिक सभ्यता और कला व संस्कृतिक को मिटा देता है। इसलिए कहा जा सकता है कि मानवीय आधार पर सत्य और सबसे बड़ा क्रान्तिकारी समाज इस्लामी समाज है। क्योंकि इस्लाम को जीवन प्रदान करने वाली उसकी कुशल तकनीक है। चौदह सौ साल पहले मक्के मे जन्मी सभ्यता का आज तक तानाशाही और साम्राज्यवाद से मुकाबला हो रहा है। इस्लाम के समर्थक अल्लाह पर विश्वास, धार्मिक शिक्षा और मज़बुत इस्लामी कानुन की बुनियाद पर कोशिश करते रहते हैं। ताकि हर जगह इस्लाम का बोल बाला हो जाए। और इस्तेमार , तानाशाही का समापन हो जाए। अन्तिम दो शताब्दीयों मे अन्तर्राष्ट्रीय साम्राज्यवाद ने एक नया भेष बनाया। उसने अफरीका ,एशिया और अमेरिका जैसे देशों पर अपना अधिकार जमाया। उस समय हिम्मत और एकाग्रता से मुकाबला करने वाले केवल मुस्लमान ही थे तथा जल्द ही इस मुक़ाबले मे धार्मिक नेताओं (उल्लमाए - दीन) का समुह आगे बढ़ा और उन्होने पुरी एकाग्रता से भाग लिया।

   उन्नीसवीं शताब्दी ईसवी के अन्त मे तुर्की का उसमानी और ईरान का क़ाचारी परिवार (भौगोलिक दृष्टि से इस्लाम की दो बड़ी शक्तियां) अपने अन्त के अन्तिम क्षणों को गिन रही थीं। उनके पुर्वजो ने इस्लामी शासन का समर्थन छ़ोड़ दिया था इंगलैण्ड़ और रुस लम्बे समय से मुसलमानों के उपजाउु क्षेत्रों पर अधिकार करने का प्रयत्न कर रहे थे। पुर्व-मध्य देशों पर अधिकार जमाने के लिए खींचतान हो रही थी। ईरान, भारत और रुस के मध्य बहुत ही महत्व पुर्ण क्षेत्र था। इंगलैण्ड़ और रुस एक से बचने और एक को बचाने के लिए इस आग मे कुदना चाहते थे और दोनो साम्राज्यवादी अपने नऐ इतिहास को आरम्भ करने के लिए नक्शे तैयार करने मे अपनी अपनी शक्तियों का प्रयोग कर रहे थे। और दुसरी तरफ इस्लामी सभ्यता के रक्षक अपने तन, मन, धन से दोनो साम्राज्यवादी शासनों का सामना करने के लिए ड़टे थे। दोनो दुश्मन चाहते थे कि इस रुकावट को उखाड़ फेंकें।

   नये धर्मो को जन्म देकर लोंगों के अन्दर फुट ड़ालना बड़े शासको का चलन रहा है। यह विस्तारवाद का पुराना हथियार है। समाज के उपद्रव और लोंगो के धार्मिक विश्वासों पर हमला ,फुट ड़ालने का सबसे बड़ा कारण है। धर्म से अलग केवल नाम चाहने वाले नये फ़िर्क़ो से मिलकर जाति (क़ौम) को नये संगठनों के नाम से धोखा देता है। इस तरह साम्राज्यवाद का उद्देश्य पुरा हो जाता है। और इसी तरह उन्की आशाओं की पुर्ति होती है। अत: ईरान मे धार्मिक नेताओं को समाज से अलग करना और उनके चाल चलन को बेअसर बनाने और देश की एकता को भंग करने के लिए विस्तार वाद ने इस तरह की राजनिति अपनाई है। बहाईयत इसी रुप रेखा का एक अंग है। विस्तारवादीयों ने इस गिरोह की सहायता से अपने उद्देश्य की पुर्ति की है। तथा इस गिरोह की जन्म भुमि ईरान है। अत: इससे परिचित होने के लिए ईरान की सभ्यता और इतिहास का जानना आवश्यक है। और यह कार्य ईरान वासियों के लिए सरल है। वह इस नऐ जन्में विस्तारवाद को अच्छी तरह जानते और पहचानतें है।

   पिछले दिनो साम्राज्यवादयों ने एक और चाल चलने का प्रयत्न किया है। वह यह है कि बहाईयो को संगठित किया जाए उनकी यह चाल ईरान के बाहर शुरु हुई है। इसलिए कि वहाँ के लोग अब इस गिरोह से अपरिचित हैं। उन लोगों (बहाईयों) ने स्वतंत्रता चाहने वालो का लबादा ओढ़ रखा है। अत: साम्राज्यवाद इस लबादे के अन्दर से गुलामी का एक और जाल फेंक रहा है।

   बहाईयों के साम्राज्यवादी पिट्ठुओं और उन्के कार्यकर्ताओं से ईरान का हर व्यक्ति परिचित है। लेकिन ईरान से बाहर के लोग उनके असली रुप से अपरिचित हैं। क्योकि वहां के लोग इनको मेल मिलाप वाले और स्वतन्रता के पक्षधर ही समझते हैं। यह लेख इसी आवश्यकता की पुर्ती के लिए हैं। ताकि इनके लिबादे को हटाकर उनकी असलियत को पहंचनवाया जा सके।

 

बहाईयत का संक्षिप्त इतिहास

(1) तेरहवीं शताब्दी हिजरी के मध्य मे अली मोहम्मद शीराज़ी नामक व्यक्ति का जन्म हुआ वह अपने व्यक्तित्व और शिक्षात्मक विचारों का सहारा लेते हुए इमाम मेहदी का दावेदार बन बैठा। (2)उसने अपने आप को वासित,“बाबे इमामे ज़माना कहलवाना शुरु कर दिया इसलिए उसके समर्थक बाबी कहे जाने लगे।

   अली मोहम्मद औसत दर्जे का पढ़ा लिखा व्यक्ति था अरबी ,फारसी , साहित्य को जो पाठ्यक्रम प्रचलित था उसने उसकी शिक्षा प्राप्त की थी। (3)अली मोहम्मद अपने विधार्थी जीवन मे धार्मिक विचार सही ना होने के कारण जादु , टोना ,टोटका, भुत प्रेत, जिन और रहस्मयी बातों पर अजीब अजीब विश्वास रखता था। जैसा कि वह ईरान के दक्षिणी बन्दरगाह बु शहर मे तेज़ धुप के बावजुद छत पर घंटो जादु टोने के सहारे सुर्य को अपने अधिकार मे करने के लिए अजीब अजीब हरकतें किया करता था। (4) सीधे साधे लोगों को दुआ तावीज़ और गंडों के सहारे अपना बनाता रहा और लोग धोखा खाते रहे। (5) पहले तो उसने अपने को इमामे ज़माना का जानशीन होने का दावा किया। (6) और कुछ ही दिनों बाद खुद ही इमामे ज़माना बन बैठा (7) फिर नबुवत और नया दीन लाने का एलान कर दिया। (8) अंत मे एक समय ऐसा भी आया कि वह अपने भाषण और लेंखों मे स्वयं खुदा होनें का दावा किया करता था। (9) शीराज़ के पढ़े लिखे लोगो ने जब अली मोहम्मद को घेरा तो काफी वाद विवाद के बाद उसने मस्जिद मे जाकर जनता के सामने अपने किये हुए कर्मों की क्षमा याचना की। (10)दुसरी बार उसने जब अपने मिशन का आरम्भ किया तो उस समय तबरेज़ के लोगों ने पकड़ा। इस बार वह बहुत रोया पीटा और माफीनामा भी लिखकर राजा के पास भेजा। (11) किन्तु तबरेज़ के धार्मिक नेताओं ने उसकी क्षमा याचना को स्वीकार नही किया लेकिन उसके पागल पन के कारण उसे मौत के हुक्म से मुक्त रखा। (12) परन्तु बाबियों के हंगामे और उग्रवाद से मजबुर होकर अमीर कबीर (सदरे-आज़म) ने इस बुनियाद पर मृत्यु दण्ड़ का आदेश दे दिया कि जब तक बाब जीवित है। उसके उसके पक्षधर हंगामे करने से नही रुकेगें। (13) इसफ़हान का शासक रुसी असअसल , अरमानी मनोचहर खान बड़ा ज़ालिम था। उसको बाब और बाबियों से बड़ा लगाव था। रुस और ब्रिटिश दुतावासों के इतिहास से ज्ञात होता है कि न केवल मनुचहर को बाबियों से लगाव था बल्कि वह ज़बानी समर्थन देता और अपनी शक्तियों से उन्की रक्षा किया करता था।(15) उसने उसके मृत्युदण्ड के आदेश के बारे में हस्तक्षेप भी किया था। लेकिन अमीर कबीर ने अपना आदेश वापस नही लिया। क़ज़वीन , माजिन्दारन यज़्द , तबरेज़, ज़न्जान में बाबियों ने अली मोहम्मद को छुड़ाने के लिए काफी उपद्रव किया। जिनके कारण अत्याधिक जानी और माली नुकसान हुए। और बहुत से क्षेत्रों में अनुशासन हीनता फैल गई। यह गड़बड़ दूतावासों के लिए विशेष रूचि का कारण बनी। जो देश अपने विस्तारवादी प्रोग्राम बनाए बैठे थे उन्हें अपनी इच्छाओं की पूर्ति का अवसर मिला। इसलिए इंग्लैण्ड के राजदूत ने अपनी सरकार के पास एक पत्र भेजा। जिसके कुछ अंश इस प्रकार है।

इस प्रचारक, (अली मोहम्मद शीराज़ी) के सिध्दान्त और धार्मिक विश्वास अपने अन्दर कोई नई बात नहीं रखते हैं। और अगर इनके पक्षधरों को इसी हालत में छोड़ दिया जाए और कोई नोटिस न लिया जाए तो यह लोग अपनी मौत आप मर जाएँगे। किन्तु यह कैद और पाबंदिया ऐसी हैं जो इन्हें मरने से बचा लेगी

बाबियों के हंगामें एक खोखले , निराधार गिरोह को सामाजिक अस्तित्व देने का कारण बने। और सीधे - साधे, आलसी लोगों के लिए शक्ति ग्रहण का रास्ता बने।

अली मोहम्मद शीराजी के फाँसी पाने के बाद मिर्जा याहिया नूरी (सुबहे - अज़ल) ने जानशीनी के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करके बाबियों के नेता बनने का भार संभाल लिया। याहिया अपने सौतेले भाईयों के साथ दो साल तक ईरान के विभिन्न क्षेत्रों में छुपा-छुपा घूमता रहा। इस अन्तराल में तीन बहाई, राजाओं को कत्ल करने का मनसूबा (योजना) बनाने के जुर्म में तथा कुछ अन्य जुर्मों में गिरफ्तार और कत्ल किये गये। शासन ने उनके बढते हुए प्रभाव को समाप्त करने के लिए चुन चुन कर फासियाँ दी, ख़तरनाक माहौल देखा तो मिर्ज़ा यहिया साधुओं का भेष बदलकर बग़दाद चला गया। और मिर्ज़ा हुसैन अली याहिया के सौतेले भाई ने रूसी दूतावास में पनाह ली। रूसी राजदूत ने उसका भरपूर समर्थन किया। और सदरे-आज़म ईरान को एक पत्र लिखा। जिसमें हुसैन अली की जान और माल की रक्षा का आग्रह किया गया था। लेकिन हुसैन अली कैद किया गया जिसके उत्तर में रूसी शासन ने ईरान के शासक को धमकी पूर्ण पत्र लिखा। अंततः राजदूत ने बहुत प्रयास करने के बाद उसे आजाद करा लिया। ईरान की बाब से खुल्लमखुल्ला दुश्मनी और रूस से खुल्लमखुल्ला समर्थन पाने के बाद उन लोगों को ईरान में ठिकाना नहीं मिला तो रूस के राजदूत ने अत्यधिक प्रयत्न कर के हुसैन अली को बग़दाद भेजने का निर्णय किया। उसके बाद बाबियों की गिरफ्तारी और कत्लेआम का काम शुरू हुआ। उसी हाल में हुसैन अली को रूसी और ईरानी संरक्षकों के साथ ईरान से बग़दाद पहुँचा दिया गया।

रूस और बहाईयत से सम्बंधित महत्तवपूर्ण बात यह है कि रूसी शासन ने अपने दक्षिणी नगर इश्क़ाबाद में बाबियों को धार्मिक स्थल बनाने की आज्ञा दे दी। ताकि रूसी मुसलमानों से मुकाबला हो सके। इश्क़ाबाद में बहाईयों की पार्टी बनी और शासन ने उनके प्रचार और प्रसार के लिए पूरा समर्थन दिया। जिसके उत्तर में हुसैन अली ने रूस के राजा ज़ार को एक तख्ती भेंट की। जिसमें राजा की प्रशंसा के साथ साथ राजा के प्रति अपनी सेवा और धन्यवाद प्रकट किया था।

बग़दाद के शासन और रूस के शासन के प्रयनत्न से बाबियों को उसमानी शासन का वफादार मान लिया गया। इसके बाद शासन के लिए खींचतानी लड़ाई और क़त्ल की नौबत आ पहुँची। हर एक के पास मुहम्मद अली द्वारा हस्ताक्षरित पत्र मौजूद थे। और हर एक जानशीनी के लिए दावा कर रहा था। उग्रवाद , चोरी , ड़कैती , बाबियों का काम बन चुका था। इसलिए लोग बाबियों से नाराज़ थे। इसके अतिरिक्त कट्टर धार्मिक नेताओं (उल्माए-दीन) की अध्यक्षता में मुसलमान भी उनके मुकाबले के लिए आ गये थे। ईरानी शासन भी लगातार सरकारी और गैर सरकारी तौर पर उसमानी शासन से रोष प्रकट कर रहा था। इसका परिणाम यह हुआ कि बाबी बगदाद से इस्तम्मबूल और कुछ महीने के बाद अदिरना स्थानतरित कर दिए गये। मिर्ज़ा हुसैन ने यहां पूरी तरह से बाब की जानशीनी का दावा करके अपने सौतेले भाई मिर्जा याहिया से टक्कर ली। इसके बाद दोनो पक्षों ने जाली काग़ज़ात और धोखाधड़ी से ग्रुप बना लिया। आपस मे झगड़े बढते गए। हुसैन अली और याहिया ने किसी न किसी विपक्षी तुर्की दुतावास से सम्बन्धित होकर अपने बचाव की तरकीब निकाली। किन्तु यह बात शासन के नहीं भाई। और निर्णय किया की मिर्ज़ा याहिया के समर्थकों को किबरसऔर मिर्ज़ा हुसैन अली को उसके समर्थकों के साथ फिलिस्तीन भेज दिया जाए। याहिया के समर्थक विदेशी सहायता समाप्त होने के बाद धीरे धीरे उसका साथ छ़ोड़ने लगे। हुसैन अली बहाउल्ला के नाम से स्वयं एक नये धर्म का नेता बन बैठा हुसैन अली ने बाब की तरह क़दम आगे बढ़ाया पहली बात तो यह कही कि अली मोहम्मद का कोई स्थान नही, असली तों मैं हूं। बाब हमारे आने का समाचार लेकर आए थे। अब बाबियत का अन्त हो चुका और बहाईयत ने जन्म पाया हैं। बहाउल्ला ने पैग़म्बरी के दावे के साथ साथ खुदाई का दावा भी किया। लेकिन अक्का (फिलिस्तीन) का माहौल सही न देखकर अपने को मुसलमान भी कहता रहा। बीस वर्ष से अधिक समय तक उसने माहौल ठीक बनाने और बाबियों मे अपना व्यक्तिव और प्रभाव जमाने के प्रयत्न के साथ साथ और भी काम किये। महत्वपूर्ण बात यह है कि रुसी शासन यहां भी उसका भरपूर समर्थन करता रहा और प्रति माह वेतन भी देता रहा। और लगातर उसका दबाव बना हुआ था। इसलिए बहाइयों ने एक बार फिर ईरान का रास्ता पकड़ा और वापसी की तरक़ीब सोची। ईरान के राजा को स्वयं हुसैन अली ने क्षमा के लिए सिफ़ारिश लिखी। जिसमें ईरान शासन ने इस दरखास्त पर कोई नोटिस नही लिया। अब (अक्का) फिलस्तीन के बहाई पुरी तरह तुर्की के शासन से सम्बन्ध बनाने पर नज़र जमा बैठे। और उस्मानी सुल्तान के दरबार से रो-धो कर क्षमा याचना करते रहे।

   हुसैन अली बहा की मृत्यु के बाद उसका पुत्र मिर्ज़ा अब्बास आफ़न्दी बहाईयों का नेता बना। और उसने अब्दुल बहा के नाम से अपने को प्रसिध्द किया। अब्बास आफंदी भी तुर्की के राजा को खुश करने के लिए हर तरह से चापलूसी करने के साथ साथ मुस्लमान होने का दावा भी करता रहा। और साथ ही खुले आम उस्मानी शासन का समर्थन भी करता रहा।

   रुस मे कम्युनिस्ट क्रान्ति आने से माहौल बदला और नए शासन ने बहाईयों को रुसी शासक जार का मित्र माना तथा अपने व्यय की अधिकता के कारण उनकी आर्थिक सहायता मे बेहद कमी कर दी। अब्दुल बहा ने इंगलैण्ड़ के साथ सम्बन्ध दोबारा क़ायम करने की ठान ली। और वह इस विषय मे जासूसी करने लगा। प्रथम विश्व युध्द और फिल्स्तीन मे अंग्रेज़ी सेना का आगमन होते समय अबदुल बहा की अध्यक्षता में बहाइयों ने अंग्रेजों की सहायता की।तुर्की के शासन ने अब्बास आफंन्दी के रहस्य मय कार्यो का पता पाते ही एक नया क़दम उठाया। फिलिस्तीन के कमान्डर इन -चीफ ने जासूसी के आरोप में उसके क़त्ल का निर्णय दिया। लेकिन इंगलैण्ड की सूचना देने वाली एजेन्सी ने तेज़ी दिखायी। उसकी सूचना पर इंगलैण्ड के विदेश मंत्री लार्ड बिलफर ने जनरल ऐल्न बी को फिलिस्तीन तार भेजा जिसमे अबदुल बहा की जान बचाना और बहाईयो की सुरक्षा का आदेश था।

 

इंग्लैण्ड की ओर से सेवा की स्वीकृति

युध्द समाप्त होने के बाद इंगलैण्ड की सरकार ने अबदुल बहा को उसकी जासूसी सेवा के एक शानदार समारोह मे उसका सम्मान करते हुए नाइटहेड़ पुरुस्कार और सर का खिताब दिया। इसके उत्तर मे अब्दुल बहा ने इंगलैण्ड सरकार की वफादारी और प्रतिष्ठा मे एक तख्ती भेंट की।

अब्दुल बहा की मृत्यु पर इंगलैण्ड के दुतावास और सांस्कृतिकभवन ने बहाईयों से सहानुभूति प्रकट की तथा सरकारी तोर पर तार और पत्र भेजा। इंगलैण्ड के उपनिवेश मंत्री सर वेनसन चर्चिल ने जनरल एलन बी . को आदेश दिया की इंगलैण्ड के राजा की ओर से बहाईयो को उन्के नेता की मृत्यु पर शोक प्रकट करें। इंग्लैण्ड के चीफ कमिश्नर सर हरर्बट समोईल और सर डूनाल्ड हरर्बट मध्य-पूर्व एशिया के राजनीतिक एजेन्ट और दूसरे बड़े-बड़े पदाधिकारियों को अब्दुल बहा के जऩाजे में सम्मिलित होने का आदेश दिया। यह बात स्मर्णीय है कि हरर्बट समोईल ही वह व्यक्ति है जिसने ईसराईली शासन की नींव रखी। अब्दुल बहा के बाद उसका समलैंगिक कुकर्मी, नाती, शोंकी, आफन्दी वसीयत के अनुसार बहाईयों का नेता बना।और अब बहाई संगठन इंगलैण्ड़ के विस्तारवाद का एक राजनैतिक और खतरनाक अड्डा है। शौक़ी ने इंग्लैण्ड में शिक्षा प्राप्त की और अंग्रेज़ों की सलाह के अनुसार इंगलैण्ड़ के बहाईयों की सभा नामी संगठन की नींव ड़ाली। पूरे इंग्लैण्ड, स्काट लैण्ड, आयर लैण्ड और उत्तरी दक्षिणी वेल्ज़ में इस संगठन का जाल फैलाया जा चुका है।

युगान्डा पर अंग्रेजी आधिपत्य का दौर बहाईयों के लिए लाभदायक रहा। उन लोगों ने जासूसी के अड्डों के सहारे कम्पाला में एक धार्मिक स्थल बना लिया। शौक़ी आफन्दी ने विस्तारवादी गिरोहों से सम्बन्ध बढ़ाए। अमरीका और दूसरी दुनिया में संगठन की स्थापना करना शुरू किया। वास्तविकता यह है कि फ्रीमेसन संगठनों ने नीचे आकर बहाईयों का रूप धारण कर लिया है। और दुनिया के सूचना विभागों विशेषकर सी-आई-ए ने अपनी उग्रवादी योजनाओं में बहाईयों की सहायता ली है। शौकी आफन्दी के कोई पुत्र नहीं था , उसने नौ व्यक्तियों को सम्मिलित करके एक कांउसिल की स्थापना की। जिसे न्यायालय कहा जाने लगा यह कांउसिल और उसके सदस्य दुनिया के बहाईयों की समस्याओं का समाधान करने के लिए आधारभूत सदस्य थे। शौकी आफन्दी की मृत्यु के पश्चात् उसकी वसीयत के अनुसार चार्ल्स मेसन रेमी को न्यायालय का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। चार्ल्स सी.आई.ए. का अमरीकी एजेन्ट था। उसकी अध्यक्षता पर बहाईयों ने आपत्ति प्रकट की। विशेषकर इंग्लैण्ड समर्थक गुट ने अच्छा खासा विरोध किया। अब बहाई विभिन्न फिर्कों में बट चुके थे। और आजकल बहाई साम्राज्यवाद का कार्यकर्ता संगठन है। अब बहाई पूरी दुनिया में अन्तराष्ट्रीय शासन का सपना देख रहे हैं।

 

साम्राज्यवादी शक्तियों से बहाईयों का सम्बन्ध

(बहाईयत और रूस) बहाईयत के आरम्भ से रूसी शासन गुप्त और खुले तौर पर इस संगठन का समर्थन करता रहा है। दक्षिणी क्षेत्रों में अपना विस्तार तथा अधिपत्य जमाने के लिए हर रोज़ नई नई योजनाएँ बनाते थे। उनमें ईरानी सरकार से संघर्ष भी सम्मिलित था। बहाई आन्दोलन का समर्थन इस सिलसिले की महत्तव पूर्ण कड़ी थी। हुसैन अली का रूसी दूतावास में पनाह लेना, बाबियों की समस्याओं में रूसी सरकार का सम्मिलित होना, हुसैन अली की जान का संरक्षण,और पूर्ण सुरक्षा के साथ इराक़ भेजना, प्रतिमाह वेतन की अदाएगी, रूसी शासक ज़ार का आशीर्वाद और समर्थन में तखतियों का लिखना, प्रार्थना पत्रों का भेजना यह सब ऐसी वास्तविकताएँ है। कि इन्हें बहाई आज भी स्वीकार करते हैं।

 

बहाईयत ओर उसमानी शासक

इसलामी खिलाफत की दावेदार उसमानी शाहनशाहियत मुसलमान आबादी के बहुत बड़े क्षेत्र पर शासन करती थी। राजनीति और धार्मिक गुटों के अन्दर फूट ड़ालने के अतिरिक्त साम्राज्यवादियों की साजिश के हाथों उसके ईरान से खराब सम्बन्ध , उलझी हुई समस्याएँ और युध्द जैसा माहौल रहता था। हर सम्भव क्षण में ईरान पर चोट लगाते और उससे पूर्ण रूप से लाभ उठाते थे। इन समस्याओं को देखते हुए उसमानी शासक ने बाबियों को अपने यहाँ पनाह देने में स्वयं फायदा समझा। बाबी गुट को इरानी शासन के विरूध्द प्रयोग करना सम्भव होने के साथ साथ बाधा ड़ालने का यह लाभ भी था कि ईरानी मुसलमानों के धार्मिक दलों में फूट पड़ जाए। इसलिए बगदाद के गर्वनर ने बाबियों के लिए राष्ट्रीयता प्रदान की। और जितनी भी सहायता उसके बस में थी करता रहा। इसके उत्तर में हुसैन अली ने अपने विचार प्रकट करते हुए उनकी प्रशंसा की।

 

बहाईयत और ब्रिटिश सरकार

उसमानी शासन बाबियों को शरण देकर कुछ लोगो के हाथो कठिनाई मे पड़ गया। सबसे बड़ी बात यह है कि उन लोगों के विरोधी सरकार के दुतावासों से सम्बन्ध थे। तुर्की की सरकार ने खतरा देखते ही बाबियों का समर्थन छोड़ दिया। और लाल क्रान्ति मे आए हुए रुस ने भी अपने सम्बन्ध तोड़ लिये- दूसरी ओर सबसे पुराना इंगलैण्ड़ का साम्राज्य अपने विस्तारवादी साधनों जैसे जासूसी और राजदूतों के सहारे बाबियों कि समस्याओ को महत्व दे रहा था। और मौक़ा आने पर उनकी सहायता भी करता था। अंग्रेज़ ताक मे थे कि समय मिलते ही जाल फेंकें। रुस और उसमानी सरकार के सम्बन्ध तोड़ने के बाद मैदान खाली हो गया। उधर बाबी भी किसी शक्तिशाली की शरण ढूँढ रहे थे। दोनो की एक दुसरे को आवश्यकता थी। इसलिए अपने पुराने सम्बन्ध को बढ़ाना आरम्भ किया। और बहाई ब्रिटिश सरकार के विश्वसनीय हो गए। फ्रीमेश्नी और अन्तर्राष्ट्रीय साम्राज्यवाद के केन्द्रीय कार्यों का सहारा लेते हुए फिलिस्तीन में सेवा कार्यों हेतु आगे बढ़े। इंग्लैण्ड ने इसके उत्तर में उन्हें "सर" का खिताब दिया। इंग्लैण्ड की सरकार ने उपनिवेश मंत्रालय औऱ धार्मिक कार्यों के उद्देश्य के अनुसार उससे कार्य किए। और बहाईयों ने अंग्रेजों के पूर्ण या अर्थ सुरक्षित क्षेत्रों में विदेश मंत्रालय, जासूसी के अड्डे तथा विस्तारवादी उद्देश्यों की प्रगति में सहायता दिया। विशेषकर महाद्वीप अफ्रीका में उन लोगों ने बढ़ चढ़ कर सेवा की। और भरपूर लाभ उठाया। खूंखार और अत्याचारी ब्रिटिश शासन मज़लूम और बेचारी जनता की जागरूकता , आज़ादी के आन्दोलन, और एकता, (विशेषकर इस्लाम की ओर अफ्रीका वालों का झुकाव)को एक बड़ा खतरा समझ रहा था। इस तूफान को रोकने के लिए बहाईयत इसलाम के नाम पर बहुत लाभदायक थी। इन सम्बन्धों के सबूत में बहाई संगठनों की केन्द्रीय कमेटी की ब्रिटिश देशों में स्थापना करने के अतिरिक्त बहाईयों और उनके नेताओं की वह भावनाऐं हैं जो उन्होनें भयावह ब्रिटिश शासन के पदाधिकारियों को लिखी थीं।

 

बहाईयत और यहूदी आन्दोलन

प्रथम विश्व युद्ध के दिल दहला देने वाले परिणामों में वह क़ारनामा भी है जो इंग्लैण्ड के विदेश मंत्री लार्ड बिलफोर्ड और यहूदी पूंजीपति लार्ड रिचर्ड में हुआ था। जिसके कारण फिलिस्तीन में यहूदियों का नए सिरे से उपनिवेश (आबादकारी) और कौमी बैठक की स्थापना हुई। फिलिस्तीन की पवित्र भूमि पर यहूदियों को बसाया जाना ब्रिटिश शासन के चेहरे पर बदनुमा धब्बा है। और अमरीका के अपराधों में इस बड़े अपराध ने उसे अधिक अपमानित किया है। फिलिस्तीन पर कंट्रोल संभालने के बाद ब्रिटेन मध्य पूर्व क्षेत्रों पर अपने कदम जमाये रखने और मुस्लिम क्षेत्रों पर सत्ता करने का सपना देख रहा था। उधर मुसलमानों में जागरूकता और आजादी की लहर उठ रही थी। मध्य-पूर्व में साम्राजियत को खतरे का सामना दिखाई दिया तो उसने सोचा कि इस क्षेत्र में एक चौकी की स्थापना करना आवश्यक है। सर हरबर्ट समोईल यहूदी पूँजीपति को इस काम के वास्ते चुना गया। यह राजनैतिक ऐजेन्ट यहूदियों की फिलिस्तीन वापसी की योजना बनाने के लिए आया था तथा बहाईयों का मित्र और सहायक था। जो अब्दुल बहा के जनाज़े में शामिल भी हुआ था। फिलिस्तीन पर ब्रिटिश शासन के लिए बहाई एक होकर सहायता कर रहे थे। यहूदी आन्दोलन कर्ताओं के सहायक और तरह तरह की समस्याओं में उनके साथ थे। इसीलिए शासन की स्थापना के बाद फिलिस्तीन में यहूदी हिस्सादारी का दावा करने और उसे पवित्र भूमि कहने लगे। फिलिस्तीन में उन्होनें अपने नेताओं को दफन किया औऱ मुसलमानों से दुश्मनी ठान ली। बहाईयों ने फिलिस्तीन में यहूदी सरकार की स्थापना का स्वागत किया। राष्ट्र संघ ने फिलिस्तीन की समस्या का निरीक्षण करने के लिए जो कमीशन भेजा था। बहाईयों ने इस कमीशन को यहूदी मांग के समर्थन में एक मेमोरण्डम लिखा। जो कि फिलिस्तीन पर अधिकार करने वाली इसराईली सरकार की स्थापना और उसकी मजबूती के लिए कोशिश कर रहा है। वह बहुत ढ़िठाई से एक कौम के अधिकारों को कुचलने और साम्राज्यवाद के फैलाव के खुदाई वचन की पूर्ति का नाम देते हैं। इस सेवा सत्कार के उत्तर में इसराईली शासन ने सरकारी तौर पर उनके गिरोही विचारों को कानूनी धर्म स्वीकार किया है। और बहाईयों ने पूरी छूट के साथ (अक्का) फ़िलिस्तीन में विश्व बहाई केन्द्र स्थापित कर लिया। जिसे यहूदी सरकार सहायता देती है। इसके अतिरिक्त अमरीका में भी उनका एक केन्द्र यहूदी सहायता से बना है। और वह केन्द्र जो कि खूंखार साम्राज्यवाद के लाभों की पूर्ण औऱ विकसित करने में लगा हुआ है। बहाईयों का जासूसी और हानिकारक कार्य बढ़ते बढ़ते अरब भूमि तक फैल गया। इसराईल और अरब के युद्ध में उसकी कार्य प्रणाली सबने देख ली।

 

ईरान में बहाईयत और यहूदी आन्दोलन इस्लामी आन्दोलन क्रान्ति से पूर्व

पहलवी शासन में ईरान मध्य-पूर्व क्षेत्र का एक सीमान्त दुर्ग था।और विस्तारवादियों के लाभों का संरक्षण उसके ज़िम्मे था। इसलिए बहाई और यहूदी संयुक्त रूप से शाह के साथ थे। बहाई मुहम्मद रज़ा पहलवी की रिश्वत और पार्टी बाजी के नाम पर अपना समर्थक बनाकर सरकार में अपनी पहुँच बना बैठे। और फिर धीरे धीरे उत्तरदायी अधीकारेयों को अपना बनाकर पहलवी शासन के भरोसेमंद कार्यकर्ता बन बैठे। यहूदी समर्थक होवैदा शासन के 15 वर्षों मे बहुत से यहूदी मंत्री और संसद सदस्य हो गए। उन लोगों ने कारखाने बनवायें,बैंक और औधौगिक फर्मों के मालिक बने।

इस अवधि के अनेक राजनैतिक नेता बहाई थे। जैसे हज़ ब्रिजवानी मशहूर पूंजीपति , जनरल आलाई, प्रोफेसर हकीम और शाही विशेष ड़ाक्टर के नाम प्रसिध्द हैं। इसलिए यह कहा जा सकता है कि शाह के दौर में फ्रीमेशन के बाद जिस दल ने ईरान की राजनीति और अर्थव्यवस्था में उँचा स्थान पा लिया था, वह बहाई ही थे। वह 25 वर्षों तक पहलवी शासन द्वारा अत्याचार करवाते रहे। यही वे थे जो इस्लाम और मुस्लमानों को समाप्त कर देना चाहते थे।

 

बहाईयत और अमरीका

दूसरे विश्व युध्द के बाद नवनिर्मित-विस्तार वादी शक्ति अमरीका वास्तव में ब्रिटिश साम्राज्य और यहूदियों को बढ़ावा देने मे सहायक सिध्द हुई। खूँखार ब्रिटेन ने बहुत से स्थानों पर कमज़ोर जातियों को दबाने के लिए जिस अन्तर्राष्ट्रीय यहूदी आन्दोलन की सहायता की थी। वह उनका शिष्य है। और विश्व में उग्रवाद और खूंखारी करने का ठेका आजकल उसी को दे रखा है। इस समय बड़ी शक्ति होने के दो दावेदार है। अमरीका और इसराईल। दुनिया भर की पूंजी अमरीका में,और अमरीका की सारी पूंजी यहूदियों के अधिकार में हैं। यही लोग फ्री मेंशनी संस्थाओं के बड़े बड़े पदों पर नियुक्त है। अन्तर्राष्ट्रीय साम्राज्यवाद का नमूना अमरीका है। कठिनाईयों का सामना करने वाले गरीब मजदूरों के विरुध्द योजनाएं अमरीका से बनकर आती हैं। और इन योजनाओं को कार्य रुप देने मे इसराईल आगे है। यह बात भी कही जा सकती है कि बहाईयों ने भी साम्राज्यवाद से अपना समर्थन प्रकट करने मे एक क्षण भी बर्बाद न होने दिया और अपनी इस सरकार सेवा को लोगों के सामने प्रकट भी कर चुके हैं।

   अमरीका के राष्ट्रपति रीगन ने कानूनी तौर पर एक बयान मैं बहाईयों का समर्थन करते हुए ईरान में बहाईयत की हालत पर मगरमच्छ के आँसू बहाए और उनसे हमदर्दी प्रकट की। ईरानी क्रान्ति के धार्मिक नेता आयतुल्ला खुमैनी ने 28 मई 1983 के एक बयान में कहा-

बहाईयो के अमरीकी जासूस होने पर अगर हमारे पास कोई सबूत न भी होता तो अमरीकी राष्ट्रपति रीगन का बहाईयों के प्रति समर्थन हमारे लिए पूरी दलील है।

यह सबूत बताते हैं कि बहाईयत विस्तारवाद की कार्य प्रणाली है। और साथ ही बहाईयत अमेरीका की विश्वसनीय सेना तथा संस्था है। अत: जहां जहां साम्राज्यवाद से युध्द जारी है वहां वहां बहाईयों से निपटना जरुरी है।

कुछ महत्व पूर्ण बातें बहाई कार्यकर्ताओं के विस्तारवादी होने के अतिरिक्त बहाई धार्मिक विश्वासों का फैलाव स्वयं साम्राज्य के लिए लाभदायक है। अगर यह गिरोह अपने ग़लत विश्वासों को किसी भी समाज मे फैला दें तो साम्राज्यवादियों के लिए उस समाज को अपनी संस्कृति मे ढ़ाल देना आसान हो जाता है। क्योकि माहौल बना बनाया मिलता है। इसलिए वह क़ानूनी तौर पर लोगो को अपना अधीन बना लेते हैं। बीसवीं शताब्दी में विस्तारवाद नये नये हथियारों से लैस होकर निकला। न्यू कालोनिजम को मालूम है। कि धार्मिक विश्वास समाज को बनाने और मजबुत करने में बहुत ही असरदार होते हैं क्योकि लोगों कि जिन्दगी से धार्मिक विश्वासों का अलग होना असम्भव है। इसलिए साम्राज्यवादी इस विचार मे रहते हैं कि धार्मिक विश्वासों और उनके फैलाव के सिध्दान्तों को जड़ से हिला दें। फिर साम्राज्य के अन्दर फैले हुए असर को बेकार कर दें। विशेषत: इस्लामी विचारधारा और धार्मिक विश्वास दुनिया के गरीबों को शक्ति और आज़ादी प्रदान करते हैं। और अत्याचार से टक्कर लेने के लिए ताकत और हिम्मत प्रदान करती है। साम्राज्यवादीयों के विचार मे इसका तोड़ आपस मे फूट ड़ालना और धार्मिक विश्वासों को कम करना है। जिससे क्रान्ति फैलाने वाले व्यक्तियों की सक्षमता समाप्त हो जाती है।

 

धर्म के प्रति विश्वासों को समाप्त कर नए विश्वासों को प्रचलित करना

मेहदवियत या एक मुक्ति देने वाली मानवता का विश्वास अर्थात खुदा की ओर से एक शक्ति का आगमन होगा। जो लोगो को अच्छईयों की ओर प्रेरित करेगा। खुदा की सहायता से लोगों को न्याय दिया जाएगा और संसार मे एक न्यायपूर्ण शासन स्थापित होगा। यह धार्मिक विश्वास आकाश से सम्बन्धित सभी दीन और मज़हब मे पाया जाता है। यह अवश्य है कि इस्लाम मे यह धार्मिक विश्वास भरपूर तरीके से पाया जाता है। अत: न्याय पसन्द और आज़ादी दिलाने वाले दर्शन शास्त्री मनुष्यों ने कमज़ोर और गरीब जनता को सदा अत्याचार से टक्कर लेने पर उभारा है। और उनकी सफलता का विश्वास दिलाया है।और ऐसे ही विश्वासों को भंग करके धर्म पर हमला भी किया जाता हैं। पूंजी पति और अपनी शक्ति से ड़राने वाले धोखेबाज़ इस धार्मिक विश्वास का मज़ाक उड़ाते हैं। और इन विश्वासों से इन्कार करते हैं क्योकि यह धार्मिक विश्वास विस्तारवाद की राह मे सबसे बड़ी रुकावट है। इसलिए फूट ड़ालने वाले गुट फसाद और दंगा भड़काने वाली बाते करते हैं। और नए विश्वासो की सहायता से असली धार्मिक विश्वासो को कमज़ोर करते रहते हैं। उनका विचार है कि अगर एक व्यक्ति मैहदी मौऊद बन बैठे तो कोई खराबी नहीं होगी। ज़ालिम अपने स्थान पर मज़बूत ही रहेगा। कोई उसका विरोधी नहीं होगा। बल्कि मैहदीं साहब भी उनसे टक्कर लेने के बजाए उनकी सहायता करते और आशीर्वाद देने मे भी संकोच न करते। इसके नतीजें में कमज़ोर और बेचारी जनता धार्मिक विश्वासों से बद दिल होती। उनकी आशाओं पर पानी फिर जाता विरोध करने का उत्साह ठंड़ा पड़ जाता और वह हिम्मत हार जाते; विस्तारवाद को एक नयी शक्ति मिलती।मैहदी साजी की यह चाल विस्तार वाद के लिए लाभदायक सिध्द हुई। उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दी के मध्य मैहदियों का आगमन आरम्भ हो गया। किन्तु ब्रिटिश उपनिवेश(नौ आबादियात) के अन्तर्गत सोने की चिडिया भारत ,या उसके आस पास वाले देशों मे और उत्तरी अफ्रीका मे भी मेहदवियत के दावेदारों का समर्थन करने वालों में बहाई सबसे प्रसिध्द और शक्तिशाली गुट था। इसलिए बहाई अपने झूठे और बे दलील दावों के साथ साथ कमज़ोर मज़दूर जातियों के लिए सबसे खतरनाक गुट माना जाता है। यह गिरोह विस्तारवाद के लिए रास्ता खोलने और साम्राज्यवाद की सेनाओं के लिए मोर्चे बनाने का कार्य ग्रहण किये हुए है।

   बहाई शिक्षा के अंधविश्वासों से उनके धार्मिक विश्वास कमज़ोर होते है, और मनुष्य शंका मे पड़ जाता है। इन्हीं शिक्षाओं के आधार पर हुसैन अली बहा एक दिन इमामे ज़माना(मैहदी मौऊद) बनता है। तो दूसरे दिन आख़िरी नबी होने का दावा करता है। और साथ ही नए धर्म को प्रचलित करता है। कुछ़ दिनो के बाद खुदाई (अल्लाह) का भी दावेदार हो जाता है। उसकी इच्छा यह है कि मानव, धर्म के प्रति विश्वास समाप्त कर बैठे और समाज मे यह प्रचलित हो जाए कि धर्म (मज़हब) बे-बुनियाद चीज़ है। जिस धर्म में अंध विश्वास भरा हो, अच्छ़ा यह है के ऐसे धर्म को छोड़कर बे धर्म रहा जाए।

   एक ओर अंध विश्वास वर्णमालाओं का खेल है। जिससे तरह तरह की खुराफात पैदा होते है। पढ़ी लिखी जनता इससे गुमराह होती है। और सीधे साधे लोग इस जाल मे फंस जाते है।

   बहाई किताबों में इस प्रकार की निर्रथक और प्रतिकूल बाते जब खुलकर सबके सामने आयीं तो उनके नेताओं ने सभी किताबों और लेखों को छ़ुपा दिया। इसी कारण आज वह किताबें केवल बहाईयों के धर्मगुरुओं के पास मौजूद हैं। इतनी सुरक्षा और बचाव के बावजूद खोज करने वाले विध्दान, ईरानी संसद के पुस्तकालय और मिश्र, लन्दन पैरिस, मास्को, लाहौर के पुस्तकालयों में से थोड़ी बहुत किताबें और लेख प्राप्त कर ही लेते हैं।

   बहाईयत ने आरम्भ से प्रतिकूलता का प्रचार इसलिए किया कि धार्मिक विश्वासों को कमज़ोर कर के कुछ नाम निहाद नारे अपनाने के साथ ही आपस मे विरोध, दुश्मनी और एक दूसरे के धार्मिक विश्वासों में दखल आन्दाज़ी न करने का प्रचार शुरु कर दिया जाए। अत: संक्षेप मे कहा जा सकता है कि यह गिरोह धार्मिक विश्वासों का विरोधी होने के साथ साथ न तो मानवता का ही आदर करता है और न ही उसने साम्राज्यवाद के विरुध्द आवाज़ उठाई है।

 

मानवीय सभ्यता से युध्द

यह पूर्ण रुप से कहा जा सकता है कि जहां भी साम्राज्यवाद का आगमन होता है। वहां से सभ्यता और एक दूसरे के प्रति आदर को निकाल फेंकता है। इससे गुलामी की रस्सियों मे जकड़ी जनता में विरोध की क्षमता कमज़ोर हो जाती है। क्योकि जिस जाति (क़ौम) में सभ्यता का बोलबाला होता और सच्चाई पाकदामनी,शराफत, गैरत जैसी भावनाएं पाई जाती है तो उसके लिए किसी दुष्ट, दुराचारी के सामने झुकना कठिन होता है। और कोई विस्तारवाद आसानी से उनको अपना ग़ुलाम नहीं बना सकता।

समाज से अगर दुष्टता, दुराचार, शराब खोरी और बैग़ैरती फैलेगी तो उस समाज में सभ्य मनुष्य का जीना कठिन हो जाएगा। साम्राज्यवाद की ग़ुलाम जातियों पर निगाह ड़ालिए तो मालूम होगा कि दुनियाँ के कितने ग़रीब़ और बेसहारा लोग धन दौलत और शक्ति के नीचे दबे हुए हैं। विस्तारवाद के कार्यों का पहला कार्य यह है कि वह समाज मे अय्याशियों के अड्ड़ो, नाइटक्लबों, शराब खानो और दूसरी गंदी चीज़ों के सहारे असभ्यता और दुराचार का प्रचार व प्रचलन करता है। मस्जिदों और धार्मिक स्थलों को बन्द करने के साथ साथ लोगो को इन स्थानों तक जाने से रोकता है। शिक्षा में कभी सुचनाएं और समाचार पहुंचने पर प्रतिबन्ध लगाता है। जिससे जिहालत और असभ्यता लोगों के दिलों मे प्रवेश कर जाती है। अत: यही साम्राज्यवाद के विजयी होने का कारण है। पश्चिमी देशों मे गुंड़ागर्दी और असभ्यता को फैलाने मे बहाईयत आगे आगे है। वह मानवता के कुशल और सभ्य विचारों से युध्द कर रही है। नंगापन, बदमाशी और औरतों को साम्राज्यवादी आज़ादी का समर्थन करने को उक्सा (प्रोत्साहित कर) रही है।

उसका एलान है कि अगर पति पत्नि माता पिता नही बन पाए है तो वह दूसरे मर्द या औरत से सम्भोग द्धारा माता पिता बन सकते हैं।

उनके धर्म मे धात (मनी) का जबरदस्ती निकालना जायज़ है। और इसी तरह से असली, और खूनी रिश्तों को समाप्त करके नामहरम, महरम बन गया है। अब केवल बाप अपनी बेटी से रिश्ता करने के अलावा सभी से अपनी इच्छ़ाओं कि पूर्ति कर सकता है। उनके धर्म मे बलात्कार का जुर्माना 9 तोला है। यह जुर्माना ब्याही और कुँवारी औरत में कोई अन्तर नही रखता। इन सब को देखकर मालूम होता है कि अय्याशी और बलात्कारी को इस धर्म मे पूरी छूट दी गयी है।

 

जनता की सभ्य राजनीति से सामना

बहाई राजनितिक गुट, राजनीति मे खेलने के बावजूद अपने समर्थकों से कहता है और प्रोपेगंड़ा करता है कि बहाईयत के समर्थक राजनीति से दूर रहें। अब्बास आफन्दी का इस सम्बन्ध में प्रसिध्द वाक्य जो कि बहाईयो का नारा भी समझा जाता है।

बहाई होने या न होने का आधर यह है कि जो व्यक्ति राजनीति मे दख़ल देता है। और अपनी औक़ात से बढ़ चढ कर बोलता है। तो इससे सिध्द होता है कि वह बहाई नही है। और यही व्यक्ति एक स्थान पर लिखता है। जनता पर शासन करने वाले शासक का विरोध करने का किसी बहाई का अधिकार नही है। उनकी समस्याओं और कार्यो मे दखल अन्दाज़ी न करें उनको उनके कार्यों और शासन करने पर छोड़ कर उनके दिलों पर नज़र रखें।

इन विचारो और विश्वासों का प्रोपेगण्डा करके वास्तव मे विस्तारवाद की सेवा और कार्य प्रणाली को बयान किया गया है। अपने निकटतम साथियों को राजनीतिक अड्डों से हटाकर उनके समाज को अपना गुलाम बनाया है। राजनीतिक नेताओं और सामराजवादी शासकों को तानाशाही करने के लिए पूरी छूट दी गई है। जनता को दुहरी राजनीति मे फँसाया। अत: इस अत्याचार को छुपाने के लिए अपने राजनीतिक कार्य कलापों को गुप्त रखकर दूसरों के विचारों से पीछा छुड़ाया है। दीन और मज़हब के नाम पर विस्तारवाद की प्रसन्नता अर्जित की है।

दूसरे शब्दो मे बहाईयों की राजनीति यह है कि शासनिक कार्यों मे दख़ल न दिया जाए और शासन की सहायता करने को राजनीतिक कानून बनाया जाए।

(समाप्त)

 

 
1.  इससे मुराद वह सभ्यता नही है जो आजकल अधिकतर मुस्लमानों के अन्तर्गत प्रचलित है। क्योकि आज के युग का अधिकतर मुस्लमान सामाजिक सभ्यता, इस्लामी शिक्षा, क़ौम परस्ती तथा पुर्व पश्चिम के विचारों का एक समूह है। जिसे इस्तेमार ने फेलाया है। इसलिए जिन विशेषताओं को हमने ब्यान किया है वह इस्लामी सभ्यता की मानवीय क्रान्तिकारी तथा वास्सविक विशेषताएं है।
प्राचीन काल से लेकर आज तक साम्राज्यवादियों को यह कोशिश रही है कि यह वास्तविक इस्लामी सभ्यता मुसलमनों के अन्दर जड़ न पकड़ने पाए
2.  किताब नुक़ततुल-क़ाफ़ पेज न.99-107 लेखक मिर्ज़ा जानी का शानी प्रकाशन-ब्रेललाइड़न हालैण्ड 1910 ई.।
स्वयं अली मोहम्मद शीराज़ी अपनी किताब अहसनुल क़सस सुरह युसफ की तफसीर मे इस बात को मानता है। और मिर्ज़ा हुसैन अली ने भी अपनी किताब इकान मे इस बात की तरफ इशारा किया है। पृष्ठ सं. 51, प्रकाशक मिश्र 1923 ई.
3.  तलखीसे-तारीखें-नाबील पृष्ठ स. 63 लेखक मोहम्मद नबील ज़रन्दी, अर्बी से फारसी अनुवाद (अशराक़ खाबरी)
प्रकाशित तेहरान 1946 – अलक़ वाकेबुद दुर्रिया भाग-1, पृष्ठ सं.31, लेखक अब्दुल हुसैन आवारा, प्रकाशित मिश्र 1923
कश्फुल ग़ता गन्जीनए-हुदुदे-अहकाम,” “नफहाते-मुश्कबारअय्यामें-तिसअह, “रहीक़े-मखदुम, “कामुसे-तौकीए-मनीअ, “असरारुल-आसार खुसुसी, “ज़हुरुल हक़, “नज़रे इजमीली-बे-दयानते बहाई, “दरसे-नहुम इखलाक इन सभी किताबों को स्वयं बहाईयों ने प्रकाशित किया है।
4.  हश्त-बहिश्त पृष्ठ ए.276 मिर्ज़ा अहमद रुही, और आग़ाखान किरमानी (लेखक) प्रकाशित तेहरान, “तलखीसे-तारीखे-नबील ज़रन्दी पृष्ठ सं.66, “रोज़ तुस्सफा नासिरी पृष्ठ सं.31 भाग 1. लेखक मिर्ज़ा रज़ा कुली खां हिदायत, प्रका. तेहरान।
5.  अलकोकबे दुर्रिया भाग-1,पृष्ठ सं. 34 मिस्र
6.  अली मोहम्मद शीराज़ी ने अपनी किताब तफसीरे-युसुफ में अपने दोवों को लिखित रुप मे प्रकाशित किया। तफसीरे-सुरह-बक़र, “रिसाला बैनुल हरमैन, “मतालेउल अनवार, “रहीक़े मखतुम, “जहुरुल हक़, मे भी यह बात बयान की गयी है।
7-8.      नुक़तुल क़ाफ पृष्ठ सं.151, 212 लेखक अली मोहम्मद शीराज़ी मकातीब पृष्ठ सं.266, भाग-2 लेखक अब्बस आफन्दी, मिस्र मफावेज़ात पृष्ठ सं.124 लेखक अब्बास आफन्दी हालैण्ड़ 1908.
9.  लोहे-हैकलुद्दीन पृष्ठ सं.5 लेखक अली मोहम्मद शीराज़ीबदीअ लेखक मिर्ज़ा हुसैन,“तारिखे-सदरुस्सदुर पृष्ठ सं. 207
10. “तलखीसे तारीखे नबील ज़रन्दी पृष्ठ सं.138,“रौज़तुस्सफा नासिरी पृष्ठ सं.311, भाग 10, इनशेआब दर बहाईयत पृष्ठ सं.70 लेखक इसमाईल राईन, प्रकाशित तेहरान 1978.
11. “मक़ाला शख्सी सय्याह पृष्ठ सं.22 अब्बास आफन्दी, तेहरान 1962 “नुक़ततुल क़ाफ पृष्ठ सं.133, “कश्फल ग़ता पृ सं.202-204 “कर्ने-बदी भाग1 पृष्ठ सं.423 लेखक शौक़ी आफन्दी रौज़तुस्सफा नासिरी पृ.सं. 423 भाग-10 “नसिखुततवारीख पृष्ठ 13. भाग 3, लेखक मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी तेहरान-
12. “कश्फुलग़ता पृष्ठ सं.204, “इनशआब दर बहाईयत पृष्ठ सं.74, “रौज़तुस्सफा नासिरी, “नासिखुततवारीख, “तलख़ीसे तारीख़े नबील, “अलकवाकेबुद्रदुर्रिया, “मक़ालाए शख्सी सय्याह इत्यादि मे भी जिन पृष्ठो पर तबरेज़ मे बाब के तोबा नामे का वर्णन किया गया है वहीं पर इन बातों की तरफ भी इशारा किया गया है और इसी प्रकार एड़वर्ड ब्राउन ने मवाद तहक़ीक दरबारहे मज़हबें बाब मे पृष्ठ सं. 54 पर इस बात की ओर इशारा किया गया है।
13. पिछ़ला हवाला
14. “तारीखे- रिजाले-ईरान भाग-4 पृष्ठ सं.162 लेखक मौहदी बामदाद प्रकाशित तेहरान। तलख़ीसे तारीख नैबील ज़रन्दी, पृष्ठ सं.196 इसी प्रकार मोहम्मद अली शीराज़ी के जीवन परिचय से सम्बन्धित सभी हवालों में असफहान के शासक की ओर से समर्थन का वर्णन किया गया है।
15. नमुने के तौर पर उस समय के रुसी राजदुत की रिपोर्ट देते हुए लिखते है बहुत अच्छ़ी बात है कि बाबियों ने इस्लाम के धार्मिक नेताओं के विरुध विरोध प्रकट किया हैशोरिश-बाबियान दर ईरान भाग 30 पृष्ठ सं.143-159 प्रकाशक रुसी कल्चरल सेन्टर मास्को।
नक़तुल काफ़ के लेखक ने पृष्ठ सं.266 पर विदेशी राजदुतों की ओर से अली मोहम्मद शीराज़ी को समर्थन देने का वर्णन है।
साम्राज्यवादी शक्तियो की ओर से बाबियों को समर्थन यह स्वयं एक पुर्ण परिच्छ़ेद है (फ़स्ल) जिसको हमें प्रिन्स वाल्गोर की रिपोर्ट इनशआबदर बहाईयत मे वर्णित किया है।
16. “नुक़ततुल-काफ पृष्ठ सं.233
17. बाबियो के आपात काल से सम्बन्धित सभी किताबों और इतिहास में इस उपद्रव के बयान किया गया है।
18. “इनशेआब दर बहाईयत पृष्ठ सं.38, ईरान में ब्रिटिश राजदुत द्धारा अपने विदेश मंत्रालय को भेजी गयी रिपोर्ट का अनुवाद। ब्रिटिश के सरकारी रिकार्ड आफिस से हवाला-
19. “क़र्न-बदीअ, भाग-1 पृष्ठ सं. 338, भाग 2, पृष्ठ सं.41 “इनशेआब दर बहाईयत पृष्ठ सं.106, तलख़ीसे-तारीख़े नबील ज़रन्दी पृष्ठ सं.627, “बहाउल्ला व असरेजदीद पृष्ठ सं.44 लेखक ड़ाक्टर असलमन्त, प्रकाश-अमाफरत हीफा इसराईल 1932 “रेसाला-अय्यामे तिसआ पृष्ठ सं.387, इशराक़ात पृष्ठ सं.353 लेखक मिर्ज़ा हुसैन अली। अलकवाकेबुद दुर्रिया पृष्ठ सं.234
20. पिछ़ला हवाला मिर्ज़ा हुसैन अली की गिरफ्तारी और दुसरे वर्णन.
21. मसाबीहे-हिदायत भाग-2 पृष्ठ सं.282 लेखक अज़ीजुल्लाह सुलेमानी प्रकाशक, लुजनए मिल्ली प्रकाशन तेहरान.
इस तरह सरकारी किताबों और प्रकाशनों मे भी इश्क़बाद रुस मे बहाईयों के धार्मिक स्थलों का ब्यान किया गया है।
22. मिर्ज़ा हुसैन अली की किताब मुबीन मे लौह का मतन पृष्ठ सं.76 पर मौजुद है। और किताब क़र्ने बदीअ भागा-2 पृष्ठ सं. 86 पर इस तरह का वर्णन है।
23. “इन्शेआब दर बहाईयत पृष्ठ सं.83, माएदह-हाए-आसमानी पृष्ठ सं.130 प्रकाशन मोस्सा मिल्ली प्रकाशन आमरी तेहरान
क़र्नेबदीअ भाग-2 पृष्ठ सं.171
24. “मवादे-तहक़ीक दरबारए मज़हबे बाब, “हज़रत बहाउल्लाह पृष्ठ सं.148 लेखक मोहम्मद अली फैज़ी प्रकाशन तेहरान मकातीब भाग-2 पृष्ठ सं.177
25. क़र्ने बदीअ भाग-2 पृष्ठ सं.270,271,275, “अलकवाके बुददुर्रियां भाग-9 पृष्ठ सं.379,381,383, “इन्शेआबदर बहाईयत पृष्ठ सं.84, “नुक़ततुल क़ाफ़ और दुसरे हवालों मे इस बात का वर्णन है।
26. “मक़ाला-शख्सी सय्याह पृष्ठ सं.78, “ईकान लेखक मिर्ज़ा हुसैन अली, “मुफावज़ात, “अल्फ़राएद लेखक मिर्ज़ा अबुलफज़ल गुलपैगानी और तहक़ीक़ दर तारीख व फलस्फ़ा बाबीगिरी और बहाईगरी भाग-3 मे बहाई हवालों की बहस हुई है।
27. मिर्ज़ा हुसैन अली ने अपनी किताब मुबीन के 21, 48, 56, 210, 232, 286, 308, 342, 405, 417 पृष्ठों पर खुलेआम उलुहीयत का दावा किया है। और माएदह हाए आसमानी, “रेसाला अय्यामे तिसआअदइयए हजरते महबुब, “मजमुए मुबारका मसाबीहे हिदायत जैसी किताबे मिर्ज़ा हुसैन अली के इस प्रकार के दावों से भरी पड़ी है। इस प्रकार मकातीब के पृष्ठ सं.225 पर अब्बास आफ़न्दी ने मिर्ज़ा हुसैन अली के इस दावे को स्वीकार किया है।
28. “कर्नेबदीअ बहाईयत के इतिहास से सम्बन्धित बलानफील्ड की किताब देखिए-जिसमे यह किस्सा हुसैन अली की पुत्री के द्दारा नकल हुआ है।
29. “मजमुआ अल्वाह मुबारक पृष्ठ सं.159 पर स्वयं मिर्ज़ा हुसैन अली ने रुसी सरकार से धन लेने को खुले शब्दों मे स्वीकारा है।
30. “किताबे मुबीन मे पृष्ठ सं.159 पर नसिरुद्दीन शाह क़ाचार के समक्ष मिर्ज़ा हुसैन अली द्दारा सहायता मांगने का पुरा वर्णन किया गया है।
31. “खातराते-सुबही पृष्ठ सं.98 लेखक सुबही मेहतदी (मिर्ज़ा हुसैन अली के पर्सनल सिक्रेटरी)
अब्बास आफ़न्दी के खुतुत मकातीब भाग-3 पृष्ठ सं.327 “कर्नेबदाअ भाग-3 पृष्ठ सं.218,326 और अब्बास आफ़न्दी से सम्बन्धित और दुसरी किताबें-
32. “मकातीब भाग-2” पृष्ठ सं.312, भाग-4 पृष्ठ सं.177, भाग-3 पृष्ठ सं.157 पर उस्मानी सरकार के समर्थन मे पत्र लिखित है। इन्शेआब दर बहाईयत पृष्ठ सं.12। पिछ़ला हवाला।
33. “कर्नेबदाअ भाग-2, पृष्ठ सं.125, भाग-3 पृष्ठ सं.291 “इन्शेआब दर बहाईयत पृष्ठ सं.127
34. “बयानुल हकाएक़ पृष्ठ सं.71 लेखक अब्दुल हुसैन आयती, “कर्नबदाअ भाग-3 पृष्ठ सं.297, इनशेआब दर बहाईयत पृष्ट सं.121 पिछला हवाला
35. पिछला हवाला
36. “अल्कवाकेबुद दुर्रियां भाग-2 पृष्ठ सं.305, “क़र्नेबदीअ भाग-3 पृष्ठ सं.299, “इनशेआब दर बहाईयत पृष्ठ सं.118
37. तख्ती (लौह) मकातीब मे वर्णित है। और इनशेआब दर बहाईयत पृष्ठ सं.119, 120, “मकातीब भाग-3 मे भी इसका वर्णन किया गया है। यहां तक कि अब्दुल बहा ने एक तकरीर के दौरान अंग्रेज़ो को मुखातिब कर के कहा ईरानी जनता अंग्रेज़ो की जान निसार है। देखिए किताब अब्दुल बहा के खुत्बे भाग-1 पृष्ठ सं.33
38. “क़र्ने बदीअ भाग-3 पृष्ठ सं.32रिसाला अय्याम तिसआ पृष्ठ सं.508, “अलकवाकबुद-दुर्रियां भाग-2 पृष्ठ सं.307 “मजल्ला अखबारे आमारी पृष्ठ सं.7 अनुवादक महफिले मिल्ली बहाईयानें-ईरान सं.7-8 नवम्बर, दिसम्बर 1945.
39. “कश्फुल-हील पृष्ठ सं.154, लेखक अब्दुत हुसैन आयती प्रकाशन-तेहरान प्यामे-पेदर पृष्ठ सं.142 लेखक सुबही मुहतदी (अब्बसी आफ़न्दी के पर्सनल सिक्रेटरी)
40. “शर्हेहाल हज़रत वली अमरुल्लाह पृष्ठ सं.38, लेखक अब्दुल हमीद इशराक़ खावरी-
41. पिछ़ला हवाला-
42. शौकीं रब्बानी का टेलीग्राम मजल्ला अखबार आमरी से लिया गया। (4 जुलाई 1950, 1951)
43. इनशेआब दर बहाईयत पृष्ठ सं.195-203
44. पिछला हवाला पृष्ठ सं.217-327
45. देखिए (बहाई न्यज़) सितम्बर 1947 और मजल्ला अखबार आमरी 7 नवम्बर 1947
46. “तौक़ीआते मुबारक हज़रत वली अमरुल्लाह पृष्ठ सं.290 प्रकाशन अल मोस्साते आमरी तेहरान।
47. मजल्ला अखबार आमरी (अगस्त 1953 ई.)
48. अखबार अलअहराम क़ाहिरा 23 फरवरी 1975 और इरान रेडियो, टीवी. द्दारा प्रसारित न्युजबुलेटिन संख्या 232, 11 जनवरी 1975 ई. मध्य-पुर्व एशिया के रेडियों और अखबार ले नक़ल-अखबार अलमहबर 25 फरवरी और मजल्ला अखबार वी.टी.” 10 अप्रैल 1975 पृष्ट सं. 30 और समाचार पत्र अलअहराम 10 अप्रैल 1975 दोबारा-इनशआब दर बहाईयत पृष्ठ 257,299
49. “खुतबाते-अब्दुल बहा भाग-1 अमरीका की यात्रा के दौराने मिस क्रापर के मकान पर एक तक़रीर 1911 ई. और वह किताबें जो कि अमरीका मे बसे बहाईयों ने प्रकाशित की है।
सुचना प्रसारण एजेन्सी इस्लामी गणराज्य ईरान
50. “तफसीर सुरह - युसुफ (खिताबे-कुर्रतुल ऐन), “ब्यान दसवाँ भाग-और तहक़ीक दर तारीख़ फलसफ़ा बाबीगिरी और बहीईगरी-
51. “ब्यान बाब 15 खण्ड़ 4,6
52. “ब्यान दसवां बाब खण्ड़ 8
53. “अक़दस पृष्ठ सं.38 लेखक मिर्ज़ा हुसैन अली बहा
54. “अक़दस पृष्ठ सं.19
55. अख़बार अमारी से लिया गया। (30 दिसम्बर 1945)
56. “अक़दस पृष्ठ सं.225
राजनीति से दूर होने के बयान मे और जानकारी के लिए देखिए अख़बार आमरी (12 मार्च 1947) और 4 अप्रैल 1946, 11 फरवरी 1946, 5 मई 1946 और किताब नज़र इजमाली दर दयानते बहाई लेखक अहमद यज़दानी आमरी प्रकाशन तेहरान 1950 ई.
रिसालए सियासिया लेखक अब्बास आफन्दी ईरान की संसद के पुस्तकालय मे रिसालय बहाईयां के नाम से मौजूद है।
 

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