अंबिया अलैहमुस सलाम ने तुम्हारे दरमियान परवरदिगार की किताब को छोड़ है। जिस के हलाल व हराम, फ़रायज़ व फ़ज़ायल, नासिख़ व मंसूख़, ख़ास व आम, इबरत व अमसाल, मुतलक़ व मुक़य्यद, मोहकम व मुतशाबेह सब को वाज़ेह कर दिया है। मुजमल की तफ़सीर कर दी थी, गुत्थियों को सुलझा दिया गया था।
इस में बाज़ आयात हैं जिन के इल्म का अहद लिया गया है और बाज़ से नावाक़ेफ़ीयत को माँफ़ कर दिया गया है। बाज़ अहकाम के फ़र्ज़ का किताब में ज़िक्र किया गया है और सुन्नत से उन के मंसूख़ होने का इल्म हासिल हुआ है या सुन्नत उन के वुजूब का ज़िक्र किया गया है कि जब कि किताब में तर्क करने की आज़ादी का ज़िक्र था।, बाज़ अहकाम एक वक़्त में वाजिब हुए हैं और मुसतक़बिल में ख़त्म कर दिये गये हैं। इस के मुहर्रेमात में बाज़ पर जहन्नम की सज़ा सुनाई गई है और बाज़ गुनाहे सग़ीरा हैं जिन की बख़शिश की उम्मीद दिलाई गई है। बाज़ अहकाम हैं जिन का मुख़तसर भी क़ाबिले क़बूल है और ज़ियादा की भी गुन्जाइश पाई जाती है।
नहजुल बलाग़ा में ज़िक्रे हज्जे बैतुल्लाह
परवरदिगारे आलम ने तुम लोगों पर हज्जे बैतुल्लाह को वाजिब क़रार दिया है। जिसे लोगों के लिये क़िबला बनाया है और जहाँ लोग प्यासे जानवरों की तरह बे ताबाना वारिद होते हैं और उस से ऐसा उन्स रखते हैं जैसा कबूतर अपने आशयाने से रखता है। हज्जे बैतुल्लाह को मालिक ने अपनी अज़मत के सामने झुकने की अलामत और अपनी इज़्ज़त के ऐक़ान की निशानी क़रार दिया है। उस ने मख़लूक़ात में से उन बंदों का इंतेख़ाब किया है जो उस की आवाज़ सुन कर लब्बैक कहते हैं और उस के कलेमात की तसदीक़ करते हैं। उन्होने अंबिया के मवाक़िफ़ में वुक़ूफ़ किया है और तवाफ़े अर्श करने वाले फ़रिश्तों का अंदाज़ इख़्तियार किया है। यह लोग अपनी इबादत के मामले में बराबर फ़ायदे हासिल कर रहे हैं और मग़फ़ेरत की वअदा गाह की तरफ़ तेज़ी से सबक़त कर रहे हैं।
परवर दिगारे आलम ने काबे की इस्लाम की निशानी और बे गुनाह अफ़राद की पनाह गाह क़रार दिया है। उस के हज को फ़र्ज़ किया है और उस के हक़ को वाजिब क़रार दिया है। तुम्हारे ऊपर उस घर की हाजि़री को लिख दिया है और साफ़ ऐलान कर दिया है कि अल्लाह के लिये लोगों की ज़िम्मेदारी है कि उस के घर का हज करें जिस के पास भी उस राह को तय करने की इस्तेताअत पाई जाती हो।
नहजुल बलाग़ा में रसूले अकरम (स) की बेसत से मुतअल्लिक़
यहाँ तक कि ख़ुदा वंदे आलम ने अपने वअदे को पूरा करने और सिलसिल ए नबुव्वत को मुकम्मल करने के लिये पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम को भेजा। जिन के बारे में अंबिया से अहद लिया जा चुका था और जिन की अलामतें मशहूर और विलादत मसऊद व मुबारक थी। उस वक़्त अहले ज़मीन मुतफ़र्रिक़ मज़ाहिब, मुन्तशिर ख़्वाहिशात, मुख़्तलिफ़ रास्तों पर गामज़ान थे। कोई ख़ुदा को मख़लूक़ात की शबीह बता रहा था, कोई उस के नामों को बिगाड़ रहा था और कोई दूसरे ख़ुदा का इशारा दे रहा था। मालिक ने आप के ज़रिये सब को गुमराही से हिदायत दी और जिहालत से बाहर निकाला।
उस के बाद उस ने आप की मुलाक़ात को पसंद किया और ईनामात से नवाज़ने के लिये इस दारे दुनिया से बुलंद कर लिया। आप को मसायब से निजात दिला दी और निहायत ऐहतेराम से अपनी बारगाह में तलब कर लिया और उम्मत वैसा ही इंतेज़ाम कर दिया जैसा कि दीगर अंबिया ने किया था कि उन्होने भी क़ौम को ला वारिस नही छोड़ा था और आप ने भी अपने बाद एक वाज़ेह रास्ता और मुसतहकम निशानी उम्मत के लिये छोड़ी।
नहजुल बलाग़ा और अंबिया ए केराम का इंतेख़ाब
ख़ुदा वंदे आलम ने हज़रत आदम अलैहिस सलाम की औलाद में से उन अंबिया का इंतेख़ाब किया। जिन से वही (पैग़ाम) की हिफा़ज़त और पैग़ाम की तबलीग़ की अमानत का अहद लिया इस लिये कि आख़िरी मख़लूक़ात ने अहदे इलाही को तब्दील कर दिया था। उस के हक़ से ना वाक़िफ़ हो गये थे। उस के साथ दूसरे ख़ुदा बना लिये थे और शैतान ने उन्हे मारेफ़त की राह से हटा कर इबादत से यकसर जुदा कर दिया था।
परवर दिगारे आलम ने उन के दरमियान रसूल भेजे। अंबिया का तसलसुल क़ायम किया ता कि वह उन से फ़ितरत की अमानत को वापस लें और उन्हे भूली हुई नेमते परवर दिगार को याद दिलायें। तबलीग़ के ज़रिये उन पर इतमामे हुज्जत करें और उन की अक़्ल के दफ़ीनों के बाहर लायें और उन्हे क़ुदरते इलाही की निशानियां दिखलायें। यह सरों बुलंद तरीन छत, यह ज़ेरे क़दम गहवारा, यह ज़िन्दगी के असबाब, यह फ़ना करने वाली अजल, यह बूढ़ा बना देने वाले अमराज़ और यह पय दर पय पेश आने वाले हादसे।
उस ने कभी अपनी मख़लूक़ात को नबी ए मुरसल या किताबे मुनज़ल या हुज्जते हाज़िम या तरीक़े वाज़ेह से महरुम नही रखा है। ऐसे रसूल भेजे हैं जिन्हे न अदद की क़िल्लत काम से रोक सकती थी और न झुठलाने वालों की कसरत। उन में पहले था उसे बाद वाले का हाल मालूम था और जो बाद में आया उसे पहले वाले पहचनवा दिया था और यूँ ही सदियां गुज़रती रहीं और ज़माने बीतते रहे। आबा व अजदाद जाते रहे और औलाद व अहफ़ाद आते रहे।
नहजुल बलाग़ा में हज़रत आदम (अ) की ख़िलक़त की कैफ़ियत
परवर दिगारे आलम ने ज़मीन के सख़्त व नर्म और शूर व शीरीं हिस्सों से ख़ाक को जमा किया और उसे पानी से इस क़दर भिगोया कि बिल्कुल ख़ालिस हो गई और फिर तरी में इस क़दर गूँधा कि लसदार बन गई और उस से एक ऐसी सूरत बनाई कि जिस में मोड़ भी थे और जोड़ भी। आज़ा भी थे और जोड़ व बंद भी। फिर उसे इस क़दर सुखाया कि मज़बूत हो गई और इस क़दर सख़्त किया कि खनखनाने लगी और यह सूरत हाल एक वक़्ते मुअय्यन और मुद्दते ख़ास तक बर क़रार रही। जिस के बाद उस में मालिक ने अपनी रुहे कमाल फ़ूंक दी और उसे ऐसा इंसान बना दिया कि जिस में ज़हन की जौलानियां भी थी और फ़िक्र के तसर्रुफ़ात भी। काम करने वाले आज़ा व जवारेह भी थे और हरकत करने वाले अदवात व आलात भी, हक़ व बातिल में फ़र्क़ करने वाली मारेफ़त भी थी और मुख़्तलिफ़ ज़ायकों, ख़ुशबूओं, रंग व रोग़न में तमीज़ करने की सलाहियत भी। उसे मुख़्तलिफ़ क़िस्म की मिट्टी से बनाया गया। जिस में मुवाफ़िक़ अजज़ा भी पाये जाते थे और मुतज़ाद अनासिर भी थे और गर्मी, सर्दी, तरी व ख़ुश्की जैसी कैफ़ियात भी।
फिर परवरदिगार आलम ने मलायका से मुतालेबा किया कि उस की अमानत को वापस करें और उस की मअहूदा वसीयत पर अमल करें यानी उस मख़लूक़ के सामने सर झुका दें और उस की करामत का इक़रार कर लें। चुंनाचे उस ने साफ़ साफ़ ऐलान कर दिया कि आदम (अ) को सजदा करो और सब ने सजदा भी कर लिया सिवाए इबलीस के कि उसे तअस्सुब ने घेर लिया और बदबख़्ती ग़ालिब आ गई और उस ने आग की ख़िलक़त को वजहे इज़्ज़त और ख़ाक की ख़िलक़त को वजहे ज़िल्लत क़रार दे दिया। मगर परवर दिगारे आलम ने उसे ग़ज़बे इलाही के मुकम्मल इस्तेहक़ाक़, आज़माईश की तकमील और अपने वअदे को पूरा करने के लिये यह कह कर मोहलत दे दी कि तूझे रोज़े वक़्ते मअलूम तक के लिये मोहलत दी जा रही है।
उस के बाद परवर दिगारे आलम ने आदम (अ) को एक ऐसे घर में भेज दिया जहाँ की ज़िन्दगी ख़ुश गवार और मामून व महफ़ूज़ थी और फिर उन्हे इबलीस और उस की अदावत से भी बाख़बर कर दिया। लेकिन दुश्मन ने उन के जन्नत के क़याम और नेक बंदों की रिफ़ाक़त से जल कर उन्हे धोखा दे दिया और उन्होने भी अपने यक़ीने मोहकम को शक और अज़में मुसतहकम को कमज़ोरी के हाथों फ़रोख़्त कर दिया और इस तरह मसर्रत के बदले ख़ौफ़ को ले लिया और इबलीस के कहने में आ कर निदामत का सामान फ़राहम कर लिया। फिर परवर दिगारे आलम ने उन के लिये तौबा का सामान फ़राहम कर दिया और अपने कलेमाते रहमत की तलक़ीन कर दी और उन से जन्नत में वापसी का वअदा कर के उन्हे आज़माईश की दुनिया में उतार दिया। जहाँ नस्लों का सिलसिला क़ायम होने वाला था।
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