दुआ ए अलक़मा का तर्जुमा

दुआऐ
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ऐ अल्लाह, ऐ अल्लाह, ऐ अल्लाह, ऐ परेशान व मुज़तरिब लोगों की दुआ क़ुबूल करने वाले, ऐ मुसीबत ज़दा लोगों की मुश्किलात हल करने वाले, ऐ इस्तेग़ासा करने वालों के फ़रियाद-रस, ऐ फ़रियादियों की फ़रियाद सुनने वाले और ऐ वह ज़ात जो मेरी शहरग से भी ज़्यादा मेरे नज़दीक है, ऐ वह जो इन्सान और उसके दिल के दरमियान हाएल हो जाता है और वह जो नज़र से बालातर जगह और रौशनतर किनारे में है, ऐ वह जो दुनिया में रहमान और आख़िरत में रहीम, ऐ वह जो अर्श पर हावी हुआ, ऐ वह जो आँखों के नारवा इशारे और दिलों के राज़ को जानता है, ऐ वह जिससे कोई भेद पोशीदा नहीं रह सकता, ऐ वह जिस पर आवाजें मुश्तबह नहीं होतीं कि किस की आवाज़ है, ऐ वह जिसको हाजत-रवाई में देर नहीं होती, ऐ वह जिसे मांगने वालों का इसरार बेज़ार नहीं करता ऐ हर गुमशुदा को पा लेने वाले, ऐ मुन्तशिर होने वालों को इकट्ठा करने वाले, ऐ मौत के बाद लोगों को ज़िन्दा करने वाले, ऐ वो जिसके हर दिन की एक नई शान है, ऐ हाजतों को पूरा करने वाले, ऐ मुश्किलात को दूर करने वाले, ऐ सवालों के अता करने वाले, ऐ ख़्वाहिशों पर इख़्तेयार रखने वाले, ऐ मुश्किलात में किफ़ायत करने वाले, ऐ वह जो हर चीज़ में किफ़ायत व मदद करता है और इसके अलावा ज़मीन व आस्मान में कोई शै मदद व किफ़ायत नहीं कर सकती। मैं तुझसे सवाली हूँ मुहम्मद खातिमुल अम्बिया, अमीरुल मोमिनीन (हज़रत) अली, तेरे नबी की नूरे नज़र फ़ातिमा ज़हरा के हक़ के वास्ते से और हसन अ.स. व हुसैन अ.स. के हक़ के वास्ते से ”जिन पर और जिनकी आल पर तेरी रहमत नाज़िल हो“ और इन्हीं हज़रात के वसीले के साथ इस मक़ाम पर तेरी तरफ़ मुतवज्जे हूँ और उन्हीं को तेरी बारगाह में वसीला और सिफ़ारशी क़रार देता हूँ और इन्हीं के हक़ के वास्ते तुझसे सवाल करता हूँ और तुझे उन्हीं की क़सम देकर तुझसे सवाली हूँ उनकी उस शान के तवस्सुत से जो तेरे नज़दीक है और इनकी उस क़द्र व मन्ज़िलत के वसीले से जो तेरे नज़दीक है जिसके सबब तूने उन्हें आलमीन पर फ़ज़ीलत बख़्शी और तेरे उस इस्म के तवस्सुत से जो तूने उन्हें अता किया और उसके ज़रिए उन्हें तमाम आलमीन पर ख़ुसूसियत अता की और उनकी फज़ीलत व बड़ाई को आलमीन की फज़ीलतों से बढ़ा दिया, यहाँ तक कि उनकी फ़ज़ीलत व बड़ाई तमाम जहानों की फज़ीलत से आगे बढ़ गई, मैं सवाल करता हूँ तुझसे मुहम्मद व आले मुहम्मद पर रहमत नाज़िल कर और यह कि मुझसे मेरे हर ग़म, हर रन्ज और मुसीबत को दूर फ़रमा, और मेरे मुश्किल उमूर में मेरी किफ़ायत व मदद फ़रमा और मेरे कर्ज़ को अदा फ़रमा और मुझे फ़क्ऱ व तंगदस्ती और नादारी व मुफ़लिसी से छुटकारा दे, मुझे लोगों से बे-नियाज़ कर दे और मेरी किफ़ायत व मदद फ़रमा उस अन्देशे में जिससे मैं खौफ़ज़दा हूँ और उस तन्गी में जिसका मुझे ख़तरा लाहक़ है और उस ग़म में जिस ग़म से मैं हिरासां हूँ और उस शर में जिस शर से मैं डरता रहता हूँ और उस मक्र से मैं जिस से ख़ौफ़ खाता हूँ और उस बग़ावत में जिससे मैं ख़ौफ़जदा रहता हूँ और उस ज़ुल्म में जिससे मैं सहम जाता हूँ, उस तसल्लुत और उस फ़रेब में जिससे मैं ख़ौफ़ खाता हूँ और उस क़ुदरत में जिससे मैं हिरासा व ख़ौफ़-ज़दा रहता हूँ मुझसे फ़रेब और चाल चलने वालों के फ़रेब को और मक्र व हीला करने वालों के मक्र व हीले को दूर कर, ख़ुदाया! जो मेरे साथ जैसा इरादा व फ़रेब करे तू उसके साथ वैसा ही इरादा और चाल चल, और मुझसे दूर कर दे उसके धोखे, मक्र, सख़्तियों व बुरी सोच को, और उसको रोक दे मुझसे जैसे भी और जिस मक़ाम पर भी तू चाहे, ख़ुदाया उसको मेरी याद से ग़ाफ़िल कर दे ऐसे फ़क्र में मुब्तिला करके जो दूर न हो और ऐसी बला में गिरफ़्तार कर कि जिसे तू न टाले, और ऐसी तंगदस्ती दे कि जिसे तू न हटाए और ऐसी बीमारी दे कि जिससे तू न बचाए, ऐसी ज़िल्लत के ज़रिए जिसमें तू इज़्ज़त न दे और ऐसी लाचारगी के ज़रिए जिसे तू दूर न करे, ख़ुदाया मेरे दुश्मन की ज़िल्लत व रुस्वाई उसकी नज़रों के सामने ज़ाहिर कर दे, और उसके घर में फ़क्र व फ़ाक़े दाखि़ल कर, और उसके बदन में दुख और बीमारी क़रार दे यहां तक कि वह मेरी तरफ़ से ग़ाफ़िल हो कर अपनी ही फ़िक्र में पड़ जाए और उस से उसे फ़ुर्सत न मिले उसे मेरी याद भुला दे जैसे उसने तुझे भुला रखा है और मेरे बारे में उसके कान, उसकी आँख, उसकी ज़बान, उसके हाथ, उसके पैर, उसके दिल, और तमाम आज़ा व जवारेह को रोक दे और उन तमाम चीज़ों में उस पर ऐसी बीमारी आरिज़ कर जिससे उसे शिफ़ा हासिल न हो यहां तक कि वह इसी में मशग़ूल रहे और मुझसे और मेरी याद से ग़ाफ़िल हो जाए, और मेरी मदद कर, ऐ मददगार कि तेरे सिवा कोई मददगार नहीं, क्योंकि तू मेरे लिए काफ़ी है तेरे सिवा कोई किफ़ायत करने वाला नहीं, तू कशाईश देने वाला है तेरे सिवा कशाईश देने वाला नहीं, तू फ़रियादरस है, तेरे सिवा फ़रियादरस नहीं, तू पनाह देने वाला है तेरे सिवा कोई पनाहगाह नहीं, जिसने तेरे ग़ैर की पनाह ली और जिसका फ़रियादरस तेरा ग़ैर हो या तेरे ग़ैर को जाए-पनाह बनाया हो और वह तेरे ग़ैर की तरफ़ दौड़ा हो, या तेरे ग़ैर की पनाह ली और तेरे ग़ैर को मख़्लूक़ में से अपने लिए नजात देने वाला बनाया हो तो वह ना-उम्मीद हुआ, पस तू ही मेरा आसरा, मेरी उम्मीद, मेरी जाए फ़रियाद, मेरा ठिकाना, मेरी पनाहगाह और नजात देने वाला है पस तुझ ही से नजात और कामयाबी चाहता हूँ मैं मुहम्मद और आले मुहम्मद के वसीले से तेरी तरफ़ मुतवज्जे हूँ और तेरे हुज़ूर उन्हें अपना वसीला और सिफ़ारशी क़रार देता हूँ पस तुझसे सवाली हूँ ऐ अल्लाह, ऐ अल्लाह, ऐ अल्लाह तेरे लिए हम्द मख़सूस है, और तू ही लाएक़े शुक्रिया है, और तेरी बारगाह में हम फ़रयाद लेकर हाज़िर हुए हैं, तू ही मददगार है, पस मैं तुझसे सवाल करता हूँ, ऐ अल्लाह, ऐ अल्लाह, ऐ अल्लाह, मुहम्मद व आले मुहम्मद के हक़ का वास्ता कि तू मुहम्मद व आले मुहम्मद पर रहमत नाज़िल कर, और दूर कर दे मुझसे मेरे ग़म, मेरी मुश्किल और मेरी मुसीबत को इस जगह जिस तरह तूने अपने नबी से उनके रन्जो ग़म और मुसीबत को दूर किया और उनके दुश्मन के ख़ौफ़ में उनकी मदद की, पस मेरी मुश्किल को उनकी मुश्किल की तरह दूर कर, मेरे रन्ज को उनके रन्ज की तरह दूर कर, मेरी किफ़ायत व नुसरत फ़रमा जिस तरह उनकी नुसरत की थी, मुझसे मेरे ख़ौफ़ व हौल और मेरी उन ज़हमतों को जिनसे मैं ख़ौफ़-ज़दा रहता हूँ और उन अन्देशो को जिनसे मैं डरता हूँ इसतरह दूर कर दे कि मुझे कोई ज़हमत न उठानी पड़े और मुझे (इस मुक़द्दस मक़ाम से) इस हालत में पलटा कि मेरी हाजतें पूरी हो चुकी हों और मेरे उख़रवी और दुनियावी मामलात में मेरी किफ़ायत व मदद की जा चुकी हो, ऐ अमीरुल मोमिनीन और ऐ अबू-अब्दिल्लाह आप दोनों पर मेरी जानिब से अल्लाह का हमेशा बाक़ी रहने वाला सलाम हो, जब तक मेरी साँसें बाक़ी हैं और जब तक गर्दिशे लैल व नहार बाक़ी है। ख़ुदा आप दोनों हज़रात की इस ज़ियारत को मेरी आखि़री ज़ियारत क़रार न दे और अल्लाह मेरे और आप दोनों हज़रात के दरमियान जुदाई न डाले, ख़ुदाया! मुझे मुहम्मद और उनकी ज़ुर्रीयते पाक की हयात की तरह हयात और मौत के मिस्ल मौत अता फ़रमा। मुझे इनके ही मसलक और उनके तरीक़ए कार पर मौत दे। मेरा हश्र इनके साथ क़रार दे और मेरे और इनके दरमियान दुनिया व आख़िरत में हमेशा एक पल की भी जुदाई न डाल, ऐ अमीरुल मोमिनीन अली इब्ने अबी तालिब अ0 और ऐ अबा अब्दिल्लाह मैं आप दोनों की ज़ियारत के लिए आया हूँ और इसको अपने और आप दोनो परवरदिगार के हुज़ूर वसीला क़रार देता हूँ और आपके वसीले ही से उसकी तरफ़ मुतवज्जेह हूँ और आप दोनों हज़रात को बारगाहे ख़ुदा में सिफ़ारशी बनाता हूँ, पस आप दोनों हज़रात मेरी सिफ़ारिश कीजिए चूँकि अल्लाह की बारगाह में आपका मक़ाम पसन्दीदा है आबरू है, मर्तबा बुलन्द है और वसीला मज़बूत है। बेशक मैं आप दोनों की बारगाह से इस इन्तेज़ार के साथ वापस हो रहा हूँ कि मेरी हाजत और मुराद ख़ुदा की बारगाह से दोनों की सिफ़ारिश के ज़रिए पूरी हो कि आप दोनों बारगाहे ख़ुदा में मेरी सिफ़ारिश करेंगे लिहाज़ा मैं मायूस नहीं हूँ और मेरी वापसी ऐसी वापसी नहीं है जिसमें ना-उम्मीदी और ख़सारा हो बल्कि मेरी वापसी ऐसी है जो बेहतरीन नफ़ा बख़्श, कामयाब, नजात याफ़ता, मेरी दुआ तमाम हाजतों की बर-आवरी की हामिल है जबकि आप ख़ुदा के यहाँ मेरे सिफ़ारशी हैं। मैं पलट रहा हूँ इस अम्र पर जो ख़ुदा चाहे अल्लाह के अलावा कोई ताक़त व क़ुव्वत नहीं, मैं अपना मामला अल्लाह को सौंपता हूँ, वही मेरा पुश्तपनाह् है और उसी पर भरोसा रखता हूँ और कह रहा हूँ कि अल्लाह ही मेरा निगहबान और मददगार है, ख़ुदा हर उस पुकारने वाले की आवाज़ सुनता है जो उसे पुकारता है, अल्लाह के अलावा मेरा कोई ठिकाना नहीं और आप ऐ मेरे सय्यद व सरदार, जो अल्लाह चाहता है वही होता है और जो न चाहे वह नहीं हो सकता। अल्लाह के अलावा कोई ताक़त व क़ुव्वत नहीं, मैं आप दोनों हज़रात को ख़ुदा की सिपुर्दगी में देता हूँ, ख़ुदा मेरी जानिब से आप दोनों की ज़ियारत को आखि़री ज़ियारत न क़रार दे। मैं आपकी बारगाह से पलट रहा हूँ ऐ मेरे मौला ऐ अमीरुल मोमिनीन और ऐ मेरे आक़ा ऐ अबा अब्दिल्लाह ऐ मेरे सय्यद व सरदार आप दोनों पर मेरा मुतवातिर सलाम हो जब तक गर्दिशे लैल व नहार बाक़ी है यह सलाम आप दोनों तक पहुँचता रहे और इस सलाम का सिलसिला रुकने न पाए अगर अल्लाह की मर्ज़ी शामिले हाल रही और मैं आप दोनों के हक़ के साथ अल्लाह से सवाली हूँ कि वह यही चाहे और यही करे क्योंकि वही लाएक़े हम्द और बुज़ुर्ग शान वाला है ऐ मेरे दोनों आक़ा मैं आपकी बारगाह से अल्लाह अज़्ज़ व जल्ल से तौबा और उसकी हम्द व शुक्र बजा लाते हुए क़ुबूलियते दुआ का उम्मीदवार होकर पलट रहा हूँ न कि नाउम्मीद और मायूस हो कर। मैं आपकी बारगाह से दोबारा हाज़िरी देने के इरादे के साथ, न यह कि आप दोनों से और ना ही आप दोनों की ज़ियारत से मुँह मोड़ कर बल्कि दोबारा आने के इश्तियाक़ के साथ पलट रहा हूँ अगर ख़ुदा की तौफ़ीक़ शामिले हाल रही और ख़ुदा के अलावा कोई ताक़त व क़ुव्वत नहीं,ऐ मेरे आक़ा मैं मुश्ताक हूँ आप दोनों हज़रात और आपकी ज़ियारत का जबकि अहले दुनिया आप और आपकी ज़ियारत से बे-रग़बत है। पस ख़ुदा मुझे उस चीज़ के बारे में जिसकी मैं उम्मीद रखता हूँ ना उम्मीद न करे और मेरी आरजू़ आप हज़रात की ज़ियारत है। बेशक वह नज़दीकतर और क़ुबूल करने वाला है

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