अनुवादकः सैय्यद मौहम्मद मीसम नक़वी
इमाम हुसैन (अ.स) की शहादत मे उमर का किरदार का अंदाजा हमे इन बातो से होता है कि कितनी हैरत की बात है कि उमर जो अपने गवर्नरो से बहुत ज़्यादा सख्ती से पेश आता था। उसने माविया की साफ ग़लतीयो से आँखे चुराई और उन सब बातो के देखते हुऐ कि माविया ने बादशाहत क़ायम कर ली है और हुकुमते इस्लामी के शाम के बड़े इलाक़े मे फितना व फसाद बरपा कर रखा है। उमर ने कभी भी इसकी इस्लाह के लिऐ एक लफ्ज़ भी नही कहा। ये कितने ताज्जुब की बात है।
उमर ने उम्माल और वालीयो (गवर्ननरो) से हिसाब लेने मे इतना सख्त था कि खालिद इब्ने वलीद को बैतुल माल मे दस्तदराज़ी के जुर्म मे बरखास्त कर दिया गया था।(1)
मिस्र के गवर्नर मौहम्मद बिन मुस्लेमा अंसारी को उमरे आस के पास हिसाब किताब के लिऐ भेजा और मुखालेफत की सूरत मे उसके सारे माल की कुर्की कर ले। मिस्र मे खलीफा के नुमाइंदे ने खाने को हाथ लगाऐ बग़ैर उसके आधे माल की कुर्की कर ली और मदीना ले कर चला आया।(2)
और जब अबुहुरैरा ने मुसलमानो के बैतुलमाल से ग़लत तरीक़े से खयानत की तो उसके जमा किये हुऐ मालो दौलत को बैतुलमाल मे वापस कर लिया और उस की पुश्त पर कोड़े बरसाऐ गऐ और गुस्से मे उस से कहा कि तेरी माँ अमीमा ने तुझे सिर्फ खर्च करने के लिऐ पैदा किया है।(3)
उमर की सीरतो रफ्तार ये थी कि हमेशा अपने गवर्नेरो के तमाम माल पर नज़र रखता था और जब किसी को उसके मंसब से बरखास्त करता था तो उसका सारा माल जब्त कर लेता था।(4)
लेकिन नही मालूम की इतनी सख्तीयो के बावजूद माविया के साथ कैसी सांठ-गांठ थी कि इसकी खयानतो और बिदअतो के मुक़ाबले मे उमर ने कभी कुछ नही कहा।
जबकि उमर के जमाने मे माविया के बरखास्त करने और उसकी जगह दूसरे आदमी को भेजने मे कोई परेशानी नही थी लेकिन उमर उसके साथ इस कदर रिआयत करता था कि जिस से तमाम तहकीक करने वालो को हैरत और ताअज्जुह होता है।
माविया का दीन के खिलाफ काम करना उमर से पोशीदा नही था वो खुद जब माविया को देखता था तो कहता था कि वो अरब का बादशाह है।(5)
लेकिन अमली तौर पर उसे हुकुमते इस्लामी को छोड़ने और बादशाही निज़ाम को कायम करने मे आज़ाद छोड़ रखा था और आज की शाम, फिलिस्तीन, उरदुन और लुबनान जैसी बड़ी हुकुमते इसके सौंप रखी थी और इसको मुसलमानो के माल और नामूस पर मुसल्लत कर रखा था।
जिस वक्त उमर ने दमिश्क़ की सर जमीन पर कदम रखा तो माविया को सैकड़ो लश्करो और सिपाहीयो के दरमियान पाया लेकिन उससे सिर्फ एक सवाल किया और कोई दूसरी मुखालेफत और ऐतराज़ उस पर जाहिर नही किया।(6)
यही तक कि जब उसने सुना कि माविया ने अपने आप को अरब का पहला बादशाह क़रार दिया है तो ज़रा भी बुरे से अहसास का इज़हार नही किया और जब उमर ने अबुसुफयान से पैसो का भरा हुआ संदूक़ हासिल किया और वो जानता था कि ये पैसा अबुसुफयान को उसके बेटे माविया ने बैतुलमाल मे से दिया है। लेकिन उमर ने तब भी माविया की इस खयानत कोई ताज्जुब नही किया।(7)
इससे भी ज़्यादा हैरत अंगेज बात ये है कि सुन्नी आलिम इब्ने अबिलहदीद नहजुल बलाग़ा की शरह मे नक्ल करते है कि उमर मरते वक्त सख्त दर्द मे मुब्तेला था और छः आदमीयो की कमेटी से ये कह रहा थाः
मेरे बाद इख्तेलाफ और झगड़ा न करना और तिफरक़े से परहेज़ करना क्योकि अगर तुम आपस मे लड़ोगे तो माविया मैदान मे आ जाऐगा और तुम से खिलाफत को झीन लेगा।(8)
आखिर उमर ने माविया को इतना मौक़ा क्यो दिया कि वो बनीउमय्या को शाम मे आज़ाद छोड़ दे और फिर उसकी ताक़त से अहले शूरा (6 आदमीयो की कमेटी) को डराये।
क्या खलीफा का मक़सद ये था कि बनीउमय्या को शाम मे ताकतवर करके बनीहाशिम पर नकेल डाले और जब भी बनीहाशिम की तरफ से कोई आवाज़ उठाई जाऐ तो इन्हे इस्लाम के पुराने दुश्मन बनी उमय्या का सामना करना पड़े।
जी हाँ ऐसा ही है।
बहुत मुम्किन है माविया पर उमर की मुहब्बतो का अस्ल राज़ यही हो।
हकीकत ये है कि खलीफा ने शाम मे बनी उमय्या को हुकुमत मे बैठा कर अपने आप को बनी हाशिम के (शायद) होने वाले हमलो से बचाया है और बनी उमय्या को बनी हाशिम की नाराज़गी के तूफान के सामने खड़ा कर दिया था।
इसी वजह से उनको ये मौक़ा दे रहा था कि बनी उमय्या एक बहुत ही खतरनाक और जालिम हुकुमत को शाम मे खड़ी करे।
ऐसी हुकुमत के जिस ने नबी के नवासे इमाम हुसैन (अ.स) और उनके दोस्त और घरवालो को करबला के मैदान मे जुल्मो सितम के साथ शहीद करे। ऐसा जुल्मो सितम की जिसका इतिहास कभी मिटाया नही जा सकेगा।
और ये काम उस्मान के जमाने मे खूब फैले।
यहा पर इस कलाम की गहराई और हक़ीक़त पता चलती है कि “हुसैन सक़ीफा के दिन कत्ल हो गऐ थे”
मरहूम मौहक़्क़िक़ इस्फाहानी ने अपने शेर मे इस बात को बहुत वाज़ेह कर दिया।
जिनका तर्जुमा ये हैः जिस वक्त हुर्मुला तीर चला रहा था तो हुर्मुला तीर नही चला रहा था बल्कि वो शख्स तीर चला रहा था कि जिस ने हुर्मुला के लिऐ ये मौक़ा फराहम किया। ये वो तीर था जो सकीफा की तरफ से चला था और उसकी कमान खलीफा के हाथ मे थी।(9)(10)
1. शरहे नहजुल बलाग़ा इब्ने अबिलहदीद जिल्द न. 1 पेज न. 180
2. शरहे नहजुल बलाग़ा इब्ने अबिलहदीद जिल्द न. 1 पेज न. 175
3. अक़दुल फरीद जिल्द न. 2 पेज न. 14
4. शरहे नहजुल बलाग़ा इब्ने अबिलहदीद जिल्द न. 1 पेज न. 174
5. तारीखे इब्ने असाकर जिल्द न. 59 पेज न. 114, 115
6. अल इस्तिआब जिल्द न. 1 पेज न. 253
7. अलग़दीर जिल्द न. 6 पेज न. 164
8. शरहे नहजुल बलाग़ा इब्ने अबिलहदीद जिल्द न. 1 पेज न. 184
9. दीवाने अशआर मरहूम मौहक़्क़िक़ इस्फाहानी
10. किताबे आशूरा पेज न. 123
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