बच्चा नासमझ क्यों पैदा होता है

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इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.) की नज़र में
 
नन्हे-मुन्ने नए पैदा होने वाले बच्चे किसे अच्छे नहीं लगते। इन मासूम बच्चों को देख कर बस यही दिल चाहता है कि उन्हें गोद में ले लें, प्यार करें और उन्हें हंसाने की कोशिश करें। नया पैदा होने वाला बच्चा या कुछ महीने का बच्चा चाहे किसी का भी हो एक कोई उसे प्यार करता है। इस प्यार की वजह क्या है? माएं क्यो अपेन बच्चे के कामों को खुशी-खुशी करती हैं? बाप क्यों अपने बच्चो को गोद में लेने को बेताब रहता है? दूसरे रिश्तेदार, अपने-ग़ैर यहाँ तक कि अजनबी लोग तक क्यों इन छोड़े बच्चों को अपनी तरफ़ ध्यान दिला कर उन्हें खिला कुदाकर खुशी महसूस करते हैं।

पैदा होने वाले और छोटे बच्चों के लिये दुनिया भर का प्यार क्यों टूट पड़ता है? इस की वजह यक़ीनी तौर पर बच्चों की मासूमियत, भोलेपर और उम्र के उस हिस्से में बड़ों जैसी अक़्ल और समझ न होना है। पैदा होने वाले बच्चे अगर पैदा होते ही बातें करने लगते तो शायद उन्हें माँ ही प्यार करती बल्कि बचपन में ऐसे पक्के बच्चों की देखभाल और कामों में वह भी इतनी दिलचस्पी और खुशी न महसूस करती।

ये क़ुदरत के अनोखे इंतेज़ाम हैं कि गोश्त का एक लोथड़ा दुनिया में आता है तो वह सारे घर की आंख का तारा बन जाता है। वह बग़ैर बोले हुक्म चलाता है और हुक्म चलाए बग़ैर अपनी बात मनवाता है।

अब ज़रा देर को सोचिए कि पैदा होने वाले बच्चे अगर अपनी ज़िन्दगी के पहले ही दिन से बड़ों की तरह समझदार होते तो क्या होता और यह कि पैदाएश के खास ज़माने तक बच्चों की मासूमियत भोलेपन और कम अक़्ली में ख़ुदा की क्या क्या हिक्मत छिपी हुई है।

शायद आप के पास सोचने का भी वक़्त न हो और हो भी तो आप इस सवाल पर शायद इतनी बारीकी से ग़ौर न कर सकें इस लिये हम इस सब्जेक्ट पर इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.) के इर्शादों से फ़ाएदा उठा सकते हैं।

इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.) 17 रबीउल अव्वल 83 हिज्री में पैदा हुए और 25 शव्वाल 148 हिज्री को अपने ख़ुदा के पास वासप लौट गए। आप की ज़िन्दगी का ज़्यादा हिस्सा इस्लामी उलूम और फ़नों के फैलाने में गुज़रा। आप के दौर में बनी उमय्या की हुकूमत ख़त्म हो रही थी और एक नई ताक़त बनी अब्बास के नाम से उभर रही थी। दोनों ताक़तों की आपस की कशमकश की वजह से इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.) को यह मौक़ा मिल गया कि आप महीने में सुकून से इस्लामी उलूम को फैला सकें।

आप (अ.) के दौर में इस्लामी तालीमात नए-नए फ़लसफ़ों में मुक़ाबले में थीं। नए-नए फ़िरक़े बन रहे थे और अपनी राय से तफ़सीर के ज़रिये क़ुर्आन की आयतों के माइनी और मतलब को अपने पसंदीदा रंग में रंगा जा रहा था।

उसी ज़माने का क़िस्सा है कि एक शैख़ जिस का नाम इब्ने अबिल औजा था एख दिन मस्जिदे नबवी में अपने साथियों के साथ बेठा था। यह सब लोग अल्लाह के वुजूद को नहीं मानते थे उन का ख़याल था कि यह सारी दुनिया बिना किसी पैदा करने वाले के पैदा हो गई है। मस्जिदे नबवी में कुछ दूसरी पर इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.) के एक शागिर्द मुफ़ज़्ज़ल बिन अम्र भी मौजूद थे। दहरियों का यह ग्रुप रसूले इस्लाम (स.) के लाए हुए दीन की कामयाबियों के बारे में बातचीत कर रहा था कि इसी बीच इब्ने अबिल औजा ने कहाः- मुहम्मद, का ज़िक्र छोड़ों, पहले यह ग़ौर करो कि ख़ुदा ख़ुदा है भी या नहीं।

इब्ने अबिल औजा का यह जुमला सुन कर मुफ़ज़्ज़ल ग़ुस्से से भर गए। आपने बहुत ही ग़ुस्से में उस से कहा, "ऐ ख़ुदा के दुश्मन! अल्लाह के दीन को झुटलाते हो जिसने तुम्हें अच्छी सूरत में पैदा किया है?

इब्ने अबिल औजा ने बड़े सुकून से जवाब दिया अगर तुम जाफ़िर बिन मुहम्मद (अ.) के सहाबियों में से हो तो उनका बात करने का अंदाज़ तो बिल्कुल ऐसा नहीं है। उन्हों ने हमारी बातें इस से ज़्यादा कड़वी-कड़वी सुनी हैं लेकिन उन्हों ने हमारी बातें सुन कर कभी तुम्हारी तरह ग़ुस्सा नहीं किया। न वह कभी झुंझलाहट का शिकार हुऐ न हमें मारने को दौड़े। इस के उलट वह हमारी बातें पूरे ध्यान के साथ सुनते हैं और अपनी दलीलों से हमें लाजवाब कर देते हैं। वह वाक़ई बहुत नर्म, इज़्ज़त वाले और समझदार इंसान हैं। अग तुम उन के असहाब में से हो तो उन्हीं की तरह हम से बात करो।

ये सुन कर मुफ़ज़्ज़ल ने अपने ग़ुस्से पर कंट्रोल किया और इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.) की ख़िदमत में पहुंचे और इमाम (अ.) ने मुफ़ज़्ज़ल से कहाः-

तुम परेशान न हो। कल सुब्ह मेरे पास आना, मैं तुम्हें दरिंदो, परिंदो, कड़े-मकोड़ों, हैवानों,इंसानों, जमादात, नबातात यानी दुनिया में मौजूद सारी मख़लूक़ात की पैदाएश में छुपी हुई ख़ुदा की ऐसी हिकमतें बताऊंगा जिनको सुन कर इबरत हासिल करने वाले यक़ीनी तौर पर इबरत हासिल करेंगे, मोमिनों के दिलों को इत्मिनान हासिल होगा और ख़ुदा के दुश्मनों की अक़्ल हैरान और परेशान रह जाएगी।

इमाम की यह बातें सुन कर आपके शागिर्द मुफ़्ज़्ज़ल को बड़ी तसल्ली हुई। अगले दिन से वह एक तय वक़्त पर इमाम की ख़िदमत में हाज़िर होने लगे। इमाम जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम लेक्चर देना शुरु करते और उन के शागिर्द उन के लेक्चर को लिखना शुरु कर देते। इस तरह की कुल चार बैठकों में इमाम (अ.) ने जो लेक्चर दिये वह किताबों में महफ़ूज़ हैं।

इन लेक्चर्स के दौरान इमाम (अ.) ने ज़मीन व आसमान, सूरज और चाँद-सितारों की पैदाईश के बारे में बेशुमार हिकमतें बयान कीं। इस आर्टिकल में हम इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.) का वह हिस्सा पेश कर रहे हैं जो हमारे सब्जेक्टस को टच कर रहा है कि पैदाईश के वक़्त बच्चे के नासमझ होने में ख़ुदा की क्या हिक्मतें छिपी हुई हैं।

आईए यह हिकमतें इमाम जाफ़र सादिक़ (अ.) की ज़बानी सुनते हैं।


पहली हिक्मत

अगर बच्चा अक़लमन्द और समझदार पैदा होता तो वह इस दुनिया में आकर हैरान और परेशान हो जाता। यहाँ कि हर चीज़ उस के लिये अजनबी होती। इसलिए वह हैरत के मारे होशो हवास खो बैठता।

ऐ मुफ़्ज़्ज़ल! इसे यूँ समझो कि जैसे कोई शख़्स किसी एक मुल्क से क़ैद होकर दूसरे मुल्क में जाए और उसकी अक़्ल भी ठीक हो तो देखोगे कि वह कैसा हैरान और परेशान होता है। वह न तो वहाँ की ज़बान जल्दी सीख सकता है और न वहाँ के कल्चर को क़बूल कर सकता है। इसके उलट अगर उसे बचपने ही में जब उस की समझ काम न करती हो, क़ैद कर के किसी दूसरे मुल्क में पहुंचा दिया जाए तो वह बहुत जल्दी वहाँ की ज़बान, वहाँ के कल्चर और अंदाज़ को सीख लेगा।

इसी तरह अगर बच्चा समझदार होता और अचानक आँख खोलते ही वह इस दुनिया की अजीब-अजीब चीज़ें और अलग-अलग तरह की सूरतें और तरह तरह के अजाएबात को देखता तो सख़्त ताज्जुब और हैरत में रहता और बहुत ज़माने तक यह बात उसकी अक़्ल में न आतीकि वह कहाँ था, कहाँ आ गया और जो कुछ देख रहा है वह क्या है। ये ख़्वाब है या जागने की हालत में ये चीज़ें दिखाई दे रही हैं।


दूसरी हिक्मत

फिर अगर बच्चा अक़्लमंद और समझदार पैदा होता तो जब खुद को देखता कि कोई उसे गोद में उठाए हुऐ है, उसको दूध पिलाया जाता है, उसे ज़बरदस्ती कपड़ों में लपेटा जाता है,उसे झूले में लिटाया जाता है तो उसे कितनी झंझलाहट और ज़िल्लत महसूस होती।

इसके अलावा बच्चे के होशियार और अक़लमंद होने में माँ-बाप के दिलों को उस से वह मिठास न मिलती और न लोगों के दिलों में उस के लिए इतनी मुहब्बत होती जो आमतौर पर मासूम और न समझ बच्चों को खिलाने कुदाने से बड़ों के दिलों में होती है। उन के भोले पन और मासूमियत ही की वजह से तो घर के बुज़ुर्ग, माँ-बाप या दूसरे रिश्तेदार बच्चों को प्यार करते हैं और इसी वजह से बच्चे उन का ध्यान खींचते हैं।


तीसरी हिक्मत

इसलिए बच्चा दुनिया में इस तरह पैदा होता है कि कुछ समझ नहीं पाता। दुनिया से बिल्कुल बेख़बर होता है और तमाम चीज़ों को अपने बहुत ही कमज़ोर ज़हन और अधूरी अक़्ल से देखता है जिसकी वजह से उसे किसी चीज़ को देखकर हैरानी नहीं होती।

फिर धीरे-धीरे उसकी अक़्ल और समझ बढ़ती रहती है ताकि वह बराबर तमाम चीज़ों को पहचानने लगे। उसके ज़हन को आदत हो जाए और फिर वह उस पर बाक़ी रहे और उसे ग़ौर करने की ज़रूरत न पड़े, न उसको हैरत हो। तजुर्बे से बराबर उसकी अक़्ल बढ़ती रहे और फ़रमांबरदारी, भूल-चूक औऱ नाफ़रमानी के एक्शन और रिएक्शन को अच्छी तरह समझ सके।


चौथी हिक्मत

ये बच्चा अगर अक़्ल वाला और समझदार पैदा होता और पैदा होते के साथ ही अपने कामों को समझने लगता तो माँ-बाप को अपनी औलाद की परवरिश में बिल्कुल मज़ा न आता और वह वजह जिस से माँ-बाप अपने औलाद के लिए हर वक़्त लगे रहते हैं, ख़त्म हो जाती, ऐसी सूरत में बच्चों पर माँ-बाप की वह मेहरबानी और मुहब्बत बाक़ी नहीं रहती जो उन के छोटे से बच्चों की परवरिश और देखभाल के लिए ज़रूरी है (जैसे तजुर्बा न होने की वजह से कोई जानवर बच्चे को नुक़सान पहुंचा देता या बच्चा ग़लत चीज़ खा कर मर जाता) यही नासमझी है जिसकी वजह से वह उन के लिये तकलीफ़ें बर्दाश्त करते हैं।


पांचवी हिक्मत

ऐसी सूरत में न औलाद को माँ-बाप से मुहब्बत होती और न माँ-बाप को औलाद से। बच्चे अपनी अक्ल की वजह से माँ-बाप की देख भाल की ज़रूरत ही महसूस न करते और पैदा होते ही माँ-बाप से अलग हो जाते। फिर तो न कोई शख़्स अपने माँ-बाप को पहचानता, और न भाई बहनों को और न ही किसी महरम लोगों को पहचान पाता क्यूं कि वक़्त गुज़रने के साथ उसे मालूम ही न हो पाता कि कौन उसकी मां है और कौन उसकी बहन है।


छटी हिक्मत

ऐसी सूरत में जो कम से कम बुराई है, वह बड़ी ख़राबी और बहुत बुरी बात है और वह यह कि अगर बच्चा माँ के पेट से समझदार पैदा होता तो उस चीज़ को देखता जिसे देखना जाएज़ नहीं है।

ऐ मुफ़्ज़्ज़ल, क्या तुम नहीं देखते कि अल्लाह ने अपनी मख़लूक़ को किस तरह पैदा किया कि उसकी हर मख़लूक़ कितनी अच्छी बनाई गई है और हर छोटी बड़ी चीज़ ग़लती और ख़ता से ख़ाली है।


बच्चा रोता क्यों है

ऐ मुफ़ज़्ज़ल! ज़रा ग़ौर करो कि बच्चों के रोने में क्या फ़ाएदा है। असल में बात यह है कि बच्चों के दिमाग़ में नमी होती है। अलग वह उन के दिमाग़ में रह जाती तो तरह-तरह की मुसीबतें उन पर पड़तीं, और कईं बुमीरियाँ उन्हें लग जातीं। जैसे आँखों की रौशनी जाती रहती या और कोई ख़तरनाक बीमारी उन्हें लग जाती। इसलिए रोने से ये बीमारियाँ उनके दिमाग़ से निकल जाती हैं और उन की आँखें बची रहती हैं।

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