ख़तीबे दार जनाबे मीसमे तम्मार

इतिहासिक शख्सीयते
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जनाबे मीसम का शुमार इमाम अली अलैहिस्सलाम के असहाबे ख़ास मे किया जाता है और आप उन हज़रात मे से है कि जिनकी तारीफ ख़ुद पैग़ंबरे इस्लाम ने की है।

 

आपका नाम व कुन्नीयत (उपनाम)

जनाबे मीसम का अस्ल नाम सालिम था लेकिन जब इमाम अली ने आपको ख़रीद कर आज़ाद किया तो आपका नाम पूछा जनाबे मीसम ने जवाब मे सालिम नाम बताया,  इमाम अली ने फरमाया कि पैग़म्बर ने मुझे बताया है कि तुम्हारे माँ-बाप ने तुम्हारा नाम मीसम रखा था तो जनाबे मीसम ने क़सम खा कर कहा कि आपने सच फरमाया है उसके बाद इमाम अली ने आपका नाम मीसम रख दिया और आपकी कुन्नीयत अबुसालिम कर दी।

 

जनाबे मीसम की एक और कुन्नीयत अबुसालेह भी है।

 

पिता

जनाबे मीसम के पिता का नाम याहिया था जो कि बनी असद की एक औरत के ग़ुलाम थे इसी लिऐ जनाबे मीसम को भी मीसमे असदी कहा जाता है।

 

 

जन्म स्थान

आप कूफे मे इस दुनिया मे तशरीफ लाऐ।

 

 

कारोबार

जनाबे मीसम कूफे के बाज़ार मे खजूर बेचा करते थे। अरबी जबान मे खजूर को तमर कहते है और इसी वजह से जनाबे मीसम को मीसमे तम्मार कहते है।

 

 

जनाबे मीसम और इमाम

हजरत मीसम इमाम अली, इमाम हसन और इमाम हुसैन के असहाबे ख़ास मे से थे और इमाम अली ने इल्मे ग़ैब की बहुत सारी बाते बताई और बहुत से ख़ास अहकामे रसूल आपको तालीम किये।

 

 

इल्मे ग़ैब

अभी आपने पढ़ा कि जनाबे मीसम को इमाम अली ने बहुत सी इल्मे ग़ैब की बाते बताई थी तो इनसे साबित होता है कि जनाबे मीसम इल्मे ग़ैब रखते थे  जैसा कि आपने माविया के मरने की ख़बर पहले ही लोगो को दे दी थी और जबला नाम की एक मक्की औरत को इमाम हुसैन की शहादत की भी ख़बर दी थी और इब्ने ज़्याद के ज़रीऐ ख़ुद अपने गिरफ्तार होने और शहीद होने की ख़बर लोगो को दे दी थी।

 

 

रूहानी हैसीयत

जनाबे मीसम की रूहानी और बुलन्द हैसीयत की निशानी के लिऐ यही कहना काफी होगा कि रसूले अकरम (स.अ.व.व) ख़ुद इमाम अली से जनाबे मीसम की तारीफ किया करते थे।

 

 

शहादते जनाबे मीसम इमाम अली की ज़बानी

इमाम अली ने जनाबे मीसम को उनकी शहादत के बारे मे पूरी जानकारी दे रखी थी यहा तक कि जनाबे मीसम को ये भी मालूम था कि शहादत के वक़्त आपको किस पेड़ पर लटकाया जाऐगा रिवायत मे आया है कि अकसर जनाबे मीसम उस पेड़ के नीचे नमाज़ पढ़ा करते थे उस को पेड़ को पानी भी दिया करते थे।

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