मुनासिब है कि मैयित के दफ़्न के बाद पहली रात में उसके लिए दो रकत नमाज़े वहशते क़ब्र पढ़ी जाये और उसके पढ़ने का तरीक़ा यह है कि पहली रकत में सूरः ए अलहम्द के बाद एक बार आयतल कुर्सी और दूसरी रकत में हम्द के बाद दस बार सूरः ए इन्ना अनज़लना पढ़े और नमाज़ का सलाम पढ़ने के बाद कहे अल्लाहुम्मा सल्लि अला मुहम्मदिन व आलि मुहम्मद वबअस सवा-बहा इला क़ब्रि----ख़ाली जगह पर मैयित का नाम ले।
नमाज़े वहशते क़ब्र, मैयित के दफ़्न करने के बाद पहली रात में किसी भी वक़्त पढ़ी जा सकती है, लेकिन बेहतर यह है कि अव्वले शब में इशा की नमाज़ के बाद पढ़ी जाये।
अगर मैयित को किसी दूसरे शहर ले जाना हो या किसी और वजह से उसके दफ़्न में देर हो जाये तो नमाज़े वैहशत को दफ़्न की पहली रात तक मुलतवी कर देना चाहिए।
नमाज़े वहशते क़ब्र
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